श्रीलंका में जहां सीतामाता ने अग्निपरीक्षा दी, उस स्थान की गुरुकृपा से संपन्न अविस्मरणीय यात्रा !

महर्षि अध्यात्म विश्‍वविद्यालय की ओर से सद्गुरु (श्रीमती) अंजली गाडगीळजी तथा छात्र-साधकों द्वारा की गई रामायण से संबंधित श्रीलंका की अध्ययन यात्रा ! रामायण में जिस भूभाग को लंका अथवा लंकापुरी कहा जाता है, वह स्थान है आज का श्रीलंका देश ! त्रेतायुग में श्रीमहाविष्णुजी ने श्रीरामावतार धारण किया तथा लंकापुरी जाकर रावणादि असुरों का नाश किया । इस स्थानपर युगों-युगों से हिन्दू संस्कृति ही थी । २ सहस्र ३०० वर्ष पूर्व राजा अशोक की कन्या संघमित्रा के कारण श्रीलंका में बौद्ध पंथ का प्रवेश हुआ । अब वहां के ७० प्रतिशत लोग बौद्ध हैं । ऐसा होते हुए भी श्रीलंका में श्रीराम, सीता तथा लक्ष्मण से संबंधित अनेक स्थान हैं । वाल्मिकी रामायण में महर्षि रामायण में जो लिखा, उसके अनुरूप घटनाएं घटित होने के प्रमाण श्रीलंका में मिलते हैं । श्रीलंका में श्रीराम, सीता, हनुमानजी, लक्ष्मण, रावण तथा मंदोदरी से संबंधित अनेक स्थान, तीर्थ, गुफाएं, पर्वत तथा मंदिर हैं । इन सभी स्थानों की जानकारी मिलें तथा विश्‍वभर के सभी हिन्दुओं को वह बताई जाए, इसलिए महर्षि अध्यात्म विश्‍वविद्यालय की ओर से सद्गुरु (श्रीमती) अंजली गाडगीळ तथा उनके साथ ४ छात्र-साधकों ने १ मास (महिना) श्रीलंका की यात्रा की ।

सद्गुरु (श्रीमती) अंजली गाडगीळ
श्री. विनायक शानभाग

 

ॐ जनकजायै विद्महे रामप्रियायै धीमहि तन्नः सीता प्रचोदयात् ॥

अर्थ : हम उस जनककन्या को जानते हैं । रामजी को प्रिहय उस देवी का हम ध्यान करते हैं । वह सीतामाता हमारी बुद्धि को सत्प्रेरणा प्रदान करें ।

१. श्रीलंका के मध्य प्रांत में अतिऊंचे पर्वतीय क्षेत्र में सीतामाता द्वारा दी गई
अग्निपरीक्षा का स्थान होना तथा इस स्थान के विषय में किसी को भी जानकारी न होना

श्रीलंका में श्रीराम, सीता तथा लक्ष्मण से संबंधित अनेक स्थान हैं । वाल्मिकी रामायण में महर्षि वाल्मिकी ने जो लिखा, उसके अनुरूप घटनाएं घटित होने के अनेक प्रमाण श्रीलंका में मिलते हैं । सीतामाता ने जहां अग्निपरीक्षा दी, वह भी ऐसा ही एक स्थान है । यह स्थान जिस गांव में है, उसका नाम है दिविरुंपोला ! श्रीलंका के मध्य प्रांत में ऊंचे-ऊंचे पर्वतीय क्षेत्र में स्थित नगर नुवारा एलिया से यह गांव १८ कि.मी. दूरीपर है । श्रीलंका में चिन्मय मिशन द्वारा प्रकाशित पुस्तक ‘रामायण इन लंका’ से हमें इस गांव के विषय में जानकारी मिली । श्रीलंका के अनेक हिन्दुओं को भी इस स्थान की जानकारी नहीं है । इंटरनेटपर भी इस विषय की कोई जानकारी नहीं है ।

२. श्रीलंका के अनेक स्थानोंपर हिन्दू मंदिरों की बाजू में ही बौद्ध विहारों का
निर्माण किया गया है । तथा मंदिर और विहारों का दायित्व २-३ बौद्ध भिक्षुओं को दिया जाना

विगत ३० वर्षों में अनेक स्थानोंपर हिन्दुओं के मंदिर, तीर्थस्थान तथा रामायण से संबंधित स्थानों के बाजू में ही बौद्ध विहारों का (मंदिर) निर्माण किया गया है । सीतामाता द्वारा दी गई अग्निपरीक्षा के स्थानपर भी बौद्धों ने बडे विहार का निर्माण किया है । बौद्ध अपने मंदिरों को ‘महाविहारय’ कहते हैं । ऐसे स्थानोंपर हिन्दू मंदिर तथा बौद्ध विहारों का दायित्व २-३ बौद्ध भिक्कूओं को दिया जाता है । सीतामाता द्वारा दी गई अग्निपरीक्षा के स्थान को ‘राममहाविहारय’ नाम दिया गया है ।

३. अग्निपरीक्षा के स्थान के विषय में एक भी फलक नहीं है

इस विहार के बाहर ‘सीतामाता द्वारा दी गई अग्निपरीक्षा का स्थान, इस आशय का एक भी फलक नहीं है ।

४. सद्गुुरु (श्रीमती) अंजली गाडगीळजी को देखकर वहां के वयस्क
व्यवस्थापक द्वारा ‘आप कोई दैवीय महिला हैं’, ऐसा लगता है’, ऐसा कहा जाना
तथा उसके द्वारा सद्गुुरु काकूजी द्वारा दिए गए प्रवेश टिकट का मूल्य नहीं लिया जाना

सद्गुरु (श्रीमती) गाडगीळकाकूजी के साथ हम इस स्थान को ढूंढते-ढूंढते गुरुकृपा से हम उस स्थानतक पहुंच गए । बाहर हमें बौद्ध भिक्कू तथा उस मंदिर के वयस्क व्यवस्थापक मिले । हमने जब उनको सीतामाता द्वारा दी गई अग्निपरीक्षा के स्थान के विषय में पूछा, तब उस बौद्ध भिक्कू ने उस वयस्क व्यवस्थापक को हमें वह स्थान दिखाने के लिए कहा । वह वयस्क व्यवस्थापक सद्गुरु गाडगीळकाकूजी की ओर देखते हुए बोले, ‘‘आप कोई दैवीय महिला हैं, ऐसा मुझे लगता है । मैं यहां विगत ५० वर्षों से काम कर रहा हूं; परंतु यहां आजतक आपके जैसे कोई नहीं आए । मैं आपसे प्रवेश टिकट का मूल्य नहीं लूंगा । केवल आपके साथ जो लोग हैं, उन लोगों का ही प्रवेशमूल्य लूंगा ।’’ यह सुनकर हम आश्‍चर्यचकित रह गए ।

५. बौद्ध विहार के अंदर की दीवारोंपर संपूर्ण रामायण का चित्रित
किया होना तथा उस वयस्क व्यवस्थापक द्वारा रामायण की कुछ घटनाएं
तथा सीतामाता द्वारा दी गई अग्निपरीक्षा के स्थान के विषय में विस्तृत जानकारी दी जाना

हमने आनंद के साथ उस दादाजी के साथ उस परिसर में प्रवेश किया । दादाजी ने पहले बौद्ध विहार (मंदिर) दिखाया । उस बौद्ध विहार के अंदर बुद्ध के २७ विग्रह (मूर्तियां) थे । बौद्ध विहार की अंदर की दीवारोंपर संपूर्ण रामायण का चित्रण किया गया था । उन बौद्ध दादाजी ने हमें अंग्रेजी भाषा में रामायण की कुछ घटनाएं तथा सीतामाता द्वारा दी गई अग्निपरीक्षा के स्थान के विषय में विस्तृत जानकारी दी ।

६. सीतामाता के मंदिर व्यवस्थापक द्वारा सद्गुरु (श्रीमती) अंजली गाडगीळजी से ‘‘आप साक्षात
सीतामाता की भांति दिखाई देती हैं; इसलिए आप ही वह ताला खोलें ।’’, ऐसा कहकर उनके हाथ में
बडी चाबी दी जाना तथा उस चाबी को हाथ में लेते ही (श्रीमती) गाडगीळजी की भावजागृति हो जाना

सीतामाता के मंदिर की चाबी

इसके पश्‍चात दादाजी हमें सीतामाता द्वारा दी गई अग्निपरीक्षा के स्थान के निकट के अश्‍वत्थ वृक्ष के निकट ले गए । उस वृक्ष के पास एक छोटा मंदिर था । उसका प्रवेशद्वार बंद था । उसे दो हाथों में न समाए, इतने बडे आकारवाला एक पुराना ताला था । दादाजी ने कहा, ‘‘माताजी, आप मुझे साक्षात सीतामाता की भांति दिखाई देती हैं । आजतक मैने इस मंदिर की चाबी किसी को नहीं दी; परंतु आज मैं इस मंदिर की चाबी आपको दे रहा हूं । अब आपही यह ताला खोलिए ।’’ दादाजी द्वारा ऐसा कहे जाते ही हम सभी की भावजागृति हो गई । दादाजी ने सद्गुरु गाडगीळकाकूजी को चाबी सौंप दी । वह चाबी इतनी बडी थी कि उसे दोनों हाथों से पकडना लगा तथा । उस चाबी को अपने हाथों में लेते ही सद्गुुरु गाडगीळकाकूजी के भावाश्रु रुक नहीं रहे थे ।

छायाचित्र में दीवारपर रंगाया गया अग्निपरीक्षा का दृश्य (सीतामाता के अग्निप्रवेश के कारण वहां का वातावरण शोकाकुल होने का दिखाई दे रहा है ।)

७. सद्गुरु (श्रीमती) गाडगीळजी द्वारा प्रवेशद्वार खोले जानेपर वहां चंदन की
गंध आना, अंदर सीतामाता की खडी मूर्ति होना, उसकी पिछली दीवारपर सीतामाता की
अग्निपरीक्षा का चित्र का होना तथा वहां सभी के द्वारा रामराज्य की स्थापना के लिए प्रार्थना की जाना

सीतामंदिर का द्वारा खोलती हुई सद्गुुरु (श्रीमती) अंजली गाडगीळजी, मंदिर के व्यवस्थापक तथा सबसे पीछे श्री. विनायक शानभाग

 

अग्निप्रवेश कर रही सीतामाता की मूर्ति के चरणों में भावपूर्ण प्रार्थना करती हुईं सद्गुरु (श्रीमती) अंजली गाडगीळजी

हमने मन ही मन श्रीमहाविष्णुजी के श्रीराम रूप से प्रार्थना की और प्रवेशद्वारतक पहुंच गए । सद्गुरु गाडगीळकाकूजी ने चाबी से सीता मंदिर का ताला खोल दिया । (छायाचित्र क्र. १ देखें ।) सद्गुुरु काकूजी द्वारा प्रवेशद्वार खोलते ही सभी को चंदन की गंध आई । हम जबतक (आधे घंटेतक) मंदिर में थे, तबतक हम सभी को चंदन की गंध आ रही थी । वहां सीतामाता की खडी मूर्ति है । मूर्ति के पीछे दीवारपर सीतामाता द्वारा दी जा रही अग्निपरीक्षा का चित्र है । सद्गरु गाडगीळकाकूजी ने तथा उनके साथ हम सभी साधकों ने उस मंदिर में रामरथी स्तोत्र गाया तथा पृथ्वीपर रामराज्य आने हेतु प्रार्थना की । (छायाचित्र क्र. २ देखें ।)

८. मंदिर के व्यवस्थापक द्वारा सीतामाता ने जहां अग्निपरीक्षा दी, उस
स्थानपर पहले से ही अश्‍वत्थ वृक्ष का होना तथा पहले श्रीलंका में सभी लोग हिन्दू
ही होने के कारण उन्हें इस स्थान के विषय में पहले से ही ज्ञात होने की बात कही जाना

देवी सीता ने जिस स्थानपर अग्निप्रवेश किया, उस स्थानपर स्थित अश्‍वत्थ वृक्ष की परिक्रमा करती हुईं सद्गुरु (श्रीमती अंजली गाडगीळजी)

उसके पश्‍चात वे दादाजी हमें मंदिर के पीछे स्थित अश्‍वत्थ वृक्ष की ओर ले गए । दादाजी ने कहा, ‘‘मेरे दादाजी मुझे बताते थे, ‘अभी का यह अश्‍वत्थ वृक्ष बहुत पुराना है; परंतु उसके पहले भी यहां अश्‍वत्थ वृक्ष था ।’ मेरे दादाजी हिन्दू थे । कालांतर से हम बौद्ध बन गए; परंतु ‘सीतामाता ने इसी स्थानपर अग्निपरीक्षा दी’, ऐसा गांव के पुराने लोग बताते थे । अतः हमें बचपन से ही इस स्थान के विषय में ज्ञात था ।’’ उसके पश्‍चात सद्गुुरु गाडगीळकाकूजी ने उस अश्‍वत्थ वृक्ष की ३ परिक्रमाएं कीं । (छायाचित्र क्र. ३ देखें ।)

९. सीतामाता ने जहां अग्निपरीक्षा दी, उस स्थान का अवलोकन
करने तथा वहां रामराज्य आने हेतु प्रार्थना करने का सौभाग्य प्राप्त होने
के कारण परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी के चरणों में व्यक्त की गई कृतज्ञता !

ऐसा कहते हैं, ‘जहां राम-सीता होते हैं, वहां हनुमानजी तो होते ही हैं ।’ हमें ऐसा लगा कि उन दादाजी के रूप में साक्षात हनुमानजीही हमारी सहायता के लिए आ गए ।’ श्रीलंका से सहस्रों मील दूर रामनाथी आश्रम में रहनेवाले परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी की ही यह कृपा है, इसमें कोई संदेह नहीं ! ऐसे पवित्र स्थानपर जाने का अवसर मिलना तथा वहां रामराज्य आने हेतु प्रार्थना करने का अवसर मिलना, यह हम सभी का सौभाग्य ही है । इसके लिए श्रीरामस्वरूप परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी के चरणों में चाहे कितनी भी कृतज्ञता व्यक्त की जाए, वह अल्प ही है ।’

– श्री. विनायक शानभाग, सनातन आश्रम, रामनाथी, गोवा (१०.६.२०१८)

स्रोत : दैनिक सनातन प्रभात

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