रामनाथी, गोवा, ६ अप्रैल : वैशाख कृष्ण सप्तमी अर्थात ७ मई २०१८ को परात्पर गुुरु डॉ. जयंत आठवलेजी का ७६वां जन्मोत्सव था । इसके उपलक्ष्य में ६ मई को रामनाथी (गोवा) के सनातन के आश्रम में अघोरास्त्र यज्ञ, संधिशांति तथा साम्राज्यलक्ष्मी यज्ञ चैतन्यमय तथा भावपूर्ण वातावरण में संपन्न हुए । इन यज्ञों के समय परात्पर गुुरु डॉ. जयंत आठवलेजी की वंदनीय उपस्थिति थी । हिन्दू राष्ट्र की स्थापना तथा साधकों की समष्टि साधना में आ रही बाधाएं दूर हों तथा संपूर्ण पृथ्वीपर रामराज्य की स्थापना हो; इस उद्देश्य से यह यज्ञ किए गए । ५ मई को उग्रप्रत्यंगिरा यज्ञ चैतन्यमय वातावरण में संपन्न हुआ ।
इस यज्ञ के समय पुरोहितों ने देवता आवाहन, देवताआें का पूजन, हवन तथा पूर्णाहुती जैसे विविध धार्मिक विधि किए । यज्ञ में हवन डालने की विधि में सद्गुरु (श्रीमती) बिंदा सिंगबाळजी तथा सद्गुरु (श्रीमती) अंजली गाडगीळजी ने भाग लिया । सनातन पुरोहित पाठशाला के पुरोहितों ने यज्ञ का पौरोहित्य किया । इस यज्ञ के समय म्हापसा की संत पू. सुशीला आपटेदादीजी तथा सनातन के अन्य संतों की वंदनीय उपस्थिति थी ।
साम्राज्यलक्ष्मी याग के संदर्भ में महर्षि मयन द्वारा बताए गए सूत्र !
साम्राज्यलक्ष्मी यज्ञ केवल वैकुंठलोक में ही करना संभव है; इसलिए इस याग को भूलोक का वैकुंठ सनातन के रामनाथी आश्रम में विष्णुजी के अवतार परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी की उपस्थिति में ही संपन्न किया जाए !
साम्राज्यलक्ष्मी याग को केवल वैकुंठलोक में ही किया जा सकता है; इसलिए अब पृथ्वीपर श्रीविष्णुजी ने जिस स्थानपर अवतार धारण किया है, उस सनातन के रामनाथी आश्रम में श्रीविष्णुजी के अवतार परात्पर गुुरु डॉ. आठवलेजी तथा महालक्ष्मी का रूप सद्गुरु (श्रीमती) अंजली गाडगीळजी तथा सद्गुरु (श्रीमती) बिंदा सिंगबाळजी की उपस्थिति में इस याज्ञ को संपन्न करें । परात्पर गुुरु डॉ. आठवलेजी का जन्मनक्षत्र उत्तराषाढा है । ६.५.२०१८ को जिस समय उत्तराषाढा नक्षत्र होगा, उस समय यह याग करें । इस समय साधकों को यह याग वैकुंठलोक में ही हो रहा है, इसकी अनुभूति होगी ।
– महर्षि मयन (पू. (डॉ.) उलगनाथन्जी के माध्यम से, ६.५.२०१८, सुबह ८.३०)
साम्राज्यलक्ष्मी याग
१. साम्राज्यलक्ष्मी याग का महत्त्व
सत्ययुग आरंभ में वैकुंठलोक में स्वयं महाविष्णुजी तथा महालक्ष्मीजी ने सभी महर्षियों की उपस्थिति में यह याग किया था । इस याग के पश्चात महाविष्णुजी संपूर्ण पृथ्वी के स्वामी बन गए । तब से पृथ्वीपर साम्राज्य करनेवाले राजा को भी विष्णुस्वरूप माना जाता है ।
२. महालक्ष्मी के ८ रूप
महालक्ष्मी के आदिलक्ष्मी, धनलक्ष्मी, धान्यलक्ष्मी, गजलक्ष्मी, संतानलक्ष्मी, धैर्यलक्ष्मी, विद्यालक्ष्मी तथा विजयलक्ष्मी नामक ८ रूप हैं । उन में से आदिलक्ष्मी को महालक्ष्मी अथवा साम्राज्यलक्ष्मी कहा गया है ।
– श्री. विनायक शानभाग, सनातन आश्रम, रामनाथी, गोवा (६.५.२०१८)