सारणी
- १. श्री गणेशोपासना
- २. दक्षिणाभिमुखी एवं वाममुखी मूर्तिकी विशेषताएं
- ३. श्री गणेशजीका पूजन
- ४. श्री गणेशपूजनमें उपयोगमें लाई जानेवाली विशेष सामग्री
- ५. साधनामंत्र
- ६. लाल रंगकी साडीके कारण गणेशतत्त्व अधिक मात्रामें ग्रहण होना
१. श्री गणेशोपासना
श्री गणेशजीकी उपासनामें नित्यपूजा, अभिषेक, संबंधित व्रत एवं उपवास, अथर्वशीर्ष पाठ, संबंधित विविध श्लोक एवं मंत्रोंका विशिष्ट संख्यामें पाठ, नामजप जैसे विविध कृत्योंका अंतर्भाव होता है । कुछ लोग विशेषरूपसे श्री गणेश सहस्रनामका पाठ करते हुए, अर्थात श्री गणेशजीके १ सहस्र नामोंमें एक-एक का उच्चारण कर श्री गणेशजीको दूर्वा अर्थात दूब अर्पण करते हैं । इसे ‘दूर्वार्चन’ कहते हैं । सर्वसाधारणतः नित्य उपासनामें श्री गणेशजीकी मूर्तिका पूजन किया जाता है । इसमें पंचोपचार अथवा षोडशोपचार पू्जन किया जाता है । श्रीगणेशजीकी उपासनासे संबंधित चतुर्थीकी विशेष तिथिपर गणेशभक्त अथर्वशीर्षका पाठ करते हुए मूर्तिपर अभिषेक करते हैं । अथर्वशीर्षमें श्री गणेशजीके रूपका वर्णन किया गया है । श्रीगणेशजीकी मूर्तिके दो प्रकार होते हैं, दक्षिणाभिमुखी मूर्ति एवं वाममुखी मूर्ति
२. दक्षिणाभिमुखी एवं वाममुखी मूर्तिकी विशेषताएं
दक्षिण अर्थात दार्इं बाजू । दक्षिण दिशा यमलोककी ओर ले जाती है । दार्इं बाजू सूर्यनाडीकी है । जो दक्षिण दिशाका सामना कर सकता है, वह शक्तिशाली होता है । जिसकी सूर्यनाडी कार्यरत है, वह तेजस्वी होता है । इन दोनों अर्थोंसे दक्षिणाभिमुखी गणपतिको ‘जागृत’ माना जाता है । दक्षिणाभिमुखी अर्थात ऐसी मूर्ति जिसकी सूंड दार्इं ओर मुडी हुई है । दक्षिण दिशासे रज तरंगें आती हैं, जिनके प्रभावसे व्यक्तिको कष्ट हो सकते हैं । इसीलिए कर्मकांडके सर्व नियमोंका यथार्थ पालन कर दक्षिणाभिमुखी मूर्तिकी पूजा की जाती है । कर्मकांडके अंतर्गत शूचिर्भूतता, पावित्र्य, शौच-अशौच इत्यादि सभी नियमोंका पालन करनेसे व्यक्तिकी सात्त्विकता बढती है एवं दक्षिण दिशासे प्रक्षेपित रज तरंगोंसे उसे कष्ट नहीं होते । वाम अर्थात बार्इं बाजू । पूर्वकी ओर मुख कर खडे रहनेसे अपनी बार्इं ओर उत्तर दिशा होती है । उत्तर दिशा अध्यात्मके लिए पूरक एवं आनंददायक है । बार्इं बाजू चंद्रनाडीकी है । यह शीतलता प्रदान करती है । इसलिए पूजनमें अधिकतर वाममुखी गणपतिकी मूर्ति रखी जाती है । वाममुखी मूर्तिकी सुंड बार्इं ओर मुडी हुई होती है । इसका पूजन नित्यकी पद्धतिसे किया जाता है ।
३. श्री गणेशजीका पूजन
नित्यपूजामें सभी देवताओंका पूजन किया जाता है । यहां हम सुविधा हेतु मात्र श्रीगणेशजीका पूजन दिखा रहे हैं । प्रतिदिन करनेके नित्यपूजनमें इस प्रतिमाका पूजन किया जाता है । आइए देखते हैं श्री गणेशजीका प्रत्यक्ष पूजन ..
१. श्री गणेशजीको अनामिकासे चंदन लगाइए ।
२. श्री गणेशजीको लाल रंगके आठ फूल डंठल उनकी ओर कर चढाइए ।
३. श्री गणेशजीको दूर्वा चढाइए ।
४. यथासंभव श्रीगणेशजीको लाल फूल एवं दुर्वासे बनी माला भी चढाइए ।
५. अब दो अगरबत्तियां जलाकर श्रीगणेशजीको दिखाइए ।
६. घडीकी सूइयोंकी दिशामें पूर्ण गोलाकार पद्धतिसे, तीन बार आरती घुमाकर श्री गणेशजीको दीप दिखाइए ।
७. श्री गणेशजीको गुडखोपरेका नैवेद्य अर्पण कीजिए ।
पूजाके उपरांत श्रीगणेशजीकी आठ परिक्रमाएं कीजिए । यह संभव न हो, तो अपने सर्व ओर गोल घूमकर तीन परिक्रमाएं कीजिए । श्रीगणेश चतुर्थीके उपलक्ष्यमें श्रीगणेशपूजन करते समय अभी बताई गई बातोंको अवश्य ध्यान रखिए ।
४. श्री गणेशपूजनमें उपयोगमें लाई जानेवाली विशेष सामग्री
श्री गणेशपूजनमें दूर्वा, शमी एवं मदार की पत्तियां, लाल एवं सिंदूरी रंगकी वस्तुएं; जैसे रक्तचंदन, लाल एवं सिंदूरी वस्त्र एवं फूल विशेष रूपसे उपयोगमें लाए जाते हैं । श्री गणेशतत्त्वका अधिक लाभ होनेके लिए चंदन, केवडा, चमेली एवं खस, इन सुगंधोंकी अगरबत्तीका उपयोग लाभदायक है । अनिष्ट शक्तिके निवारण हेतु श्री गणेशजीकी उपासनामें हीना एवं दरबार इन सुगंधोंकी अगरबत्तीका उपयोग लाभदायक है । पूजाके उपरांत श्री गणेशजीके लिए मोदक एवं उनके वाहन मूषकके लिए खीरका नैवेद्य निवेदित करते हैं । लाल एवं सिंदूरी रंगके कारण प्रतिमामें गणेशतत्त्व अधिक मात्रामें आकृष्ट होता है । यह प्रतिमाको जागृत करनेमें सहायक होता है । जिस प्रकार लाल एवं सिंदूरी रंगका उपयोग देवतापू्जनमें गणेशतत्त्व आकृष्ट करनेके लिए लाभदायक है, उसी प्रकार व्यक्तिके लिए भी गणेशतत्त्व प्राप्त करनेके लिए लाल एवं सिंदूरी रंगके वस्त्र परिधान करना उपयुक्त होता है । इसी विषयसे संबंधित एक साधिकाको हुई बोधप्रद अनुभूति, महाराष्ट्रसे श्रीमती स्मिता जोशीकी है ।
५. साधनामंत्र
१. श्री गणेशाय नमः । : इसमें श्री अर्थात श्रीं तथा वह बीजमंत्र है । गणेशाय मूल बीज की संकल्पना है, जबकि नमः पल्लव है ।
२. ॐ गँ गणपतये नमः । : इसका अर्थ है – ॐ अर्थात प्रणव, गँ अर्थात मूल बीजमंत्र, गणपतये अर्थात आकृतिबंध को एवं नमः अर्थात नमस्कार करता हूं ।
६. लाल रंगकी साडीके कारण गणेशतत्त्व अधिक मात्रामें ग्रहण होना
२ अक्तूबर २००६ को मैंने लाल रंगकी जरीकी किनारवाली साडी परिधान की थी । साडी परिधान करनेके कुछ समय पश्चात मेरे सर्व ओर गणेशतत्त्वका वलय घूम रहा है, ऐसा मुझे प्रतीत हुआ । उस समय उस वलयमें विद्यमान गणेशतत्त्व अत्यंत तेजस्वी दिखाई दे रहा था । लाल रंगकी साडी परिधान करनेके कारण मुझसे अधिक मात्रामें गणेशतत्त्व ग्रहण हो रहा है, इसका मुझे तीव्रतासे भान हुआ । उस समय मेरा भक्तिभाव एवं आनंद बढ गया । श्रीगणेशजीके चरणोंमें मैंने कृतज्ञता व्यक्त की । मेरी यह स्थिति चार घंटे बनी रही । श्रीमती स्मिता जोशीजीको हुई इस अनुभूतिद्वारा लाल रंगके वस्त्र पहननेसे श्री गणेशजीके तत्त्वतरंगोंका किस प्रकार लाभ होता है, यह ध्यानमें आता है ।
( संदर्भ – सनातनका ग्रंथ – त्यौहार, धार्मिक उत्सव एवं व्रत )