अनुसंधान में विद्यमान पू. श्रीकृष्ण आगवेकरजी !

१. श्री. विनायक तथा श्रीमती मंजिरी आगवेकर
(भतीजा तथा बहू), सनातन आश्रम, रामनाथी, गोवा

१. पू. काकाजी की जीवनशैली बहुत सादगी से युक्त है ।

१ अ. सेवा की तडप : पू. काकाजी की आयु ८२ वर्ष हैं । उन्हें घुटनों में पीडा है; परंतु उन्होंने गुरुपूर्णिमा के समय में समाज में जाकर अर्पण संकलित करने की सेवा की ।

१ आ. पूछकर कार्य करने की वृत्ति : घर की स्थिति प्रतिकूल होते हुए भी ‘मैं कौनसी प्रार्थनाएं करूं ?’, ऐसा उन्होंने मुझे पूछा तथा ‘आजकल मैं मुझे जैसा संभव होता है, उस प्रकार से प्रार्थनाएं करता हूं ।’, ऐसा कहा ।

१ इ. निरपेक्ष प्रेम : उनके मन में किसी के प्रति भी कोई रोष अथवा अपेक्षा नहीं । उन्हें सभी के प्रति प्रेम लगता है ।

१ ई. ईश्‍वर के साथ अनुसंधान : ‘वे सभी में होते हुए भी कहीं नहीं हैं और अंदर से उनका ईश्‍वर के साथ अनुसंधान है’, ऐसा हमें प्रतीत हुआ ।

१ उ. ‘काकाजी के मुखपर तेज बढा है और वे संत बन गए हैं’, ऐसा लगता है ।

२. श्रीमती पल्लवी लांजेकर, रत्नागिरी

२ अ. आगवेकरकाकाजी की ओर देखनेपर स्वयं को चैतन्य मिल रहा है, ऐसा प्रतीत होकर भावजागृति होना, ‘उनका रूप आंखों में संजोएं’, ऐसा लगना तथा ‘वे ईश्‍वर के अनुसंधान में हैं’, ऐसा प्रतीत होना

‘मैं जब आगवेकरकाकाजी के घर गई, तब उन्होंने हंसकर विनम्रता से मुझे बैठने के लिए कहा । उनकी ओर देखते समय ‘मुझे चैतन्य मिल रहा है’, ऐसा प्रतीत होकर मेरी बहुत भावजागृति हुई । ‘उनका रूप आंखों में संजोएं तथा आंखों को बंद कर ‘उनके रूप का स्मरण करें’, ऐसा मुझे लग रहा था । मैं जब उनके साथ बोल रही थी, तब वे मेरे साथ बहुत अल्प बोल रहे थे । काकाजी एक अलग ही विश्‍व में, अर्थात ‘सतत ईश्‍वर के अनुसंधान में हैं’, ऐसा मुझे प्रतीत हुआ । उन्होंने मेरे साथ अधिक बात नहीं की, तब भी मुझे इसका अनुभव हुआ ।

स्त्रोत : दैनिक सनातन प्रभात

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