महर्षि द्वारा शिवगंगा (तमिलनाडु) गांव के निकट भागंप्रियादेवी के स्थान पर जाकर सनातन के कार्य में हो रही अनिष्ट शक्तियों की बाधा के निवारणार्थ पूजा-अर्चना करने के आदेश देना तथा वहां पर प्रतीत हुए सूत्र
१. शिवगंगा गांव के निकट भागंप्रियादेवी का जागृत स्थान तथा इस स्थान का इतिहास
१ अ. पार्वती का तप:स्थान
इस स्थान पर देवी पार्वती ने शिवजी को प्राप्त करने हेतु तपस्या की थी । यहां पर शिवालय भी है । ऐसा कहा जाता है कि इसी स्थान पर देवी पार्वती यह कहते हुए कि मुझे शिव ही पति के रूप में चाहिए शिवपिंडी को चिपककर बैठी थीं ।
१ आ. देवी के स्थान पर ले जाने के पीछे महर्षि का उद्देश्य
महर्षि ने इस स्थान पर ध्यान करने के लिए कहा था । हमने वैसा किया तथा वहां जाकर साधकों के एवं प.पू. डॉक्टरजी के आरोग्य हेतु प्रार्थना भी की । यह देवालय बाधा निवारण हेतु प्रसिद्ध है । महर्षि हमें वहां ले गए तथा सनातन के कार्य में आनेवाली बाधाएं दूर करने हेतु प्रार्थना करवा ली ।
२. देवालय में कष्ट निवारण हेतु किए जानेवाले कृत्य
२ अ. पतले पत्रे पर कुरादे हुए मनुष्य की प्रतिमा द्वारा कुदृष्टि (नजर)
उतारना तथा इससे शरीर की सभी व्याधियां तथा दोष देवी के चरणों में अर्पण करने की पद्धति
देवी के चरणों में प.पू. डॉक्टरजी के नाम से तथा साधकों के नाम से पतले पत्रे पर मनुष्य की बनी हुई प्रतिकृति अर्पण की ।
इसके पीछे ऐसा विधि है । पतले पत्रे पर मनुष्य की एक प्रतिकृति कुरेदते हैं । यह प्रतिकृति हाथ में लेकर अपने संपूर्ण शरीर पर से इस प्रतिमा को घुमाया जाता है, तथा सिर पर से तीन बार इस प्रतिमा को घुमाकर मन में देवी को प्रार्थना करनी होती है कि मेरे शरीर के कष्ट खींचकर इस प्रतिमा में आने दें तथा ऐसी प्रतिमा मैं आपके चरणों में अर्पण करता हूं । आप ही मेरे इस शरीर की प्रतिमा का दोष एवं कष्ट के साथ स्वीकार करें तथा आपके चरणों में यह कष्ट नष्ट हो । यह नजर उतारने का एक प्रकार है ।
२ अ १. पू. (श्रीमती) अंजली गाडगीळ ने सभी साधकों की ओर से तथा प.पू. डॉक्टरजी की ओर से नजर उतारने की विधि करना
महर्षि द्वारा बताए अनुसार प.पू. डॉक्टरजी के लिए तथा साधकों के लिए प्रार्थना कर मैंने वह प्रतिमा अपने सिर से पैर तक तीन बार घुमाकर देवी से प्रार्थना की, कि हमारी संपूर्ण नजर उतर जाए और हमारा आरोग्य अच्छा रहे। यह विधि देवालय में स्थित धर्मध्वज के निकट खडे रहकर करना होता है । देवी का स्मरण करते हुए यह विधि करने की प्रथा है ।
२ आ १. महर्षि द्वारा अब प.पू. डॉक्टरजी तथा साधकों की नजर दीये से उतारने की आज्ञा देना
यहां पर शरीर की बिमारी नष्ट करने हेतु तथा शरीर की बाधा दूर करने हेतु चावल के आटे से बने दिपक में घी का दीया लगाकर शरीर पर से घुमाते हैं । देवालय में इस कार्य हेतु विद्यमान कुछ महिलाओं से यह विधि करवाया जाता है । पू.डॉ. ॐ उलगनाथन ने कहा कि अब महर्षि की आज्ञानुसार दीये से भी नजर उतारनी है ।
२ आ २. विधि के संदर्भ में कृत्य
इस विधि में विधि करनेवाले को देवालय में जमीन पर लेटाते हैं । विधि की तैयारी में केले के पत्ते पर चावल का दीपक कुमकुम लगाकर रखा जाता है । केले के पत्ते पर ही दीपक के चारों ओर केले तथा बीडे के पत्ते रखकर कपूर जलाया जाता है । ऐसा यह केले का पत्ता एक स्त्री हमारे शरीर पर विविध स्थानों पर रखती है । चेहरा, छाती, पेट तथा पैरों की ओर यह दीपक घुमाकर नजर उतारी जाती है । देवालय में मुझे लेटाकर सभी साधक तथा प.पू. डॉक्टरजी का नाम लेकर यह विधि किया गया । उसके पश्चात चावल के आटे में शक्कर मिला हुआ भाग देवी के प्रसाद के रूप में ग्रहण किया जाता है ।
३. तात्पर्य
अनिष्ट शक्तियों के निवारणार्थ किए जानेवाले कृत्य देवालय में करने से इसमें होनेवाले अनिष्ट शक्तियों के आक्रमण से अपनेआप ही रक्षा होने में सहायता मिलना |
देवालय की सात्त्विकता का लाभ लेकर दुष्ट शक्तियों के निवारणार्थ यहां नजर उतारी जाती है । इसमें हम पर आक्रमण होने की संभावना रहती है । देवालय का वातावरण सात्त्विक होने के कारण इस क्षेत्र में संभवत: अनिष्ट शक्तियां नहीं आती हैं । इसलिए ऐसी विधियों में होनेवाली अनिष्ट शक्तियों के कष्ट से अपनेआप ही हमारी रक्षा होने में सहायता होती है । इसकी अपेक्षा घर में यह विधि करने पर हमें देवताओं से सुरक्षा अल्प मात्रा में मिलती है, अत: ऐसे कृत्य देवालय में करना अधिक सुरक्षित है ।
४. वर्तमान में अनिष्ट शक्तियों का सूक्ष्मयुद्ध भी
दिनोंदिन तीव्र होने के कारण महर्षि द्वारा उसके अनुसार
धार्मिक कृत्य तथा प्रार्थना करने की गति भी बढाने की बात ध्यान में आना
लगभग प्रतिदिन अनेक मंदिरों में ले जाकर महर्षि हमसे भिन्न-भिन्न धार्मिक कृत्य करने के लिए कहते हैं तथा प्रार्थनाएं भी करवाते हैं । इससे यही ध्यान में आता है कि काल कितना कठिन है । एक बार धार्मिक कृत्य किया और हमारी रक्षा हो गई, ऐसा नहीं होता । इससे यही ध्यान में आता है कि वर्तमान में अनिष्ट शक्तियों का सूक्ष्मयुद्ध दिनोंदिन तीव्र होने के कारण ही महर्षि उसके अनुसार धार्मिक कृत्य तथा प्रार्थना करने की गति भी बढा रहे हैं ।
वास्तव में, आध्यात्मिक उपचार करने का बल भी महर्षि ही दे रहे हैं जिस कारण प्रतिदिन विविध स्थानों पर जाना तथा प्रार्थना करना हमारे लिए संभव हो रहा है ।
५. ईश्वरीय साथ के बिना किए जानेवाले कर्म असफल होना
इससे यही ध्यान में आता है कि ईश्वरीय साथ नहीं, तो जीवन में किए जानेवाले कर्म का कोई अर्थ नहीं है । कर्म का आनंद ईश्वर की शक्ति के साथ होने से ही मिलता है, अन्यथा कर्म करने पर भी समाधान नहीं होता ।
विधि में केवल पैसा खर्च करने से समाधान खरीदा नहीं जा सकता, वह केवल ईश्वर के आशीर्वाद से ही बिना पैसे के मिलता है, यही सत्य है !