१. अन्य फसल के साथ
लगाई जानेवाली औषधीय वनस्पति
पहलेसे लगी फसलों के बीच में भी औषधीय वनस्पतियों का रोपण किया जा सकता है । किस फसल में कौन-सी वनस्पति लगाई जा सकती है, इसकी सूची आगे दी है ।
मुख्य फसल | रोपी जा सकनेवाली औषधीय वनस्पति |
१. नारियल, सुपारी |
काली मिर्च, लौंग, दालचीनी, इलायची, अनानास, ब्राह्मी(जलब्राह्मी), मंडूकपर्णी, भूमिआंवला, बच, हलदी,कुलिंजन, पिप्पली इत्यादि. |
२. आम, काजू |
हलिनी, सर्पगंधा, अनंतमूल, भूमिआंवला, षाणभेद,गिलोय, घृतकुमारी (ग्वारपाठा), गुडमार, कालमेघ, केवांच, कटेरी, बडी कटेरी, सरिवन (शालपर्णी), पुनर्नवा, सनाय, शतावरी, तुलसी, वायविडंग, अडूसा, निर्गुंडी, मुसली, आंवला इत्यादि. |
२. परती भूमि में, अत्यल्प श्रम तथा पानी
अल्प होने पर रोपी जा सकनेवाली औषधीय वनस्पतियां
२ अ. अत्यल्प श्रम में लगाई जा सकनेवाली औषधीय वनस्पति
२ अ १. बाड के रूप में अथवा बाड के किनारे लगाई जानेवाली वनस्पति
वनस्पति | लैटिन नाम | किन विकारों में उपयोगी ? | औषधि के लिए उपयुक्त अंग (भाग) | रोपण के लिए उपयुक्त अंग (भाग) |
१.एरंड | Ricinus communis | वातविकार, पेट के विकार और दमा | पत्ते, जड और बीज | बीज अथवा तने के टुकडे |
२.खैर | Acacia catechu | पित्त और रक्त के विकार, त्वचा के विकार और खांसी | छाल और पपडी | बीज |
३.चोपचिनी | Smilax glabra | ज्वर, संधिवात एवं गुप्तरोग | जड | बीज अथवा तने के टुकडे |
चोपचिनी
२ अ २. फूल
वनस्पति | लैटिन नाम | किन विकारों में उपयोगी ? | औषधि के लिए उपयुक्त अंग (भाग) | रोपण के लिए उपयुक्त अंग (भाग) |
१.कठमूली | Bauhinia racemosa | मूत्रप्रणाली के विकार | छाल, पत्ते एवं फली | बीज |
२.सुल्तान चंपा | Calophyllum inophyllum | पित्त आैर रक्त के विकार | फूल आैर बीज | बीज |
३.कचनार | Bauhinia variegata | शरीर के ऊपर की गांटें आैर भगंदर | छाल | बीज |
२ अ ३. फल
वनस्पति | लैटिन नाम | किन विकारों में उपयोगी ? | औषधि के लिए उपयुक्त अंग | रोपण के लिए उपयुक्त अंग |
१.चिरौंजी | Buchanania lanzan | मूत्र अधिक होना आैर पुराना ज्वर | बीज | बीज |
२ अ ४. औषधीय वनस्पति
वनस्पति | लैटिन नाम | किन विकारों में उपयोगी ? | औषधि के लिए उपयुक्त अंग | रोपण के लिए उपयुक्त अंग |
१. मकोय | Solanum nigrum | गले के विकार आैर बद्धकोष्ठता | पंचांग | बीज |
२. कुक्कुटनखी | Tectaria cicutaria | शरीर में बनी गांठें | जड | मुनवे (सकर्स) |
३. गोखरू | Tribulus terrestris | मूत्रप्रणाली के विकार | पंचांग | बीज |
३. रोपने की आवश्यकता नहीं; परंतु आसपास
के परिसर में खोजकर रखने योग्य औषधीय वनस्पति
३ अ. अपनेआप उगनेवाली औषधीय वनस्पतियों की पहचान करना आवश्यक
कुछ वनस्पतियां प्राकृतिक रूप से बहुत बडी संख्या में उगती हैं । वर्षाकाल में खरपतवार के रूप में उगनेवाली अनेक वनस्पतियों में औषधीय गुणधर्म होते हैं । चकवड, दूधी, खल मुरिया, बला, पुनर्नवा जैसी वनस्पतियां हम प्रतिदिन देखते हैं; परवे औषधीय वनस्पति हैं और उनका उपयोग विकार दूर करने के लिए किया जा सकता है, यही हमें पता नहीं रहता । प्रकृति में खरपतवार के रूप में बडी मात्रा में उगनेवाली वनस्पतियों को अलग से लगाने की आवश्यकता नहीं रहती; परंतु हमें ऐसी वनस्पतियों की पहचान होनी चाहिए और हमारे आसपास वे कहां मिलती हैं, यह भी पता होना चाहिए । इसके लिए ऐसी वनस्पतियां आसपास कहां हैं, यह खोजकर रखें । जानकारों से पूछकर ये वही वनस्पतियां हैं न ? यह सुनिश्चित कर लें । इससे उन औषधीय वनस्पतियों की जब आवश्यकता होगी, तब उन्हें खोजने का समय बच जाएगा । ऐसी वनस्पतियों के औषधीय उपयोग, गुणधर्म, तथा उनसे विविध औषधियां कैसे बनाएं, इसकी विस्तृत जानकारी सनातन के ग्रन्थ Principles of Ayurved में दी है ।
वनस्पति | लैटिन नाम | किन विकारों में उपयोगी ? | औषधि के लिए उपयुक्त अंग (भाग) | रोपण के लिए उपयुक्त अंग (भाग) |
१.चिरचिरा | Achyranthes aspera | प्लीहा के विकार, मूत्रप्रणाली के विकार आैर बद्धकोष्ठता | पंचांग | बीज अथवा तने के टुकडे |
२.खलमुरिया | Tridax procumbens | व्रण (घाव), संधिवात, अर्धशीर्षी, जुलाब आैर कर्करोग | पंचांग | बीज अथवा तने के टुकडे |
३.कसौंदी | Cassia occidentalis | ज्वर, खांसी, दमा, यकृतके विकार आैर त्वचाविकार | पंचांग | बीज अथवा तने के टुकडे |
४.सूरवली | Celosia argentea | मूत्रप्रणाली के विकार | बीज | बीज अथवा तने के टुकडे |
५.गोखरू | Hygrophila schulli | मूत्रप्रणाली के विकार | बीज | बीज अथवा तने के टुकडे |
३ आ. वनस्पति सात्त्विकता को प्रतिसाद देती है, इसके उदाहरण
अ. कोल्हापुर में सनातन आश्रम के पास में लगे आम के पेड पर आश्रम की ओर के भाग में बहुत आम लगे थे । – श्री. संजय माने, कोल्हापुर सेवाकेन्द्र (अक्टूबर २०१४)
आ. सनातन आश्रम, रामनाथी, गोवा के प.पू. डॉ. आठवलेजीके कक्ष के निकट लगे पारिजात के पेड की टहनियां कक्ष की दिशा में झुकी हुई हैं । पूरे वर्ष यह वृक्ष फूलों से लदा रहता है ।
आश्रम के पास लगे आम के पेड की अन्य टहनियों की तुलनामें प.पू. डॉक्टरजीके कक्ष की दिशा में लगी टहनियों में बहुत आम लगते हैं ।
(सन्दर्भ : दैनिक सनातन प्रभात, १.३.२०१५)
इ. रामनाथी स्थित सनातन के आश्रम के सामने की ओर लगे नारियल के पेडों में आश्रम की ओर के भाग में अधिक नारियल लगते हैं ।
वनस्पति सात्त्विकता को प्रतिसाद देते हैं, इसलिए औषधीय वनस्पतियों का रोपण करते समय वे अधिकाधिक सात्त्विक हों, इस दृष्टि से भी प्रयत्न करने चाहिए ।