रामनाथी (गोवा) : परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी को स्वास्थ्यपूर्ण दीर्घायु प्राप्त हो, हिन्दू राष्ट्र स्थापना के कार्य हेतु सभी देवताआें के आशीर्वाद प्राप्त हों, इस कार्य में उत्पन्न सभी बाधाएं दूर हों, साथ ही हिन्दू राष्ट्र स्थापना हेतु कार्य करनेवाले साधकोंसहित समस्त हिन्दुत्वनिष्ठों के शारीरिक, मानसिक तथा आध्यात्मिक कष्ट दूर हों और उनमें शौर्य एवं धैर्य उत्पन्न हो, यह संकल्प लेकर विजयादशमी के शुभमुहूरतपर ओडिशा से लाए गए भगवान जगन्नाथजी की काष्ठ (दारुमय अर्थात नीम के वृक्ष से बनाई गई) मूर्ति का प्राणप्रतिष्ठा समारोह यहां के सनातन आश्रम में अत्यंत आनंदमय तथा भावपूर्ण वातावरण में संपन्न हुआ । २ दिनोंतक चले इस आनंदमय समारोह के यजमानपद का निर्वहन सनातन के संत पू. (डॉ.) मुकुल गाडगीळजी एवं उनकी धर्मपत्नी सद्गुुरु (श्रीमती) अंजली गाडगीळजी ने किया । इस अवसरपर सद्गुुरु (श्रीमती) बिंदा सिंगबाळजी की भी वंदनीय उपस्थिति थी । आश्रम के संत तथा साधकों ने भी इस चैतन्यमय समारोह का लाभ उठाया ।
१७ अक्टूबर की सायंकाल को संकल्प, श्री गणेशपूजन, पुण्याहवाचन, मातृकापूजन के साथ अन्य विधि तथा श्री जगन्नाथ देवता का आवाहन एवं पूजन, मूर्ति का ताडनविधि (मूर्ति बनाते समय उत्पन्न दोषों का परिमार्जन करना) आदि विधि किए गए । विजयादशमी के मंगलदिनपर अर्थात १८ अक्टूबर को आवाहित देवताआें का पूजन, अग्निस्थापना, वास्तुहोम, नवग्रहपूजन तथा श्री जगन्नाथ देवता प्रतिष्ठापना होम किया गया । तत्पश्चात श्री जगन्नाथदेवता की मूर्ति की ध्यानमंदिर में चलप्रतिष्ठापना (मूर्ति की स्थापना के पश्चात उत्सवसमय में अथवा किसी अन्य प्रसंग में मूर्ति को मूल स्थान से स्थानांतरित किया जा सकता है, उदा. पालकी के समय) संपन्न होने के पश्चात पूर्णाहुति से होम का समापन किया गया । सनातन के साधक-पुरोहित श्री. दामोदर वझेगुरुजीसहित अन्य पुरोहितों ने इन धार्मिक विधियों का पौरोहित्य किया ।
भाव, भक्ति, शक्ति एवं चैतन्य से युक्त मंगलमय
वातावरण में जगन्नाथजी की मूर्ति की ध्यानमंदिर में स्थापना !
भगवान जगन्नाथजी की पुरीपीठ की स्थानमहिमा पृथ्वी के किसी अन्य स्थान को कभी-कभी ही प्राप्त हो सकती है । जगन्नाथजी के परमधाम में विद्यमान परममंगल चैतन्यमय वातावरण का अनुभव करने के लिए देश-विदेश से लाखों श्रद्धालु पुरी जाते हैं और जगन्नाथजी के रूप का दर्शन कर अपने नेत्रों की तृष्णा शांत कर लेते हैं । वहां के वातावरण का अनुभव करने हेतु अनेक श्रद्धालु आतुर होते हैं । जगन्नाथपुरी के परमधाम जैसा कुछ वातावरण रामनाथी, गोवा के सनातन के आश्रम में है । अनेक संत, सद्गुुरु एवं स्वयं परात्पर गुरु डॉ. जयंत आठवलेजी का जहां निवास है, उस सनातन आश्रम का वातावरण दशहरे के शुभदिनपर मंगलमय बन गया था । विजयादशमी के दिन जहां जगन्नाथजी की स्थापना होनेवाली थी, उस ध्यानमंदिर का वातावरण चैतन्यमय बन गया था । ध्यानमंदिर में विद्यमान देवताआें के चित्र तथा मूर्तियों को सुगंधित पुष्पमालाएं समर्पित की गई थीं । देवताआें के सामने रंगोली निकाली गई थी तथा दीपों की सजावट भी की गई थी । ध्यानमंदिर के इस वातावरण के कारण आश्रम में भी आनंद एवं चैतन्य की वर्षा हो रही थी । ऐसे में ही पू. (डॉ.) मुकुल गाडगीळजी ने जगन्नाथजी की मूर्ति के साथ ध्यानमंदिर की ओर प्रस्थान किया । उनके साथ सद्गुुरु (श्रीमती) अंजली गाडगीळजी एवं सद्गुुरु (श्रीमती) बिंदा सिंगबाळजी भी थीं । इन संतों ने ध्यानमंदिर में जगन्नाथजी का पुनः पूजन किया । शक्ति, भाव, भक्ति एवं चैतन्य से युक्त इस मंगलमय वातावरण में वेदमंत्रघोषसहित भगवान जगन्नाथजी की स्थापना की गई ।
धर्मसंस्थापना हेतु भगवान श्रीकृष्णजी का आश्रम में स्वयं स्थानापन्न हो जाना !
‘जब-जब धर्म को ग्लानि आती है, तब-तब मैं धर्म की पुनर्स्थापना हेतु मैं पुनः-पुनः जन्म लेता हूं’, यह भगवान श्रीकृष्णजी का वचन है । आज के समय परात्पर गुुरु डॉ. आठवलेजी ने हिन्दू राष्ट्र स्थापना का अर्थात ही धर्मसंस्थापना का कार्य अपने हाथ में ले लिया है । इस समय साधकों में ‘इस कार्य का आशीर्वाद प्रदान करने हेतु तथा उसे निर्विघ्नरूप से पूर्णत्व की ओर ले जाने हेतु साक्षात भगवान श्रीकृष्णजी श्री जगन्नाथजी के रूप में आश्रम में विराजमान हो गए हैं’, यह भाव उत्पन्न हुआ था ।
पूजन के समय श्री. विनायक शानभाग द्वारा बताई गईं भावपूर्ण प्रार्थनाएं !
१. हे श्रीकृष्णजी, हे परात्पर गुुरुदेवजी, आप हमारी साधना में अलग-अलग मार्गों से आनंद प्रदान कर रहे हैं । कभी नामजप के माध्यम से, कभी सेवा के माध्यम से, कभी सत्संग के माध्यम से, साथ ही विगत कुछ दिनों से यज्ञ-याग और पूजाविधियों के माध्यम से भी आनंद प्रदान कर रहे हैं । पृथ्वीपर जब हिन्दू राष्ट्र आएगा, तब इस आनंद की परिसीमा क्या होगी, इसका अनुमान भी नहीं लगाया जा सकता । इसके लिए हम सभी साधक आपके चरणों में कृतज्ञ हैं । आप हमें केवल हिन्दू राष्ट्र ही नहीं, अपितु सभी को परमोच्च आनंद प्रदान करनेवाले हैं; इसके लिए हम आपके चरणों में पुनः-पुनः कृतज्ञता व्यक्त करते हैं । आप इसके आगे हमें शब्द के परे की कृतज्ञता सिखाएं । इस क्षण से आगे जबतक हम पृथ्वीपर रहेंगे, तबतक सेवा में रहना हमारे लिए संभव हो । आप हमें अखंडित कृतज्ञताभाव में रहने हेतु आशीर्वाद प्रदान करें ।
२. विष्णु पुराण के अनुसार संपूर्ण ब्रह्मांड में यदि कोई क्षमाशील मूर्ति है, तो वे भगवान श्रीविष्णुजी हैं ! विजयादशमी के मंगल दिनपर हम सभी साधक क्षमाशील मूर्ति श्रीविष्णुजी के चरणों में प्रार्थना करते हैं, ‘‘हे श्रीविष्णुजी, पिछले अनेक जन्मों में हमारा मन और बुद्धि के माध्यम से हमसे कोई अपराध हो गए हों, तो इस जन्म में हमें क्षमा करें । हमारी वाणी एवं आचरण से आपकी कीर्ति गाई जाएं । आपके द्वारा हमें पृथ्वीपर कहीं भी भेजे जानेपर आपकी स्तुति के लिए हमारे लिए शब्द न्यून न पडें । आपके प्रति हमारे मन में निरंतर भाव रहे !’
श्री जगन्नाथजी के कारण अर्थात भगवान श्रीकृष्णजी के कारण साधकों का निश्चिंत हो जाना
वर्तमान स्थिति में सनातन के साधकों को हो रहे शारीरिक, मानसिक, आध्यात्मिक कष्ट हों अथवा धर्मविरोधियों द्वारा सनातन के विषय में हो रहा दुष्प्रचार हो, साधक एवं हिन्दुत्वनिष्ठों को अनेक प्रकार की कष्टों का सामना करना पड रहा है । ५ सहस्र वर्ष पूर्व भी धर्मपर संकट आया था । तब भगवान श्रीकृष्णजी ने जन्म लेकर शत्रुआें का निर्दालन कर धर्मसंस्थापना की । अतः ये सभी कष्ट तात्कालीन हैं । साधकों को ऐसा लग रहा था कि इसमें साधकों की रक्षा होकर धर्म की पुनर्स्थापना हेतु मैं आश्रम में स्थानापन्न हुआ हूं । स्वयं श्रीकृष्ण ही इस मूर्तिस्थापना के माध्यम से साधकों को आश्वस्त कर रहे हैं ।
श्रीकृष्णजी अर्थात श्री जगन्नाथजी के चरणों में आश्रम के साधकों द्वारा की गई प्रार्थना !
इस अवसरपर आश्रम के साधकों ने भगवान श्रीकृष्णजी अर्थात श्री जगन्नाथजी के चरणों में यह प्रार्थना की, ‘हे श्रीकृष्णजी, श्री जगन्नाथजी के माध्यम से आश्रम में आप ही का आगमन हुआ है । आपने हमें धर्मकार्य में सहभागी कर लिया है । आप युगों-युगोंतक यहां रहें । यहां आनेवाले भक्तों का मार्गदर्शन करें तथा धर्मसंस्थापना कर लें । हमें माया और ब्रह्म, इसमें का कोई ज्ञात नहीं है । हमें केवल श्रीगुरुचरणों का ही निरंतर स्मरण रहे । हमें धर्मसंस्थापना के कार्य से संबंधित प्रत्येक सेवा हेतु तत्पर रहना संभव हो ।’
भगवान जगन्नाथजी की मूर्ति की प्राणप्रतिष्ठा के समय प्राप्त शुभसंकेत !
१. श्री महागणपतिजी को समर्पित पुष्प का नीचे गिर जाना
श्री जगन्नाथजी की मूर्ति स्थापना के आरंभ में श्री महागणपतिजी का आवाहन कर पूजन किया गया । तब श्री महागणपतिजी को समर्पित पुष्प नीचे गिर गया । उस समय पुरोहित श्री. दामोदर वझेगुरुजी ने वहां उपस्थित साधक श्री. विनायक शानभाग की यह विशेषता बताई कि सद्गुुरु (श्रीमती) अंजली गाडगीळजी की यात्रा के समय जब उन्हें कहीं जाना होता है, तब वे श्री. विनायक शानभाग से कहती हैं कि विनायक, हम इधर जाएंगे । विनायक गणेशजी का एक नाम है । इस माध्यम से सद्गुुरु (श्रीमती) अंजली गाडगीळजी के मुख से एक प्रकार से श्री गणेशजी के नाम का ही उच्चारण होता है और उससे वे जहां जाती हैं, वहां जाने का उनका उद्देश्य सफल हो जाता है ।
२. साधकों को चंदेरी रंग के नाग का दर्शन होना
आश्रम में भगवान जगन्नाथजी की मूर्ति की प्राणप्रतिष्ठा का समारोह चल रहा था । वहां सेवा करनेवाली साधिका कु. माधवी पोतदार एक सेवा के लिए निकट के श्री शांतादुर्गा मंदिर गई थीं । वहां से आश्रम लौटते हुए उन्हें आश्रम के निकट चंदरी रंग का नाग दिखाई दिया । इस विषय में कु. माधवी पोतदार ने कहा, ‘‘मैने आजतक चंदेरी रंग के नाग के विषय में कभी नहीं सुना है । यह सब ईश्वर की ही कृपा है । मैं और मेरे साथ आए साधक द्वारा प्रार्थना किए जानेपर उस नाग ने सीधे आगे न जाकर हमारी ओर देखा और वह पीछे मुडकर वहां से चला गया ।
३. आकाश में श्रीकृष्णजी के सुदर्शनचक्र के घुमने की भांति बादलों का आकार चक्राकार हो जाना
पूर्णाहूति के समय ठंडी हवा बह रही थी और वातावरण में पीला प्रकाश फैला हुआ था । तब श्रीकृष्णजी के सुदर्शनचक्र के घूमने की भांति आकाश में बादलों का आकार चक्राकार हो गया था । यह आकार १ मिनटतक ही दिखाई दिया । सुदर्शनचक्र श्रीकृष्णजी का मुख्य शस्त्र है ।
४. पूर्णाहुति के पश्चात यज्ञ परिसर में २ तितलियों का आ जाना
पूर्णाहुति समाप्त होने के पश्चात यज्ञ परिसर में २ तितलियां आई थीं । उनमें से एक तितली पहले हाल ही में स्थापित कारभैरव दंडपर और उसके पश्चात एक संतजी की आसंदीपर जाकर बैठ गई, साथ ही वह यज्ञस्थलपर बहुत समयतक घूम रही थी । इन तितलियों की आध्यात्मिक विशेषता यह थी कि पूर्णाहुति के समय यज्ञकुंड में घी की निरंतर धार छोडी जाती है । निरंतर छोडे जानेवाली घी के कारण अग्नि की ज्वालाएं बढ जाती हैं और उससे वातावरण में गर्मी उत्पन्न होती है । इतनी गर्मी होते हुए भी वह छोटीसी तितली वहां क्यों आई होगी, यह प्रश्न उठता है । इससे तितलियों की आध्यात्मिक विशेषता ध्यान में आती है ।
५. आकाश में चंद्रमा के प्रभामंडल में गुरु ग्रह
जिस दिन जगन्नाथजी की स्थापना के सभी विधि संपन्न हो गए, उस रात में आकाश में चंद्रमा के प्रभामंडल में गुरु ग्रह था । गुरु ग्रह का चंद्रमा के प्रभामंडल में आना शुभसंकेत होता है ।
६. मेघगर्जना के साथ वर्षा होना
५ सहस्र वर्ष पूर्व जब भगवान श्रीकृष्णजी का जन्म हुआ था, उस समय मेघगर्जना के साथ वर्षा हो रही थी, उसी प्रकार की स्थिति श्री जगन्नाथदेवता की मूर्ति की स्थापना के समय भी बनी थी । पुरोहितों द्वारा श्री जगन्नाथदेवता का आवाहन किए जाते ही मेघगर्जना के साथ वर्षा आरंभ हुई । इस समय साधकों में ‘श्री जगन्नाथजी के रूप में बालकृष्ण ही आश्रम में पधारे हैं’, यह भाव उत्पन्न होकर उनके द्वारा श्रीकृष्णजी के चरणों में कृतज्ञता व्यक्त हो रही थी ।
७. शास्त्रवचन ‘यज्ञात् भवती पर्जन्यः। की प्राप्त प्रचीती !
आजतक रामनाथी आश्रम में अनेक यज्ञ संपन्न हुए हैं । हाल ही में ४ हनुमानकवच यज्ञ भी संपन्न हुए । निरंतर किए जानेवाले यज्ञकर्मों के कारण ‘यज्ञात् भवती पर्जन्यः ।’ अर्थात यहां यज्ञयाग होते हैं, वहां वरुणदेवता का अर्थात पर्जन्य का आगमन होता है, ऐसा शास्त्रवचन है । इस शास्त्रवचन की प्रचीती हो रही है । श्री जगन्नाथजी की मूर्तिप्राणप्रतिष्ठा समारोह का प्रारंभ होते ही मेघगर्जना के साथ पर्जन्यवृष्टि आरंभ हो गई । इस समय पुरोहित श्री. दामोदर वझेगुरुजी ने बताया कि हम जिस संकल्प को लेकर श्री जगन्नाथदेवता की स्थापना कर रहे हैं, वह संकल्प सफल होनेवाला है तथा यह समारोह आनंददायक है, इसकी इस माध्यम से प्रचीती हुई है ।