सनातन आश्रम, रामनाथी (गोवा) : रामराज्य की स्थापना में बहुमुल्य योगदान देनेवाले हनुमानजी चिरंजीव हैं । महाभारत के युद्ध में भी हनुमानजी भगवान श्रीकृष्णजी की आज्ञा के अनुसार अर्जुन के रथपर सूक्ष्मरूप में उपस्थित थे । हनुमानजी ने ही अर्जुन के रथ की रक्षा भी की थी । जहां श्रीरामभक्त हनुमानजी होते हैं, वहां विजय निश्चित होती है । इसीकारण आज के कलियुग में भी हिन्दू राष्ट्र स्थापना के अंतिम चरण में प्रवेशित सूक्ष्मयुद्ध में विजय प्राप्त कर साधकों की रक्षा के लिए पंचमुखी हनुमान कवच यज्ञ के माध्यम से हनुमानजी का आवाहन किया गया । २३ सितंबर को रामनाथी, गोवा के सनातन आश्रम में पानवळ, बांदा (जनपद सिंधुदुर्ग) के महान संत प.पू. दास महाराज के मार्गदर्शन में अत्यंत भावपूर्ण एवं चैतन्यमय वातावरण में पंचमुखी हनुमान-कवच यज्ञ संपन्न हुआ । सनातन संस्था के संस्थापक परात्पर गुुरु डॉ. आठवलेजी को दीर्घायु प्राप्त हो, इसके लिए किए गए इस यज्ञ में सद्गुुरु (श्रीमती) बिंदा सिंगबाळजीसहित सनातन के अन्य संतों की भी वंदनीय उपस्थिति थी । सनातन के पू. डॉ. मुकुल गाडगीळजी तथा सद्गुुरु (श्रीमती) अंजली गाडगीळजी इस यज्ञ के यजमान थे, तो साधक-पुरोहित श्री. दामोदर वझेगुरुजी तथा श्री. आेंकार पाध्ये ने यज्ञ का पौरोहित्य किया । साधक-पुरोहित सर्वश्री ईशान जोशी, पंकज बर्वे, चैतन्य दीक्षित, अमर जोशी, कौशल दामले, वेदमूर्ति केतन शहाणे तथा श्री. अंबरिश वझे भी सहभागी थे । पूर्णाहुति समर्पित कर इस यज्ञ का समापन किया गया ।
यज्ञ के समय किए गए विधि
यज्ञ के समय संकल्प, गणपतिपूजन, पुण्याहवाचन, कलश आराधना, श्री गंगापूजन, श्रीरामपूजन तथा पंचमुखी हनुमानपूजन किया गया । तत्पश्चात अग्निस्थापना, नवग्रहस्थापना तथा पूजन, नवग्रहों के लिए हवन, प्रभु श्रीरामचंद्रजी के लिए हवन, हनुमानजी के ५ मुखों के लिए हवन तथा पूर्णाहुति दी गई ।
यज्ञस्थलपर पूजन की गई पंचमुखी हनुमान मूर्ति
गुरुभक्ति एवं गुरुनिष्ठा के आदर्श हनुमानजी ! अनिष्ट शक्तियों का कष्ट दूर कर भक्तों के तारणहार भक्तवत्सल हनुमानजी ! प्रभु श्रीरामजी की दास्यभक्ति करनेवाले तथा निष्ठावान योद्धा धर्मवीर हनुमानजी ! लक्ष्मणजी की प्राणरक्षा हेतु संजीवनी वृक्ष से युक्त संपूर्ण द्रोणागिरी पर्वत को ही उठाकर ले आनेवाले आज्ञापालक हनुमानजी ! युद्ध के समय भी कुछ क्षणोंतक ध्यानस्थ होनेवाले अर्थात आपातकाल में भी व्यष्टि तथा समष्टि का मेल साधनेवाले हनुमानजी !
हनुमानजी की साधना, भक्ति तथा कार्य की जितनी महिमा वर्णन की जाए, उतनी अल्प ही है ! विशेषरूप से रामराज्य के समान हिन्दू राष्ट्र की स्थापना करने के लिए प्रयासरत सनातन के साधकों के लिए, तो हनुमानजी की कृपा अमूल्य है ! ऐसे हनुमानजी के चरणों में सनातन के साधकों का शिरसाष्टांग प्रणिपात !
॥ ॐ रामदूताय विद्महे कपिराजाय धीमहि । तन्नो हनुमान् प्रचोदयात् ॥
स्वयं को शारीरिक पीडाएं होते हुए भी साधकों के कष्ट दूर होने हेतु यज्ञ में सहभागी प.पू. दास महाराज !
यह पंचमुखी हनुमान-कवच यज्ञ प.पू. दास महाराजजी की प्रेरणा से ही हो रहा है । स्वयं को तीव्र शारीरिक कष्ट होते हुए भी अपनी आयु के ७६ वें वर्ष में भी प.पू. दास महाराजजी यज्ञ में स्वयं सहभागी थे । उन्होंने संकटों के निवारण के लिए अत्यंत क्षात्रवृत्ति से मंत्रपठन किया । उनकी उपस्थिति के कारण तथा उनके द्वारा अत्यंत क्षात्रवृत्ति के साथ किए गए मंत्रघोषों के कारण उपस्थित साधकों का भाव भी वृद्धिंगत हुआ ।
प्रभु श्रीरामजी के प्रति हनुमानजी की दास्यभक्ति थी, उसी प्रकार से परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी के प्रति प.पू. महाराजजी की दास्यभक्ति है । हनुमानजी ने प्रभु श्रीरामजी के धर्मकार्य में दास बनकर भाग लिया, उसी प्रकार से परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी के हिन्दू राष्ट्र स्थापना के कार्य में प.पू. दास महाराजजी सहभागी हुए हैं । यज्ञ के समय ‘हममें भी प.पू. दास महाराजजी जैसी दास्यभक्ति तथा गुरुमाता के चरणों में दास्यभाव उत्पन्न हो’, यह प्रार्थना की गई ।
यज्ञ के समय प्राप्त ईश्वरीय संकेत !
१. यज्ञ के दिन सुबह आकाश में लाल छटा फैली थी ।
२. यज्ञ के आरंभ से पहले कुछ वानर ‘हुप, हुप’ आवाज करते हुए यज्ञस्थलपर आ गए । एक साधिका जब आश्रम में आ रही थी, तब उसके साथ २ वानर भी आश्रम में आ गए । हनुमान-कवच यज्ञ के समय वानरों का आश्रम में आगमन होना, यज्ञस्थलपर हनुमानजी का आगमन होने का संकेत है ।
३. प.पू. दास महाराजजी की आज्ञा से स्थापित किए गए योगदंड को जब अभ्यास हेतु रखा गया, तब वह सीधे आडी रेखा में स्थिर हुआ । प्रत्यक्षरूप से उसे स्थापित करते समय वह सूक्ष्म से आक्रमण होनेवाली दक्षिण-उत्तर दिशा में स्थिर हुआ । उन दिशाआें के किए जानेवाले आक्रमणों को रोकने के लिए ऐसा हुआ ।
४. वराहमुख के लिए आहुति देते समय धुएं में वराह के मुख की आकृति दिखाई दी, साथ ही धुएं में ॐ का शुभचिन्ह भी दिखाई दिया ।
५. यज्ञ की आहुति के समय आश्रम के सामने के हनुमानजी के छोटे मंदिर के पीछे स्थित नारियल वृक्ष से नारियल गिर गया, जो शुभसंकेत ही है ।
सद्गुुरुद्वयी के आगमन के समय सूक्ष्म से क्षात्रतेज जागृत होने के संदर्भ में प्राप्त अनुभूति
आहुतियों के समय सद्गुुरु (श्रीमती) बिंदा सिंगबाळजी तथा सद्गुरु (श्रीमती) अंजली गाडगीळजी का यज्ञस्थलपर आगमन होते ही वहां की हनुमानजी की मूर्ति को समर्पित फूल पूजा में रखे गए गदा की बाजू से भूमिपर गिरा । इसपर सद्गुरु (श्रीमती) अंजली गाडगीळजी ने इसका स्पष्टीकरण देते हुए कहा कि मूर्ति को समर्पित फूल का भूमिपर गिर जाना, तो शुभसंकेत ही है; परंतु उसके साथ ही यह फूल गदा की बाजू से भूमिपर गिरने से यज्ञ के माध्यम से सूक्ष्म से क्षात्रतेज के जागृत होने की यह अनुभूति है ।
महर्षि अध्यात्म विश्वविद्यालय की ओर से यज्ञ के सूक्ष्म परिणामों का अध्ययन
यज्ञस्थलपर पूजन की गई पंचमुखी हनुमानजी की मूर्ति, आक का पेड, साथ ही यज्ञ के पुरोहित और सद्गुुरु बिंदादीदीजी, सद्गुरु गाडगीळदीदीजी, पू. डॉ. मुकुल गाडगीळजीपर, साथ ही आध्यात्मिक कष्ट और शारीरिक व्याधिवाले साधकोंपर यज्ञ के पश्चात हुए परिणामों के अध्ययन हेतु महर्षि अध्यात्म विश्वविद्यालय की ओर से यु.टी.एस्. अर्थात युनिवर्सल थर्मो स्कैनर उपकरणद्वारा यज्ञ से पहले तथा यज्ञ के पश्चात परीक्षण किए गए । (इसके निष्कर्ष शीघ्र ही प्रकाशित कर रहे हैं ।)
पंचमुखी हनुमानजी के ५ मुखों के संदर्भ में पौराणिक कथा !
रामायणकाल में श्रीराम तथा राण की सेना के मध्य भीषण युद्ध चल रहा था, तब तंत्र-मंत्र का बडा जानकार तथा मायावी सिद्धि प्राप्त रावण का भाई अहिरावण ने अपने मायावी बल के आधारपर भगवान श्रीरामजी की सभी सेना को निद्राधीन कर दिया । उसने श्रीरामजी और लक्ष्मणजी को बंधक बनाकर पाताल ले गया । यह कृत्य अहिरावण का ही है, यह ज्ञात होनेपर बिभीषण ने हनुमानजी को श्रीराम तथा लक्ष्मणजी की सहायता के लिए पाताल भेज दिया । हनुमानजी जब पाताल गए, तब उन्हों वहां स्वयं का पुत्र मकरध्वज पहरा देते हुए दिखाई दिया । (हनुमानजी लंकादहन के पश्चात अपनी पूंछ को ठंडा करने के लिए समुद्रतटपर बैठे थे, तब उनके शरीर से पसीना बह रहा था । समुद्र की एक मछली ने उनके पसीने की एक बूंद निगल ली और वह गर्भवती बन गई । उसके पश्चात मकरध्वज का जन्म हुआ । अहिरावण ने उसका पालनपोषण किया ।) वहां हनुमानजीने युद्ध में मकरध्वज को हराया । इसके अतिरिक्त हनुमानजी ने वहां ५ अलग-अलग स्थानोंपर और ५ अलग-अलग दिशाआें को ५ दीप जलते हुए दिखाई दिए । ये दीप अहिरावण की मां ने माता भवानी के लिए जलाए थे । तब हनुमानजी को ये दीप यदि एक ही समय बुझाए गए, तो उससे अहिररावण का वध होगा, यह ज्ञात हुआ । इसलिए इन दीपों को एक ही बार में बुझाने के लिए हनुमानजी ने ५ मुख धारण किया । उनका यही रूप है पंचमुखी हनुमानजी ! हनुमानजी ने इन पंचमुखों द्वारा एक ही बार में उन पांचों दिपों को बुझाकर श्रीरामजी तथा लक्ष्मणजी को पाताल से मुक्त किया ।
पंचमुखों की दिशाएं तथा उनका महत्त्व !
१. पूर्व दिशा में पंचमुखी हनुमानजी की मूर्ति का पहला मुख कपि (वानर) मुख है । उसके पूजन से उस दिशा से आनेवाले अनिष्ट शक्तियोंपर प्रतिबंध लगकर शत्रुपर विजय प्राप्त होती है ।
२. पश्चिम दिशा में दूसरा मुख गरुड मुख है । उसके पूजन से उस दिशा में आनेवाली अनिष्ट शक्तियोंपर प्रतिबंध लगकर सभी बाधाएं और समस्याएं दूर होती हैं ।
३. उत्तर दिशा में तीसरा वराह मुख है । उसके पूजन से उस दिशा से आनेवाली अनिष्ट शक्तियोंपर प्रतिबंध लगतकर दीर्घायु, प्रसिद्धि तथा शक्ति मिलती है ।
४. दक्षिण दिशा में चौथा नृसिंह मुख है । उसके पूजन से उस दिशा से आनेवाली अनिष्ट शक्तियोंपर प्रतिबंध लगकर उससे भय, तनाव तथा समस्याएं दूर होती हैं ।
५. उर्ध्व (आकाश की) दिशा में पांचवा हयग्रीव (अश्व) मुख है । उसके पूजन से उस दिशा में आनेवाली अनिष्ट शक्तियोंपर प्रतिबंध लगकर उससे सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं ।
(संदर्भ : संकेतस्थल)
वर्ष २००२ में साधकों को अनिष्ट शक्तियों का कष्ट आरंभ
होनेपर किया गया तथा अब जब सूक्ष्म का युद्ध अंतिम चरण में आनेपर
बढे हुए कष्ट दूर करने हेतु पुनःपुन किए जा रहे पंचमुखी हनुमान-कवच यज्ञ !
वर्ष २००२ में साधकों को हो रहे आध्यात्मिक कष्टों के निवारण हेतु सुखसागर, फोंडा, गोवा के आश्रम में प.पू. महाराजजी ने ११ पंचमुखी हनुमान-कवच यज्ञ किए थे । तत्पश्चात उन्होंने उसी वर्ष भारतभ्रमण कर सर्वत्र के सनातन के आश्रम और सेवाकेंद्रों में ३५, इस प्रकार से कुल मिलाकर ४६ पंचमुखी हनुमान-कवच यज्ञ किए । अब जब अनिष्ट शक्तियों के विरुद्ध का सूक्ष्म का युद्ध अंतिम चरण में आया है, तो ऐसे में साधकों के कष्ट दूर होकर रामराज्य की स्थापना यथाशीघ्र हो; इसके लिए ये यज्ञ पुनः आरंभ किए गए हैं । आज २३ सितंबर २०१९ को संपन्न यज्ञ ४७ वां हनुमान-कवच यज्ञ था । इसके आगे और ४ पंचमुखी हनुमान-कवच यज्ञ संकल्पित हैं । साधकों के कष्टों के निवारण हेतु तथा हिन्दू राष्ट्र की स्थापना हेतु दिनरात परिश्रम करनेवाले प.पू. दास महाराजजी के चरणों में सनातन के सभी साधक कोटि-कोटि कृतज्ञ हैं ।
अनिष्ट शक्तियों द्वारा यज्ञ का किया गया विरोध !
पंचमुखी हनुमान-कवच यज्ञ, तो रामराज्य अर्थात हिन्दू राष्ट्र की स्थापना हेतू सूक्ष्म से आरंभित महायुद्ध ही है ! उसका विरोध करने के लिए अनिष्ट शक्तियों ने भी यज्ञ का आरंभ होने से पहले ही विविध वस्तुआेंपर आक्रमण किया ।
१. यज्ञ के पहले दिन परात्पर गुुरु डॉ. आठवलेजी के लिए पुष्पमाला बनाई गई थी । उसमें विद्यमान फूल अकस्मात ही मुरझा गए और उनमें फफूंदी भी आ गई ।
२. प्रभु श्रीरामजी के लिए हवन का प्रारंभ होने के पश्चात यज्ञकुंड में तडक आ गए ।
३. यज्ञस्थलपर देवतास्थापना में विद्यमान हनुमानजी के लिए स्थापित कलश के सामने के नारियल में गोलाकार तडक आ गई ।
४. यज्ञ में आहुति देने के पश्चात धुएं में अनिष्ट शक्ति का विरुप मुख अंकित हुआ । जिस दिशा में सद्गुुरु (श्रीमती) बिंदा सिंगबाळजी तथा सद्गुुरु (श्रीमती) अंजली गाडगीळजी बैठी थीं, उसी दिशा की ओर वह विरुप मुख क्षोभ के साथ देख रहा है, ऐसा प्रतीत हो रहा था ।
पंचमुखी हनुमान-कवच यज्ञ के लिए उपयोग किए गए हविर्द्रव्य !
पंचमुखी हनुमान-कवच यज्ञ में हनुमानजी के ५ मुखों के लिए ५ अलग-अलग प्रकार की समिधाआें के साथ ही घी और फलों की आहुति दी जाती है । फलों की आहुतियां भी अलग-अलग होती हैं ।
विशेष क्षणिकाएं
१. हनुमानजी के तरंग आकर्षित हो; इसके लिए यज्ञस्थलपर योगदंड की स्थापना !
पू. मुकुल गाडगीळजी के शुभहस्तों यज्ञ के प्रारंभ में प.पू. दास महाराजजी के योगदंड की स्थापना की गई, तो सद्गुरु (श्रीमती) अंजली गाडगीळजी ने उसपर दीप प्रज्वलित किया । इससे पहले संपन्न पंचमुखी हनुमान-कवच यज्ञों के समय में भी इस योगदंड की स्थापना की गई थी । इससे इस योगदंड के रूप में इस यज्ञ की ओर हनुमानजी के तरंग आकर्षित होंगे, ऐसा प.पू. दास महाराजजी ने बताया ।
२. सद्गुुरु (श्रीमती) अंजली गाडगीळजी ने लंका जाकर प्रभु श्रीरामजी के आशीर्वाद प्राप्त करने के कारण याग का आयोजन संभव हो जाना !
क्या रावण की लंका में जाना सुलभ है ? तब भी सद्गुुरु (श्रीमती) अंजली गाडगीळजी ने हाल ही में (जनवरी २०१८) में श्रीलंका जाकर वहां के रामायणकाल से संबंधित स्थानों का अवलोकन कर प्रभु श्रीरामजी के आशीर्वाद प्राप्त किए थे । इसीलिए अब यह यज्ञ संपन्न हो रहा है, ऐसा प.पू. दास महाराजजी ने बताया ।
३. यज्ञस्थल के मध्यंतर में ‘श्रीराम जय राम जय जय राम’ का भावपूर्ण नामजप किया जाता था, तो कभी प्रमु श्रीराम एवं हनुमानजी का क्षात्रवृत्ति से जयघोष किया जाता था ।
४. यज्ञ के समापन के समय ५ बटुआें का पूजन किया गया ।
५. यज्ञस्थलपर उपस्थित साधकोंपर आध्यात्मिक उपाय हो रहे थे ।