श्री गणेशभक्तो, क्या आप ये जानते हैं ?

श्री गणेश का कार्य और विशेषताएं

१. विघ्नहर्ता

विघ्नहर्ता होने से लोकनाट्य से विवाहतक, साथ ही गृहप्रवेशादि सर्व विधियों के आरंभ में श्री गणेशपूजन होता है ।

२. विवेकबुद्धि निर्माण कर चित्त शांत करनेवाला

श्री गणेश ब्रह्मांड की दूूषित शक्ति को आकर्षित करनेवाले हैं, इसके साथ ही मनुष्य की बुद्धि में विवेक निर्माण करनेवाले हैं । श्री गणेश की उपासना से विकल्पशक्ति प्रभाव नहीं डालती । बुद्धि स्थिर रहकर चित्त शांत रहता है । मैं कौन हूं, भगवान ने मुझे इस जग में किसलिए भेजा है आदि का भान साधक को होता है और वह श्रद्धापूर्वक कार्य करने लगता है । साधक के भाव में बढोतरी होने से उसकी प्रगति होने लगती है । – प.पू. परशराम पांडे महाराज, सनातन आश्रम, देवद, पनवेल.

३. संगीत एवं नृत्य में प्रवीण

स्वरब्रह्म का आविष्कार अर्थात ओंकार । श्री गणेश को भी ओंकारस्वरूप श्री गणेशा कहा गया है । श्री गणेश वरदस्तोत्र के अनेक श्‍लोकों से गणेश की संगीत से नाता स्पष्ट होता है । संत ज्ञानेश्‍वर, संत नामदेव, समर्थ रामदासस्वामी आदि संतों की अभंगरचनाआें से भी गणेश का संगीत से निकटतम संबंध ध्यान में आता है । गणेशजी की नर्तकरूप में मूर्तियां पाई जाती हैं । सुनहरे देहकांतिके गणपति के आठ हाथ हैं और उनका बायां पैर पद्मासन में है, तो दायां पैर भूमि से ऊपर है । कवी मोरोपंतजी ने श्री गणेश के मनोहर रूप का गुणगान कहते हुए कहते हैं कि गजानन का नृत्य देखकर गंधर्व-अप्सरा भी लज्जित हो जाते हैं ।

४. वाक्देवता

गणेशजी के प्रसन्न होने से वाक्सिद्धि प्राप्त होती है ।

५. श्री गणपति साधना के प्रारंभ में दिशा देने का कार्य करते हैं ।

 

गणपति बाप्पा मोरया, अगले वर्ष जल्दी आओ ! ऐसा कहने का भावार्थ

प्रश्‍न

प्रत्येक वर्ष श्री गणेश चतुर्थी पर, अर्थात एक वर्ष में ही गणपति आते हैं, तो वे अगले वर्ष जल्दी कैसे आएंगे ?

उत्तर

आरंभ में अपने दिन वेग से कालक्रमण करते हैं, इसलिए सुख का एक मास कैसे बीत जाता है, समझ में ही नहीं आता है । इसके विपरीत हम जब दुख में होते हैं, तब दिन समाप्त ही नहीं होता है; इसलिए अगले वर्ष शीघ्र आओ, ऐसा कहते हैं । इसका भावार्थ यह है कि वे वर्षभर हमें सुखी रखें ! – डॉ. वसंत बाळाजी आठवले, मुंबई. (जून २०११)

 

गणपति को कौन-सी वस्तुएं प्रिय हैं ?

गणपति को गणेश चतुर्थी के अतिरिक्त अन्य दिन तुलसी निषिद्ध है । लाल फूल, मंदार, जास्वंद, लाल कमल, दूर्वा और शमी, गणपति को प्रिय हैं ।

 

मूषक, काल का प्रतीक है !

मूषक

यह जिसप्रकार वस्तु या पदार्थ कुतर देता है, उसीप्रकार काल भी सृष्ट पदार्थ को नष्ट करता रहता है; इसलिए मूषक काल का प्रतीक है ।

गणपति

काल को जीतकर उसपर वाहन के रूप में जो उसपर सवार हो गया, वही है खरा गणपति है ।

 

श्री गणेश की ऋद्धी-सिद्धी !

शक्ति का प्रसव, प्रतीप्रसव क्रम और श्री गणेशजी की ऋद्धि-सिद्धी

जगत की ओर प्रवाहित होनेवाली शक्ति को प्रसव क्रम और आत्मा की ओर प्रवाहित जागृत शक्ति को प्रतीप्रसव क्रम कहते हैं । इसी आधार पर श्री गणेश ऋद्धि-सिद्धी के दाता हैं, इस विधान का स्पष्टीकरण कर सकेंगे ।

१. ऋद्धि

शक्ति अथवा श्री गणेश बहिर्जगताभिमुख जागृत होते हैं, तब जीव जगताभिमुख कार्य करता है और ऋद्धि प्राप्त करता है ।

२. सिद्धी

जब शक्ति अथवा श्री गणेश अंतर्मुख, जागृत और प्रवाहित होते हैं, तब जीव का मार्ग परमसिद्धीरूपी आत्मस्थिति को प्राप्त करने के उद्देश्य से प्रशस्त होता है ।

 

प्रथम प्रदक्षिणा किसने लगाई ?

पुराण में पहली प्रदक्षिणा बुद्धिदाता श्री गणेश ने शिव-पार्वती की लगाई ।

 

कलियुग में शीघ्र कृपा करनेवाले और फल देनेवाले देवता कौन-से हैं ?

कलियुग में शीघ्र कृपा करनेवाले और फलदायी देवताआें में से दो ही हैं – कलौ चंडिविनायकौ, अर्थात कलियुग में चंडी अर्थात देवी और विनायक अर्थात गणपति, ये दो देवता शीघ्र फलदायी होते हैं ।

गणेश देवता के विषय में जानकारी गणेशपुराण, मुद्गलपुराण, गणेश महात्म्य में है । इसके साथ ही पद्मपुराण, भविष्योत्तरपुराण, लिंगपुराण, ब्रह्मवैवर्तपुराण, शिवपुराण में भी है । इसके साथ ही कुछ उल्लेख महाभारत में भी है; परंतु ये वैदिक देवता हैं । वेदांत में उनका आगे दिए अनुसार उल्लेख है ।

१. गणानां त्वा गणपतिं हवामहे ।
कविं कवीनामुपश्रवस्तमम& । – ऋग्वेद

२. गणानां त्वा गणपतिं हवामहे
प्रियाणां त्वा प्रियपतिं हवामहे& । – अथर्ववेदातील अथर्वशीर्ष

 

ऐसे की श्री गणेशजी ने महर्षि व्यास के महाभारत लिखने की सेवा !

यावल गांव में महर्षि व्यास ने श्री गणेश से कहा, ‘मैं बताऊंगा हूं, तुम लिखना । बीच में रुकना नहीं ।’ महर्षि व्यास की वाणी आरंभ हुई । उस समय से लेकर महर्षि व्यास रुकने तक श्री गणेश निरंतर लिख रहे थे । – श्री. तुकाराम जोशी, शिवाजीनगर, वाडा (ठाणे) (अक्कलकोट स्वामी दर्शन, वर्ष ३३, अंक ४)

 

प्राणप्रतिष्ठा की हुई सनातन की सात्त्विक गणेशमूर्ति उत्तरपूजा होने के उपरांत घर में रखनी चाहिए अथवा उसे विसर्जन कर देना चाहिए ?

प्राणप्रतिष्ठा की हुई गणेशमूर्ति उत्तरपूजा होने के उपरांत घर पर रखने के स्थान पर उसे विसर्जन करना ही योग्य होना

कुछ साधक गणेशोत्सव काल में पूजा करने हेतु सनातनकी सात्त्विक गणेशमूर्ति ले रहे हैं । उसकी उत्तरपूजा होने के उपरांत उस मूर्ति का लाभ हो, इसलिए क्या हम उसे घर पर रख सकते हैं ?, ऐसा भी वे पूछते हैं । धर्मशास्त्र के अनुसार उत्तरपूजा की हुई मूर्ति का विसर्जन करना ही अधिक योग्य है, उसी प्रकार ही करना चाहिए । – श्रीमती अंजली गाडगीळ, सनातन आश्रम, रामनाथी, गोवा (श्रावण अमावास्या / भाद्रपद शु. १, कलियुग वर्ष ५११३ (२९.८.२०११))

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