१. व्युत्पत्ति एवं अर्थ
अ. व्युत्पत्ति
डॉ. रा.गो. भांडारकर कहते हैं कि ‘विष्णु’ शब्द का कन्नड अपभ्रंशित रूप ‘बिट्टि’ होता है तथा इस अपभ्रंश से ‘विठ्ठल’ शब्द बन गया ।
आ. अर्थ
१. ईंट ठल (स्थल) = विठ्ठल
अर्थ : जो ईंटपर खडा होता है, वह विठ्ठल है ।
२. h 5 >
अर्थ : जो अज्ञानी लोगों का ज्ञान के साथ स्वीकार करता है, वह विठ्ठल है ।
३. विठ्ठल का दूसरा नाम है पांडुरंग
‘पांडुरंग’ धवल शिवजी का नाम है । कन्नड भाषा में इसकी पंडरंगे, यह रूप होता है; इसलिए पांडुरंग अथवा पंडरंग का पूर (नगर) है पंढरपुर, ऐसा डॉ. रा.गो. भांडारकर कहते हैं ।
अ. श्री विठ्ठल की मूर्ति काले रंग की होते हुए भी उसे पांडुरंग (श्वेत रंग का) यह नाम मिलने के कारण –
अ. दही-दूध के अभिषेक के कारण विठ्ठल श्वेत रंग के होने से उन्हें ‘पांडुरंग’ कहा जाना
श्री विठ्ठल मेरे अवतार हैं । अतः दही-दूध से विलेपित रूप में ही मैने श्री विठ्ठल का रूप धारण किया । शास्त्र और पुराणों में श्री विठ्ठल का रंग चाहे सांवला बताया गया हो; परंतु अभिषेक के कारण वह श्वेत बनने से श्री विठ्ठल को पांडुरंग कहते हैं । – श्रीकृष्णजी (श्रीमती प्रार्थना दत्ता बुवा (पहले की कु. मेघा नकाते के माध्यम से, १५.७.२००५, सायंकाल ७.३५)
अ २. चाहे श्री विठ्ठल की मूर्ति काले रंग की दिखती हो; परंतु सच्चे भक्त को अपने सूक्ष्म-दर्शनेंद्रिय से वह श्वेत रंग की ही दिखती है । प्रत्येक मास (महिने) की २ एकादशियों में से पहली श्री विठ्ठल के नाम से तथा दूसरी पांडुरंग के नाम से मनाई जाती हैं ।
२. इतिहास
अ. २८ युगों से खडे होना
१. सत्य, त्रेता, द्वापर तथा कलि इन ४ युगों का एक चक्र अर्थात एक फेरा होता है । आज के दिन पृथ्वीतत्त्व का ७वां फेरा चल रहा है । ७ x ४ = २८ । आज के दिन २८वां युग चल रहा है । विठ्ठल २८ युगों से खडे ही हैं ।
२. ४ वेद, १८ पुराण तथा ६ शास्त्रों का जोड २८ होना तथा उनकेद्वारा पांडुरंग का गुणगान गाया जाना : ४ वेद, १८ पुराण तथा ६ शास्त्रों का जोड २८ होता है । इसलिए विठ्ठल २८ युगों से खडे ही हैं; क्योंकि ये सभी (वेद, पुराण तथा शास्त्र) उन्हीं का गुणगान करनेवाले हैं ।
‘विठ्ठल २८ युगों से खडे हैं’, ऐसा कहा गया है । ‘खडे हैं’, इसका अर्थ विठ्ठल २८ युगों से निर्गुण रूप में अर्थात तत्त्वरूप से कार्यरत हैं । इससे विठ्ठल का अनादिपन ध्यान में आता है ।
संदर्भ : सनातन निर्मित ग्रंथ श्री विठ्ठल (उपासनाशास्त्र तथा पंढरपुर महिमा)
३. श्रीविठ्ठलके सूक्ष्म-दर्शनसंबंधी सूक्ष्म-चित्र
यह है पंढरपुरमें वास करनेवाले श्री विठ्ठल अर्थात पांडुरंग की प्रतिमाका छायाचित्र । यह प्रतिमा शुभचिह्नों एवं विभिन्न भक्तोंके चिह्नोंसे सुशोभित है । अब हम देखते हैं, सनातन संस्थाकी साधिका श्रीमती अंजली गाडगीळजीको हुए विठोबाके सूक्ष्म-दर्शनको इस सूक्ष्म-चित्रके माध्यमसे । ईश्वरकी इस कृपाके लिए हम कृतज्ञता भी व्यक्त करेंगे ।
अ. सिर पर विद्यमान शिवपिंडीके सर्व ओर निर्गुण शिवतत्त्व विद्यमान होता है ।
आ. आज्ञाचक्रसे चैतन्यका प्रवाह प्रक्षेपित होता है ।
इ. प्रतिमाके कानोंमें मकराकृत कुंडल चैतन्यसे युक्त दिखाई देते हैं ।
ई. गलेमें धारण कौस्तुभ मणिमें शक्ति प्रतीत होती है ।
उ. विठोबाके अनाहतचक्रके स्थानपर विद्यमान विष्णुपदसे शांति प्रतीत होती है ।
ऊ. छातीपर भृगुऋषिके चरणोंके अंगुठेके चिह्नके सर्व ओर चैतन्यका वलय प्रतीत हुआ ।
ए. श्रीविठ्ठलकी प्रतिमाके दोनों पैरोंके बीचमें विद्यमान लाठीसे कृष्णतत्त्वकी तारक तरंगें प्रक्षेपित होती हैं ।
ऐ. श्रीविठ्ठलकी प्रतिमाके चरणोंतले उन्हें पुंडलिकद्वारा खडे रहनेके लिए दी हुई र्इंट है । इस र्इंटसे दसों दिशाओंमें चैतन्यके प्रवाह प्रक्षेपित होते हैं ।
इस सूक्ष्म-चित्रद्वारा हमने श्रीविठ्ठलकी प्रतिमाके सूक्ष्म-स्तरीय प्रभावकी प्रक्रियाको समझ लिया ।
४. पंढरपुर की श्री विठ्ठलमूर्ति को भी भोगना पडा ऐसा वनवास !
१. प्राचीनता
पंढरपुर की श्री विठ्ठलमूर्ति बहुत प्राचीन है । वह ३री शताब्दी के उदयगिरी शिल्पों की भांति दिखाई देती है; परंतु संतजन तथा भक्तजन के लाडले पंढरपुर की श्री विठ्ठलमूर्ति को अनेक बार वनवासी होना पडा है ।
२. विजयनगर में प्रतिष्ठापना
दक्षिण के विजयनगर साम्राज्य के राजा रामराया ने १६वीं शताब्दी के मध्य में इस मूर्ति को विजयनगर ले जाया तथा वहां श्री विठ्ठल के विशाल मंदिर का निर्माण कर उसमें इस मूर्ति के प्रतिष्ठापना की ।
३. पंढरपुर मे पुनर्स्थापना
संत एकनाथजी के पडदादा भानुदास महाराज इस मूर्ति को विजयनगर से पुनः पंढरपुर ले आए तथा उन्होंने समारोहपूर्वक मूल स्थानपर स्थापना की ।
४. मुसलमानों से रक्षा होने हेतु मूर्ति को किसी गुप्त स्थानपर स्थानांतरित किया जाना
दक्षिण में जब मुसलमानों का वर्चस्व बढने लगा, तब यह विठ्ठलमूर्ति आक्रमणकारियों के हाथ न लगे; इसलिए वर्ष १६६९ में इस मूर्ति को पंढरपुर से किसी गुप्त स्थानपर स्थानांतरित किया गया । तत्पश्चात वर्ष १६७२ में आषाढीयात्रा के समय मूर्ति को काडकुसुंबे गांव ले जाना पडा । उस समय मूर्ति को छिपाए जाने से वह आक्रमणकारियों के हाथ नहीं जा सकी ।
५. दीर्घकालतक मूर्ति मंदिर के बाहर
वर्ष १६७५ में मूर्ति की चोरी हुई । उस मूर्तिचोर ने बडवों (पुजारी) से बडी धनराशि लेकर मूर्ति वापस लौटाई । वर्ष १६९४ से १७१५ की अवधि में दीर्घकालतक मूर्ति पंढरपुर के बाहर अज्ञातवास में ही थी ।
६. पंढरपुर में पुनः प्रतिष्ठापना
यह मूर्ति वर्ष १७१५ में पंढरपुर के मंदिर में पुनः स्थापित की गई । उसके १ वर्ष पश्चात राजर्षि शाहू महाराज ने एक अभयपत्र के द्वारा उनकी सेना की ओर से पंढरपुर क्षेत्र को कोई उपद्रव नहीं होगा, यह आश्वस्तता की । तत्पश्चात कभी विठ्ठलमूर्ति को वनवास नहीं भोगना पडा ।
– श्री. रमेश सहस्त्रबुद्धे (श्रीगजनान आशीष, अगस्त २०१०)
५. श्री विठ्ठल को कुंकुम न लगाकर बुक्का (काली विभूति) क्यों लगाया जाता है ?
कुंकुम प्रत्यक्ष कार्यरत आदिशक्ति का प्रतीक है । श्री विठ्ठल शिवजी के वैराग्यभाव के अर्थात साक्षीभाव के प्रतीक होने से उन्हें बुक्का (काली विभूती) लगाया जाता है । प्रत्येक कर्म की अकर्म-कर्म सिद्धांत के आधारपर पडताल कर उस संबंधित घटक को कार्यकारणभावरूपी ऊर्जा प्रदान कर उसे भी देहबुद्धि के परे ले जाना अर्थात शिवत्व के परे ले जाना, यह उसका (काली विभूति) का स्थायीभाव है । शिवत्व के परे अर्थात पुरुषप्रकृति के उस पार ले जाना । श्री विठ्ठल प्रत्यक्ष कार्यस्वरूप न होकर वे कर्मस्वरूपी हैं । सगुण की सहायता से निर्गुण को अपनाकर अपने लक्ष्य के प्रति स्थिरता में एकत्व साधकर साक्षीभाव के विश्व में रत तत्त्व का नाम विठ्ठल है । माया में निहित आसक्ति को त्यागकर वैराग्यभाव में अर्थात निर्गुण में रत जीव ही साक्षीभाव के पदतक पहुंच सकता है । बुक्का (काली विभूति) लगाने से श्री विठ्ठल की मूर्ति में आज्ञाचक्र के स्थानपर सुप्तावस्था में निहित साक्षीभावात्मकरूपी वैराग्यतरंगें कार्यरत होकर उस जीव के लिए स्वयं में स्थित अनाहतचक्र से सुप्त क्रियाशक्ति को जागृत कर जीव में माया में व्याप्त ब्रह्म देखने का बल प्रदान कर उसे माया से अलग करते हैं । – एक विद्वान
६. श्री विठ्ठल से की जानेवाली कुछ प्रार्थनाएं
१. हे विठ्ठल, आप भक्ति के भूखे हैं । आपके चरणों में आने हेतु आपकी भक्ति तडप के साथ कैसी करनी है, यह आप ही मुझे सिखाईए, यह आपके चरणों में प्रार्थना है !
२. हे विठ्ठल, धर्मरक्षा करना, तो समय के अनुसार आवश्यक आपकी उपासना ही है । उसके लिए आप ही मुझे भक्ति तथा शक्ति प्रदान करें, यह आपके चरणों में प्रार्थना !
७. श्री विठ्ठल की उपासना का अध्यात्मशास्त्र
गोपीचंदन और तुलसी
श्री विठ्ठल मूर्ति में व्याप्त श्रीविष्णुतत्त्व जागृत होने हेतु मूर्ति को गोपीचंदन लगाया जाता है, तो श्रीकृष्णतत्त्व जागृत होने हेतु तुलसी चढाई जाती है । गोपीचंदन के कारण भक्तों की आध्यात्मिक उन्नति होती है, अपितु तुलसी के कारण भाव के अनुसार चैतन्य की अनुभूति होती है ।
करताल-मृदंग की गूंज
इसके कारण श्री विठ्ठलमूर्ति के आसपास स्थित नवग्रहमंडल तथा तारकामंडल जागृत होते हैं तथा उनके आशीर्वाद से भक्तों का उद्धार होता है ।