थेऊर में स्थापित चिंतामणि गणपति (अष्टविनायकों में से एक) !

 

महर्षि गृत्समद ऋषि एवं उनके द्वारा थेऊर में स्थापित किया गया  चिंतामणि गणपति !

विदर्भ में वाचनकवि नामक अत्यंत प्रतिभा संपन्न ऋषि थे । उनकी पत्नी का नाम था मुकुंदा । मुकुंदा अत्यधिक सुंदर थी । एक दिन कुंडिणपुर के तत्कालीन राजा रुक्मागंध विदर्भ में शिकार खेलने आया । दोपहर को उसे प्यास लगी; इसलिए वह वाचनकवी के आश्रम में पानी पीने के लिए आया । महर्षि आश्रम में नहीं थे । मुकुंदा अकेली थी । राजा का अनुपम सौदर्य देखकर मुकुंदा उन पर मुग्ध हो गई और उसने अपनी विक्षिप्त इच्छा राजा के सामने प्रकट की । राजा को वह स्वीकार नहीं हुआ और वह पानी पिए बिना आश्रम से लौटने लगा । इससे मुकुंदा क्रोधित हो गई और उसने राजा को शाप दे दिया, तुम कुष्ठरोगी हो जाओगे ! राजा क्षण भर में ही कुष्ठरोग से ग्रस्त हो गया; परंतु तब भी उसकी इच्छा को अनदेखा कर अपनी ही कर्मभोग को दोष देते हुए वहां से निकल गया । (आगे महर्षि नारदमुनि ने उसे चिंतामणि कुंड के जल से रोगमुक्त किया ।)

यहां आश्रम में कामाग्नि से व्याकुल मुकुंदा को देखकर और एक अलौकिक व्यक्ति के जन्म का मुहूर्त है, यह ध्यान में रख देवराज इंद्र ने मुकुंदा में बीजारोपण किया । उससे हुई संतति थे महर्षि गृत्समद ऋषि । इन बातों का ज्ञान न तो महर्षि वाचनकवीं को था और न ही महर्षि गृत्समदजी को था । आगे गृत्समद युवावस्था में मगध देश गए । मगध राजा के दरबार में गृत्समद ने अपने बुद्धि सामर्थ्य से सर्व विद्वानों को पराजित किया । उनकी यह कीर्ति विदर्भ के दूसरे ऋषि अत्री को सहन नहीं हुई । वे आवेश में बोले, ‘अरे, रुक्मानंद का पुत्र तू ! तुझे वाद-विवाद का अधिकार नहीं है !’ अत्रिऋषि के ये वाक्य गृत्समद को आहत कर गए । वे तुरंत घर पहुंचे और मां से अपने जन्म की कहानी पूछी । माता मुकुंदा ने भयवश अपने पुत्र को पूरा वृत्तांत कह सुनाया । गृत्समद ने क्रोधावेश में मां को शाप दे दिया तुम जन्म-जन्म तक कंटीली वृक्ष ही रहोगी । तुम्हारे सहवास में कोई भी पक्षी नहीं रहेगा । तदुपरांत आत्महत्या का विचार किया । गृत्समद देहविसर्जित करेंगे, उसी क्षण आकाशवाणी हुई, गृत्समदा, देहत्याग न करो । तुम इंद्रपुत्र हो । देवराज इंद्र रुक्मानंद के वेश में आए थे । तुम क्षत्रिय पुत्र नहीं, अपितु देवपुत्र हो । इसप्रकार देहपात करने के लिए तुम्हारा अवतार कार्य नहीं है । तुम गणेश की आराधना करो ।

आकाशवाणी द्वारा हुए आदेश से महर्षि गृत्समद ने विदर्भ छोडकर पुणे जिले के थेऊर को अपनी कार्यभूमि के रूप में चुना और तपश्‍चर्या प्रारंभ की ।

बारह वर्षों की तपस्या के उपरांत भगवान गणेश प्रकट हुए और उन्होंने महर्षि गृत्समद को अनेक वरदान दिए । उसी स्थान पर महर्षि गृत्समद ने श्री गणेश की स्थापना की । श्री क्षेत्र थेऊर (जिला पुणे) में स्थापित किए श्री गणेश का नाम भी चिंतामणि ही है । यह क्षेत्र आज अष्टविनायकों में से एक प्रसिद्ध क्षेत्र है ।

 

महर्षि गृत्समद द्वारा किया शोध

महर्षि गृत्समद एक महान संशोधक थे । कपास की खेती करना, उससे कपास प्राप्त करना और कपास से वस्त्र बनाना उनका महत्त्वपूर्ण शोध है । आज भी कळंब परिसर की भूमि कपास की खेती के लिए योग्य न होते हुए भी वहां भारी मात्रा में कपास का उत्पादन होता है । स्त्री गर्भ पर चंद्र का और चंद्रकिरणों का प्रभाव पडता है, ऐसा भी एक शोध महर्षि गृत्समद ने किया । गणितीय + चिन्ह का भी शोध उन्होंने ही किया है । गणित शास्त्र में उस काल में केवल जोड-घटाना, ये दो ही प्रकार आते थे । महर्षि गृत्समद ने गुणाकार और भागाकार, ये क्रियाएं ढूंढ निकालीं । जोड-घटाने के तत्त्व का उन्नत रूप अर्थात गुणाकार एवं घटाने की प्रकिया ही क्रिया के सरल रूप अर्थात भागाकार, यह दिखाकर महर्षि गृत्समंद ने गणितशास्त्र में आमुलाग्र क्रांति ही ला दी ।

संदर्भ : महिमा चिंतामणी की, लेखक : डॉ. गोपाल पाटील

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