वर्तमान कलियुगके रज-तमात्मक वातावरणमें जन्म लेनेवाले प्रत्येक जीवमें कोई-न-कोई विकार होता ही है । किसीके भी मनमें यह प्रश्न उठ सकता है कि ‘विकार दूर करनेके ‘एलोपैथी’, ‘होमियोपैथी’ समान आधुनिक तथा प्राचीन आयुर्वेद उपचारपद्धति उपलब्ध होनेपर भी, ‘सूचीदाब (एक्यूप्रेशर)’ उपचारपद्धति क्यों आवश्यक है ।’ ‘जो पुराना है, वह सोना है’ इस कहावतके अनुसार प्रज्ञावान ऋषि-मुनियोंद्वारा आविष्कृत ‘सूचीदाब’ उपचारपद्धति अति प्राचीन एवं महत्त्वपूर्ण है; क्योंकि इसका अध्यात्मशास्त्रीय आधार है । शरीरमें चेतनाशक्तिके प्रवाहको नियन्त्रित करनेवाले शरीरपर स्थित विशिष्ट बिन्दुको दबानेसे चेतनाशक्तिके प्रवाहकी रुकावटें दूर कर, विकार नष्ट करना, ‘सूचीदाब’ उपचारपद्धतिका सूत्र है । इस पद्धतिसे, सम्बन्धित अवयवमें चेतनाका संचार कराकर उसकी कार्यक्षमता बढाई जाती है । इसलिए, यह पद्धति रोगोंको दूर करनेमें अधिक प्रभावी सिद्ध हुई है । बिना पैसेकी तथा अपना उपचार स्वयं करनेकी सुविधायुक्त इस उपचारपद्धतिको अपनानेसे दैनिक जीवनके अनेक रोगोंको अपनेसे दूर रखना सरल हो जाता है । उसी प्रकार, जब कभी जीवनमें आनेवाले कुछ प्रसंगोंमें वैद्योपचारकी तुरन्त आवश्यकता प्रतीत होती है अथवा चिकित्सक एवं औषधियां उपलब्ध नहीं मिलतीं, उस समय यह उपचारपद्धति सभीके लिए संजीवनीकी भांति लाभ पहुंचाती है ।
सूचीदाब उपचारपद्धतिपर उपलब्ध अधिकांश ग्रंथोंमें मनुष्यके शारीरिक तथा मानसिक रोगोंका विचार किया जाता है । वर्तमान कलियुगमें प्रत्येकको न्यूनाधिक आध्यात्मिक कष्ट होता ही है । अनेक बार तो शारीरिक-मानसिक कष्टोंके मूलमें आध्यात्मिक कारण ही होते हैं । सनातन-निर्मित सूचीदाब संबंधी ग्रंथोंमें शारीरिक एवं मानसिक कष्टोंके साथ आध्यात्मिक कष्टके निवारणका भी विचार किया गया है । शारीरिक, मानसिक एवं आध्यात्मिक कष्ट दूर करनेके लिए क्रमशः मध्यम दाब, हलका दाब देकर तथा स्पर्श न कर प्रार्थना, नामजप, ध्यान इत्यादि साधनामार्गोंसे आध्यात्मिक बलका प्रयोग कर सूचीदाब उपचार कैसे करें, इसका अध्यात्मशास्त्रीय मार्गदर्शन करना सनातननिर्मित ग्रंथोंकी अद्वितीय विशेषता है ।
प्रस्तुत ग्रंथमें – सूचीदाब उपचारका परिचय, उपचारका महत्त्व, इसके लाभ, शरीरपर उपचार-बिंदुओंके स्थान, इन बिंदुओंपर दाब देनेकी उचित पद्धति, उपाय कब और कितनी बार करें, उपचार कब नहीं करना चाहिए, रेकी उपचार तथा सूचीदाब उपचारमें अंतर इत्यादि विषयोंकी जानकारी दी हुई है । इन विशिष्ट बिंदुओंको दबानेसे सूक्ष्म स्तरपर कौन-सी प्रक्रिया होती है, यह सर्वसामान्य व्यक्ति नहीं समझ सकता । यह जाननेकी क्षमतासे युक्त सनातनके साधकोंद्वारा किए गए ‘सूक्ष्म-ज्ञान संबंधी परीक्षण’ तथा आरेखित ‘सूक्ष्म-ज्ञान संबंधी चित्र’का समावेश, इस ग्रंथकी एक अद्भुत विशेषता है ।
नंगे पांव चलना, कान तथा नाकमें अलंकार धारण करना, गुदवाना इत्यादि कृत्य, हिंदुओंकी जीवनपद्धतिका अंग बन गए हैं । ऐसे कृत्योंसे स्वयं ही सूचीदाब कैसे होता है, इस विषयमें सूक्ष्म-ज्ञान संबंधी चित्रोंको देखनेसे हिंदू धर्मकी महानता ध्यानमें आएगी ।