जयपुर के ‘ज्ञानम फेस्टिवल’ में सनातन संस्था का सहभाग
जयपुर – आजकल कथावाचक, संन्यास दीक्षा लिए हुए संन्यासी अथवा बैरागी, धर्माचार्य, महंत, महामंडलेश्वर आदि धर्मगुरुआें को लौकिक अर्थ से ‘संत’ संबोधित किया जा रहा है । वास्तविक रूप से जिनका आध्यात्मिक अधिकार है अर्थात जिन्होंने अध्यात्म में उन्नति की है, एेसे व्यक्ति को संतपद प्राप्त होता है । इसलिए यद्यपि कथावाचक, संन्यास धारण किए हुए संन्यासी अथवा धर्म उपदेशक ये सभी साधनामार्गी हैं, तथापि वे संत होंगे ही, एेसा नहीं है । आज समाज में जिन्हें ‘संत’ कहा जा रहा है, उनमें से ९७ प्रतिशत संत प्रत्यक्ष में अध्यात्म के अधिकारी नहीं हैं, एेसा प्रतिपादन सनातन संस्था के राष्ट्रीय प्रवक्ता श्री. चेतन राजहंस ने किया । वे वहां आयोजित ‘ज्ञानम फेस्टिवल’ में ‘संत आैर साधुआें की योग्यता परिभाषित करने की आवश्यकता है क्या ?’ इस परिसंवाद में बोल रहे थे । ८ आैर ९ सितंबर की अवधि में आयोजित ज्ञानम फेस्टिवल में विविध प्रकार के धर्माचार्य, ज्योतिषी तथा आध्यात्मिक संस्थाएं सम्मिलित हुर्इ थीं । इस परिसंवाद में एक जिज्ञासु ने प्रश्न किया कि ‘हिन्दू धर्म में इतने देवता होते हुए भी हिन्दू धर्म की अधोगती क्यों हुर्इ ?’ उसका उत्तर देते हुए श्री. चेतन राजहंस बोले, ‘‘धर्म को ग्लानि आती है तथा धर्म की पुनर्स्थापना होती है, यह सनातन सिद्धांत है । आज धर्म को ग्लानि आर्इ है, तब भी धर्म की पुनर्स्थापना के लिए हमें सक्रिय होना आवश्यक है । यह कालानुसार साधना ही है ।’’
सनातन धर्म में संपूर्ण पृथ्वी को ही राष्ट्र माना गया है ! – आनंद जाखोटिया
सनातन धर्म में राष्ट्रीय अवधारणा व्यापक है । मंत्रपुष्पांजली में कहा है कि, संपूर्ण पृथ्वी एक राष्ट्र है । भागवत पुराण में राजा परीक्षित का उल्लेख ‘पृथ्वी का सम्राट’ किया है । समुद्रमंथन का इतिहास स्कंद पुराण में बताया गया है । उसमें कहा है कि, समुद्रमंथन हुआ तब पृथ्वी का राजा माधांता था । इससे ध्यान में आएगा कि, सनातन दर्शन में पृथ्वी को ही राष्ट्र मानने की पद्धति थी; इसलिए हमारे यहां विश्वशांति यज्ञ किए जाते हैं । विश्वकल्याण के लिए प्रार्थना की जाती है तथा ‘वसुधैव कुटुम्बकम् ।’ अर्थात संपूर्ण विश्व ही मेरा कुटुंब है, यह भावना रखी जाती है, एेसा प्रतिपादन हिन्दू जनजागृति समिति के मध्यप्रदेश एवं राजस्थान राज्यों के समन्वयक श्री.आनंद जाखोटिया ने किया । वे ‘सनातन अखंड भारत शाश्वत सत्य है क्या ?’ इस परिसंवाद में सम्मिलित हुए थे ।