२७ जुलार्इ २०१८ को आषाढ पूर्णिमा अर्थात् गुरुपूर्णिमा संपन्न हुर्इ । इस गुरुपूर्णिमा के निमित्त गुरुकृपायोग के माध्यम से शीघ्र आध्यात्मिक उन्नति कर संतपद प्राप्त करनेवाले सनातन के कुछ संतों के गुण-विशेषताएं प्रकाशित कर रहे हैं, जिसका लाभ साधकों को मिलेगा ।
‘नाशिक में निवास करनेवाले सनातन के ४३ वें संत पू. महेंद्र क्षत्रिय वर्तमान में नाशिक रोड स्थित उनके नए निवासस्थान में रहते हैं । उनकी पुरानी वास्तु का उपयोग साधक सेवा के लिए करते हैं । मैं सेवा हेतु नाशिक गया था, तब मुझे पू. महेंद्र क्षत्रियकाका का दर्शन मिला । उस समय मुझे बोध हुए सूत्र आगे दिए हैं ।
१. पू. क्षत्रियकाका का दर्शन होना, उन्होंने साधकों की साधना स्थिति जान
ली तथा प्रेम से भान करवाया कि समय अधिक नहीं है, साधना की आेर ध्यान दें ।
११.५.२०१८ को सायंकाल ६.१५ बजे पू. क्षत्रियकाका उनके पुराने निवासस्थान पर आए थे । मैं सेवा के लिए वहीं था, इसलिए मुझे पू. काकाजी का दर्शन मिला । उन्होंने हम दो साधकों को स्वयं के पास बैठाया । उनके निकट बैठने पर मुझे आनंद आैर शांति प्रतीत होकर मेरा मन स्थिर हो गया । उन्होंने हमारी साधना की स्थिति जान ली तथा अत्यंत प्रेमपूर्वक बोले कि ‘‘समय अधिक नहीं है । नामस्मरण, प.पू. गुरुदेव से अनुसंधान, र्इश्वर से शरणागत भाव से प्रार्थना तथा स्वभावदोष अौर अहं निर्मूलन की आेर ध्यान देना चाहिए ।’’ हमसे बात करते समय पू. काकांजी को अडचन होने पर वे अपनी पुत्री को संकेत कर बताते थे आैर उन्हें क्या बताना है, यह उनकी पुत्री हमें बता रही थी । वह योग्य बता रही है कि नहीं, इस आेर उनका ध्यान था । साधना की आेर ध्यान देने के लिए पू. काकाजी अत्यंत लगनपूर्वक हमें बता रहे थे ।
पू. काकाजी का प्रत्येक साधक की आेर ध्यान रहता है । वे प्रत्येक साधक की साधना की पूछताछ करते हैं तथा उन्हें मार्गदर्शन कर ध्येय का स्मरण करवाते हैं ।
२. पू. काका ने सोसायटी के चौकीदार (गार्ड) को नमस्कार कर उसकी प्रेम से पूछताछ करना
तत्पश्चात मैं पू. काका के साथ उनके नए घर में रहने के लिए गया । र्इश्वर ने मुझे उनके घर रहने का अवसर दिया, इसलिए मैं र्इश्वर के चरणों में कृतज्ञता व्यक्त करता हूं । पू. काकाजी के नए घर के निकट चारपहिया वाहन से उतरने पर उन्होंने सोसायटी के चौकीदार (गार्ड) को नमस्कार किया आैर प्रेमपूर्वक उसकी पूछताछ की । पू. काकाजी में अत्यधिक प्रेमभाव है । वे निरंतर अन्यों का विचार करते हैं ।
३. पू. काकाजी के घर रामनाथी आश्रम के समान प्रसन्न प्रतीत होना
पू. काकाजी के घर रामनाथी आश्रम के समान प्रसन्न लग रहा था । उनके घर में स्वच्छता थी आैर प्रत्येक वस्तु रखने के लिए योग्य स्थान था । पू. काकाजी ने अलग कक्ष में ध्यानमंदिर बनाया है । ध्यानमंदिर में जाने पर सुगंध का अनुभव हुआ । उस सुगंध का अनुभव मैं आधा घंटा कर रहा था ।
४. प्रेमल एवं आतिथ्यशील परिवार !
उनके घर के प्रत्येक सदस्य के मुखमंडल पर आनंद दिखार्इ दे रहा था । पू. काकाजी की पत्नी, पुत्र तथा पुत्रियां आए हुए साधक की प्रेमपूर्वक पूछताछ करते हैं ।
मेरी साधना के लिए पू. काकाजी का लाभ उठाने में, मैं अत्यधिक न्यून पडता हूं । हमारी साधना की लगन पू. काकाजी को ही अधिक है ।’
– श्री. यशवंत सहस्रबुद्धे, सनातन आश्रम, देवद, पनवेल.
सनातन के संत केवल संत नहीं, अपितु गुरु ही हैं !
‘गुरुपूर्णिमा अर्थात गुरु के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करने का दिन । सनातन में ८० से अधिक साधक संत बन गए हैं । यद्यपि हम उन्हें संत कहते हैं, तथापि वे उनके संपर्क में आनेवाले साधकों को साधना के संबंध में मार्गदर्शन करते हैं, देहत्याग होने तक करते हैं अर्थात उनका कार्य गुरु के समान ही साधना हेतु मार्गदर्शन करना है । गुरुपूर्णिमा पर उनकी जानकारी सर्व साधकों को मिले तथा वे संतों से कुछ सीख पाएं, इस उद्देश्य से उनकी जानकारी ‘सनातन प्रभात’ में प्रकाशित कर रहे हैं । इस लेखमाला में साधना में उनके मार्गक्रमण की जानकारी दी है, जिससे उनके प्रति निकटता प्रतीत होने में सहायता मिलेगी ।
संतों की विशेषताएं केवल पढें नहीं, अपितु उन्हें आत्मसात करने का प्रयास करें । जिससे यह लेखमाला सार्थक होगी ।’ – (परात्पर गुरु) डॉ. आठवले