श्री गणेशमूर्तिकी पूजाविधि

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श्री गणेश चतुर्थी के दिन पूजन हेतु श्री गणेशजी की नई मूर्ति लाई जाती है । पूजाघर में रखी श्री गणेश मूर्ति के अतिरिक्त, इस मूर्ति का स्वतंत्र रूप से पूजन किया जाता है । सर्वप्रथम आचमन कीजिए । उसके उपरांत देशकाल का उच्चारण कर विधि का संकल्प कीजिए । उसके उपरांत शंख, घंटा, दीप इत्यादि पूजासंबंधी उपकरणोंका पूजन किया जाता है तथा उसके उपरांत श्री गणेश मूर्ति में प्राणप्रतिष्ठा की जाती है ।

१. शास्त्रोचित विधि

भाद्रपद शुक्ल पक्ष चतुर्थी के दिन मिट्टी का गणपति बनाते हैं । उसे बाएं हाथ पर रखकर वहीं उसकी ‘सिद्धिविनायक’ के नाम से प्राणप्रतिष्ठा एवं पूजा कर तुरंत ही विसर्जित करने की शास्त्रोचित विधि है; परंतु मनुष्य उत्सव प्रिय है, इसलिए इतना करने पर उसका समाधान नहीं होता । इसलिए डेढ, पांच, सात अथवा दस दिन रखकर उसका उत्सव मनाने लगे । कई लोग (ज्येष्ठा) गौरी के साथ गणपति का विसर्जन करते हैं ।

कुलाचारांतर्गत किसी के परिवार में पांच दिन गणपति रखने की प्रथा है और यदि वह डेढ अथवा सात दिन रखना चाहता है, तो ऐसा कर सकता है । इसके लिए उसे किसी अधिकारी व्यक्ति से पूछने की आवश्यकता नहीं है । रूढि अनुसार पहले, दूसरे, तीसरे, छठे, सातवें अथवा दसवें दिन श्री गणेश मूर्ति का विसर्जन करें ।

 

२. आसन पर मूर्ति की स्थापना

जिस चौकी पर मूर्ति की स्थापना करनी है, उस पर पूजा के पूर्व अक्षत रखते हैं एवं उसपर मूर्ति रखते हैं । अपनी-अपनी प्रथानुसार थोडे अक्षत अथवा अक्षत का छोटासा पुंज बनाते हैं । अक्षत पर मूर्ति रखने का लाभ आगे दिए अनुसार होता है । मूर्ति में गणपति का आवाहन कर उसकी पूजा करने से मूर्ति में शक्ति निर्मित होती है, जिससे चावल संचारित होते हैं । समान कंपनसंख्या के दो तंबूरों के दो तार हों, तो एक तार से नाद उत्पन्न करने पर वैसा नाद दूसरी तार से भी उत्पन्न होता है । उसी प्रकार मूर्ति के नीचे रखे चावलों में शक्ति के स्पंदन निर्मित होने से घर में रखे चावलों के भंडार में भी शक्ति के स्पंदन निर्मित होते हैं । इस प्रकार शक्ति से आवेशित चावल वर्षभर प्रसाद के रूप में ग्रहण कर सकते हैं ।

 

३. पूर्वपूजाविधियां तथा उनका महत्त्व

आगे दी गई पूजा की विधि में प्रत्येक विधि के विशेष मंत्र का उच्चारण करते हैं ।

१. आचमन : इससे अंतर्शुद्धि होती है ।

२. देशकाल : देशकाल का उच्चारण करें ।

३. संकल्प : संकल्प बिना किसी भी विधि का फल मिलना कठिन होता है ।

४. आसनशुद्धि : इसके लिए अपने आसन को स्पर्श कर नमस्कार करें ।

५. श्री महागणपतिपूजन : नारियल पर अथवा सुपारी पर श्री गणपति का आवाहन कर उनका पूजन करें ।

६. पुुरुषसूक्त न्यास : पुुरुषसूक्त बोलते हुए पूजक अपना हृदय, मस्तक, चोटी, मुख, दोनों नेत्र तथा भ्रूमध्य के स्थान पर देवता की स्थापना करें । इससे सात्त्विकता बढने में सहायता मिलती है ।

७. कलशपूजा : कलश में सर्व देवता, समुद्र एवं पवित्र नदियां इत्यादि का आवाहन कर कलश को गंध, अक्षत एवं फूल चढाने चाहिए । इस सात्त्विक जल का पूजा में प्रयोग करते हैं ।

८. शंखपूजा : शंख धोकर उसमें जल भरें, फिर शंख पर गंध एवं श्‍वेत फूल चढाएं । शंख पर अक्षत तथा तुलसीदल न चढाएं ।

९. घंटापूजा : देवताओं के स्वागत हेतु एवं राक्षसोंको निकालने के लिए घंटानाद करें । घंटा धोकर, बाएं हाथ में रखकर, उस पर गंध, अक्षत एवं फूल चढाएं ।

१०. दीपपूजा : दीप पर गंध एवं फूल चढाएं ।

११. श्री गणपति की मूर्ति पर बांधे विशिष्ट बंदनवार (कच्चे फल, कंदमूल इत्यादि का एकत्रित बंधन, जिसे गोवा राज्य में ‘माटोळी’ कहते हैं) पर गंध, पुष्प एवं अक्षत चढाकर पूजा करें ।

१२. पवित्रिकरण : शंख में भरे पानीको अपने दाहिने हाथ में उडेलकर अपने ऊपर तथा पूजासामग्री पर प्रोक्षण करें (छिडकें) ।

१३. द्वारपूजा : हाथ में फूल एवं अक्षत लेकर सर्व दिशाओं में बिखेरें । यह दिक्पाल पूजा ही है ।

१४. प्राणप्रतिष्ठा : देवता की मूर्ति के हृदय पर दाहिना हाथ रख मंत्रोच्चारण करें । श्री गणेश चतुर्थी पर अथवा नई मूर्ति स्थापित करने के लिए प्राणप्रतिष्ठा करते हैं । यह सामान्य पूजा में नहीं किया जाता; क्योंकि प्रतिदिन पूजित मूर्ति में ईश्‍वरीय तत्त्व आ चुका होता है ।

१५. ध्यान : ‘वक्रतुण्ड महाकाय’ इस मंत्र का उच्चारण करें ।

१६. आवाहन : आमंत्रण के समय ‘ॐ सहस्रशीर्षा पुरुषः’ इस मंत्र का उच्चारण करते हुए अक्षत चढाएं । देवता का तत्त्व मूर्ति में तुरंत आने हेतु अक्षत सहायक है ।

१७. आसन : आसनप्रीत्यर्थ अक्षत चढाएं ।

१८. पाद्य (पादप्रक्षालन) : चरण धोने के लिए फूलों से / दूर्वा से मूर्ति के चरणोंपर जल छिडकें ।

१९. अर्घ्य : चम्मच में जल लेकर उसमें चंदन-गंध घोलकर, उस जलको फूल से श्री गणपति के शरीर पर छिडकें । यह गुलाबजल छिडककर स्वागत करने के समान है ।

२०. आचमन : देवता आचमन कर रहे हैं, ऐसा मानकर आचमनी में जल लेकर देवताको चढाएं ।

२१. स्नान : देवता पर आचमनी से जल डालकर स्नान कराना चाहिए ।

२२. पंचामृतस्नान : प्रथम पंचामृत से (दूध, दही, घी, शहद एवं शक्कर इस क्रम से) स्नान कराएं । प्रत्येक बार आचमनी में जल लेकर स्नान कराएं । तदुपरांत आचमन हेतु तीन बार आचमनी से जल डालकर अंत में चंदन, अक्षत तथा फूल चढाएं ।

२३. पूर्वपूजा : गंध, अक्षत, फूल (गणपति को लाल फूल), धूप, दीप इत्यादि से पूजा कर बचे हुए पंचामृत का भोग लगाएं । इसके लिए मूर्ति के सामने जल का मंडल बनाकर उस पर पंचामृत रखें । (मंडल बनाने पर देवताओंके अतिरिक्त अन्य शक्तियां भोग ग्रहण करने हेतु नहीं आतीं ।) देवता को नैवेद्य अर्पित करने की दो पद्धतियां हैं ।

पद्धति १ – कर्मकांड के स्तर पर : नैवेद्य पर दो तुलसीदलों से पानी प्रोक्षण कर (छिडककर) एक दल नैवेद्य पर रखें एवं दूसरा देवता के चरणों में अर्पित करें । तदुपरांत ‘प्राणाय स्वाहा…..’ आदि मंत्रों का उच्चारण करते हुए दाहिने हाथ की पांचों उंगलियों के सिरों से नैवेद्य की सुगंध देवता की ओर ले जाएं ।

पद्धति २ – भाव के स्तर पर : नैवेद्य पर दो तुलसीदलों से पानी प्रोक्षण कर (छिडककर) एक दल नैवेद्य पर रखिए तथा दूसरा देवता के चरणों में अर्पित करें । तदुपरांत हाथ जोडकर ‘प्राणाय स्वाहा….’ इत्यादि मंत्र से देवताको नैवेद्य समर्पित करें । पूजा के अंत में हाथ तथा मुंह धोने की क्रिया के संदर्भ में तीन बार ताम्रपात्र में जल अर्पित करें । गंध में फूल डूबोकर गणेशजी को चढाएं । देवता के समक्ष बीडा रखकर उस पर जल अर्पित करें । फूल चढाकर प्रणाम कर ताम्रपात्र में जल अर्पित करें ।

२४. अभिषेक : पूर्वपूजा उपरांत अभिषेक करते हैं । अथर्वशीर्ष या ब्रह्मणस्पतिसूक्त से अभिषेक करें । उस समय दूब अथवा लाल फूल से मूर्ति पर जल छिडकें ।

२५. वस्त्रार्पण : रुई से बने दो लाल वस्त्र लेकर ‘समर्पयामि’ कहते हुए एक वस्त्र मूर्ति के गले में अलंकार के समान पहनाएं तथा दूसरा वस्त्र मूर्ति के चरणों पर चढाएं ।

२६. यज्ञोपवीत : जनेऊ अर्पण करें ।

२७. विलेपन : छोटी उंगली के पासवाली उंगली से (अनामिका से) चंदन लगाएं ।

२८. अक्षतार्पण : अक्षत चढाएं ।

३०. अन्य परिमलद्रव्य : हलदी, कुमकुम, गुलाल, बुक्का (काला चूर्ण), अष्टगंध आदि चढाएं ।

३१. पुष्प : लाल फूल चढाएं ।

३२. अंगपूजा : इस पूजा में चरणों से मस्तक तक प्रत्येक अवयव पर अक्षत अथवा फूल चढाते हैं ।

३३. पुष्पपूजा : एकेक प्रकार के पुष्प के साथ एक-एक विशिष्ट नाम लेते हुए देवता की ओर डंठल कर फूल चढाएं ।

३४. पत्रपूजा : एक-एक प्रकार के पत्ते चढाते समय गणेशजी का एक-एक विशिष्ट नाम लेकर चरणों पर पत्री चढाएं । श्री गणेश को आगे दी गई इक्कीस प्रकार की पत्री चढाकर पूजा करते हैं – मधुमालती (मालती), माका (भृंगराज), बेल, श्‍वेत दूर्वा, बेर, धतूरा, तुलसी, शमी, चिचडा, बृहती (डोरली), करवीर (कनेर), मदार, अर्जुनसादडा, विष्णुकांत, अनार, देवदार, मरुबक (मरवा), पीपल, जाही (चमेली), केवडा (केतकी) एवं अगस्त्य । वास्तव में श्री गणेश चतुर्थी के अतिरिक्त अन्य दिन तुलसीदल गणपतिको कभी नहीं चढाते ।

३५. नामपूजा : दूबको लाल चंदन में डुबोकर एक नामजप के साथ एक चढाएं ।

३६. धूपदर्शन : धूप तथा अगरबत्ती घुमाएं ।

३७. दीपदर्शन : नीरांजन (सकर्णक एवं पंचबाती दीप) से आरती करें ।

३८. नैवेद्य (भोग) : पूर्वपूजा में बताए अनुसार भोग लगाएं ।

३९. तांबूल : देवता के समक्ष बीडा रखकर उस पर जल अर्पित करें ।

४०. दक्षिणा : पान पर दक्षिणा रखकर उस पर जल अर्पित करें ।

४१. फलसमर्पण : देवता की ओर शिखा कर देवता के समक्ष नारियल रखें । उस पर जल अर्पित करें । नारियल न मिले तो उस ऋतु में उपलब्ध फलोें का प्रयोग करेें । (नारियल की शिखा देवता की ओर करने से नारियल में देवता की शक्ति आती है । तदुपरांत भक्त नारियल में विद्यमान शक्ति प्राप्त करने हेतु ‘प्रसाद’ के रूप में उसका सेवन करते हैं ।)

४२. आरती : आरती एवं प्रार्थना करें ।

४३. नमस्कार एवं परिक्रमा : पूजक साष्टांग नमस्कार करे और अपने चारों ओर तीन परिक्रमा लगाए ।

४४. मंत्रपुष्पांजलि : ‘ॐ यज्ञेन यज्ञमयजंत’ मंत्ररूपी पुष्पांजलि अर्पित करें ।

४५. प्रार्थना : ‘आवाहनं न जानामि’ इस मंत्र से प्रार्थना कर हथेली पर जल लेकर उसे ताम्रपात्र में छोडें ।

४६. दर्शनार्थियों का नमस्कार : आरती एवं मंत्रपुष्पांजलि के लिए उपस्थित तथा दिनभर में कभी भी दर्शन के लिए आनेवाले श्रद्धालु, श्री गणेश को फूल तथा दूर्वा चढाकर साष्टांग नमस्कार करें । घर के व्यक्ति उन्हें प्रसाद दें ।

४७. तीर्थप्राशन : ‘अकालमृत्युहरणं’ मंत्र का उच्चारण कर तीर्थ प्राशन करें ।

 

४. मध्यपूजाविधि

जब तक गणपति घर पर हैं, तब तक प्रतिदिन सवेरे-सायंकाल प्राणप्रतिष्ठा के अतिरिक्त गणपति की नित्य पूजा करें तथा अंत में आरतियां एवं मंत्रपुष्प बोलें ।

संदर्भ : सनातन निर्मित ग्रंथ ‘श्री गणपति’

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