गुरुकृपायोगानुसार साधना करनेवाले साधकों की
मृत्यु के समय एवं मृत्यु के पश्चात गति कैसी होती है ?
गुरुकृपायोगानुसार साधना करनेवाले ३० प्रतिशत जीवों पर ईश्वर की कृपा रहना, उनमें से १० प्रतिशत जीवों का संतपद तक पहुंचना तथा इन सबकी मृत्यु सहजता से होना : कलियुग में जिन्होंने गुरुकृपायोगानुसार साधना आरंभ की है, उनके केवल साधना आरंभ करने के कारण उनमें से ३० प्रतिशत जीवों पर ईश्वर की कृपादृष्टि होती है तथा उन्हें कृपा का बल प्राप्त होता है । उनमेंसे १० प्रतिशत जीव संतपद प्राप्त करते हैं और मृत्यु के समय अपनी ऊर्जाके बल पर अपनी लिंगदेह (स्थूलदेहके) बाहर निकालते हैं । गुरुकृपायोग के अनुसार साधना करनेवाले शेष जीवों के लिंगदेह भी, मृत्यु के समय ईश्वर की कृपा से लिंगदेह को पीडारहित अवस्था में स्थूल शरीर से बाहर निकाल सकते हैं । गुरुकृपायोग में, मृत्यु के पूर्व तथा पश्चात भी, जीव पर गुरुकृपा बनी रहती है । गुरुकृपायोगानुसार साधना करनेवाले २० प्रतिशत लिंगदेह आध्यात्मिक स्तर निम्न होने पर भी, गुरुकृपा के बल पर मृत्यु के समय छोटे से छिद्र से पीडारहित अवस्था में (स्थूल शरीर से) त्याग कर अपने-अपने कर्मों के अनुसार तुरंत संबधित लोकों में जाते हैं । १० प्रतिशत जीव ब्रह्मरंध्र से पीडारहित अवस्था में देहत्याग करते हैं ।
गुरुकृपायोगानुसार साधना करनेवाले जीवों को मृत्यु के पश्चात
अन्य लोकों में अध्यात्म का अध्ययन करने की आवश्यकता क्यों नहीं होती ?
इसका कारण है साधकों को निर्गुण स्तरका ज्ञान प्राप्त होता है । इससे अधिक श्रेष्ठ ज्ञान आैर नहीं है । गुरुकृपायोगानुसार साधना करनेवाले ज्ञान-प्राप्तकर्ता साधकों द्वारा प्राप्त दृष्टिकोण का (ज्ञानका) चिंतन-मनन करनेवाला जीव, दूसरे लोक में भी जीवों को समष्टि साधना सिखाने की क्षमता प्राप्त कर लेता है ।’
गुरुकृपायोगानुसार साधना करनेवालों का पुनर्जन्म क्यों नहीं होता है ?
गुरुकृपायोग के अनुसार ६० प्रतिशत आध्यात्मिक स्तर से अधिक उन्नत जीवों का पुनर्जन्म नहीं होता; क्योंकि वह सभी दृष्टि से शिक्षित होता है । व्यष्टियोग में ७० प्रतिशत से आगे पुनर्जन्म नहीं होता, परंतु समष्टियोग में (गुरुकृपायोग में) ईश्वर से अपनेआप अधिक सहायता मिलने के कारण ६० प्रतिशत आध्यात्मिक स्तर पर ही शिक्षित अवस्था प्राप्त हो जाती है । इसलिए ऐसा शिक्षित जीव पुनः भूतल पर जन्म नहीं लेता । इसीको ‘शीघ्र आध्यात्मिक उन्नति’ कहते हैं । जो ३० प्रतिशत जीव गुरुकृपायोगानुसार समष्टि साधना कर रहे हैं; वस्तुतः वे ही साधनारत हैं, ऐसा कहा जा सकता है ।
गुरुकृपायोगानुसार समष्टि साधना करनेवाले सभी जीव ईश्वरीय राज्य में परिक्रमा करते हैं । वे साधना के सभी अंगों में दक्ष होते हैं; क्योंकि, इस कालमें प्रबल अनिष्ट शक्तियों द्वारा दिए जानेवाले कष्टों से वे गुरुकृपा के बल पर मुक्त रहते हैं, शिक्षित होते हैं और भविष्य में उत्पन्न होनेवाली समस्याओं का समाधान करने की पद्धति के विषय में प्रशिक्षित रहते हैं । इस कारण वे प्रत्यक्ष लेन-देन के स्तर से मुक्त होकर बिना पुनर्जन्म लिए आगे की गति धारण करते हैं ।