आंध्रप्रदेश के चित्तूर जिले के कनिपकम् विनायक मंदिर का यह स्वयंभू गणेशमूर्ति अनेक आख्यायिकाआें के कारण जगभर में प्रसिद्ध है । बताया जाता है कि चोल वंश के राजा ने ११ वीं शताब्दी में यह मंदिर बनवाया था । विजयनगर के राजा ने वर्ष १३३६ में इस मंदिर का जीर्णोद्धार किया ।
इस मंदिर के विषय में, ईश्वर है इसकी साक्ष देनेवाली एक रोचक कथा बताई जाती है । इस गांव में ३ भाई रहते थे । उनमें से एक अंधा, एक बहरा और एक गूंगा था । उनका उदरनिर्वाह छोटी-सी खेती के टुकडे पर होता था । एक बार उनके खेत में कुंए का पानी सूख गया । तब कुंआ और गहरा खोदा जाए, इसलिए एक भाई उसमें उतर गया । वहां खोदते समय उसकी कुदाल का वार एक पत्थर की मूर्ति पर पडा और मूर्ति से रक्त बहने लगा । देखते ही देखते रक्त पानी में घुलने लगा और कुंए का पानी लाल हो गया । उसी समय उन तीनों भाईयों का अपंगत्व दूर हो गया । तदुपरांत गांववालों ने इस गणेशमूर्ति को पानी के बाहर निकाल कर उसकी पूजा की । तब से वह कुंआ कभी भी नहीं सूखा । वहां मिली गणेशमूर्ति का आकार दिनोंदिन बदलता है । मंदिर में आकर कुंए की ओर मुंह करके श्री गणेश की शपथ लेकर वाद-विवाद निबटाए जाते हैं । इसलिए जो श्री गणेश की शपथ लेगा, उसका पक्ष खरा माना जाता है । यहां कुख्यात अपराधी भी कुंए के पानी में स्नान करने के उपरांत अपने हाथों किए गए अपराध की स्वीकृति दे देते हैं और पापमुक्त हो जाते हैं । इस गांव में न्याय की यह पद्धति विश्वसनीय मानी जाती है ।