प्रयागराज (इलाहाबाद) राष्ट्रीय संग्रहालय में ‘भारतीय संस्कृति और संग्रहालय’ विषय पर व्याख्यान !
प्रयागराज (उ.प्र.) – ‘प्रकृति में विद्यमान मूलस्थान के दोषों को दूर करना संस्कृति को विकसित करना है । भारतीय संस्कृति मनुष्य जीवन एवं प्रकृति के दोषों को दूर कर विकसित हुई है । यह संस्कृति पहले सिंधु, सरस्वती, गंगा आदि नदियों के तट पर विकसित हुई और उसके पश्चात अन्यत्र फैल गई । भारतीय संस्कृति के संवर्धन हेतु भारत में संग्रहालय संस्कृति विकसित करने की आवश्यकता है ।’ ऐसे विचार सनातन संस्था के राष्ट्रीय प्रवक्ता श्री. चेतन राजहंस ने व्यक्त किए । प्रयागराज राष्ट्रीय संग्रहालय में आयोजित ‘भारतीय संस्कृति एवं संग्रहालय’ विषय पर आयोजित व्याख्यान में वे बोल रहे थे । ‘संग्रहालय संस्कृति के विकास में सनातन संस्था का योगदान’ के विषय में उन्होंने कहा, ‘‘सनातन संस्था संग्रहालय संस्कृति के विकास हेतु सक्रिय है । सनातन संस्था के संस्थापक परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी के मार्गदर्शन में आध्यात्मिक संग्रहालय का निर्माण किया जा रहा है । इस संग्रहालय हेतु सनातन संस्था ने आज तक भारत के अनेक तीर्थस्थान, देवालय, संतों के मठ, संतों के समाधिस्थल, ऐतिहासिक स्थल आदि की अध्यात्मशास्त्रीय दृष्टि से विशेषतापूर्ण वस्तुएं, मिट्टी, पानी तथा पंचमहाभूतों के परिणामों को दर्शानेवाली १५ सहस्र वस्तुएं, छायाचित्र तथा २७ सहस्र से अधिक ध्वनिचक्रिकाओं का संरक्षण किया है । सूक्ष्म जगत की अनुभूति करानेवाला विविध आध्यात्मिक वस्तुओं का विश्व का यह पहला संग्रहालय है । इस संग्रहालय के माध्यम से परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी आध्यात्मिक जगत के इतिहास में एक नया अध्याय लिख रहे हैं !’’
कार्यक्रम के अध्यक्ष श्री. प्रदीप गुप्त ने कहा, ‘हमने इतने वर्ष पश्चात भारतीय संस्कृति के विषय में व्यापक चिंतन सुना । इससे ज्ञात हुआ कि भारतीय संस्कृति की रक्षा हेतु क्यों प्रयत्न करना चाहिए ।’
इलाहाबाद राष्ट्रीय संग्रहालय के मुख्य निदेशक श्री. सुनील गुप्तजी ने कार्यक्रम की प्रस्तावना प्रस्तुत की ।