श्री काळभैरव दंड पूजन तथा स्थापना विधि संपन्न !
भारत की क्षेत्रपालदेवता ‘कालभैरव’ श्री क्षेत्र काशी में ‘स्वर्णकालभैरव’ के रूप में विराजमान हैं । पृथ्वीपर कुल ५१ शक्तिपीठ हैं । इन शक्तिपीठों की रक्षा का कार्य कालभैरव को सौंपा गया है । श्री दुर्गादेवी ने महिषासुरादि असुरों का वध कर धर्मसंस्थापना की । श्री कालभैरव धर्म की रक्षा करते हैं । सनातन आश्रम में श्री कालभैरव दंड का पूजन तथा स्थापना के समय आश्रम के साधकों का यह भाव था कि श्री कालभैरव रामनाथी आश्रमरूपी शक्तिपीठ की रक्षा करनेवाले हैं ।
श्री कालभैरव दंड पूजाविधि
भृगु महर्षिजी की आज्ञा से पहले श्री कालभैरव दंड का हल्दी के जल से तथा उसके पश्चात गुलाबजल से अभिषेक किया गया । दंड को चांदी का कंकण समर्पित किया गया । तत्पश्चात कनेर की पुष्पमाला तथा नीम की माला समर्पित की गई । महर्षिजी की आज्ञा से दक्षिण भारत के तमिलनाडू में उपयोग किया जानेवाला पुनुग नामक इत्र समर्पित किया गया । साथ ही नींबू का रस डालकर बनाए गए चावल का भोग चढाया गया । नींबू के रस का स्वाद खट्टा होता है । यह स्वाद कालभैरव से संबंधित है; क्योंकि नींबू का उपयोग कुदृष्टि दूर करने के लिए अर्थात अनिष्ट शक्तियों के कारण व्यक्ति को हो रहे कष्ट दूर करने के लिए किया जाता है । नींबू का खट्टा स्वाद अनिष्ट शक्तियों को खींच लेता है ।
श्री कालभैरव दंड का पूजन करती हुईं सद्गुुरु (श्रीमती) अंजली
गाडगीळजी एवं सद्गुुरु (श्रीमती) बिंदा सिंगबाळजी को प्रतीत सूत्र
१. सद्गुुरु (श्रीमती) अंजली गाडगीळजी
अ. पुरोहित श्री. दामोदर वझेगुुरुजी जब भैरवाष्टक स्तोत्र का पठन कर रहे थे, तब मुझे सूक्ष्म से ऐसा दिखाई दिया कि आश्रम परिसर में श्री कालभैरवजी का वाहन काला कुत्ता तथा नाग (श्री कालभैरवजी के शरीरपर नाग होते हैं ।) बडी संख्या में आए हैं । मानो वे आश्रम की रक्षा हेतु ही आए हैं, ऐसा प्रतीत हो रहा था ।
आ. काशी में श्री कालभैरवजी को शेंदूर का लेपन किया गया है । दंड का पूजन करते समय ‘शेंदूर विलेपित शक्तिशाली हाथ आश्रम के मुख्य प्रवेशद्वार की चौकटपर घूम रहा था तथा वह हाथ संपूर्ण प्रवेशद्वारपर ही शेंदूर का लेपन कर रहा है, ऐसा दिखाई दे रहा था । इस समय स्वयं श्री कालभैरवजी आश्रम की रक्षा हेतु वज्रकवच बना रहे हैं, ऐसा प्रतीत हुआ । (इसी समय सद्गुुरु (श्रीमती) बिंदा सिंगबाळजी को काशी विश्वेश्वरजी के दर्शन हुए ।)
२. सद्गुुरु (श्रीमती) बिंदा सिंगबाळजी
अ. यज्ञस्थळपर एक संतजी के स्थानपर ध्यानस्थ शिवजी के दर्शन हुए ।
आ. आश्रम में श्री कालभैरव दंड लाए जाने के पश्चात उसकी ओर देखते समय शक्ति प्रतीत हो रही थी । प्रत्यक्ष शिवजी ने संपूर्ण विश्व के साधक जीवों की रक्षा के लिए दंड भेजा है; इसलिए
मेरे द्वारा कृतज्ञता व्यक्त हुई ।
इ. पूजन के समय दंडपर १२ पर्वतों का आवाहन किया गया । उस समय प्रत्यक्षरूप से उनका अस्तित्व प्रतीत हो रहा था ।
ई. एक संतजी के स्पर्श से दंड में विद्यमान देवत्व जागृत होने से ‘अब दंड में शक्ति आई है’, ऐसा लगा । दंड के पूजन के पश्चात हम दोनों ने (सद्गुुरु (श्रीमती) अंजली गाडगीळजी एवं सद्गुुरु (श्रीमती) बिंदा सिंगबाळजी) जब दंड को रखे हुए कलश को उठाया, तब वह बहुत भारी लग रहा था । एक संतजी द्वारा उसका स्पर्श करनेपर वह और भारी लगने लगा । उस पकडने के लिए हम दोनो को मिलकर उसे उठाना पड रहा था; परंतु उसके पश्चात जब उसे घुमटी में स्थापित करते समय मैं अकेली ही उस दंड को उठा सकती । तब वह पुनः हल्का हो गया । संतजी के स्पर्श के पश्चात दंड की स्थापना के लिए उसे घुमटी में रखने की कृती बहुत ही सहजता के साथ हुए । तब मुझे ऐसा लगा कि वह दंड घुमटतक स्वयं ही गया और उसके साथ मेरे हाथ हिल गए ।
मूर्ति, यंत्र तथा दंड का पूजन करते समय मन में विद्यमान भाव
के संबंध में सद्गुुरु (श्रीमती) बिंदा सिंगबाळजी को प्रतीत विशेषतापूर्ण सूत्र !
विगत कुछ वर्षों से महर्षिजी की आज्ञा के अनुसार सनातन के रामनाथी आश्रम में देवता एवं यत्र का पूजन किया जा रहा है । मूर्ति के पूजन के समय देवता का सगुण रूप सामने आने से मन में उसके प्रति अपनेआप भाव प्रकट होता है । जब महर्षिजी ने विविध यंत्रों का पूजन करने के लिए कहा, तब भी मैने मन में यंत्रों के प्रति वैसे ही भाव का अनुभव किया था । दंड का कोई सगुण रूप नहीं है, वह तो श्री कालभैरवजी का अरूप है; परंतु मैने पूजन के समय दंड के प्रति भी वैसे ही भाव का अनुभव किया । तब मुझे ईश्वर सगुण एवं निर्गुण इन दोनों के प्रति समान भाव उत्पन्न कर रहे हैं, ऐसा प्रतीत हुआ ।
क्षणिकाएं
१. श्री कालभैरव दंड का पूजन विधि संपन्न होनेपर पूजास्थल के पास तथा जहां साधक बैठे थे, वहां २ तितलिया आई थीं ।
२. पूजाविधियों से पहले और उनके पश्चात श्री कालभैरव दंड, उसे समर्पित किया गया कंगन, पूजास्थल, साथ ही सद्गुरु (श्रीमती) बिंदा सिंगबाळजी तथा सद्गुुरु (श्रीमती) अंजली गाडगीळजी का यु.टी.एस्. (युनिवर्सल थर्मो स्कैनर) उपकरण के द्वारा परीक्षण किया गया । वे दोनों जब परीक्षण के लिए जाते और वहां से वापस आते समय मार्ग में उन्हें वानर, गाय तथा बछडा दिखाई दिया । परीक्षणस्थलपर मोर, साथ ही खंड्या पक्षी दिखाई दिया । इन सभी प्राणियों की उपस्थिति होना, तो शुभसंकेत है । जब यु.टी.एस्. द्वारा परीक्षण चल रहा होता था, तब तुरंत ही इनमें से कोई प्राणी स्वयं का अस्तित्व दिखाता था, यह भी विशेष बात ही थी !
‘हे श्री कालभैरवजी, आदि शंकराचार्यजी ने कालभैरवाष्टक के माध्यम से आपके चरणों में ‘जब-जब धर्म की पुनर्स्थापना होगी, तब आप धर्म की रक्षा करें ।’, यह प्रार्थना की थी । इस प्रार्थना के अनुसार आज के समय हम जब धर्मप्रसार का व्यापक कार्य कर रहे हैं, तब आप ही हमारे आसपास संरक्षककवच बनाकर हमारी रक्षा कर रहे हैं; इसलिए हम सभी साधक आपकी चरणों में कोटि-कोटि कृतज्ञ हैं ।’
श्री कालभैरव पूजन तथा स्थापना विधि से पहले श्री. विनायक शानभाग को प्राप्त अनुभूतियां !
सद्गुुरु (श्रीमती) अंजली गाडगीळजी एवं सद्गुुरु (श्रीमती) बिंदा सिंगबाळजी ने विधियों के समय रक्तवर्ण की लाल रंग की नौवारी साडी परिधान की थीं । इन दोनों सद्गुरुआें की ओर देखते हुए मैं सभी साधकों की ओर से मैं एक दूत के रूप में प्रार्थना करने लगा । तब मुझे ‘मैं सूक्ष्मशरीर से उनकी आरती उतार रहा हूं । उनके चरणोंपर पुष्प एवं कुंकुम समर्पित कर रहा हूं’, ऐसा दिखाई दिया । वर्ष २००३ में सनातन की सद्गुुरु (कु.) अनुराधा वाडेकरजी को साक्षात श्री दुर्गादेवीजी ने सूक्ष्म से दर्शन दिए थे । उस समय उनके द्वारा निकाले गए चित्र की भांति ही मुझे इन दोनों सद्गुरुआें का रूप दिखाई दे रहा थश । ‘दोनों सद्गुुरुआें के हाथों में विविध दैवीय आयुध हैं, उनके मुखमंडल हंसमुख हैं, उनके मुखमंडलोंपर दैवीय हास्य विलस रहा है तथा उन्होंने श्री दुर्गादेवी की भांति अपना एक पैर उपर किया हुआ है’, ऐसा दिखाई दे रहा था ।