काल की आवश्यकता समझकर राष्ट्र तथा धर्मरक्षा की शिक्षा देना, यह गुरु का वर्तमान कर्तव्य है । जिस प्रकार साधकों को साधना बताना गुरु का धर्म है, उसी प्रकार राष्ट्र एवं धर्म की रक्षा हेतु समाज को जागृत करना, यह भी गुरु का ही धर्म है । आर्य चाणक्य, समर्थ रामदासस्वामी जैसे गुरुओं के आदर्श हमारे समक्ष हैं । वर्तमान में हमारे राष्ट्र एवं धर्म की स्थिति अत्यंत दयनीय है । काल की आवश्यकता को समझकर राष्ट्र एवं धर्म की रक्षा हेतु साधना की सीख शिष्यों तथा समाज को देना, गुरु का सांप्रतकालीन कर्तव्य है ।
१. ईश्वर तथा गुरु, दोनों का कार्य एक ही है !
‘गुरु, एक प्रकार से पृथ्वी पर चलते-फिरते ईश्वर ही हैं । भक्तों पर सदैव कृपा करनेवाले ईश्वर संत-सज्जनों की रक्षा तथा धर्मरक्षा हेतु असुरों पर अस्त्र-शस्त्रों का वर्षाव भी करते हैं । असुरमर्दन एवं धर्मरक्षा करनेवाले ईश्वर का यह दूसरा रूप हम भूल जाते हैं । अंतःकरण से ईश्वर से एकरूप हुए गुरु ईश्वर के इस क्षात्रकार्य से अलिप्त कैसे रह पाएंगे ?
२. राष्ट्र तथा धर्मरक्षा की शिक्षा देनेवाले गुरुओं के कार्य का स्मरण कीजिए !
१. आर्य चाणक्य ने तक्षशिला विश्वविद्यालय में ‘आचार्य’ के पद पर नियुक्त होने पर मात्र विद्यादान कर स्वयं को धन्य नहीं समझा, अपितु चंद्रगुप्त जैसे अनेक शिष्यों को क्षात्र-उपासना महामन्त्र देकर उनकेद्वारा विदेशी ग्रीकों के हिन्दुस्थानपर हुए आक्रमणको विफल किया एवं हिन्दुस्थान को एकजुट किया ।
२. प्रत्यक्ष प्रभु राम के दर्शन करनेवाले समर्थ रामदासस्वामी मात्र रामनाम ही जप करने में रममाण नहीं हुए, अपितु समाज बलोपासना करे इस हेतु उन्होंने अनेक स्थानों पर हनुमानजी की स्थापना की एवं शिवाजी महाराज को अनुग्रहित कर उनके द्वारा ‘हिन्दवी स्वराज्य’ की स्थापना करवाई ।
३. कुछ समय पूर्व देहत्याग करनेवाले स्वामी वरदानन्द भारती एवं महायोगी गुरुदेव काटेस्वामीजी भी ऐसे ही महान गुरु थे । धर्म तथा अध्यात्म की शिक्षा देने के साथ इन महान पुरुषों ने अपनी लेखनी राष्ट्र तथा धर्म के कर्तव्यों के प्रति निद्रित हिन्दू समाजको जागृत करने हेतु चलाई ! ऐसे कितने गुरु हैं जिन्होंने अपने आचार-विचार से अपने शिष्य तथा समाज के समक्ष राष्ट्र एवं धर्मरक्षा के पवित्र कार्य का आदर्श रखा ।
वर्तमान में राष्ट्र एवं धर्म पर कौन से संकट टूट पडे हैं ?
प्रतिदिन समाचार-पत्र पढनेवालों को वर्तमान समय कैसा है, यह विशेष रूप से बताने की आवश्यकता नहीं ।
१. भ्रष्टाचारी नेताओं द्वारा किए जा रहे घोटाले देखकर भारतमाता कहती होंगी, ‘ब्रिटिश शासनकाल में भी मुझे इतना नहीं लूटा गया था !’
२. निर्धनता की सीमारेखा से नीचे जीवन जीनेवाली ६५ प्रतिशत भारतीय जनता फूट-फूटकर कहती होगी, ‘हे भगवान, हमारा अगला जन्म यहां न हो !’
३. मूर्तिभंजन एवं मंदिरों का विध्वंस देखकर देवता कहते होंगे, ‘हम हिन्दुस्थान में हैं कि मुगलिस्तान में ?’ इतना ही नहीं, देश पर हो रहे आतंकवादियों के आक्रमण, गोहत्या तथा धर्मांतरण… जैसे संकटों के एक नहीं अनेक उदाहरण दिए जा सकते हैं ।
आज के गुरु द्वारा राष्ट्र एवं धर्मरक्षा की शिक्षा देना क्यों आवश्यक है ?
१. जिस प्रकार गुरु का शांतिकालीन धर्म साधकों को ईश्वरप्राप्ति के लिए साधना सिखाना है, उसी प्रकार राष्ट्र एवं धर्म की रक्षा के लिए समाज को जागृत करना, यह भी गुरु का आपातकालीन धर्म ही है ।
२. गुरु शिष्य को जन्म-मृत्यु के चक्र से मुक्त होने हेतु साधना सिखाते हैं; परंतु यदि राष्ट्र एवं धर्म सुरक्षित नहीं रहे, तो कोई साधना कैसे कर पाएगा ? अतः शिष्य में ही नहीं; प्रत्येक देशबंधु में राष्ट्रीय चरित्र तथा धर्मप्रेम निर्मित करना, गुरु का कर्तव्य है ।
३. माया में रहकर साधना करते समय स्वयं में विद्यमान देवत्व, अर्थात ब्रह्मत्व जागृत होने से गुरु को ब्रह्मप्राप्ति होती है । स्वयं में विद्यमान ब्रह्मत्व जागृत रखने के साथ ही ‘दूसरे में, माया में ब्रह्मत्व देखना’, यह गुरु की साधना-यात्रा का अगला पडाव है । अतः जिसमें ब्रह्मत्व देखना है, उसके विषय में गुरु को क्या कुछ भी नहीं लगेगा ? धर्मबंधुओं पर अत्याचार होते देख उनके विषय में क्या गुरु के मन में करुणा जागृत नहीं होगी ? राष्ट्र दुःख से व्याकुल होगा, उस समय क्या गुरु स्वस्थ जीवन जी पाएंगे ? संक्षेप में, काल की आवश्यकता को देखते हुए राष्ट्र एवं धर्म की रक्षा हेतु साधना करने की सीख शिष्य एवं समाज को देना, यह गुरु का वर्तमान समय में कर्तव्य है । राष्ट्र एवं धर्मरक्षा, उनकी तथा शिष्य एवं समाज की भी कालानुसार आवश्यक साधना है ।