बक्सों से उपचारों के संदर्भ में संयुक्त सूचना

विकार-निर्मूलन हेतु प्रतिदिन बक्सों से उपचार करने की
सामान्य अवधि तथा विकार की तीव्रता के अनुसार बक्सों से उपचार बढाना

विकार-निर्मूलन हेतु बक्सों से उपचार सामान्यत प्रतिदिन १ से २ घंटे करें । कुछ दिन प्रतिदिन १ से २ घंटे बक्सों से उपचार करने पर भी विकार घट न रहे हों अथवा नियंत्रित न हो रहे हों, तो उपचारों में वृद्धि करें ।

 

बक्सों से उपचारों के संदर्भ में संयुक्त सूचना

अ. बक्सों से उपचार करते समय ध्यान में रखने योग्य सूचना

अ १. उपचारों के समय एेसे बैठें ! : उपचार करने के लिए यथासंभव पूर्व-पश्चिम दिशा में बैठें । किसी भी स्थिति में दक्षिण दिशा में मुख कर न बैठें ।

अ २. उपास्यदेवता से भावपूर्ण प्रार्थना करें ! : प्रार्थना एेसे करें – ‘हे प्रभु (भगवान का नाम लें), आपकी कृपा से मेरी (व्याधि का नाम लें) व्याधि का उपचार हो आैर मैं शीघ्रातिशीघ्र व्याधिमुक्त हो जाऊं, एेसी आपके चरणों में प्रार्थना है ।’

अ ३. उपचार भावपूर्ण करें ! : भगवान भाव के भूखे होते हैं ! हमारे भाव के कारण बक्से में विद्यमान आकाशतत्त्व अधिक मात्रा में कार्यरत होता है तथा हमारा कष्ट शीघ्र घटने में सहायता मिलती है ।

अ ३ अ. उपचार भावपूर्ण होने हेतु किए जानेवाले कुछ कृत्य

१. ‘बक्से में देवत्व है’, इस भाव से बक्से को नमस्कार तथा प्रार्थना करें ।

२. उपचार करते समय ‘बक्से में विद्यमान आकाशतत्त्व के कारण मुझ पर छाया कष्टदायक आवरण तथा मुझमें विद्यमान सारी कष्टदायक शक्ति नष्ट हो रही है आैर मैं चैतन्य ग्रहण कर रहा हूं’, एेसा भाव रखें ।

अ ४. उपचार पूर्ण होने पर उपास्यदेवता के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करें ! : ‘हे देवता, आपकी कृपा से ही मैं उपचार कर पाया । मैं आपके चरणों में कृतज्ञ हूं’, एेसी कृतज्ञता व्यक्त करें ।

आ. अन्य सूचनाएं

आ १. उपचार के बक्सों को शुद्ध करें !

प्रतिदिन सात्त्विक अगरबत्ती के धुएं से बक्से शुद्ध करें ।

आ २. बक्से के रिक्त स्थान में देवत्व जागृत रखने हेतु निम्नांकित कार्य करें !
  • प्रार्थना करना : ‘उपास्यदेवता से प्रार्थना करें कि ‘हे देवता, बक्से के रिक्त स्थान में चैतन्य निरंतर सक्रिय रहे ।’
  • अगरबत्ती दिखाना : थोडे-थोडे समय पश्चात बक्से के रिक्त स्थान में अगरबत्ती घुमाकर उसमें स्थित देवत्व को सक्रिय रखें ।’

– एक विद्वान, १६.१०.२००७, दोपहर १२.३५. [सनातन की सद्गुरु (श्रीमती) अंजली गाडगीळ का लेखन ‘एक विद्वान’, ‘गुरुतत्त्व’ आदि नामों से प्रकाशित है ।]

बक्सों से अप्रत्यक्ष उपचार करने की कुछ पद्धतियां

अ. विकार दूर होने के लिए व्यक्ति का अपना पूर्ण नाम लिखा कागद (कागज) अथवा अपना छायाचित्र बक्से में रखना

अ १. विधि : व्यक्ति का विकार दूर होने के लिए वह अपना पूर्ण नाम एक कोरे कागद पर लिखकर वह कागद बक्से में रखे अथवा अपना छायाचित्र बक्से में रखे ।

अ २. विशेष उपयुक्तता : व्यक्ति के आसपास उपचारों के लिए बक्से रखना संभव न हो (उदा. रोगी अतिदक्षता विभाग में हो, घुटनों के बल चलनेवाला बच्चा) तब उसके लिए ये उपचार अवश्य करें ।

आ. व्यक्ति के मन में नकारात्मक, निराशाजनक, अनिष्ट अथवा साधना से दूर ले जानेवाले विचार हों, तो व्यक्ति का वे विचार कागद पर लिखकर कागद बक्से में रखना अथवा अपने हाथ से लिखा कागद अथवा अपनी बही बक्से में रखना आ १. विधि

अ. व्यक्ति उपरोल्लेखित विचार एक कोरे कागद पर लिखकर, उस लेखन के चारों आेर ‘ॐ नमो भगवते वासुदेवाय’ इस नामजप का अथवा उपास्यदेवता के नामजप का लिखित मंडल बनाकर वह कागद बक्से में रखे ।

आ. उपरोक्त कृत्य करना संभव न हो, तो व्यक्ति अपनी लिखाई का कोई भी कागद अथवा बही बक्से में रखे । लिखाई यथासंभव कष्ट हो रहे काल की हो ।

‘बक्सों की सहायता से वास्तुशुद्धि कैसे करनी चाहिए ?’ इस संबंध में विवेचन ग्रंथ में किया है ।

विस्तृत विवेचन के लिए पढें : सनातन का ग्रंथ ‘विकार-निर्मूलन हेतु रिक्त गत्ते के बक्सों से उपचार (भाग २)

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