परात्पर गुरु डॉ.आठवले को दीर्घायु प्राप्त होने, हिन्दू राष्ट्र स्थापना में
आनेवाली अडचनें दूर होने एवं साधकों के कष्ट निवारण हेतु यज्ञ द्वारा आवाहन !
सनातन आश्रम, रामनाथी (गोवा) : भगवान को प्रिय दास्यभक्ति का सर्वोच्च आदर्श एवं रामराज्य की स्थापना में बडा सहभाग रहनेवाले हनुमानजी व्यष्टि एवं समष्टि साधना का अपूर्व संगम ही है ! हिन्दू राष्ट्र-स्थापना के अंतिम चरण पर पहुंची सूक्ष्म लडाई में सफलता प्राप्त करने एवं साधना में साधकों की उन्नति होकर अनिष्ट शक्तियों से उनकी रक्षा होने हेतु ’पंचमुखी हनुमानकवच यज्ञ’ के माध्यम से यहां के सनातन आश्रम में यज्ञस्थल पर हनुमानजी को आवाहन किया गया । अल्पावधि में ही स्थूल रुप से आपातकाल को आरंभ होनेवाला है । इसलिए संत, साधक एवं धर्माभिमानी द्वारा किए जानेवाले हिन्दू राष्ट्र-स्थापना के व्यापक कार्य में अनिष्ट शक्तियां भारी मात्रा मेंं अडचनें ला रही हैं । इन शक्तियों से साधकों को होनेवाले कष्ट निवारण एवं सनातन संस्था के संस्थापक परात्पर गुरु डॉ.आठवलेजी को दीर्घायु प्राप्त हो, इस हेतु ६ अक्तूबर को ’पंचमुखी हनुमानकवच यज्ञ’ संपन्न हुआ । पानवळ, बांदा (जिला सिंधुदुर्ग ) के महान संत प.पू.दास महाराज के मार्गदर्शन में अत्यंत भावपूर्ण एवं चैतन्यमय वातावरण में यज्ञविधियां संपन्न हुईंं।
इस यज्ञ का आतिथेय पद सनातन के संत पू.डॉ.मुकुल गाडगीळ ने सुशोभित किया । इस अवसर पर सनातन की सद्गुरु (श्रीमती ) बिंदा सिंगबाळ की वंदनीय उपस्थिति रही । साधक पुरोहित श्री.दामोदर वझे एवं श्री.पंकज बर्वे ने यज्ञ का पौरोहित्य किया एवं साधक पुरोहित श्री.अमर जोशी, श्री.ओंकार पाध्ये, श्री.चैतन्य दीक्षित एवं श्री.पवन बर्वे भी यज्ञ में सम्मिलित हुए थे ।
यह ’पंचमुखी हनुमानकवच यज्ञ’ प.पू.दास महाराज की प्रेरणा से ही हो रहा है । तीव्र शारीरिक कष्ट होते हुए भी ७६ वर्ष की आयु में प.पू.दास महाराज इस यज्ञ में स्वयं सम्मिलित हुए । उन्होंने संकट निवारण हेतु अत्यंत क्षात्रवृत्त्ति से मंत्रपठन किया । इसलिए उपस्थित साधकों के भाव में वृद्धि हुई ।
यज्ञ के अवसर पर की गई विधियां
यज्ञ के अवसर पर संकल्प, गणपतिपूजन, पुण्याहवाचन, कलश-आराधना, श्री गंगापूजन, श्रीरामपूजन एवं पंचमुखी हनुमानपूजन हुआ तत्पचात अग्निस्थापना, नवग्रहस्थापना एवं पूजन, नवग्रहों के लिए हवन, प्रभु श्रीरामचंद्र के लिए हवन, हनुमानजी के ५ मुखों के लिए हवन एवं पूर्णाहूति हुई ।
हनुमानकवच यज्ञ के आरंभ में सद्गुरु (श्रीमती) अंजली गाडगीळ
श्रीलंका से भारत की ओर आनेवाले रामसेतु स्थल पर पहुंंचना यह दुर्लभ दैवीयोग रहना !
यज्ञ का आरंभ होते ही सद्गुरु (श्रीमती) अंजली गाडगीळ श्रीलंका से भारत की ओर आरंभ होनेवाले रामसेतू स्थल पर पहुंंचने का समाचार मिला । आश्रम में यज्ञ का आरंभ एवं उसी समय सद्गुरु (श्रीमती) अंजली गाडगीळ रामसेतु स्थल पर पहुंचना एक प्रकार का दुर्लभ दैवीयोग है । इस विषय में सद्गुरु डॉ. चारुदत्त्त पिंगळे ने कहा कि सीतामाता को मुक्त कर प्रभु श्रीराम श्रीलंका के रामसेतू की ओर से भारत वापस आए । यज्ञ के समय सद्गुरु (श्रीमती) अंजली गाडगीळ रामसेतू के श्रीलंका की ओर रहने का संकेत यह कि बाहर भले ही आपातकाल होगा, परंतु साधकों के लिए संपत्काल ही चल रहा है ।
साधकों को आध्यात्मिक कष्ट आरंभ होने पर वर्ष २००२ में किया गया एवं अब वर्तमान समय में सूक्ष्म
का युद्ध अंतिम चरण पर पहुंचने से बढे कष्ट दूर होने हेतु पुनः किया जानेवाला ’पंचमुखी हनुमानकवच यज्ञ’!
वर्ष २००२ में साधकों को होनेवाले कष्ट के निवारणार्थ सुखसागर, फोंडा गोवा के आश्रम में प.पू.दास महाराज ने ११ पंचमुखी हनुमानकवच यज्ञ किए थे । तदुपरांत उन्होंने उसी वर्ष पूरे भारत का भ्रमण कर सर्वत्र के सनातन आश्रम एवं सेवाकेंद्र में ३५ ऐसे कुल ४६ ’पंचमुखी हनुमानकवच यज्ञ’ किए । अब अनिष्ट शक्तियों के विरुद्ध सूक्ष्मयुद्ध अंतिम चरण पर पहुंच गया है । इसलिए साधकों का कष्टनिवारण एवं रामराज्य की स्थापना शीघ्रातिशीघ्र होने हेतु पुनः इन यज्ञों का आरंभ किया गया हैं । ६ अक्तूबर को हुआ यह ४८ वा ’पंचमुखी हनुमानकवच यज्ञ’ था । भविष्य में और ३ ’पंचमुखी हनुमानकवच यज्ञ’ करने का संकल्प किया गया है ।
साधकों का कष्टनिवारण एवं रामराज्य की स्थापना शीघ्रातिशीघ्र होने हेतु दिनरात अथक परिश्रम करनेवाले प.पू.दास महाराज के चरणों में सनातन के सभी साधक कोटि कोटि कृतज्ञ हैंं ।
क्षणिकाएं
१.यज्ञ से निकलनेवाले धुएं मे नृसिंह एवं हनुमानजी के मुख की आकृति एवं यज्ञ में अडचनें लाने को इच्छुक अनिष्ट शक्तियों का मुखौटा भी धुएंं में दिखाई दे रहा था ।
२. यज्ञस्थल पर बीच-बीच में ’श्रीराम जय राम जय जय राम’ ऐसा भावपूर्ण जाप किया जा रहा था अथवा कभी कभी क्षात्रवृत्ति से प्रभु श्रीराम एवं हनुमानजी का जयघोष किया जा रहा था ।
३. यज्ञ के समापन के समय ब्र्रह्मचर्य का पालन करनेवाले एवं ५ मुखवाले हनुमानजी के प्रतीक के रुपमें ५ बाह्मचारियोंं का पूजन किया गया ।
अनिष्ट शक्तियों के प्रति प्रीति रखनेवाले प.पू.दास महाराज
यज्ञस्थल पर श्रीरामभक्त हनुमानजी का आवाहन करने हेतु प.पू.दास महाराज ने प्रार्थना करते समय ’ हिन्दू राष्ट्र स्थापना में अडचनें लानेवाली अनिष्ट शक्तियों को उनके प्रारब्ध के अनुसार आगे की गति मिले’, ऐसी प्रार्थना की गई । प.पू.दास महाराज के मन में ’अनिष्ट शक्तियां भी आगे की गति प्राप्त कर ईश्वरतक पहुंचे’, ऐसा प्रीतिभाव था ।
प.पू.दास महाराज श्रीरामजी को प्रार्थना करने से
सद्गुरु डॉ.चारुदत्त्त पिंगळेजी को हनुमानकवच के लिए उपस्थित रहना संभव होना !
६ अक्तूबर मेें सेवा के लिए पुनः प्रसार में जाने का मेरा नियोजन था । आश्रम से निकलने से पूर्व मैं प.पू.दास महाराज से भेंट करने गया था । वे चाहते थे कि मैंं हनुमानकवच यज्ञ के लिए उपस्थित रहूंं । परंतु वर्तमान समय में भारी मात्रा में चल रहा प्रसारकार्य रोकना संभव न होने से उन्होंने श्रीरामजी को ही आर्तता से प्रार्थना की एवं एकाएक मेरा जाना रद्द होकर मुझे यज्ञ का लाभ लेना संभव हुआ । प.पू.दास महाराज के श्रीरामजी को प्रार्थना करने से मुझे यज्ञ में उपस्थित रहना संभव हुआ ।
सनातन आश्रम में हनुमानकवच यज्ञ होना ईश्वर
की इच्छा है, ऐसा ध्यान में आना !- सद्गुरु डॉ.चारुदत्त्त पिंगळे
वर्तमान समय में सनातन पर पर हो रहे आरोप, साधकों को होनेवाले कष्ट एवं वातावरण में बढनेवाले रज तम के प्राबल्य के कारण प.पू.दास महाराज चाहते थे कि आश्रम में हनुमानकवच यज्ञ संपन्न हो । इससे पूर्व फोंडा के सुखसागर सनातन आश्रम तथा अन्य ४६ स्थलों पर प.पू.दास महाराज ने हनुमानकवच यज्ञ किए हैंं । परंतु रामनाथी की पवित्र वास्तु में यह यज्ञ नही हुआ था । प.पू.दास महाराज चाहते थे कि रामनाथी आश्रम में यह यज्ञ होना चाहिए । प.पू.दास महाराज परात्पर गुरु डॉ.आठवलेजी से मिले, तो परात्पर गुरु डॉक्टर ने स्वयं होकर यज्ञ करने के विषय में कहा । इसलिए सनातन आश्रम में हनुमानकवच यज्ञ होना ईश्वर की इच्छा है, ऐसा ध्यान में आया ।
६.१०.२०१८ को रामनाथी आश्रम में हुए ’पंचमुखी हनुमान
कवच यज्ञ’ के समय एक संत को हुआ अनुभव एवं ध्यान में आए सूत्र —
१. एक संत
अ. यज्ञ के अवसर पर मेरा मन सदैव निर्विचार रहता है । आज (६ अक्तूबर को ) यज्ञ के समय प्रथम ही मेरा भाव जागृत हुआ । पश्चात कुछ समय हनुमानजी के प्रति कृतज्ञता भाव जागृत हुआ ।
आ. मैं आंखें मूंंद कर बैठा था, तो मुझे ऐसा प्रतीत हुआ कि कोई मेरे पडोस में बैठे लोगों को तीर्थ-प्रसाद देने आया है । उसे जाना संभव होने हेतु मैने पांव समीप लिए ।
२. प.पू.दास रघुवीर महाराज
अ. मंत्र कहते समय मंंत्रों से प.पू.दास महाराज इतने एकरुप हो गए थे कि उनके मुख के भाव, हाथों की गतिविधियां एवं मंत्रों के उच्चारण से उनके मंत्रों का सब पर अधिक परिणाम हो रहा था ।
३. सद्गुरु (श्रीमती ) बिंंदा सिंगबाळ
अ. सद्गुरु (श्रीमती ) बिंंदाताई यज्ञ की २ घंटे की कालावधि में भावपूर्ण स्थिति में बैठी थीं । उन्होंने तनिक भी हलचल नहीं की ।
आ. पूर्णाहुति के समय तनिक भी हलचल किए बिना वे लगभग पौन घंंटे तक निश्चल खडी थीं ।
४. सनातन के साधक पुरोहित की चूकें
अ. इनके मुख पर कोई भाव नहीं था । वे यांत्रिक रुप से मंत्र की आहुति दे रहे थे ।
आ. प.पू.दास (रघुवीर ) महाराज की पत्नी पू. श्रीमती लक्ष्मीबाई को श्लोक कहते समय उनके हाथ में माईक नही दिया ।
– एक संत
६. १०.१०.२०१८ को हुए ’पंचमुखी हनुमान कवच यज्ञ’
के समय सद्गुरु (श्रीमती ) बिंंदा सिंगबाळ को हुई अनुभूतियां
१. यज्ञ आरंभ होने पर मेरे मन के विचार अल्प हुए । यज्ञविधि समय में एवं सुचारु रुपसे यज्ञविधि संपन्न होने हेतु मेरी ओर से पुरोहित तथा अन्य साधकों को सूचनाएं दी जा रही थीं । उसी समय मैं मेरे मन की निर्विचार स्थिति भी अनुभव कर रही थी । यज्ञ की समाप्ति तक मुझे मेरे मन की स्थूल एवं सूक्ष्म दोनों स्तर पर की अवस्थाएं एक ही समय में अनुभव करना संभव हुआ ।
२. यज्ञ के समय मेरा मन निर्विचार हुआ एवं मुझे ध्यान लग रहा था ।
३. पुर्णाहुति के आरंभ से अंत तक खडे-खडे ही मेरा ध्यान लग रहा था ।
इस माध्यम से ईश्वर ने मुझे स्थल-काल के परे की अनुभूति दी । इसलिए परात्पर गुरु डॉ.आठवले एवं हनुमानजी के चरणों में अनंत कोटि कृतज्ञता !
– (सद्गुरु) श्रीमती बिंंदा सिंगबाळ, सनातन आश्रम, रामनाथी, गोवा (१२.१०.२०१८)
यज्ञ के अवसर पर मिले ईश्वरी संकेत !
यज्ञ से निकले धुएंं में हनुमानजी का मुख दिखाई दे रहा है ।
यज्ञ से निकले धुएंं में नृसिंहजी का मुख दिखाई दे रहा है ।
अनिष्ट शक्तियों द्वारा यज्ञ को किया गया विरोध !
यज्ञ में अडचने लाने को इच्छुक अनिष्ट शक्तियोंका मुखौटा यज्ञ से निकलनेवाले धुएंं में दिखाई दे रहा है ।
गुरुशक्ति एवं गुरुनिष्ठा का आदर्श हनुमान !
अनिष्ट शक्तियों का कष्ट दूर कर भक्तों को तारनेवाले भक्तवत्सल हनुमानजीं ! प्रभु श्रीरामजी की दास्यभक्ति करनेवाले एवं निष्ठावान योद्धे रहनेवाले धर्मवीर हनुमानजी ! लक्ष्मण के प्राण रक्षा हेतु संजिवनी वृक्षवाले संपूर्ण द्रोणगिरी पर्वत को ही लानेवाले आज्ञापालक हनुमानजी ! युद्ध के अवसर पर भी कुछ क्षण ध्यानस्थ होनेवाले अर्थात आपातकाल में भी व्यष्टि एवं समष्टि का संतुलन करनेेवाले हनुमानजी !
हनुमानजी की साधना भक्ति एवं कार्य की महानता जितनी भी वर्णन की जाए, अल्प ही है । विशेष कर रामराज्य समान रहनेवाला हिन्दू राष्ट्र स्थापित करने हेतु अथक परिज्ञम करनेवाले सनातन के साधकों के लिए हनुमानजी की कृपा बहुमूल्य है । ऐसे हनुमानजी के चरणों में सनातन के साधकों द्वारा कोटि कोटि कृतज्ञता ।
स्त्रोत : दैनिक सनातन प्रभात