१. क्या विवाहित गुरुकृपायोगानुसार साधना कर सकते है ?
स्त्री-पुरुष का नाता सात जन्मों का होता है । शास्त्रों के अनुसार प्रत्येक जन्म में एक-दूसरे की सहायता से सप्त चक्रों में से एक-एक चक्र को जागृत कर, अर्थात उसके लिए आवश्यक साधना कर, अंत में सहस्रार जागृत होने तक साधना करना ही ‘विवाह’ नामक संस्कार का उद्देश्य होता है । पति-पत्नी का प्रारब्ध के अनुसार परस्पर साधना के लिए पूरक होना, यह ईश्वर द्वारा सुनिश्चित होता है । परंतु ऐसा नहीं कि विवाह का नाता गुरुकृपायोग में आवश्यक ही है । इसका कारण यह है कि गुरुकृपायोग में गुरुके कृपाशीर्वाद से साधना में शीघ्र उन्नति होती है ।
२. भगवान के दर्शन के पीछे नहीं पडना चाहिए, ऐसा क्यों ?
प्राय: सगुण उपासना में देवता के दर्शन होते हैं; परंतु निर्गुण उपासना में इसका महत्व नहीं होता । अत:, देवदर्शन के पीछे न लगें । निर्गुण उपासना में साधक प्रकाशस्वरूप मुक्ति प्राप्त करता है । इसी को ‘श्रेष्ठ मुक्ति’ कहते हैं । गुरुकृपायोगानुसार साधना से ‘श्रेष्ठ मुक्ति’ मिलती है । श्रेष्ठ मुक्ति अर्थात ‘मोक्ष’ । वस्तुतः, मोक्ष ही खरा देवतादर्शन है ।
३. अपने मन से साधना करनेपर अधिकतम कितनी आध्यात्मिक उन्नति हो सकती है ?
५० से ७० प्रतिशत ।
४. गुरुकृपायोग के अतिरिक्त अन्य कौन-सा मार्ग मोक्षप्राप्ति करवाने में सक्षम है ?
किसी अन्य योग से साधना करने पर मनोदेह, कारणदेह एवं महाकारणदेह की शुद्धि १०० प्रतिशत नहीं होती । अत: इनमें से कोई भी मार्ग मोक्षप्राप्ति कराने में अक्षम होते हैं ।
५. गुरुकृपायोग के अनुसार संगीत साधना करनेवाले
जीव के लिए संगीत के रागों को सिद्ध करने की आवश्यकता क्यों नहीं होती ?
गायनक्षेत्र में, राग के शब्दोच्चारों को गहन अभ्यास कर, मंत्र की भांति सिद्ध करना आवश्यक होता है । तभी उसमें, लोगों के मन एवं वातावरण पर अभीष्ट छाप छोडने की क्षमता आती है । परंतु, गुरुकृपायोगानुसार साधना करनेवाले जीव के लिए बीजस्वरों को सिद्ध करना आवश्यक नहीं होता । क्योंकि, गुरुकृपायोगानुसार साधना करनेवाले जीव पर गुरुकी शीघ्र कृपा होती है और वह इस गुरुकृपा के बल पर सर्वोत्तम गायन कर सकता है ।
प्राणायाम एवं गुरुकृपायोग में अंतर क्या है ?
प्राणायाम से जीव में होनेवाले परिवर्तन तात्कालिक होते हैं । अतः प्राणायाम की अपेक्षा जीवन में स्थायी परिवर्तन लानेवाली नामजपसहित समष्टि साधना करना श्रेष्ठ है । प्राणायाम से जीव को सुख प्राप्त होता है, जबकि नामजपसहित समष्टि साधना जीव को आनंद की ओर ले जाती है ।