नरक चतुर्दशीपर अभ्यंगस्नान एवं यमतर्पण करनेके उपरांत देवताओंका पूजन करते हैं । सूर्यदेव एवं कुलदेवता को नमस्कार करते हैं । इसके उपरांत दोपहर ब्राह्मणभोजन कराते हैं ।
१. औक्षण
यमतर्पणकी विधि पूर्ण होनेके पश्चात स्नान कर नए वस्त्र परिधान करनेपर पुनः औक्षण करते हैं । औक्षण करते समय घरकी वयोवृद्ध स्त्रीद्वारा प्रथम कुमकुम एवं अक्षत लगाया जाता है । उपरांत अर्धवर्तुलाकार पद्धतिसे तीन बार सुपारी एवं अंगूठी घुमाकर आरती उतारी जाती है । अंतमें अर्धवर्तुलाकार पद्धतिसे तीन बार घुमाकर आरती उतारी जाती है । इस दिन घरकी स्त्रीद्वारा पुत्र तथा पतिका औक्षण किया जाता है ।
१ अ. नरक चतुर्दशीके दिन स्त्रीद्वारा पुत्र तथा पतिका औक्षण किए जानेका कारण
पुरुषोंमें लयसे संबंधित ऊर्जा तरंगोंको ग्रहण करनेकी क्षमता होती है । नरक चतुर्दशीके दिन वायुमंडलमें प्रक्षेपित लयसंबंधी तरंगें, स्त्रियोंकी तुलनामें पुरुषोंद्वारा १० प्रतिशत अधिक मात्रामें ग्रहण होती हैं । इस दिन स्त्रीद्वारा पुत्र एवं पतिका औक्षण किए जानेसे उन्हें स्त्रीसे उत्त्पत्तिसंबंधी ऊर्जा प्राप्त होती है । स्त्रीद्वारा प्राप्त उत्पत्तिसंबधी ऊर्जाके कारण पुरुषद्वारा ग्रहण की गई लयसंबंधी तरंगें क्रियाहीन होती हैं । इस प्रक्रियाद्वारा पुरुषोंका रक्षण होता है ।
२. ब्राह्मणभोजन
नरक चतुर्दशीपर ब्राह्मण भोजन कराना अर्थात धर्मकार्यके लिए ब्राह्मणके माध्यमसे अवतरित ईश्वरके प्रति कृतज्ञता व्यक्त करना ।
२ अ. ब्राह्मणभोजन करानेका कारण
नरक चतुर्दशीपर ब्राह्मण भोजन कराना अर्थात धर्मकार्यके लिए ब्राह्मणके माध्यमसे अवतरित ईश्वरके प्रति कृतज्ञता व्यक्त करना । इस माध्यमसे ब्रह्मांडमें संचारित धर्मतरंगोंका पोषण किया जाता है । तथा पृथ्वी पर आनेवाली कष्टदायक अधोगामी अर्थात नीचेकी ओर जानेवाली तरंगें नष्ट करने हेतु प्रत्यक्ष कार्य करनेके लिए ईश्वरका आवाहन किया जाता है । इस माध्यमसे धर्मकर्तव्यका पालन होता है तथा व्यक्ति ईश्वरकी कृपाशीर्वादरूपी तरंगें ग्रहण कर पाता है ।
३. वस्त्रदान
वस्त्रदान करना अर्थात देवताओंकी तरंगोंको भूतलपर आनेके लिए आवाहन करना । इस माध्यमसे ईश्वरको प्रत्यक्ष कार्य करनेके लिए जागृत किया जाता है ।
३ अ. वस्त्रदान करनेका कारण
नरक चतुर्दशीके दिन दोपहरके उपरांत वस्त्रदान भी किया जाता है । वस्त्रदान करना अर्थातदेवताओंकी तरंगोंको भूतलपर आनेके लिए आवाहन करना । इस माध्यमसे ईश्वरको प्रत्यक्ष कार्य करनेके लिए जागृत किया जाता है । धर्मकार्यके लिए समर्पित व्यक्तिको वस्त्रदान करनेसे दानकर्ताकी आध्यात्मिक उन्नति होती है ।
नरक चतुर्दशीपर प्रदोषकालमें अर्थात सूर्यास्तके उपरांत विशिष्ट कालमें भी कुछ धार्मिक विधियां की जाती हैं । प्रदोषकाल प्रत्येक दिन विभिन्न कालावधिका होता है । इसके बारेमें पंचांगमें जानकारी दी होती है । इस कालमें की जानेवाली धार्मिक विधियां अधिक फलदायी होती हैं ।
४. प्रदोषपूजा
प्रदोषकाल अर्थात सूर्यास्तके उपरांत ७२ मिनिट ।
नरकप्राप्तिसे बचने हेतु तथा पापोंकी निवृत्ति हेतु, प्रदोषकालमें की जानेवाली पूजामें चार बत्तियोंवाला (चौमुखदीप) दीपक जलाना चाहिए । और इस श्लोकका उच्चारण करना चाहिए,
दत्तो दीपश्चतुर्दश्यां नरकप्रीतये मया ।
चतुर्वर्तिसमायुक्त: सर्वपापापनुत्तये ।। – लिंगपुराण
इसका अर्थ है, आज चतुर्दशी के दिन नरक के अभिमानी देवता की प्रसन्नता के लिए तथा समस्त पापोंके विनाशके लिए मैं चार बत्तियोंवाला चौमुखा दीप अर्पित करता हूं ।
इस पूजामें कालके माध्यमसे क्रियाशक्ति का पूजन कर उसका संवर्धन किया जाता है । इस माध्यमसे व्यक्तिके चित्तपर कालमहिमा का संस्कार अंकित होकर उसके अनुसार आचरण करना तथा उच्च स्तर की अवस्था प्राप्त करना उसके लिए संभव होता है । नरक चतुर्दशीके दिन शिवपूजा भी की जाती है ।
५. शिवपूजा
समष्टिको अर्थात समाजको कष्ट देनेवाली अधोगामी अर्थात नीचेकी ओर जानेवाली तरंगोंके निर्दालनके लिए ईश्वरके मारक रूपकी पूजा कर उनके प्रति कृतज्ञता व्यक्त करना, शिवपूजाद्वारा साध्य होता है । इस माध्यमसे ईश्वरकी प्रत्येक कृतिके प्रति आत्मीयभाव निर्मित होकर आगे भाववृद्धि होती है तथा ईश्वरसे एकरूप होनेकी दृष्टिसे मार्गक्रमण होता है ।
नरक चतुर्दशीके दिन प्रात: तथा विशेषकर सायंकालमें घर, आंगन तुलसी वृंदावन, एवं अन्य स्थानोंपर यथाशक्ति तेलके दीप जलाएं जाते हैं ।
६. दीपप्रज्वलन
नरक चतुर्दशीपर प्रातः तथा विशेष रूपसे सायंकालमें आंगन, तुलसी वृंदावन, रसोईघर, स्नानघर, सभाभवन, चहारदीवारी, कुआं, गली, गोशाला, मंदिर इत्यादि स्थानोंपर तथा अन्य सूने स्थानोंपर भी यथाशक्ति दीप जलाते हैं ।
६ अ. नरक चतुर्दशीके दिन विविध स्थानोंपर दीप जलानेका कारण
नरक चतुर्दशीके दिन ब्रह्मांडके चंद्रनाडीका स्थित्यंतर सूर्यनाडीमें होता है । इसके सूक्ष्म-स्तरीय परिणाम समझ लेते हैं –
इस दिनकी पूर्वरात्रिसेही वातावरण दूषित तरंगोंसे युक्त बनने लगता है । पातालकी अनिष्ट शक्तियां इसका लाभ उठाती हैं । वे पातालसे कष्टदायक नादयुक्त तरंगे प्रक्षेपित करती हैं । इन कष्टदायक नादतरंगों की निर्मिति रज-तमात्मक गतिक्रिया द्वारा उत्पन्न ऊर्जासे होती है । इन तरंगोंको प्रतिबंधित करने हेतु विविध स्थानोंपर दीप जलाए जाते हैं । दीपोंसे प्रक्षेपित तेजतत्त्वात्मक तरंगें वायुमंडलके कष्टदायक रज-तम कणोंका विघटन करती हैं । इस प्रक्रियाके कारण अनिष्ट शक्तियोंका सुरक्षाकवच नष्ट होनेमें सहायता मिलती है । इसीको दीपकी सहायतासे अनिष्ट शक्तियोंका संहार करना कहते हैं । नरकसे पृथ्वीपर अवतीर्ण अनिष्ट शक्तियोंके विघटन दिनकी दृष्टिसे नरक चतुर्दशीका विशेष महत्त्व है ।
७. नरक चतुर्दशीके दिन की जानेवाली कृतियोंका भक्तियोगानुसार महत्त्व
कृति |
महत्त्व (प्रतिशत) |
---|---|
१. ब्राह्मणभोजन | २० |
२. वस्त्रदान | १० |
३. दीपदान | २० |
४. प्रदोषपूजा | २० |
५. शिवपूजा | ३० |
कूल | १०० |
इस सारणीसे स्पष्ट होता है कि, नरक चतुर्दशी के दिन विविध धार्मिक कृतियां करनेके लिए क्यों कहा गया है ।