‘इको फ्रेंडली गणेशोत्सव’ मनाने के नामजपर इस प्रकार की गणेशमूर्ति
बनाने का अशास्त्रीय आवाहन करनेवाले पर्यावरणवादियों की पोल खुल गई !
हाल ही में कथित पर्यावरणवादी कागद की लुगदी से बनाई जानेवाली श्री गणेशमूर्ति का समर्थन करते हैं, तथापि उसके कारण कितना प्रदूषण होता है, यह भी जान लेना आवश्यक है ।
१. मुंबई की प्रसिद्ध ‘प्रशासनिक रसायन प्रौद्योगिकी संस्था (Institute of Chemical Tecnhology Mumbai) ने कागद की लुगदी से बनाई गई ४ मूर्तियां लेकर इस विषयपर शोध किया और उसके पश्चात उन्होंने निम्न जानकारी दी –
अ. १० किलो कागद की बनी मूर्ति से १ सहस्र लिटर पानी का प्रदूषण होता है ।
आ. ऐसे पानी में जिंक, क्रोमियम, कैडमियम, टैटॅनियम ऑक्साईड जैसे विषैले धातू दिखाई दिए ।
२. सांगली (महाराष्ट्र) के वरिष्ठ पर्यावरण विशेषज्ञ डॉ. सुब्बाराव की ‘एन्वाईरनमेंटल प्रोटेक्शन रिसर्च फाऊंडेशन’ इस संस्था द्वारा साधारण कागद को ‘डिस्टिल वॉटर’ में डालकर शोध किया । इस प्रयोग में कागद को घुलाए गए उस पानी में ‘ऑक्सिजन की मात्रा शून्यपर आने का स्पष्ट हुआ, जो अत्यंत घातक है ।
उपर्युक्त प्रयोगों से ‘कागद की लुगदी कितनी हानिकारक होती है’, यह वैज्ञानिकदृष्टि से भी प्रमाणित होता है ।’
गणेशभक्तों, ऐसे किसी भी जुमलों की बलि चढे बिना शास्त्र के अनुसार शाडू मिट्टी से बनाई जानेवाली श्री गणेशमूर्ति की स्थापना कर धर्मपालन करें तथा श्री गणेशजी की कृपा संपादन करें !