१ अ. औषधीय वनस्पतियों का
रोपण साधना के रूप में करने का महत्त्व
व्यक्ति जिस वातावरण में बढता है, उसके अनुसार उसका स्वभाव बनता है । व्यक्ति के गुणदोषोंके लिए जिसप्रकार आसपास का वातावरण एक कारण होता है, वैसा ही वनस्पतियों के सन्दर्भमें भी है । औषधीय वनस्पतियों के आसपास का वातावरण जितना सात्त्विक होगा, उतनी वे अधिक सात्त्विक बनती हैं । जितना सत्त्वगुण अधिक हो, उतना ही वनस्पतियोंके औषधीय गुण भी बढते हैं । साधनासे सत्त्वगुण बढता है । औषधीय वनस्पतियों का रोपण केवल अर्थार्जन के साधन के रूप में नहीं; ईश्वरप्राप्ति हेतु साधना के रूप में करें, तो वनौषधि सात्त्विक होने में सहायता होती है ।
१ आ. रोपण करते समय की
जानेवाली प्रार्थना और रखा जानेवाला भाव
१ आ १. प्रार्थना
अ. वनस्पति लगाने से पहले धरतीमाता से प्रार्थना करें
हे धरतीमाता, जैसे आपने मुझे आधार दिया है, वैसे ही इस वनस्पति को भी आधार दीजिए ।
आप ही इसका पोषण कीजिए और इसमें उचित औषधीय गुणधर्म निर्माण कीजिए !
आ. औषधीय वनस्पति लगाते समय उस वनस्पति से भी प्रार्थना कीजिए
हे औषधीय वनस्पति, तुममें और मुझमें मित्रताका सम्बन्ध निर्माण होने दो । तुम्हारे कारण रोगियों के रोग दूर होने में सहायता होने दो ।
इ. रोपण करते समय उपयोग होनेवाली कुदाली, टोकनी (तसला) आदि उपकरणों से भी प्रार्थना करें ।
१ आ २. भाव
औषधीय वनस्पतियों के रोपण से मुझे ईश्वर मिलेंगे, एेसा भाव रखें । वनौषधियों के प्रति कृतज्ञता का भाव रखें ।
१ इ. पौधों के साथ आचरण कैसा हो ?
१. वनस्पति के निकट जाते समय उस वनस्पति का बच्चा अथवा उसका अभिभावक बनकर जाएं ।
२. अभिमान अथवा गर्व हो, तो वनस्पति भी आपको नहीं अपनाती ।
३. पेडों से प्राथमिक मित्रता करने में २ वर्षों का समय लगता है ।
४. पौधों पर छोटे रहते ही अच्छे संस्कार करने पडते हैं ।
-पू. डॉ. दीपक जोशी उपाख्य गणेशनाथजी (२३.४.२०१३)
१ ई. खेत/बगीचे की सात्त्विकता
बनाए रखने के लिए क्या करें ?
१. खेत / बगीचे का चैतन्य बनाए रखने के लिए उस क्षेत्र में प.पू. भक्तराज महाराजजी जैसे उच्चकोटि के संतों की आवाज में भजन लगाए रखें, साथ ही प्रतिदिन अग्निहोत्र करें ।
२. उस क्षेत्र में नियमितरूप से अग्निहोत्र की, यज्ञ की, मंदिर की अथवा सात्त्विक अगरबत्ती से बनी विभूति फूंकें । इससे क्षेत्र की कष्टदायक शक्तियां दूर होने में सहायता मिलती है ।
३. वनस्पतियों को होनेवाले रोग, कीडे अथवा अन्य सूक्ष्म जीवाणुआेंके कारण होते हैं, तब भी इन रोगों का एक कारण रज-तम का प्रदूषण भी हो सकता है, यह ध्यान में रख कीडे अथवा सूक्ष्म जीवों का प्रतिकार करने के साथ ही नियमितरूप से आध्यात्मिक उपचार भी करें ।
४. खेत / बगीचे में मन शान्त और प्रसन्न रखें । रूखा व्यवहार न करें ।
५. मासिक धर्म के समय स्त्रियां औषधीय वनस्पतियों को स्पर्श न करें ।
१ ऊ. मध्यम और बडे भूधारकों द्वारा समाजहित के लिए बडी मात्रा में औषधीय वनस्पतियों का रोपण करना, उनकी समष्टि साधना
जिनके पास मध्यम (३ -४ एकड) अथवा उससे बडी कृषिभूमि है, ऐसे व्यक्ति केवल अपने परिवार का ही विचार न कर समाजबन्धुआें का भी विचार करें और बडी संख्या में औषधीय वनस्पतियों का रोपण करें । आगामी आपातकाल में इस रोपण से अनेक लोगों को आयुर्वेदिक औषधियां उपलब्ध होंगी और स्वास्थ्य रक्षा होगी । इस निःस्वार्थ समाजसेवा के माध्यम से इन व्यक्तियों की समष्टि साधना होगी !
आगामी भीषण आपातकाल में स्वास्थ्य की रक्षा हेतु प्रत्येक व्यक्ति से आयुर्वेदिक औषधीय वनस्पतियों का रोपण हो और सज्जनों को इन वनस्पतियों का सुयोग्य उपयोग करने की बुद्धि और शक्ति प्राप्त हो, यह श्री धन्वन्तरी देवता के चरणों में प्रार्थना है !
॥ धं धन्वन्तरये नमः ॥