१. मोरगांव क्षेत्र अविनाशी होने से वेद और पुराण में वर्णन होना
ब्रह्मदेव के कमंडल का पानी नीचे पृथ्वी पर छलका और कर्हा नामक नदी का उदय हुआ । इस नदी के किनारे मयुरेश्वर आदि क्षेत्र अत्यंत प्राचीन काल से बसा है । मोरगांव के गणपति के रूप में विख्यात क्षेत्र पुणे जिले में आता है । यह क्षेत्र अविनाशी है । कैलास, स्वर्ग, काशी और अन्य क्षेत्र ब्रह्मांड के अंतिम प्रलयकाल में नष्ट होते हैं; परंतु यह क्षेत्र नष्ट नहीं होता, सभी वेद एवं पुराणों में इस क्षेत्र का वर्णन है ।
२. सूर्य, विष्णु, शक्ति एवं शिव, इन चार देवताआें का चार दिशा में खडे रहकर श्री गणेश की स्तुति करना और मयुरेश्वर क्षेत्र ब्रह्म की प्राप्ति करवानेवाला स्थान होना
मोरगांव पृथ्वीलोक में होने पर भी स्वर्ग की अपेक्षा अधिक पवित्र और शक्तिशाली है । मोरगांव क्षेत्र ब्रह्मदेव से भी श्रेष्ठ है । इसी को स्वानंदलोक (भूस्वानंद क्षेत्र) भी कहते हैं । भूलोक पर सबसे अधिक आनंद देनेवाला और सृष्टि पर नियंत्रण रखनेवाला स्थान है मोरगांव का मयुरेश्वर है । वेदों में वर्णित सूर्य, विष्णु, शक्ति और शिव, ये चार उपासना करनेवाले देवताआें का निवास भूस्वानंद क्षेत्र के द्वार के समीप है । ये चार देवता चार दिशाआें में खडे रहकर गणेश की स्तुति मोरगांव में कर रहे हैं । पूर्व द्वार के निकट विष्णु, पश्चिम द्वार के निकट शक्ति, उत्तर द्वार के निकट सूर्य और दक्षिण द्वार के निकट शिव हैं । ऋग्वेद में इस क्षेत्र की महिमा का वर्णन है । मयुरेश्वर क्षेत्र ब्रह्मा की प्राप्ति करवानेवाला स्थान है । पृथ्वी पर सर्व क्षेत्रों का मूल, सर्व अधिष्ठानों का मूल स्थान यही है । यहां श्री गणेश की शक्ति फलदायी है । आज भी यहां सर्व देवता सूक्ष्मरूप में वास कर रहे हैं । इस क्षेत्र की केवल द्वारयात्रा करने पर भी सर्व क्षेत्रों की यात्राआें का परिपूर्ण फल और चारों पुरुषार्थों की सिद्धी भक्तों को हो सकती है ।
३. मोरगाव क्षेत्र है गणेश संप्रदाय की काशी !
मोरगाव क्षेत्र के फल अक्षय हैं । यहां जिसे मृत्यु आएगी, वह साक्षात् पूर्ण कैवल्यसिद्धी को प्राप्त होता है । श्री गणेश ने स्वेच्छा से ही अपने विलास के लिए ही यह क्षेत्र निर्माण किया था । इसलिए वह पूर्णरूप से सर्व शक्तिमान और मूलभूत है । केवल दर्शन लेने अथवा यहां बैठकर नामस्मरण करने से कैवल्यमुक्ति मिलती है, ऐसा सामर्थ्य इस मयुरेश क्षेत्र में है । यह क्षेत्र अर्थात गणेश संप्रदाय की (गाणपत्य संप्रदाय) काशी समझी जाती है ।
४. श्री गणेश प्रसन्न होकर मोर पर बैठने से मूर्ति का मयुरेश्वर गणपति कहलाना
इस क्षेत्र में सोमवार को सभी देवी-देवताआें को श्रीगणेश ने दर्शन दिए । भाद्रपद शुक्ल चतुर्थी पर यहां गणेश की मूर्ति की स्थापना देवालय में हुई । माघ शुक्ल चतुर्थी को श्री गणेश प्रसन्न हुए । उस समय वे मोर पर (मयुरवाहन पर) बैठे थे; इसलिए यहां के मूर्ति को मयुरेश्वर गणपति कहते हैं । इस क्षेत्र में पूर्व में मोरों का वास्तव्य भी बहुत था; इस कारण भी यह क्षेत्र मयुरेश्वर के नाम से प्रसिद्ध है । श्री गणेश ने ऊपर दिए चार देवताआें को सृष्टि की रचना करने हेतु शक्ति और सत्ता यहीं प्रदान की थी ।
५. श्री गणेश के प्रहरी श्री नग्नराज भैरव होना और
इस क्षेत्र में भारी मात्रा में शक्ति के होने का उल्लेख स्कंदपुराण में पाया जाना
इसी क्षेत्र के श्री नग्नराज भैरव यहां सतत संरक्षण कर रहे हैं और इस क्षेत्र का पुण्यफल भक्त को देना चाहिए अथवा नहीं, इसका निर्णय ये नग्नराज भैरव निश्चित करते हैं । इस गजानन के समीप कौन आने योग्य अथवा अयोग्य है, इसकी उन्हें पहचान है । यहां यमराज का अधिकार नहीं चलता । इस क्षेत्र में आकर भक्तों द्वारा कोई चूक होने पर उसे कुछ वर्षों तक यातना भोगनी ही पडती है । इस क्षेत्र में भारी मात्रा में शक्ति है, ऐसा उल्लेख स्कंदपुराण में है ।
६. प.पू. योगिंद्र महाराज लिखित श्रीगणेशविजय नामक ग्रंथ में मयुरेशक्षेत्र के इतिहास, आध्यात्मिक महत्त्व का वर्णन होना और मुद्गल पुराण में इस क्षेत्र का उल्लेख होना
अपने हाथों अन्य क्षेत्रों में हुए पापकर्म इस गणेश के केवल दर्शन से ही नष्ट हो जाते हैं । मयुरेश क्षेत्र में जानेपर शरीर के पाप नष्ट हो जाते हैं । कितने भी भयंकर पाप हुए हों, तब भी यहां आकर मयुरेश की आराधना आरंभ करते ही उन पापों का प्रभाव नष्ट हो जाता है । प.पू. योगिंद्रमहाराजलिखित श्रीगणेशविजय नामक ग्रंथ में मयुरेशक्षेत्र का इतिहास और आध्यात्मिक महत्त्व का वर्णन है । मुद्गल पुराण में भी इस क्षेत्र का उल्लेख है । सूर्यग्रहणकाल में यहां की कर्हा नदी के तट पर बैठकर गणेशमंत्र का जप करने पर वह मंत्र सिद्ध होता है । यहां के मंदिर में बैठकर गणेश अथर्वशीर्ष के आवर्तन करने पर संपूर्ण अथर्वशीर्ष ही सिद्ध कर सकते हैं । पृथ्वी पर विद्यमान इस स्वयंभू स्वानंदलोक जाकर दर्शन ले सकते हैं । वहां मिलनेवाले आनंद की अनुभूति लेनी चाहिए । पृथ्वीतल पर धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष प्राप्त करवानेवाला यह एकमेव क्षेत्र है ।
७. श्री गणेशतत्व का लाभ होने के लिए अध्यात्मशास्त्रानुसार पूजा करनी चाहिए !
पूजा करते समय गणेशमूर्ति को अनामिका से गंध लगाएं । देवालय में चंदन, केवडा अथवा चमेली जैसी सुगंधित उदबत्तियों का उपयोग करें । श्री गणेशजी को हीना अत्तर लगाएं । दुर्वा और जास्वंदी के पुष्प अर्पण करें । मंदिर के सर्व ओर आठ अथवा आठ की गुना में प्रदक्षिणा लगाएं । श्री गणेशाय नमः । इस मंत्र का नामजप करें । श्री गणेश की कृपा संपादन कर अपने में साधना का बल निर्माण होने हेतु श्रीगणेश को भावपूर्ण प्रणाम करें, ऐसा बताया जाता है ।
– प्रा. श्रीकांत भट, अकोला (११.९.२०१५)