रामायण में जिस भूभाग को लंका अथवा लंकापुरी कहा जाता है, वह स्थान है आज का श्रीलंका देश ! त्रेतायुग में श्रीमहाविष्णुजी ने श्रीरामावतार धारण कर रावणादि असुरों का नाश किया । अब वहां की ७० प्रतिशत जनता बौद्ध है; परंतु आज भी श्रीलंका में श्रीराम, सीता, लक्ष्मणजी, हनुमानजी, रावण तथा मंदोदरी से संबंधित अनेक स्थान, तीर्थ, गुफाएं, पर्वत तथा मंदिर हैं । संपूर्ण विश्व के हिन्दुआें को उनकी जानकारी मिले, इसके लिए महर्षि अध्यात्म विश्वविद्यालय की ओर से सद्गुरु (श्रीमती) अंजली गाडगीळजी तथा उनके साथ ४ छात्र-साधकों ने १ मास (महिना) श्रीलंका की यात्रा की ।
रावणासुर के संहार के पश्चात श्रीराम पुष्पक विमान से अयोध्या लौट रहे थे, तब उनके विमान के पीछे एक काला बादल आ रहा है, ऐसा उनके ध्यान में आता है । तब शिवजी प्रकट होकर श्रीराम से कहते हैं, यह काला बादल आपको ब्रह्महत्या के कारण लगे पाप का प्रतीक है । रावण के ब्राह्मण होने से उसके वध के कारण उत्पन्न दोषनिवारण के लिए भगवान शिवजी श्रीराम को श्रीलंका के पंच ईश्वर के स्थान को जाकर शिवपूजा का निर्देश देते हैं । तब श्रीराम शिवजी की आज्ञा का पालन करते हैं । केतीश्वरम्, तोंडीश्वरम्, मुन्नीश्वरम्, कोनेश्वरम् तथा नगुलेश्वरम् ये वह पंच ईश्वर हैं । उनमेें से तोंडीश्वरम् मंदिर अब समुद्र का जलस्तर बढने के कारण पानी के नीचे चला गया है । आज हम इन पंच ईश्वर मंदिरों में से नगुलेश्वरम् मंदिर के विषय में जान लेंगे ।
१. कीरीमलै गांव तथा कीलीमलै झरना
श्रीलंका के हिन्दू अधिकांश उत्तरी श्रीलंका में रहते हैं । इनमें से अधिकांश हिन्दू तमिल भाषी हैं । उत्तरी श्रीलंका का हिन्दू संस्कृति से संबंधित महत्त्वपूर्ण नगर है जाफना ! इस नगर से ३० कि.मी. दूरीपर कीरीमैला नामक एक छोटा गांव है । यह गाव समुद्र क तटपर बंसा है । तमिल भाषा में कीरी का अर्थ नेवला तथा मलै का अर्थ पर्वत ! प्राचीन काल में यहां एक छोटी टीली थी । इस टीलीपर स्थित गुफा में अनेक नेवले होते थे । इसके कारण इस गांव का नाम कीरीमलै पडा । यहां समुद्र को लगकर ही मीठे पाने का झरना है, जिसे कीरीमलै झरना कहा जाता है ।
२. एक शाप के कारण नगुलऋषी का मुख नेवले जैसा बन जाना, शिवजी की आज्ञा से कीरीमलै झरने में स्नान करनेपर उन्हें पुनः मनुष्यरूप प्राप्त होना तथा इसके लिए कृतज्ञता के रूप में इस स्थानपर उनके द्वारा शिवलिंग की स्थापना की जाना
सहस्रों वर्ष पूर्व नगुल नामक एक ऋषी यहां आए थे । एक शाप के कारण उनका मुख नेवले जैसा बन गया था । भगवान शिवजी नगुल ऋषी से कहते हैं, लंकापुरी के कीरीमलै नामक झरने में स्नान करने से आप इस शाप से मुक्त हो जाएंगे । तब नुगुलऋषी कीरीमलै के झरने में स्नान करते हैं और उन्हें पुनः मनुष्यरूप प्राप्त होता है । इसके लिए कृतज्ञता के रूप में वे यहां एक शिवलिंग की स्थापना कर उसका पूजन करते हैं । नुगुलऋषी द्वारा स्नान किए गए कीरीमलै झरने में आज भी सैकडों लोग अपने चर्मरोग दूर होने के लिए स्नान करते हैं ।
३. ब्रह्महत्या का पाप दूर हो; इसके लिए प्रभु श्रीरामजी द्वारा कीरीमलै के झरने में स्नान कर शिवपूजन किया जाना
त्रेतायुग में श्रीरामजी ने ब्रह्महत्या का लगा पाप दूर हो; इसके लिए कीरीमलै झरने में स्नान कर नगुलेश्वर के मंदिर में शिवलिंग का पूजन किया था । द्वापारयुग में अर्जुन ने भी यहां शिवपूजा की थी, ऐसा कहा जाता है ।
– श्री. विनायक शानभाग, सनातन आश्रम, रामनाथी, गोवा (१८.६.२०१८)