’झी-२४ तास’ वृत्त्तवाहिनी पर ’रोखठोक’ कार्यक्रम में ’ईश्वर को कपडों की अलर्जी’ विषय पर चर्चासत्र में सनातन का सहभाग

’झी-२४ तास’ वृत्त्तवाहिनी पर ’रोखठोक’ कार्यक्रम में ’ईश्वर को
कपडों की अलर्जी’ विषय पर चर्चासत्र महंत सुधीरदास महाराज

अपर्याप्त कपडे परिधान करने के विषय में पश्चिम महाराष्ट्र देवस्थान
समिति द्वारा किया गया आवाहन अतिशय उचित ।-धर्मगुरु महंत सुधीरदास महाराज


मुंबई- सरकार ने देवस्थान समिति के लिए ’टेंपल एक्ट’ नया कानून बनाया है । इसलिए मंदिर देवस्थान समिति को उचित निर्णय लेने का अधिकार है । अपर्याप्त कपडे परिधान करने के विषय में पश्चिम महाराष्ट्र देवस्थान समिति द्वारा किया गया आवाहन अतिशय उचित है । मंदिर आध्यात्मिक उर्जाकेंद्र हैं । उनका उचित उपयोग करना चाहिए । हमे सकारात्मक उर्जा प्राप्त कर समाज में कार्य करना चाहिए । हमें धार्मिक देवस्थान की उर्जा संजो कर रखना चाहिए । यहां की समृद्धि, चेतना एवं पवित्रता को संजो कर रखना ही चाहिए । इसका लाभ लेकर आत्मकल्याण, राष्ट्रकल्याण एवं समाजकल्याण करना चाहिए । धर्मगुरु महंत सुधीरदास महाराज ने ऐसा प्रतिपादित किया । २ अक्तूबर को ’झी-२४ तास’ वृत्त्तवाहिनी पर रोखठोक कार्यकम में ईश्वर को कपडे की अलर्जी ? कार्यकम मे वे बोल रहे थे । हाल-ही में पश्चिम महाराष्ट्र देवस्थान समिति द्वारा मंदिरप्रवेश के समय अपर्याप्त कपडे परिधान न करने के विषय में लिए गए निर्णय के अनुषंंग से यह चर्चासत्र आयोजित किया गया था ।

इस अवसर पर महाराष्ट्र देवस्थान समिति के अध्यक्ष श्री,महेश जाधव, पूजारी हटाव समिति के सदस्य डॉ.सुभाष देसाई, सामाजिक कार्यकर्ता अनुराधा भोसले, भूमाता ब्र्रिगेड की अध्यक्ष तृप्ती देसाई एवं सनातन संस्था की प्रवक्ता श्रीमती नयना भगत उपस्थित थीं । कार्यकम का सूत्रसंचालन अजित चौहान ने किया ।

धर्मगुरु महंत सुधीरदास महाराज ने आगे कहा कि—

१. पुरो(अधो)गामी लोग मनुवाद का उल्लेख करते हैं; परंतु मंदिर में दर्शन हेतु जाते समय कौनसे वस्त्र पहनने चाहिए इसके पीछे का शास्त्र ध्यान में न लेने की चूक करते हैंं। इस विषय पर धर्मशास्त्र की दृष्टि से ध्यान देना अधिक उचित होगा ।

२. अध्यात्मशास्त्र के अनुसार देवी के दर्शन के लिए जाते समय रेशमी, नई अथवा साफ धूली तथा लाल पीली अथवा हरे रंग के वस्त्र परिधान करने चाहिए । मंदिर में जाने पर अपने वस्त्रों के रंग की छटाओं से जुडनेवाले मंत्र कहे तो देवी के एवं अपने वस्त्रो के रंगों की छटाओं से जुडनेवाले मंत्र कहने पर देवी के एवं अपने वस्त्र के रंग के स्पंदन जुडते हैं । भक्तों को उनका अधिक लाभ होता है । धर्मशास्त्र में ऐसे नियम हैं । धर्मशास्त्र में बताए गए इस सुंदर विचार को ग्रहण करना चाहिए ।

३.शुचिर्भूत होकर प्रथम वस्त्र परिधान कर मंदिर में जाना चाहिए, ऐसा नियम है । नियम का पालन किए बिना उनका उल्लंघन करना है, तो हम कुछ नहीं कर सकते ।

 

धर्मगुरु महंत सुधीरदास महाराज ने तृप्ती देसाई को सुनाया !

तृप्ती देसाई धमकियां न दे ।

यह निर्विवाद है कि तृप्ती ताई ने इससे पूर्व अनेक आंदोलन किए हैं । यदि व्यक्तिगत रुप से टिप्पणी एवं राग के विषय में मतभेद है, तो उस के कारण किसी को तोडना अथवा धमकियां देना अत्यंत अनुचित है । तृप्ती देसाई ने इस प्रकार की (श्री महालक्ष्मी मंदिर में अपर्याप्त कपडे पहन कर आनेवाले भक्तों को मंदिर में प्रवेश न देने का पश्चिम देवस्थान व्यवस्थापन समिति द्वारा लिया गया निर्णय पीछे लेना चाहिए, अन्यथा अध्यक्ष मार खाएंगे, ऐसी धमकी तृप्ती देसाई ने दी थी ) धमकियां नहीं देना चाहिए । अध्यात्म एवं संस्कृति इस दृष्टि से देखना चाहिए । भक्तों को वस्त्रों के माध्यम से आध्यात्मिक लाभ कैसे प्राप्त करना चाहिए यह दूरगामी विचार ऋषिमुनियों ने दिया है । उसे जान कर हमें कृति करना चाहिए ।

पूर्व में यह निर्णय लेना चाहिए था ! श्रीमती नयना भगत, प्रवक्ता सनातन संस्था

चर्चासत्र में विषय प्रस्तुत करते हुए श्रीमती नयना भगत

प्रत्यक्ष रुप से यह निर्णय लेने में विलंब ही हुआ है । यह शीघ्र ही होना चाहिए था । अध्यात्म के स्थान पर ड्रेसकोड परिवर्तित करना चाहिए इसका आग्रह करते हैं; परंतु सामाजिक स्थल पर मान तथा प्रतिष्ठा के कारण विरोध नहीं किया जाता यह अनुचित है । सात्त्विक वेशभूषा करने से मंदिर की सात्त्विकता का लाभ होता है यह शास्त्र समझ कर मंदिर देवस्थान समिति द्वारा लिए गए निर्णय का स्वीकार करने से सभी का कल्याण होगा । फादर अथवा मौलवी की परवाह नहीं की जाएगी ऐसा कहनेवाली तृप्ती देसाई ने अब तक उनके विरोध में मुंह भी नहीं खोला, यह ध्यानमें लें ।

श्रीमती नयना भगत ने कहा कि तृप्ती देसाई धर्म के विषय में कुछ भी न बोलें, यदि उन्हें महिलाआें का वास्तवमें प्यार है, तो केरल के नन पर किए गए बलात्कार के विषय में क्या वे फादर को कालिख पोतेंगी ? उन्हें कान के नीचे लगाएंगी ? इस पर तृप्ती देसाई ने कहा कि हमने हाजी अली दर्गा के विषय में भी आंदोलन किया है । फादर अथवा मौलवी की भी परवाह नही की जाएगी ।

मंदिर देवस्थान समिति के निर्णय का सम्मान करना चाहिए ।-अनुराधा भोसले सामाजिक कार्यकर्ता

मंदिर में भक्ति एवं भावनिकता को महत्व देना चाहिए । मंदिर में जाते समय कोई बीभत्स पोशाक नही करते । देवस्थान समिति ने दायित्व लिया है । इससे कोई नकारात्मक संदेश तो नहीं जा रहा है, इस पर ध्यान देना चाहिए । पोशाक के संदर्भ में निर्णय स्त्रिया एवं जनता पर छोड देना चाहिए । मंदिर देवस्थान समिति द्वारा लिया गया यह निर्णय उनका व्यक्तिगत संदेश समझ कर उसका सम्मान करना चाहिए ।

 

संस्कृति को ठुकराने वालों को ऐसा आवाहन करने का क्या अधिकार है ?

(कहते हैंं) अध्यक्ष को चाहिए कि वे आवाहन
पीछे लेकर क्षमायाचना करें ।- तृप्ती देसाई, अध्यक्षा, भूमाता  ब्रिगेड

यह कानून नही, अपितु हमने आवाहन किया है, अध्यक्ष ऐसा बताने का दयनीय प्रयास कर रहे हैं । अध्यक्ष यह आवाहन पीछे लें एवं सार्वजनिक रुपसे क्षमायाचना करें । यह हमारी धमकी नहीं, संकेत है । आज इस नियम के विरुद्ध हमने कुछ नही किया तो कल महिलाओं को मंदिर में जाने पर भी प्रतिबंध लगाया जाएगा । ऐसा न हो, इस हेतु ही हम इस निर्णय का विरोध कर रहे हैं ।

(कहते हैं)  ड्रेस कोड निश्चित करने के स्थान पर भ्रष्ट
पुजारियों को हटाएं । – डॉ.सुभाष देसाई, सदस्य, पुजारी हटाव समिति

मैं नास्तिक नहीं, अपितु आस्तिक हूं । इसलिए मुझे इस विषय पर बोलने का अधिकार है । ड्रेसकोड निर्धारित करने की अपेक्षा भ्रष्ट पुजारियों को हटाएं यह कानून पारित हो गया है । उसका उपयोग करना चाहिए । अंबाबाई के सभी उत्सवों में सभी जाति-धर्म के लोगों को सम्मिलित करना चाहिए ।

 

पश्चिम महाराष्ट्र देवस्थान समिति के अध्यक्ष श्री महेश जाधव ने तृप्ति देसाई को ठनकाया ।

चाहे कुछ भी हो, हम आवाहन पीछे नहीं लेंगे ।

कानून करने का अधकार न्यायविधि खाते का है । भक्तों की मांग के अनुसार दर्शन हेतु हमने सभी को भारतीय पोशाक में आने का आवाहन किया है । आवाहन करना हमारा कर्तव्य है । हमेंं कोई हमारे अधिकार न बताएं । हमारे पासं कानून दत्त्त अधिकार है । हम कानून का उपयोग अच्छी बातों के लिए कर रहे हैं । हमें इस बात का अभिमान है । हमने अच्छा कार्य किया है । बडे निर्णय लिए हैं । भडकीले बोलने से सब कुछ हो जाता है, ऐसा नहीं है । हमें धमकियां न दे । यह निर्णय किस आधार पर लिया गया है, इसका भावार्थ क्या है । यदि यह जान कर तृप्ती देसाई ने विचार विमर्श किया तो अधिक उचित होता था । यह शाहू महाराज की नगरी है । चाहे कुछ भी हो जाए, हम आवाहन पीछे नहीं लेंगे ।

स्त्रोत : दैनिक सनातन प्रभात

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