सारणी
१. स्त्रियों एवं पुरुषोंका मुंडन करवाना
२. संन्यासी तथा विधवाके मुंडन करवानेका कारण
३. केशविमोचन, केशवपन एवं केश न काटना
४. तीर्थस्थलमें जाकर मुंडन करवाना
५. पतिके निधनके पश्चात् पत्नीको मुंडन करवानेसे होनेवाले लाभ
६. पति-पत्नीमें लेन-देन संबंधयुक्त कर्मसे मुक्ति
७. पत्नीके मनमें अल्पावधिमें वैराग्यदर्शक भाव उत्पन होना
८. परिवारके व्यक्तिके निधनपर पुरुषोंको अपने केश पूर्णतः क्यों कटवाने चाहिए तथा स्त्रियोंको केश क्यों नहीं कटवाने चाहिए ?
९. संकलनकर्ता
१. स्त्रियों एवं पुरुषोंका मुंडन करवाना
स्त्रियोंमें प्रतिकारक्षमता अल्प होनेके कारण उनपर अनिष्ट शक्तियोंके आक्रमण अधिक मात्रामें होते हैं । उनके सिरका तालु कोमल होनेके कारण अनिष्ट शक्तियोंके लिए उनपर आक्रमण करना सरल होता है । इन आक्रमणोंसे स्त्रियोंकी रक्षा करनेमें केशका बडा योगदान रहता है । इसलिए धर्मशास्त्रने स्त्रियोंको केश काटनेकी मान्यता नहीं दी है । पुरुषोंमें प्रतिकारक्षमता अधिक होने तथा तालु कठोर होनेके कारण उनके सिरपर अनिष्ट शक्तियोंका आक्रमण अल्प होता है । इसलिए धर्मशास्त्रने पुरुषोंको केश कटवानेकी तथा मुंडन करवानेकी अनुमति दी है । – ईश्वर (कु. मधुरा भोसलेके माध्यमसे, १२.११.२००७, रात्रि ११.३०)
२. संन्यासी तथा विधवाके केश काटनेका कारण
केश, वातावरणमें विद्यमान सीसा (लेड) ग्रहण कर उसे मस्तिष्कमें पहुंचाते हैं । उसी प्रकार केश वातावरणकी तरंगें ग्रहण करते हैं, जिससे उत्तेजना उत्पन्न हो सकती है । इसलिए संन्यासी तथा विधवा स्त्रियां अपना मुंडन करवाते थे । – स्वामी विद्यानंद, मुंबई, महाराष्ट वर्ष १९८८)
(संन्यासी वैरागी वृत्तिके होते हैं, तो विधवाओंमें वैराग्यभाव उत्पन्न होना उनके लिए कल्याणकारी है । केश वातावरणकी रज-तम तरंगें ग्रहण करते हैं, इससे संन्यासी एवं विधवाओंकी आध्यात्मिक उन्नतिपर अनिष्ट परिणाम हो सकता है । ऐसा न हो, इस हेतु संन्यासी एवं विधवाएं अपना मुंडन करवाते थे । – संकलनकर्ता)
३. केशविमोचन, केशवपन एवं केश न काटना
देवताके चरणोंमें मुंडन करना, यह एक कनिष्ठ प्रकारकी साधना है । अघोरीविद्याके साधक मुंडन कर देवताके चरणोंमें केश अर्पित करते हैं । इसी प्रकार, ‘केश’ रज-तमात्मक तरंगोंके प्रभावी संक्रमणके प्रतीक हैं । इसलिए इस माध्यमसे देवताके विशिष्ट स्पंदन आकृष्ट कर उसके द्वारा अपने कार्यको गति देने हेतु उन देवतासे बल मांगा जाता है । देवताके चरणोंमें मुंडन करना, एक प्रकारसे कनिष्ठ स्तरपर क्षुद्रदेवताओंके चरणोंमें सकाम साधनाद्वारा अपनी इच्छाओंकी पूर्ति करवानेका साधन है । (उच्च देवताओंके चरणोंमें साधारणतः केश अर्पित नहीं करते । इस प्रकारका कनिष्ठ अनुष्ठान क्षुद्रदेवता, ग्रामदेवता और स्थानदेवताके देवालयोंमें किया जाता है । स्पंदनोंके स्तरपर विशिष्ट इच्छासे साधर्म्य दर्शानेवाली विशिष्ट वस्तु देवताको चढाकर, उसके माध्यमसे जीवके लिए इच्छित फल प्राप्त करना सरल हो जाता है । – एक विद्वान (श्रीमती अंजली गाडगीळके माध्यमसे, १५.५.२००७, सायं. ७.०३)
४. तीर्थस्थानोंमें जाकर मुंडन करवाना
अ. यह क्षणिक पाप निर्मूलनकी प्रक्रियाका प्रतीक होना
तिरुपति बालाजीके देवालयमें केश अर्पित करना, यह पूर्वकालसे चली आ रही प्रथा है । केश अर्पित करनेका कृत्य, अपना रज-तमात्मक पाप तिरुपतिके चरणोंमें अर्पित कर पापमुक्त होनेके संकल्पका प्रतीक है । केश उतारना, अर्थात मुंडन करवाकर रजतमरूपी पापसे क्षणिक मुक्त होनेकी एक प्रक्रियाका प्रतीक । – एक विद्वान (श्रीमती अंजली गाडगीळके माध्यमसे, १६.५.२००७, दोपहर ४.२४)
आ. अहंभाव अर्पित होकर साधनामें आनेवाली बाधाएं दूर होना
कुछ लोग तीर्थस्थानोंमें मुंडन करवाते हैं, उदा. तिरुपति । इसके पीछे धारणा यह होती है कि ऐसा करनेसे उस देवताके चरणोंमें अहंभाव अर्पित होनेमें सहायता मिलती है तथा उस व्यक्तिकी साधनामें आनेवाली बाधाएं दूर होती हैं । इस कारण कुछ देवताओंके देवालयमें स्त्री, पुरुष एवं छोटे बच्चोंके मुंडन करवानेकी प्रथा है । आजकल देवताको, ‘मैं आकर आपके चरणोंमें मुंडन करवाऊंगा’, यह मनौती मानी जाती है । – ब्रह्मतत्त्व (श्रीमती पाटीलके माध्यमसे, २९.३.२००६, दिन ११.१८)
इ. स्त्रियोंको केश क्यों नहीं काटने चाहिए ?
सत्त्व-रजयुक्त तरंगोंसे स्त्रीकी अनिष्ट शक्तियोंसे रक्षा होती है । अतः, सर्वसाधारण स्त्रियोंका केश कटवाना, पाप अथवा अपवित्र माना जाता है । इसके विपरीत, ‘पुरुष’ कार्यरत शक्तिका प्रतीक है । इसलिए परिवारके सदस्यकी मृत्युके उपरांत उसके क्रियाकर्मका उत्तरदायित्व पूर्णतः पुरुषपर होता है । अतः पुरुषोंको केश पूर्णतः कटवाने चाहिए । – एक विद्वान (श्रीमती अंजली गाडगीळके माध्यमसे, ९.८.२००४, दोपहर. २.५१)
५. पतिके निधनके पश्चात् पत्नीको मुंडन करवानेसे होनेवाले लाभ
यमपाशमें पुरुष बंधनेके उपरांत उसकी आधीसे भी अधिक इच्छाएं पत्नीसे जुडी होती हैं । इसलिए ये आसक्तिजनित इच्छाशक्तिके बंधन सूक्ष्म तरंगोंके माध्यमसे पत्नीकी ओर आकृष्ट हो सकते हैं । पत्नीके केशसे प्रक्षेपित रजोगुणी तरंगोंकी आकर्षणयुक्त शक्तिके कारण वे उसके केशमें घनीभूत हो सकती हैं । इस कारण जीवकी आगेकी गति अवरुद्ध हो जाती है । पत्नीको भी सतत पतिके मायापाशका स्मरण होता है । परिणामस्वरूप, उसकी भी वैराग्यदर्शक भावनाके माध्यमसे हो रही आगेकी आध्यात्मिक उन्नति अवरुद्ध हो सकती है । पतिके निधनके उपरांत यदि स्त्री सती न हुई हो, तो पतिके आसक्तियुक्त स्मरणसे मुक्त होने हेतु तथा पतिको भी अच्छी और शीघ्र गति प्राप्त होने हेतु सिर मुडवानेका विधान है ।
६. पति-पत्नीमें लेन-देन संबंधयुक्त कर्मसे मुक्ति
पति तथा पत्नीके संबंधोंमें लेन- देन सर्वाधिक होता है । मुंडन, पति-पत्नीमें लेन-देन संबंधयुक्त कर्मसे मुक्त होनेका उत्तम कर्म है ।
७. पत्नीके मनमें अल्पावधिमें वैराग्यदर्शक भाव उत्पन होना
यह एक अत्यंत महत्त्वपूर्ण, शुद्ध तथा वैराग्यकी उत्पत्ति करनेवाला आचारधर्म है । इससे पत्नीके मनमें अल्पावधिमें वैराग्यका भाव उत्पन्न होता है और उसकी आध्यात्मिक उन्नति होती है । हिंदु धर्ममें आध्यात्मिक उन्नतिके लिए विविध नियम विशिष्ट स्तरोंपर कैसे बनाए गए हैं, यह इससे स्पष्ट होकर आचारधर्मके महत्त्वपर विश्वास दृढ होता है । – एक विद्वान (श्रीमती अंजली गाडगीळके माध्यमसे, ७.९.२००७, दोपहर २.५६)
८. परिवारके व्यक्तिके निधनपर पुरुषोंको अपने केश पूर्णतः क्यों कटवाने चाहिए ?
परिवारके सदस्यकी मृत्यु होनेपर घरका वातावरण रज-तमयुक्त हो जाता है । मृत जीवका लिंगदेह कुछ समयतक वास्तुमें होता है । मृत जीवके लिंगदेहसे प्रक्षेपित वेगवान रज-तमात्मक तरंगें परिवारजनोंके केशके काले रंगकी ओर आकृष्ट होती हैं । इसी प्रकार काले केश, वातावरणसे रज- तमात्मक तरंगोंको आकृष्ट करनेका कार्य करते हैं । इससे परिवारके सदस्योंको कुछ कष्ट हो सकता है; जैसे – सिरमें तीव्र वेदना होना, सिर संवेदनशील होना, मन व्याकुल होना इत्यादि । मृत्योपरांतके क्रियाकर्ममें पुरुषोंका प्रत्यक्ष सहभाग होनेसे उन्हें कष्ट होनेकी आशंका अधिक होती है । ये कष्ट न हों, इस हेतु पुरुषोंके लिए केश पूर्णतः कटवाना आवश्यक होता है ।
९. संकलनकर्ता
प्रश्न : मृत जीवके लिंगदेहसे प्रक्षेपित वेगवान रज-तमात्मक तरंगें इन परिवारके सदस्योंके काले केशकी ओर आकृष्ट होती हैं, ऐसा आपने ऊपरोक्त उत्तरमें कहा है; किंतु अध्यात्मशास्त्रानुसार एक विशिष्ट सीमातक केशके कारण अनिष्ट शक्तियोंसे रक्षा भी होती है । इन दोनों वक्तव्योंमें समन्वय कैसे साधा जाए ?
उत्तर : वातावरणमें रज-तमकी मात्रा ५० प्रतिशतसे अधिक हो, तो जीवको अनिष्ट शक्तियोंका कष्ट हो सकता है । इसलिए एक विशिष्ट सीमातक ही केशके कारण जीवकी अनिष्ट शक्तियोंसे रक्षा होती है । हिंदु धर्ममें स्त्रीको आदिशक्तिकी अप्रकट शक्तिका प्रतीक माना गया है । इसलिए हिंदु धर्ममें स्त्रीको अत्यंत आदरका स्थान है । स्त्रियोंके लंबे केश उनकी शालीनताका द्योतक हैं, इसलिए स्त्रियोंका केश कटवाना, हिंदु धर्मके विरुद्ध है । सत्त्वगुणप्रधान स्त्रियोंके केश प्राय: लंबे होते हैं । केशके सिरोंसे प्रक्षेपित शक्तिरूपी सत्त्व-रजयुक्त तरंगोंके कारण स्त्रीकी एक प्रकारसे अनिष्ट शक्तियोंसे रक्षा ही होती है । अतः सर्वसाधारण स्त्रियोंका केश कटवाना निषिद्ध किया गया है अथवा अपवित्र माना गया है । इसके विपरीत, ‘पुरुष’ कार्यरत शक्तिका प्रतीक है । इसलिए परिवारके सदस्यकी मृत्युके उपरांत उसके क्रियाकर्मका उत्तरदायित्व सर्वथा पुरुषपर होता है; अतः पुरुषोंको केश पूर्णतया कटवाने चाहिए । – एक विद्वान (श्रीमती अंजली गाडगीळके माध्यमसे, ९.८.२००४, दोपहर. २.५१)