१. देवताको फूलोंकी पंखुडियां अथवा सजावटी फूल न चढाएं !
१ अ. देवताको फूल चढाने हेतु कुछ स्थानोंपर फूलोंके स्थानपर उनकी पंखुडियां तोडकर रखी जाती हैं । इसलिए कि, फूल अल्प न पडें; परन्तु यह चूक है ।
१ आ. देवताको कृत्रिम, सजावटी फूल न चढाएं, अपितु नवीन (ताजे), सात्त्विक एवं विशिष्ट देवताका तत्त्व आकर्षित करनेवाले फूल चढाएं ।
२. विशिष्ट देवताको विशिष्ट पुष्प क्यों चढाएं ?
विशेष प्रकारके पुष्पमें किसी विशेष देवताके पवित्रक, अर्थात उस देवताके सूक्ष्मातिसूक्ष्म कण आकर्षित करनेकी क्षमता अन्य पुष्पोंकी तुलनामें अधिक होती है । ऐसे पुष्प अर्पित करनेसे स्वाभाविक ही उस देवताकी मूर्तिके चैतन्यका हमें शीघ्र लाभ मिलता है ।
३. किस देवताको कौनसे पुष्प अर्पित करें ?
इसके कुछ उदाहरण आगेकी सारणीमें दिए गए हैं ।
देवता | अर्पित पुष्प |
१. ब्रह्मा | तगर |
२. श्रीराम | जाही |
३. हनुमान | चमेली |
४. शिव | रजनीगन्धा |
५. श्री सरस्वती | स्वस्तिक |
६. श्री लक्ष्मी | कमल / गेंदा |
७. श्री महालक्ष्मी | गुलदाउदी |
८. श्री महाकाली | कनेर |
९. श्री दुर्गादेवी | मोगरा |
१०. श्री गणपति | गुडहल |
११. दत्त | जूही |
१२. श्रीकृष्ण | कृष्णकमल |
४. देवताओंको पुष्प विशिष्ट संख्या तथा
रचनामें अर्पित करने का शास्त्रीय आधार क्या है ?
देवतासे प्रक्षेपित तरंगें, देवताका तत्त्व दर्शानेवाली पुष्प-संख्या और उस तत्त्वसे सम्बन्धित पुष्पोंकी विशिष्ट रचनाके कारण, देवता की कार्यरत तरंगें उन पुष्पोंके आकृतिबन्धमें संजोकर आवश्यकतानुसार पुष्पों के गन्धकणोंसे सहज प्रक्षेपित होती हैं । इन पुष्पोंकी विशिष्ट संख्याकी ओर (संख्याब्रह्म) विशिष्ट देवताका तत्त्व शीघ्र आकर्षित होता है ।
कर्मयोग, भक्तियोग तथा ज्ञानयोग, इन तीनों योगोंसे जीव अनेक से एकत्वकी ओर अर्थात निर्गुणकी ओर अग्रसर होता है । यही सिद्धान्त ईश्वर हमें आगेकी सारणीमें दी गई पुष्पोंकी संख्यासे सिखाते हैं ।
अ. विशिष्ट रचनामें (आकृतिबन्धमें) पुष्पार्पण करते समय आवश्यक सावधानी
विशिष्ट आकृतिबन्धमें पुष्प इस प्रकार चढाएं कि वे आडे-तिरछे न दिखाई दें । अध्यात्मका एक महत्त्वपूर्ण तत्त्व है – सत्यम्-शिवम्-सुन्दरम् । इसके अनुसार पुष्प आडे-तिरछे न चढाकर व्यवस्थित ढंगसे एवं सुन्दर रचनामें चढानेसे ईश्वरीय तत्त्व शीघ्र आकर्षित होनेमें सहायता मिलती है । साथ ही ऐसे पुष्प नेत्रोंके लिए सुखदायक सिद्ध होते हैं तथा पूजासे पूजकका मन प्रसन्न तथा आनन्दी होनेमें भी सहायता मिलती है ।
– एक विद्वान [सद्गुरु (श्रीमती) अंजली गाडगीळके माध्यमसे, १७.१.२००५]