कुछ छद्म पर्यावरणप्रेमी एवं आधुनिकतावादी नदीप्रदूषण के नाम पर अमोनियम बायकार्बोनेट मिश्रित कृत्रिम तालाब में श्री गणेशमूर्ति विसर्जन करने की सलाह देते हैं और प्रशासन भी उसके अनुसार कृती करता है । वास्तव में ऐसा करना धर्मशास्त्रविरोधी है । धर्मशास्त्रों में ‘श्री गणेशमूर्ति शाडूमिट्टी अथवा चिकनी मिट्टी से बनी और प्राकृतिक रंगों से रंगी हुई होनी चाहिए, तथा मूर्ति और निर्माल्य का विसर्जन बहते पानी में करना चाहिए’, ऐसा ‘पूजासमुच्चय’ एवं ‘मुद्गलपुराण’ ग्रंथों में कहा गया है । बहते पानी में विसर्जन करने से उसका लाभ दूर-दूर के गणेशभक्तों को होता है, साथ ही पूजक को भी आध्यात्मिक लाभ होता है । हिन्दू धर्मशास्त्र में बताए गए सभी त्यौहार-उत्सव पर्यावरणपूरक ही हैं । आजकल उत्सवों के बदले हुए स्वरूप को मूल धर्मशास्त्रीय स्वरूप की ओर ले जाएंगे, तो धर्माचरण भी होगा और पर्यावरण की रक्षा भी होगी । ऐसी स्थिति में कृत्रिम तालाब में गणेशमूर्तियों का विसर्जन करने का आग्रह क्यों ? मूर्ति विसर्जन के लिए ऐसे अशास्त्रीय पर्याय देने के स्थान पर शाडूमिट्टी और प्राकृतिक रंग के विषय में प्रबोधन ही पर्यावरणपूरक एवं धर्मशास्त्र सुसंगत होगा । इसके लिए सनातन गत अनेक वर्षों से प्रबोधन कर रही है, ऐसा प्रतिपादन सनातन संस्था की प्रवक्ता श्रीमती नयना भगत ने किया ।
वर्षभर शहर का अतिदूषित गंदा पानी नदी-नालों में छोडा जाता है, उस विषय में निष्क्रिय रहनेवाली महानगरपालिका, तथाकथित पर्यावरणवादी और आधुनिकतावादी गणेशोत्सव आने पर ही प्रदूषण रोकने के लिए सक्रिय हो जाते हैं । गणेशोत्सव अर्थात् प्रदूषण, ऐसा विचित्र समीकरण प्रस्तुत कर करोडों रुपयों का आर्थिक लाभ उठाने हेतु कृृत्रिम तालाब निर्माण करने का नाटक किया जाता है । इन हौदों में गणेशमूर्ति के विसर्जन का आवाहन किया जाता है । प्रत्यक्ष में महापालिका वहां विसर्जित मूर्तियों को निकालकर उन्हें कचरे की गाडी से ले जाकर पुन: नदी में ही फेंकती है । यह पुणे के ही विविध प्रसिद्धीमाध्यमों ने छायाचित्र सहित उजागर किया है । वर्तमान में प्रशासन द्वारा अपनाई जा रही मूर्तियों के विसर्जन की अशास्त्रीय भूमिका के कारण हिन्दुआें की धार्मिक भावनाएं आहत हुई हैं । प्रत्यक्ष में पर्यावरण की हानि जिन बातों से होती है, उन सभी की अनदेखी करने का प्रयत्न हो रहा है । नदी स्वच्छता के लिए करोडों रुपयों की धनराशि लेकर भी नदी की स्वच्छता नहीं की जाती, इसके साथ ही गणेशमूर्ति के विसर्जन के दिन नदी में पानी छोडने के लिए प्रशासन को निवेदन भी दिया जाता है; परंतु प्रशासन उस पर कोई कृति नहीं करता । इसलिए नदी में पानी छोडकर धर्मशास्त्र के आचरण में अनुकूलता निर्माण करने हेतु जनता को प्रशासन पर दबाव डालना चाहिए ।
वैध मार्ग से धर्मशास्त्र बतानेवाली सनातन संस्था की ‘मीडिया ट्रायल’ करने का प्रयास निषेधार्ह !
सनातन संस्था द्वारा चलाए जा रहे अभियान में सनातन के साधक नम्रता से धर्मशास्त्र बताकर श्रद्धालुआें का प्रबोधन करते हैं । साधक निर्माल्य एकत्र कर, उसका नदी में विसर्जन करने जैसा कोई भी अभियान नहीं चलाते । तब भी कुछ प्रसिद्धिमाध्यम ‘सनातन के साधक नदी में विसर्जन करने हेतु दबाव डालते हैं,धमकाते हैं’, ‘सनातन के साधक निर्माल्य एकत्र कर, बहते पानी में विसर्जन करते हैं’, जैसे झूठे समाचार दिखाकर सनातन की मानहानि करने का प्रयास किया जा रहा है । इस प्रकार के अनुचित समाचार दिखाकर ‘मीडिया ट्रायल’ करना निषेधार्ह है ।