सनातन के संतों की अद्वितीयता !
१. सिखने मिले सूत्र
१ अ. सकारात्मकता
पू. प्रदीपभैय्या सदैव सकारात्मक रहते हैं । वे स्वयं के साथ सभी को सकारात्मक रखते हैं, यह उनकी विशेषता है । सेवा के समय कई प्रसंगों में मुझपर तनाव आता था । उस समय वे मुझे विविध उदाहरण बताकर उनसे क्या सिखना चाहिए, यह बताकर सकारात्मक बना देते थे ।
१ आ. ईश्वर को प्रिय लगे, इस प्रकार से परिपूर्ण सेवा करना
सेवा परिपूर्ण करना, पू. प्रदीपभैय्या की विशेषता है । चाहे वह गुुरुपूर्णिमा स्मरणिका अथवा हस्तपत्रिकाएं का वितरण हो अथवा सनातन प्रभात का वितरण हो; वे यह सेवा ईश्वर को कैसी अच्छी लगेगी ?, यह विचार कर उसके अनुसार उसे करते हैं ।
१ इ. सेवा परिपूर्ण होने हेतु कार्यपद्धति स्थापित करना
१ इ १. विज्ञानपदाताआें को स्मरणिका अथवा सनातन प्रभात का वितरण करते समय उनके हस्ताक्षर करवा लेना
उन्होंने पहले से ही कतरास हाट के विज्ञापनदाताआें को स्मरणिका अथवा सनातन प्रभात का अंक देते समय प्रत्येक वितरक उनसे हस्ताक्षर करवा लेने की कार्यपद्धति स्थापित की है । उसके कारण सनातन संस्था का कार्य परिपूर्ण तथा पारदर्शी होता है, यह बात गांव के सभी को ही ज्ञात है ।
१ इ २. पू. प्रदीपभैय्या द्वारा सनातन के सात्त्विक उत्पाद स्वयं ही खरीद कर उनका वितरण करना आरंभ किया जाना तथा उसके पश्चात संस्थास्तरपर उसी प्रकार की वितरण प्रणाली का आरंभ हो जाना
पहले प्रत्येक जिले में सनातन के सात्त्विक उत्पाद भेजकर संबंधित जिले द्वारा उनके वितरण का ब्यौरा भेजने की पद्धति थी । तब पू. भैय्या ने ही सबसे पहले यह पूछा कि क्या मैं स्वयं ही सभी उत्पादों की खरीद कर उनका वितरण कर सकता हूं ? और उसके अनुसार उन्होंने उत्पादों के वितरण का आरंभ किया । कालांतर से संस्थास्तरपर इसी प्रकार की वितरण प्रणाली आरंभ की गई । तब मुझे उनके द्वारा योग्य कार्यपद्धति स्थापित कर कैसे कार्य करना चाहिए ? तथा गुरुदेवजी को अपेक्षित विचारप्रक्रिया तथा कृति करना कैसे आवश्यक है, यह सीखने को मिला ।
१ इ ३. सामग्री की अध्ययनपूर्वक मांग करना तथा जिज्ञासुआें से संपर्क कर उनसे अभिप्राय पूछना, इन कार्यपद्धतियों के कारण प्रसार परिणामकारी होना
एक बार एक केंद्र द्वारा प्रसार की कुछ पत्रिकाएं तथा सनातन प्रभात की अधिक मांग की जाने से वो शेष रह गए । जब यह बात पू. प्रदीपभैय्या के ध्यान में आ गई, तब उन्होंने मांग करते समय वह सामग्री का वितरण जिन्हें किया जानेवाला है, उनके नाम लिखकर उसके अनुसार सामग्री का वितरण करते समय जिज्ञासुआें के नाम तथा उनके संपर्क क्रमांक लिखकर उन्हें अभिप्राय पूछने के लिए कहा । उसके कारण जिज्ञासुआें से संपर्क करने की मात्रा बढ गई । उनके द्वारा इस पद्धति से कार्य आरंभ करने से प्रसार की अपेक्षित फलोत्पत्ति मिलने लगी और अनावश्यक व्यय भी बच गया । मितव्यय करने के साथ ही ईश्वर को अपेक्षित कृती कर प्रसार की फलोत्पत्ति बढाना, यह भी मुझे उनसे सीखने के लिए मिला ।
१ ई. गुरुदेवजी के प्रति असीम भाव !
१ ई १. साधक तो श्री गुुरुदेवजी का सगुण रूप होते हैं, यह भाव रखने से सदैव साधकों की सहायता करना
प्रसार के साधकों को सेवा करते समय स्थानीय स्थिति के कारण बहुत समस्याएं आती हैं । ऐसे समय में पू. प्रदीपभैय्या साधकों को सामग्री तथा वाहन उपलब्ध करवाना जैसी सदैव सहायता करते थे । तब पू. भैय्या कहते थे, साधक तो गुुरुदेवजी का सगुण रूप होते हैं ।, यह मुझ में भाव होता है; इसलिए मुझे सदैव साधकों के लिए कुछ तो करना चाहिए, ऐसा लगता है ।
१ ई २. साधक को सेवा के समय तनाव आनेपर गुरुदेवजी साधक का हाथ पकडे हुए होते हैं; इसलिए कठिन प्रसंग में निश्चिंत रहने के संदर्भ में पू. भैय्या द्वारा सुनाई गई कथा !
एक बार किसी प्रसंग के कारण मैं तनावग्रस्त था । तब मुझे उन्होंने मुझे एक कथा सुनाई । एक गांव में बहुत वर्षा होने से नदी में बाढ आई हुई थी । गांव से बाहर जाने के लिए एक ही पुल था और उसपर भी पानी बह रहा था । उस समय एक पिता अपनी इकलौती लडकी को लेकर जा रहे थे । पुल को पार करते हुए उन्होंने अपनी लडकी को अपना हाथ पकडने के लिए कहा; परंतु उस लडकी ने अपने पिता को उसका हाथ पकडने के लिए कहा । पुल को पार करने के पश्चात पिता अपनी लडकी से इस विषय में जब पूछते हैं, तब वह कहती हैं, पिताजी, मैने यदि आपका हाथ पकडा, तो वह छूट सकता है; परंतु आपने मेरा हाथ पकडा, तो वह कभी नहीं छूट सकता, इस विषय में मैं आश्वस्त हूं । पू. प्रदीपभैय्या ने मुझे कहा, श्री गुुरुदेवजी ने सभी साधकों का हाथ मजबूती से पकड रखा है; इसलिए आप निश्चिंत रहें ।
१ ई ३. व्यवसाय मेरा नहीं, अपितु ईश्वर का है, यह भाव रखकर प्रत्येक कृती की जाना
एक बार एक व्यवसायी ने पू. प्रदीपभैय्या से पूछा, आप इतना व्यस्त रहते हुए भी साधना कैसे कर सकते हैं ? इसपर पू. भैय्या ने कहा, मैं व्यष्टि साधना (नामजप इत्यादि) मेरे लिए करता हूं और व्यवसाय ईश्वर के लिए करता हूं । वे व्यवसाय अपना नहीं, अपितु ईश्वर का है, यह भाव रखकर करते हैं । इससे उनमें व्याप्त गुुरुदेवजी के प्रति भाव दिखाई देता है ।
१ ई ४. पू. खेमकाभैय्या में व्याप्त भाव के कारण पू. भैय्या भाव का मूर्तिमंत उदाहरण रामकृष्ण परमहंस जैसे प्रतीत होना
उनमें श्री गुुरुदेवजी के प्रति असीम भाव है । परात्पर गुुुरु डॉक्टरजी के संदर्भ में बोलते हुए उनकी भावजागृति होती है । जब मैं झारखंड में था, तब मैं सकारात्मक रहूं; इसलिए वे मुझे विविध कथाएं तथा किसी गीत की पंक्तियां बताकर उनका अर्थ विशद करते थे । उनके साथ बिताया हुआ प्रत्येक क्षण, एक सत्संग ही होता था । उनकी होनेवाली भावजागृति तथा उनकी बातों के कारण दूसरों की होनेवाली भावजागृति के कारण पू. खेमकाभैय्या तो भाव का मूर्तिमंत उदाहरण रामकृष्ण परमहंस ही हैं !, ऐसा मुझे लगता है ।
२. पू. खेमकाजी में आए परिवर्तनों के विषय में
समाज के लोगों द्वारा व्यक्त किए गए आदरयुक्त उद्गार !
२ अ. क्रोध न्यून हो जाना
हिन्दू जनजागृति समिति के कार्य में मुझसे अनेक हिन्दुत्वनिष्ठ मिलते हैं । वे मुझे कहते हैं, पहले पू. प्रदीपभैय्या इतना क्रोधित हो जाते थे कि जिससे हम उनके कार्यालय में जाना टाल देते थे; परंतु अब सनातन के कारण उनमें इतना परिवर्तन आया है कि अब वे सभी को अपने लगते हैं ।
२ आ. पू. प्रदीपभैय्या द्वारा बताई जानेवाली साधना अलग है और
उससे हमारे जीवन में परिवर्तन आएगा, ऐसी उनके एक मित्र की प्रतिक्रिया !
पू. प्रदीपभैय्या का आध्यात्मिक स्तर जब ६१ प्रतिशत हुआ था, उस समय उनके एक निकट के मित्र ने कहा, प्रदीप हमें सदैव साधना के विषय में बताता था; परंतु हमने उसे समझ में नहीं लिया, यह अब ध्यान में आ रहा है । वह जो बता रहा है, वह कुछ अलग ही है और उससे हमारे जीवन में परिवर्तन आनेवाला है ।
२ इ. पू. प्रदीपभैय्या के परिवार के साथ निकट के एक व्यक्ति द्वारा सनातन के कारण
प्रदीपजी (पू. प्रदीप खेमकाजी) में परिवर्तन आया है और वे संत बन गए, हैं, ऐसा बताया जाना
प्रसार में मेरी समाज के अनेक लोगों से भेंट होती थी । धनबाद के एक वयस्क दुकानमालिक के पू. खेमकाजी के परिवार के साथ निकट संबंध हैं । वे मुझे प्रत्येक बार कहते थे, सनातन ने प्रदीप को (पू. प्रदीप खेमकाजी) बदल डाला है । पहले वह जब यहां आता था, तब तुफान जैसा आता था । दुकान के कर्मचारी उससे घबराते थे; परंतु सनातन के संपर्क में आने से अब वह संत बन गया है । वर्ष २०११-१२ में उनके द्वारा कही गई यह बात अब सत्य सिद्ध हुई है ।
२ ई. अनेक लोग पू. प्रदीपभैय्या के विषय में ऐसा भी कहते हैं कि सनातन में
आने के कारण यदि पू. खेमकाजी में इतना परिवर्तन आया है, तो हम भी सनातन में आने के इच्छुक हैं !
ईश्वर की कृपा से मुझे पू. प्रदीपभैय्या में विद्यमान भाव तथा ईश्वरीय गुणों को आत्मसात करने का अवसर मिला; इसलिए मैं ईश्वर के चरणों में कृतज्ञता व्यक्त करता हूं तथा उनकी भांति हम साधकों की भी आध्यात्मिक उन्नति हेतु हमसे प्रयास करवा लें; यह ईश्वर के चरणों में प्रार्थना करता हूं ।