महाराष्ट्र में स्थित ‘नगर’ शहर के ‘ग्रामदेवता’ मालीवाडा के श्री सिद्धिविनायक का मंदिर विशाल और बहुत जागृत है । यह मंदिर २०० वर्ष पुराना है । ये, भक्तों की मनोकामना पूर्ण करनेवाले देवता के रूप में प्रसिद्ध हैं । इस मंदिर का नाम दूर-दूर तक है । यह मूर्ति साढे ग्यारह फुट ऊंची, पूर्वाभिमुखी और दाएं सूंड की है । इसकी नाभि पर फनधारी नाग है तथा सिर पर पेशवाकालीन पगडी है ।
विशाल गणपति के दर्शन हेतु प्रतिदिन सैकडों श्रद्धालु मंदिर में आते हैं । गणेशोत्सव, गणेशजयंती, गुरुपूर्णिमा, सावता महाराज जयंती इत्यादि उत्सव यहां बहुत धूमधाम से मनाए जाते हैं । प्राचीन मंदिर बहुत सुंदर और लकडियों से बना था, जिसमें अनेक बेल-बूटे गढे हुए थे । पिछले २३ वर्षों से इस मंदिर का जीर्णोद्धार हो रहा था, जो अब पूरा हो गया है ।
नगर के ग्रामदेवता श्री विशाल गणपति की आकर्षक मूर्ति !
हिन्दू राष्ट्र की स्थापना के कार्य में आनेवाली बाधाएं दूर हों, इसके लिए हम इन्हें शरणागत भाव से प्रार्थना करेंगे !
सनातन की सद्गुरु (श्रीमती) अंजली गाडगीळ ४ वर्ष से भी अधिक समय से भारत-भ्रमण कर, प्राचीन मंदिर, भवन, दुर्ग और अन्य महत्त्वपूर्ण वस्तुओं के छायाचित्र इकट्ठा कर रही हैं । इसीलिए, हम घर बैठे इनके दर्शन कर पा रहे हैं । इस कृपा के लिए हम परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी और सद्गुरु (श्रीमती) अंजली गाडगीळजी के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करेंगे !
संगीत और नृत्य में प्रवीण श्री गणपति
स्वर-ब्रह्म का प्रकटीकरण, ओंकार है । श्रीगणेश को ही ‘ओंकारस्वरूपा’ कहा गया है । श्रीगणेश वरदस्तोत्र के अनेक श्लोकों से स्पष्ट होता है कि गणेशजी का संगीत से अभिन्न संबंध है । संत ज्ञानेश्वर, संत नामदेव, समर्थ रामदासस्वामी आदि संतों की अभंग रचनाओं से प्रतीत होता है कि गणेशजी का संगीत से बहुत निकट का संबंध है । कुछ स्थानों पर नर्तकरूप में भी गणेशजी की मूर्ति मिलती हैं । सुनहरी कांतिवाले इन गणपति के आठ हाथ हैं तथा बायां पैर पद्मासन की मुद्रा में और दायां पैर भूमि से ऊपर उठा हुआ है । श्री गणेश का नृत्य देखकर गंधर्व और अप्सराएं भी लज्जित होती हैं, यह बताते हुए कवि मोरोपंत ने अपने शब्दों से श्री गणेश के मनोहारी रूप का उत्तम चित्र बनाया है ।