शनैश्चर देवता का माहात्म्य !

इस लेख से हम शनिदेव की महिमा जान लेते हैं ।

 

शनि से संबंधित श्लोक

१. अगस्त्यङ् कुम्भकर्णञ् च, शनिन् च वडवानलम् ।

आहारपाचनार्थाय, स्मरेद् भीमञ् च पञ्चमम् ।।

अर्थ : अन्नपचन होने के लिए अगस्त्य मुनि, कुम्भकर्ण, शनि, वडवानल (अग्नि) एवं भीम, इन पांच जनों का स्मरण करना चाहिए ।

२. नीलांजनं समाभासं रविपुत्रं यमाग्रजम् । 

छायामार्तंड संभूतं तं नमामि शनैश्चरम् ।।

अर्थ : हे नीलांजन, रविपुत्र, जिनका यम अग्रज (बडा भाई) है और जो छाया का पुत्र है, ऐसे शनिदेव को हम प्रणाम करते हैं ।

 

१. शनिदेव की विशेषता

१ अ. परिवार

१ अ १. माता-पिता : सूर्यदेव एवं छायादेवी

१ अ २. कुटुंबीय : तापी एवं यमुना, ये दो बहनें एवं यमदेव बडे भाई ।

आ. स्थान

१ आ १. जन्मस्थान

भारत के सौराष्ट्र में वैशाख अमावास्या को मध्याह्न में शनैश्चर का जन्म हुआ; इसीलिए इस दिन शनैश्चर जयंती मनाते हैं ।

१ आ २. कार्यस्थान / कार्यक्षेत्र

महाराष्ट्र के शनिशिंगणापुर में शनिदेव काली बडी शिला के रूप में है और वहां शनिदेव की शक्ति कार्यरत है । इसलिए शनिशिंगणापुर शनि का कार्यक्षेत्र है । शनैश्चर जयंती को शनिशिंगणापुर में मेला लगता है और शनिदेव का उत्सव मनाया जाता है ।

इ. शनिदेव के अन्य नाम

सूर्यसूत, बभ्रुरूप, कृष्ण, रौद्रदेह, अंतक (ये यम का नाम है), यमसंज्ञ, सौर्य, मंदसंज्ञ, शनैश्चर, बिभीषण, छायासूत, निभ:श्रुती, संवर्तक, ग्रहराज, रविनंदन, मंदगती, नीलस्य, कोटराक्ष, सूर्यपुत्र, आदित्यनंदन, नक्षत्रगणनायक, नीलांजन, कृतान्तो, धनप्रदाता, क्रूरकर्मविधाता, सर्वकर्मावरोधक, कामरूप, महाकाय, महाबल, कालात्मा, छायामार्तंड इत्यादि शनिदेव के नाम प्रचलित हैं ।

१ ई. शनिलोक

ग्रहमंडल में शनिग्रह सूर्य से बहुत अंतर पर है । उसी प्रकार सूक्ष्म से शनिलोक भी सूर्यलोक से बहुत दूर है । शनिलोक में सूर्यकिरणों का अभाव होने से वहां बहुत अंधकार होता है । शनि का अपमान करनेवाले पापी लोगों को शनिलोक में ले जाकर वहां शनिदेव उन्हें दंडित करते हैं ।

१ उ. संबंधित लिंग

शनिदेव नपुंसक हैं ।

१ ऊ. संबंधित रंग –काला अथवा गहरा नीला

तमप्रधान कर्म का लय करने हेतु जीवों को कठोरता से दंडित करने हेतु शनिदेव ने उग्र रूप लिया । उसका द्योतक काला अथवा गहरा नीला रंग है ।

१ ए. संबंधित वस्त्र का रंग – काला

काले रंग से शनितत्त्व कार्यरत होता है । नवग्रहमंडल से संबंधित देवताओं के लिए उपयोग में लाए गए चावल एवं वस्त्रों का रंग उन-उन देवताओं के रंग से (वर्ण से) संबंधित है; इसीलिए धार्मिक विधि के स्थान पर नवग्रहमंडल की स्थापना करते समय उस अमुक रंग के वस्त्र, अक्षत, पुष्प इत्यादि उपयोग में लाए जाते हैं ।

१ ऐ. चातुर्वर्ण के वर्ण

शनिदेव का वर्ण अंत्यज, अर्थात लयकारी है । उनसे अत्यधिक मात्रा में मारक शक्ति का प्रक्षेपण होता है । इसलिए उनका स्वरूप उग्र प्रतीत होता है ।

१ ओ. संबंधित तत्त्व

शनि का संबंध वायुतत्त्व से है ।

१ औ. संबंधित गुण

शनि का जन्म सूर्य की लयकारी शक्ति से होने के कारण उनमें तमोगुण प्रबल है ।

१ अं. संबंधित रस

शनि को कसैला स्वाद अथवा रस प्रिय है ।

१ क. प्रिय पुष्प

शनि का शनितत्त्व आकृष्ट करनेवाले जामुनी अथवा गहरा नीले रंगों के पुष्प प्रिय हैं ।

१ ख. संबंधित धातु

शनिदेव का संबंध लोह धातु से है । शनि को प्रसन्न करने हेतु कुछ स्थानों पर शनिदेव की लोहप्रतिमा की स्थापना की जाती है और शनि को लोहा अर्पण किया जाता है ।

१ ग. संबंधित कालबल

शनिदेव की शक्ति रात के समय अधिक प्रमाण में कार्यरत होती है ।

१ घ. संबंधित कालांश

शनिदेव का कार्यकाल वर्ष से संबंधित है ।

१ च. संबंधित तिथि एवं वार

शनिदेव को त्रयोदशी तिथि प्रिय है । सप्ताह का शनिवार शनिदेव से संबंधित है ।

१ छ. संबंधित दिशा

शनिदेव का संबंध पश्चिम दिशा से है ।

१ ज. संबंधित देवता

१ ज १. अधिपति : ब्रह्मदेव शनि के अधिपति हैं ।

१ ज २. अधिदेवता (बाई ओर के देवता) यम : यम कर्मप्रधान देवता के रूप में कार्यरत होने से वे पापी लोगों को दंडित करने के लिए शनिदेव को प्रेरणा देते हैं ।

१ ज ३. प्रत्यधिदेवता (दाई ओर के देवता) प्रजापति : शनि की उग्रता न्यून कर, उसे शांत करने हेतु प्रजापति की तारक शक्ति कार्यरत होती है ।

१ झ. संबंधित शस्त्र

धनुष्य, बाण एवं शूल, ये शस्त्र शनि से संबंधित हैं । वक्रमार्ग से अग्रसर होनेवालों पर ध्यान रखकर शनिदेव ने शरसंधान किए का द्योतक है धनुष्याकृति । पूजन के स्थान पर चौरंग पर नवग्रहमंडलदेवताओं की स्थापना करते समय काले रंग के अक्षतों से शनिमंडल की प्रतीक धनुष्याकृति चौरंग की पश्चिम दिशा में बनाई जाती है ।

१ ट. मनुष्य की देह से संबंधित

शनिदेव का संबंध मनुष्य की देह के स्नायुओं से है ।

१ ठ. शुभ-अशुभ फल

शनिदेव का कोप होने पर मनुष्य को अशुभ फल की प्राप्ति होती है; परंतु मनुष्य पर शनिदेव की कृपा होने पर, उसे पुत्रवान एवं धनवान होने का सौभाग्य प्राप्त होता है ।

१ ड. रत्न

शनिदेव से संबंधित रत्न नीला है ।

१ ढ. अक्षर, देवता एवं फल

अक्षरों का अ, क, च, ट, त, प, य एवं श, इन आठ वर्गों में विभाजन किया है । प्रत्येक वर्ग के विशिष्ट देवता हैं । विशिष्ट वर्ग की पद्यरचना की विशिष्ट फलप्राप्ति होती है । शनैश्चर का संबंध इस वर्ग से है, इसलिए उसकी फलप्राप्ति मंदत्व है । इसका अर्थ दुष्कर्म करने की गति धीमी हो जाती है ।

१ ण. हविष्य द्रव्य

नवग्रह यज्ञ में शनिदेव को दूर्वा अथवा शमी की आहुति दी जाती है । दूर्वा अथवा शमी में कार्यरत गणेशतत्त्व की शक्ति शनिदेव को सृजनशील कार्य करने हेतु प्रेरक होती है । शनिदेव को दूर्वा अथवा शमी की आहुति देने से उपासक का पापक्षालन होकर उसे उत्तम आरोग्य की प्राप्ति होती है ।

१ त. जपसंख्या

शनि की जपसंख्या तेईस सहस्र (२३,०००) है ।

१ थ. ग्रहपीडानिवारण

१ थ १. शनि की साढेसाती एवं उस पर उपाय

प्रत्येक मनुष्य की राशि में शनि प्रवेश कर साढे सात वर्ष रहते हैं । इससे मनुष्य को जीवन में साढे सात वर्ष शनि की पीडा भोगनी होती है । इसे ही शनि की साढेसाती कहते हैं । वर्तमान में शनि ने मकर राशि में प्रवेश किया है । इसलिए जिसका मकर राशि है, उनके जीवन में साढेसाती आरंभ हो गई है । शनिग्रह की पीडा दूर करने हेतु प्रत्येक शनिवार को शनिमहात्म्य का वाचन करना चाहिए एवं तैलाभिषेकयुक्त पूजा कर ग्रहमंत्र का जप करना चाहिए ।

१ थ २. शनि की पीडा दूर करने हेतु श्री हनुमान की उपासना करना

शनिदेव सूर्य के पुत्र हैं और श्री हनुमान सूर्य के शिष्य हैं । श्री हनुमान की प्रगट शक्ति शनि की प्रगट शक्ति की तुलना में अनेक गुना अधिक होने से शनि की साढेसाती का परिणाम श्री हनुमान पर नहीं होता है । शनिवार को श्री हनुमान की उपासना कर उन्हेें रूई के पुष्प एवं पत्तों की माला चढाकर, काले तिल एवं तेल चढाने से शनि की पीडा दूर होती है ।

१ थ ३. शनि की पीडा दूर करने हेतु शिव की उपासना करना

शिव का शनि पर अधिपत्य है । शिव का प्रदोष व्रत शनिवार को होने से उसे शनिप्रदोष कहते हैं । शनिप्रदोष के दिन उपवास कर प्रदोषकाल में शिवलिंग बिल्वपत्र चढाकर पूजन करने एवं शिव को पंचामृत से अभिषेक करने अथवा शिव हेतु हवन करने से शिव की कृपा प्राप्त होकर शनि की पीडा दूर होती है ।

१ थ ४. शिवभक्त पिप्पलाद ऋषि के दर्शन लेने अथवा उनका स्मरण करने से शनि की बाधा दूर होना

दधीचि ऋषि के पुत्र पिप्पलाद ऋषि थे । दधीचि ऋषि एवं उनकी पत्नी सुवर्चा के देहत्याग के उपरांत नंदी एवं शिवगणों ने बालक पिप्पलाद ऋषि को शिवलोक ले जाकर उनका पालन-पोषण किया । पिप्पलाद ऋषि की भक्ति से प्रसन्न होकर शिव ने उन्हें आशीर्वाद दिया कि पिप्पलाद ऋषि के दर्शन लेने से अथवा उनका स्मरण करने से शनि की पीडा दूर होगी ।

१ द. शनि से संबंधित स्तोत्र

१. शनिस्तोत्र

२. शनैश्चरकवचस्तोत्र

३. शनिमहात्म्य

– कु. मधुरा भोसले (संदर्भ : सनातन का ग्रंथ परमेश्वर, ईश्वर, अवतार एवं देवता तथा ज्ञान से प्राप्त जानकारी)

 

२. नवग्रहों के संदर्भ में हुई अनुभूति

२ अ. ५ अगस्त २०१६ को सनातन के रामनाथी आश्रम में
बेंगलुरू से आए एक संत द्वारा नवग्रहों के लिए हवन करने पर हुई अनुभूति

२ अ १. शनि, राहु एवं केतु

शनि, राहु एवं केतु, इन ग्रहदेवताओं के लिए हवन करने पर मेरी देह के स्नायुओं में प्रतीत होनेवाली वेदना और देह का जडत्व दूर हो गया ।

शास्त्र : साधिका को हुई अनुभूति से यह प्रमाणित हो गया है कि शनि का संबंध देह से है ।

२ अ २. मंगल

मंगल ग्रह के लिए हवन के चलते ऐसा प्रतीत हुआ जैसे मेरी पीठ पर रीढ की हड्डी को धक्का लगा हो और मेरे रीढ की हड्डी में हो रही वेदना अत्यधिक मात्रा में दूर हो गई ।

शस्त्र : साधिका को हुई अनुभूति से यह प्रमाणित हो गया है कि मंगल ग्रह का संबंध देह की रीढ की हड्डी से है ।

२ अ ३. बुध एवं गुरु

बुध एवं गुरु, इन ग्रहदेवताओं के लिए हवन करते समय मुझे आनंद प्रतीत हुआ ।

२ अ ४. सोम एवंं रवि

सोम आहुति देते समय मुझे शीतलता एवं रवि के लिए मंत्रोच्चार के समय अच्छी शक्ति की निर्मिती से मुझे आल्हाददायक प्रतीत होने लगा । .

२ आ. मर्हिष व्यासजी द्वारा रचित नवग्रहस्तोत्र को सुनते समय शारीरिक एवं मानसिक
स्तर पर अच्छे परिणाम होना एवं एक ऋषि द्वारा इन अनुभूतियों का विश्लेषण सूक्ष्म से करना

२ आ १. नवग्रहदेवताओं से संबंधित स्तोत्र सुनते समय शरीर के सर्वओर लिपटा हुआ पाश ढीला होना 

मार्च २०१६ में मेरे मन में नवग्रहदेवताओं से संबंधित स्तोत्र सुनने की इच्छा जागृत हुई । उस अनुसार मैंने नवग्रहों को नमन कर महर्षि व्यासजी द्वारा नवग्रहों पर रचे हुए नवग्रहस्तोत्र सुने । ये स्तोत्र सुनते समय मेरी देह के सर्व ओर सूक्ष्म से लपेटा हुआ पाश ढीला हो गया है, ऐसा मुझे प्रतीत हुआ । मेरी जीभ पर २ – ३ प्रकार की धातुओं का स्वाद (मेटैलिक टेस्ट) आया ।

शास्त्र : ग्रहों का संबंध विविध धातुओं से होने के कारण उनका स्तोत्र सुनते समय साधिका की जीभ पर विविध धातुओं का स्वाद आया ।

२ आ २. शनिदेवता का श्लोक सुनते समय कंधों के समीप के भाग से दो से ढाई इंच लंबी बडी कीलें देह से बाहर खींची जाना

शनिदेवता का श्लोक सुनते समय मेरे हृदय के ऊपर दोनों कंधों के समीप के भाग से दो से ढाई इंच लंबी कीलें देह से बाहर खींची गई, ऐसा दृश्य मुझे दिखाई दिया और मेरे कंधे, छाती एवं हाथों में होनेवाली वेदना दूर हो गई ।

शास्त्र : शनि का संबंध लोह (लोहा) धातु से है । पाताल की बडी अनिष्ट शक्तियों ने साधिका को कष्ट देने के लिए उस पर सूक्ष्म से करनी (जादू-टोना) का प्रयोग कर उसकी सूक्ष्म प्रतिकृति बनाकर उसमें लोहे की कीलें घुसा दी थीं । शनिदेव की उपासना से वे साधिका पर प्रसन्न हो गए और उन्होंने उसकी प्रतिकृति में घुसाई लोहे की कीलें खींचकर नष्ट कर दीं ।

२ आ ३. गुरुकृपा से नवग्रह अनुकूल होकर नाते-रिश्तों में आपसी संबंधों में सुधार हुआ, एक ऋषि द्वारा ऐसा विश्लेषण करना

नवग्रहस्तोत्र सुनते समय उसका परिणाम मेरी मनोदेह पर होकर मेरा मन प्रसन्न हुआ और मेरे संपर्क में आनेवाले व्यक्ति से मानसिक स्तर पर मेरा सुधार हो रहा है, ऐसा मुझे प्रतीत हुआ । ग्रहों का परिणाम संबंधों से होने से ग्रहपीडा के कारण संबंधों में तनाव निर्माण होता है और गुरुकृपा के कारण नवग्रह अनुकूल होकर उनके साथ संबंधों में सुधार आता है, मुझे प्रतीत हुआ जैसे कि यह विश्लेषण एक ऋषि ने सूक्ष्म से किया है ।

– कु. मधुरा भोसले, सनातन आश्रम, रामनाथी, गोवा. (२२.५.२०१७)

 

३. शनिदेवता के संदर्भ में हुई अनुभूति

३ अ. शनैश्चरकवचस्तोत्र सुनते समय अच्छी एवं कष्टदायक अनुभूति आना
एवं शनिपीडा शरीर से बाहर निकलने के लिए मार्ग ढूंढ रही है, ऐसा प्रतीत होना

मार्च २०१६ में मैं शनैश्चरकवचस्तोत्र के आरंभ के श्लोक सुनते समय ऐसे लगा जैसे मेरी देह में अनुभव होनेवाली वेदना एवं कंठ में प्रतीत होनेवाला दबाव घट गया है । स्तोत्र के अगले श्लोक सुनते समय मेरे दाएं पैर की स्नायुओं में वेदना प्रतीत हुई और मेरे दाएं पैर के पंजे में सूक्ष्म से कुछ गतिविधि हो रही है और मुझे वेदना हो रही है, ऐसा लगा । मेरे दाएं पैर के पंजे में होनेवाली वेदना, सीधे पैर के अंगूठे से बाहर निकलने का मार्ग ढूंढ रही है, ऐसा प्रतीत हुआ । तब मेरे दाएं पैर के अंगूठे के नख के नीचे काफी दबाव प्रतीत हो रहा था । कई बार ऐसा लगा कि मेरे बाएं पैर से भी वेदना का प्रवाह जा रहा है । शनिकवचस्तोत्र सुनने के कारण मेरे प्रारब्ध की शनिपीडा पैरों की वेदना के स्वरूप में प्रकट होकर पंजों से बाहर निकलने के लिए अंगूठे से मार्ग ढूंढ रही है, ऐसा मुझे प्रतीत हुआ ।

शास्त्र : शनि की पीडा मनुष्य के पैर से प्रवेश करती है और उसी मार्ग से वह दूर होती है ।

३ आ. देह के अवयवों के सर्व ओर सूर्य के तेज का सुरक्षा कवच निर्माण होना और शीतलता प्रतीत होना

शनैश्चरकवचस्तोत्र सुनते समय मुझे ऐसा प्रतीत हुआ कि मेरी देह के विविध अवयवों के सर्व ओर सूर्य के तेज का सुरक्षाकवच निर्माण हो गया है; परंतु आश्श्चर्य की बात है कि मुझे उष्णता नहीं, अपितु एक अलग प्रकार की शीतलता ही प्रतीत हुई ।

शास्त्र : शनि सूर्यपुत्र होने से साधिका को सूर्य के तेज के संदर्भ में अनुभूति हुई ।

३ इ. शनिदेव के सूक्ष्म रूप के दर्शन होना

शनैश्चरकवचस्तोत्र का श्रवण करत समय मुझे गहरी नीली आकृति से तेजस्वी चंदेरी प्रकाश बाहर निकलता दिखाई दिया और उस आकृति के सर्व ओर काले रंग की गहरी छाया प्रतीत हुई ।

शास्त्र : यह शनिदेव का सूक्ष्म रूप है, ऐसा मुझे प्रतीत हुआ ।

 

४. शनिशिंगणापुर के शनैश्चरदेवता के संदर्भ में हुई अनुभूति एवं सीखने मिले सूत्र

४ अ. सुस्थिति में होते हुए शनिशिंगणापुर के निकट बस का एकाएक
बंद पडना और उसका कारण किसी के ध्यान में न आना एवं शनिशिंगणापुर
के शनैश्चरदेवता से मानस प्रार्थना करने पर बंद पडी बस का पुन: चालू हो जाना

मार्च २०११ में मैं एक साधिका के साथ एक निजी (प्राइवेट) बस से अमरावती से पुणे जा रही थी । हमारी बस नगर जिले के शनिशिंगणापुर से आधे घंटे की दूरी पर एकाएक बंद पड गई । बस का इंजिन खोलकर उसमें वास्तव में क्या बिगाड है, यह पता करने के लिए सभी के प्रयत्न आरंभ हो गए, तब बस के इंजन से एकाएक धुआं आने लगा । सभी को लगा कि इंजिन गरम होने से धुआं आ रहा होगा; परंतु इंजिन में पानी डालने के उपरांत एवं काफी समय तक इंजन बंद कर उसका ढक्कन खुला रखने के उपरांत भी इंजन का तापमान घट नहीं रहा था । वाहन की दुरुस्ती करने हेतु आसपास के जानकार लोगों को बस ठीक करने के लिए बुलाया गया; परंतु उन्हें भी बस बंद हो जाने का कारण समझ में नहीं आया । इन प्रयत्नों में एक घंटा व्यय हो गया । तब मेरे मन में विचार आया कि हम शनिशिंगणापुर के निकट हैं । तब शनैश्चर देवता के मानस दर्शन कर उनसे साधना में अडचनें दूर होने एवं उनकी कृपादृष्टी हमें प्राप्त होने हेतु प्रार्थना करेंगे । उसी प्रकार मैंने और साथवाली साधिका कु. रागेश्री देशपांडे ने शनिदेवता से प्रार्थना की । प्रार्थना करने के उपरांत केवल पांच मिनट में ही एक व्यक्ति ने कहा कि बस का गरम इंजन ठंडा हो गया है । बस शुरू होती है क्या ?, यह देखने के लिए इंजन चालू करके देखा, तो वह हो गया । बस के पुन: चालू होने पर सभी के मन शांत हो गए और बिना किसी कठिनाई के हम पुणे पहुंच गए ।

४ आ. अनुभूति से सीखने मिले सूत्र – मनुष्य की बुद्धि को मर्यादा होने से
समस्या का निवारण करने का खरा सामथ्र्य देवताओं में ही होता है, इसका साक्ष्य मिलना

मनुष्य की बुद्धि को मर्यादा होने से किसी भी घटना के पीछे वास्तव में कारण क्या है ?, यह ढूंढने में मनुष्य को मर्यादा आती है । स्थूल की घटनाओं के पीछे मनुष्य के लिए अनाकलनीय कारण ढूंढने में देवता सर्वज्ञ होने से, वे सक्षम होते हैं । इसके साथ ही समस्याओं का निवारण करने में भी देवता समर्थ होते हैं, इस अनुभूति से हमें इसका साक्ष्य हमें मिला, इसके लिए हम शनैश्चर देवता के चरणों में अनंत कोटि कृतज्ञ हैं ।

ईश्वर के चरणों में कृतज्ञता एवं शनैश्चरदेवता से प्रार्थना !

विविध ग्रहदेवताओं का महत्त्व एवं उनसे संबंधित उपासना करते समय, उनका कोप दूर होकर उनकी कृपादृष्टी कैसे होती है ?, ईश्वर ने ऋषि एवं संत द्वारा रचे गए विविध स्तोत्रों के माध्यम से मुझे इसकी अनुभूति दी । इसके लिए मैं भगवान के चरणों में नतमस्तक होकर कृतज्ञता व्यक्त करती हूं । हम साधकों पर शनैश्चर देवता की अखंड कृपादृष्टी बनी रहे, ऐसी उनके चरणों में प्रार्थना है ।

कु. मधुरा भोसले

1 thought on “शनैश्चर देवता का माहात्म्य !”

  1. Main Aruna Parmar, Aabhar vyakt karti hun. Mujhe ye lekh bahut hi pasand aaya didi, aur ise padh kar mujhe bahut hi positive anubhuti hui aur mujhe bahut hi achchha mahsus hua. Bahut bahut dhanyavad didi Sanatan Sanstha ko meri aur se.

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