श्रीलंका में बढता हुआ बौद्ध पंथ का प्रभाव तथा भारत के शत्रुराष्ट्रों से निकटता रखनेवाला श्रीलंका !

सद्गुरु (सौ.) अंजली गाडगीळरामायण में जिस भूभाग को लंका अथवा लंकापुरी कहा गया है, वह स्थान है आज का श्रीलंका देश ! त्रेतायुग में श्रीमहाविष्णुजी ने श्रीरामावतार धारण किया तथा लंकापुरी जाकर रावणादि असुरों का नाश किया । आज चाहे वहां की ७० प्रतिशत जनता बौद्ध हो; परंतु श्रीलंका में श्रीराम, सीता, लक्ष्मणजी, हनुमानजी, रावण तथा मंदोदरी से संबंधित अनेक स्थान, तीर्थ, गुफाएं, पर्वत और मंदिर हैं । विश्‍वभर के हिन्दुआें को इन सभी स्थानों की जानकारी मिले, इस उद्देश्य से महर्षि अध्यात्म विश्‍वद्यिालय की ओर से सद्गुरु (श्रीमती) अंजली गाडगीळजी के साथ ४ छात्र-साधकों ने १ मास (महिना) तक श्रीलंका की यात्रा की ।

बौद्ध पंथ एक उपासनापद्धति है तथा वह विशाल हिन्दू धर्म का ही एक अंग है, ऐसा भारतियों का दृष्टिकोण है; परंतु श्रीलंका में बौद्ध पंथ के लोग बहुसंख्यक होने के पश्‍चात जिहादियों की भांति हिन्दू धर्मपर ही आक्रमण कर रहे हैं । समाज को इस संदर्भ में वास्तविकता ज्ञात हो, इस उद्देश्य से यह लेख प्रकाशित कर रहे हैं । इस लेख में बताई गई स्थिति भारतभूमी तथा भारत के बौद्ध पंथीयों से संबंधित नहीं है, इसका पाठक कृपया संज्ञान लें । – संपादक

१. पौराणिक महत्त्व प्राप्त श्री कार्तिकेय मंदिर में गर्भगृह के सामने
परदा लगाकर हिन्दुआें को मूर्ति का दर्शन करने के लिए किया गया प्रतिबंध !

श्रीलंका के हमारे वाहनचालक का नाम बाबू है । वह भारतीय मूल का (तमिली हिन्दू) है । कार्तिकेय उसकी कुलदेवता है । उसने हमें श्रीलंका के बौद्धों ने हिन्दू मंदिरोंपर किस प्रकार से आक्रमण किया, इसकी जानकारी दी । श्रीलंका में पौराणिक महत्त्व प्राप्त श्री कार्तिकेय का मंदिर है । उस मंदिर के गर्भगृह के बाहर भी परदा लगाया गया है ।

२. भिक्षुआें द्वारा बौद्ध सूत्रों का पठन कर हिन्दू देवता श्री कार्तिकेय की पूजा !

परदे के पीछे देवता की मूर्ति होती है । परदे के पास मुंह को कपडा बांधकर पूजा की जाती है । हम वहां गए, तो भी हमें बौद्ध सूत्र ही सुनने पडते हैं । इस प्रकार से हिन्दू धर्म की संस्कृति कादमन कर उसे बौद्ध मंदिर बनाने का षड्यंत्र चल रहा है ।

३. देवताआें के आभूषण, मूर्ति बनाने की पद्धति तथा देवालयों के प्रांगणोंपर निहित बौद्ध शैली का प्रभाव !

केवल परंपरा ही नहीं, अपितु यहां के देवताआें के आभूषण तथा मूर्तियां भी बौद्ध पद्धति के अनुसार ही बनाए जाते हैं । विविध प्रकार के प्रार्थनास्थल तथा देवालयों के प्रांगण में भी बौद्ध प्रतीक दिखाई पडते हैं । कोलंबो से कैंडी नगर के दिशा में यात्रा करते समय गांव-गांव के चौकोंपर बौद्धों के स्तूप अथवा उपासना मंदिरों का निर्माण किया हुआ दिखाई देता है । बौद्ध पंथ का समाजपर निरंतर प्रभाव बना रहे, इस दिशा में यहां प्रयास चल रहे हैं । वास्तव में श्रीलंका हिन्दू मंदिरों का तथा प्रभु श्रीरामजी का इतिहास प्राप्त महत्त्वपूर्ण स्थान है; परंतु यहां के हिन्दुआें को बौद्धों के आक्रमण का सामना करना पड रहा है ।

कोलंबा से कैंडीतक की यात्रा में गांव-गांव में चौकों में इस प्रकार से बौद्ध स्तूप खडे किए गए हैं ।

४. वहां के हिन्दुआें के भाषावाद तथा स्वतंत्र राज्य की
मांगतक ही सीमित होने से बौद्धों के लिए अतिक्रमण करना संभव होना

किसी मस्जिदपर आक्रमण हुआ, तो विश्‍व के सभी मुसलमान क्षुब्ध हो जाते हैं । श्रीलंका के हिन्दुआेंपर किए गए आक्रमणों के विषय में भारत के हिन्दुआें को कुछ नहीं लगता । श्रीलंका के हिन्दुआें ने यदि इसका संगठित रूप से प्रतिकार किया होता, तब भी वहां धर्मरक्षा हो जाती । इससे हिन्दू कितने निद्रिस्त हैं, यह स्पष्ट होता है । यहां के हिन्दू भाषावाद तथा स्वतंत्र राज्य की मांगतक ही सीमित हो चुके हैं । उसके कारण सैकडों हिन्दू मंदिरों के स्थानपर बौद्ध विहार खडे किए जा रहे हैं ।

५. श्रीलंका में लोकतंत्र होते हुए भी वहां सर्वत्र बौद्ध पंथ का वर्चस्व होना

वास्तव में श्रीलंका को युनाईटेड डेमोक्रैटिक रिपब्लिक (गणतांत्रिक लोकतंत्र) इन नाम से स्वतंत्रता मिली; परंतु यहां प्रत्येक विषय में बौद्ध पंथ को ही प्रधानता दी जाती है । श्रीलंका को स्वतंत्रता मिलनेपर वहां बौद्ध धर्मगुरुआें की सहमति से ही राष्ट्रध्वज फहराया गया था । राजनीति अथवा अन्य प्रत्येक विषयों में बौद्ध धर्मगुरुआें की सहमति से ही कार्य किया जाता है ।

६. श्रीलंका की भारत के शत्रुराष्ट्रों के साथ निकटता होना

जनवरी २०१८ में कोलंबो में पाकिस्तान की संस्कृति की प्रदर्शनी लगाई जानेवाली थी । उसके प्रसार के लिए लगाए गए फलक का छायाचित्र

 

चीन की सहायता से कोलंबो में निर्माणाधीन ३५० मीटर ऊंची लोटस टॉवर नामक इमारत

आज की श्रीलंका पहले रावण की लंका थी । यह दैत्यभूमि होने से यहां के राज्यकर्ताआें का भारत के शत्रुआें के साथ अधिक संपर्क है । १२ से १४.१.२०१८ की अवधि में श्रीलंका की राजधानी कोलंबो में पाकिस्तान की संस्कृति की प्रदर्शनी लगाई गई थी । चीन भी श्रीलंका में इमारतों का निर्माण करना आदि कार्यों में बडा निवेश कर रहा है । श्रीलंका की राजधानी कोलंबो में विश्‍व में सबसे ऊंची (३५० मीटर) लोटस टॉवर नामक इमारत निर्माणाधीन है । चीन इस इमारत का उपयोग दूरसंचार तंत्र के लिए करनेवाला है । कोलंबो में ४०० एकड के भूभाग में समुद्र में बडी मात्रा में भराव डालकर कोलंबो पोर्ट सिटी नामक बडे निवासीय परियोजना हाथ में ली गई है । चीन सरकार उसके लिए भी आर्थिक सहायता दे रहा है ।

– सद्गुरु (श्रीमती) अंजली गाडगीळ, श्रीलंका (९.१.२०१८)

स्त्रोत : दैनिक सनातन प्रभात

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