रामनाथी (गोवा) : ब्रह्मांडनायक, ज्ञानगुुरु, राष्ट्रगुुरु तथा मोक्षगुुरु तथा अनेक जीवों का उद्धार करनेवाले परात्पर गुुरु डॉ. जयंत आठवलेजी का ७६वां जन्मोत्सव पृथ्वी के वैकुंठलोक में अर्थात सनातन के रामनाथी के आश्रम में संपन्न हुआ । भावभक्तिमय तथा चैतन्यमय यह जन्मोत्सव समारोह वैशाख कृष्ण पक्ष सप्तमी अर्थात ७ मई को मनाया गया । परात्पर गुुरु डॉ. जयंत आठवलेजी ने महर्षिजी के निर्देशानुसार जन्मोत्सव के उपलक्ष्य में धारण किए श्रीविष्णुजी के रूप को देखकर सनातन के साधकों ने मन ही मन उनके चरणों में भावरूपी कृतज्ञतापुष्प समर्पित किए तता स्वयं के मनपटलपर इस भावसमारोह के सुवर्णक्षण अंकित कर लिए ।
इस भावसमारोह का प्रारंभ दोपहर २ बजे गुरुर्ब्रह्मा गुरुर्विष्णु गुरर्देवो महेश्वरः । इस श्लोक से किया गया । ६२ प्रतिशत आध्यात्मिक स्तर प्राप्त श्री. विनायक शानभाग ने इस समारोह का सूत्रसंचालन किया । जब वे महर्षि द्वारा बताए गए श्रीविष्णुस्वरूप परात्पर गुुरुदेवजी का महत्त्व विशद कर रहे थे, तब कार्यक्रमस्थलपर परात्पर गुुरु डॉ. जयंत आठवलेजी का श्रीविष्णुरूप में आगमन हुआ तथा उससे उपस्थित जीवों का भाव जागृत होकर वह वृद्धिंगत हो गया । कार्यक्रमस्थलपर उनका आगमन होते ही श्री. विनायक शानभाग ने महर्षिजी द्वारा वर्णित परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी की विशेषताएं बताईं । इस समय परात्पर गुुरु डॉ. आठवलेजी ने साधकों को अनंतशयन श्रीविष्णुस्वरूप में दर्शन कराया । तत्पश्चात सनातन पुरोहित पाठशाला के पुरोहितों ने श्रीसूक्त का पठन किया । श्रीगुरुदेवजी के चरणों में कृतज्ञता तथा पंचादिवेदमंत्ररूपी प्रार्थना से कार्यक्रम का समापन किया गया ।
साधकों को श्रीमन्नारायणस्वरूप परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी
का जन्मोत्सव देखने का अहोभाग्य प्राप्त होने से उन्हें वैकुंठलोक में जाकर
साक्षात् श्रीमहाविष्णुजी के दर्शन का फल प्राप्त होनेवाला है । – महर्षि मयन
१. साधकों को गुुरुदेवजी का जन्मोत्सव देखने का अहोभाग्य प्राप्त हुआ !
साधकों को गुुरुदेवजी का जन्मोत्सव देखने का अहोभाग्य प्राप्त हुआ है । वैकुंठलोक जकार साक्षात् महाविष्णु का दर्शन करनेपर जो फल प्राप्त होता है, वही फल सनातन के साधकों को गुुरुदेवजी के जन्मोत्सव के दिन प्राप्त होनेवाला है । ३३ कोटि देवताआें के आशीर्वाद से चराचर सृष्टि की जीवराशियों में जो पृथ्वीपर अध्यात्म के सर्वोच्च शिखरपर अवतरित हुए हैं, वे हैं परात्पर गुुरु डॉ. आठवलेजी !
२. महर्षि मयन द्वारा परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी का किया हुआ वर्णन !
२ अ. देवता होते हुए भी मनुष्यरूप में पृथ्वीपर राज्य करने आए श्रीमन्नारायणस्वरूप परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी !
जिनका मुखमंडल उदित कमल की भांति है, जिनके नेत्र श्रीकृष्णजी जैसे हैं, जिनकी शरीरकांति कोटि सूर्यप्रकाशसमान है, जिनके चरण मोक्षस्थान हैं तथा स्वयं देवता होते हुए भी जो मनुष्यरूप में पृथ्वीपर राज्य करने आए हैं, वे हैं श्रीमन्नारायणस्वरूप परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी !
२ आ. जिनके दर्शन से महादेवादि देवताआें के दर्शन का फल प्राप्त मिलता है, वे हैं श्रीमन्नारायणस्वरूप गुरु डॉ. आठवलेजी !
जिनके सहवास में परमानंद है, जिनके केवल चरणस्पर्श से ही भूमि के दोष दूर होते हैं तथा जिनके केवल दर्शन से ही महादेवादि देवताआें के दर्शन का फल प्राप्त होता है, वे हैं परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी !
२ इ. जिनकी प्राप्ति के लिए पृथ्वीपर जन्म लेने में भी आनंद है, वे हैं श्रीमन्नारायणस्वरूप परात्पर गुुरु डॉ. आठवलेजी !
इस भूमिपर जिनके लिए लिखना सर्वश्रेष्ठ है, जिनकी कीर्ती का गान करना स्तुत्य है तथा जिनकी प्राप्ति के लिए पृथ्वीपर जन्म लेने में भी आनंद है, वे हैं परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी !
२ ई. भक्त साधकों के लिए सहजता से दर्शन करानेवाले श्रीमन्नारायणस्वरूप परात्पर गुुरु डॉ. आठवलेजी !
आज के समय में पृथ्वीपर स्वयं के अवतार कहलानेवाले कई लोग हैं; परंतु वे अवतार नहीं हैं तथा वे उस देवता के निकट भी नहीं हैं । जिनके दर्शन के लिए देवताएं, ऋषि-मुनी, गंधर्वादि देवगण आतुर होते हुए भी वे उनके भक्त साधकों को सहजता से अपना दर्शन कराते हैं, वे हैं परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी !
२ उ. ५ भाईयों में मध्यवाले तथा जिनकी ऊंचाई ५ भाईयों में अधिक हैं, वे हैं परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी !
२ ऊ. जिनकी दृष्टि यदि किसी साधकपर पडने से तत्क्षण उसके संचितकर्म नष्ट होकर उसे सकल समृद्धि प्राप्त होती है, वे हैं परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी !
३. श्रीदेवी तथा
भूदेवी का कार्तिकपुत्री तथा उत्तरापुत्री के रूप में जन्म लेना
श्रीदेवी तथा भूदेवी ने कार्तिकपुत्री सद्गुुरु (श्रीमती) अंजली गाडगीळजी तथा उत्तरापुत्री सद्गुरु (श्रीमती) बिंदा सिंगबाळजी के रूप में पृथ्वीपर जन्म लिया है । इन तीनों ही अवतारों के प्रति श्रद्धा रखनेवाले तथा कृतज्ञताभाव से निरंतर सेवा में रत पृथ्वीपर रहनेवाले साधकों को कभी भी किसी बात की न्यूनता नहीं होगी । उनके कुल का उद्धार ही होगा ।
श्रीकृष्णजी तथा कल्की के मध्य का जयंतावतार
महर्षियों ने सहस्रों वर्ष पूर्व ऐसा लिखकर रखा है, माता के गर्भ में सामान्य मनुष्य का जन्म लेना तथा उसी माता के गर्भ में दशावतारी विष्णुजी का जन्म लेना, इसमें बहुत बडा अंतर है । इस जयंतावतार के पश्चात ही कल्की अवतार होगा । दशावतारों में से श्रीकृष्ण तथा कल्की के मध्य में स्थित यह अवतार ही वर्तमान जयंतावतार !
५. महर्षि मयन द्वारा वर्णित जयंतावतार की महिमा !
५ अ. दशावतारों में से एक जयंतावतार ! : हम महर्षि निःसंदेह यह बताते हैं कि जो ॐकार स्वरूप हैं तथा महामेरू पर्वत जिनका है, वही विष्णु अर्थात जयंतावतार है !
६. साधकों, श्रीमन्नारायणजी को सामान्य मनुष्यरूप में देखकर धोखा मत खाएं !
साधकों को श्रीमन्नारायणस्वरूप परात्पर गुुरु डॉ. आठवलेजी का जन्मोत्सव मनाने का सौभाग्य प्राप्त हुआ है । साधक इस आनंदसमारोह को अपने जीवन का स्वर्णसमारोह समझें । उन श्रीमन्नारायणजी को सामान्य मनुष्यरूप में देखकर धोका मत खाएं । जो सामान्य मनुष्यरूप में अवतरित हुए हैं, वे वही हैं, जिनके हाथ में शंख, चक्र तथा गदा होती है तथा जो अनंत कोटि ब्रह्मांड के स्वामी हैं । गुरुदेवजी के जन्मोत्सव के समय साधकों का जैसा भाव होगा, वैसे उन्हें आशीर्वाद प्राप्त होगा, ऐसा नाडीशास्त्र में लिखकर रखा गया है ।
– महर्षि मयन (पू. (डॉ.) ॐ उलगनाथन्जी के माध्यम से, ५.५.२००८, सुबह ९.३०)
विशेषतापूर्ण क्षण
१. श्रीविष्णुरूप में अवतरित परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी का आगमन होते समय सुहागिन महिलाएं ंहाथ में आरती लेकर उनके स्वागत के लिए खडी थीं ।
२. पुरोहितों द्वारा विष्णुसहस्रनाम का उच्चारण होते समय शेषासनपर श्रीविष्णुजी की वेशभूषा में आसनस्थ परात्पर गुुरु डॉ. आठवलेजी के चरणों में सनातन के साधकों की ओर से ५ साधकों ने शरणागत भाव से नमस्कार किया, साथ ही सद्गुुरु (श्रीमती) बिंदा सिंगबाळजी तथा सद्गुरु (श्रीमती) अंजली गाडगीळजी ने उनके हृदयकमलपर पुष्पार्चन किया ।
३. तत्पश्चात सद्गुुरु (श्रीमती) बिंदा सिंगबाळजी तथा सद्गुरु (श्रीमती) अंजली गाडगीळजी ने श्रीविष्णुरूप में आसनस्थ परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी का औक्षण किया ।
४. महर्षि अध्यात्म विश्वविद्यालय के नृत्य विभाग की ६१ प्रतिशत आध्यात्मिक स्तर प्राप्त साधिका कु. प्रिशा सभरवाल (आयु ११ वर्ष) तथा ५६ प्रतिशत आध्यात्मिक स्तर प्राप्त साधिका कु. अपाला आैंधकर (आयु ११ वर्ष) ने श्रीमन्नारायण श्रीमन्नारायण श्रीमन्नारायण श्रीपाद में शरणौ इस गीतपर नृत्य प्रस्तुत किया ।
५. कार्यक्रम के समापन से पहले महर्षि अध्यात्म विश्वविद्यालय की संगीत विभाग की साधिका कु.तेजल पात्रीकर तथा श्रीमती अनघा जोशी ने गरुडगमन तव चरणकमल मीह मनसिल सतुभवनित्यम् यह गीत गाया ।
पाठकों से निवेदन
परात्पर गुुरु डॉ. आठवलेजी ने मैं अवतार हूं अथवा मेरे अवतारकार्य का आरंभ हुआ है, ऐसा नहीं कहा है । महर्षीजी ने जीवनाडीपट्टीमें बताया है कि परात्पर गुुरु डॉ. आठवलेजी स्वयं श्रीविष्णुजी के अवतार हैं । साधकों का तथा सनातन प्रभात के संपादक समूह का महर्षिजी के प्रति भाव होने से हम इस विशेषांक के लेखन प्रकाशित कर रहे हैं । – संपादक
इस अंक में प्रकाशित सभी अनुभूतियां जहां भाव वहां ईश्वर, इस वचन के अनुसार साधकों को प्राप्त व्यक्तिगत अनुभूतियां हैं । वो सभी को प्राप्त होगी, ऐसा नहीं है । – संपादक
रामनाथी का सनातन आश्रम बना भूलोक का वैकुंठधाम !
आश्रम में लगाई गई शेषशायी श्रीविष्णुजी की प्रतिमा !
आश्रम में रखी गई शंख, चक्र, गदा तथा पद्म धारण की गई श्रीविष्णुजी की पूर्णाकृति मूर्ति
रामनाथी, फोंडा, ७ मई (संवाददाता) : वैशाख कृष्ण पक्ष सप्तमी अर्थात ७ मई को परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी के जन्मोत्सव के दिन साधकों को रामनाथी आश्रम का वैकुंठधाम बन जाने की प्रचीती हुई । श्रीविष्णुजी का स्मरण करानेवाली वस्तुएं, चित्र, विविध रंग तथा सुगंधित पुष्पों के कारण आश्रम विष्णुमय बन गया था । अखिल ब्रह्मांड के पालनकर्ता श्रीविष्णुजी के क्षीरसागर के वैकुंठधाम में जिस प्रकार का वातावरण होता है, उस प्रकार का विष्णुमय वातावरण परात्पर गुुरु डॉ. आठवलेजी जहां निवास करते हैं, उस आश्रम में बन गया था ।
आश्रम की प्रत्येक मंजिलपर श्रीविष्णुजी की शेषशायी तथा पूर्णाकृति प्रतिमाएं तथा चित्र रखे गए थष । मार्गिका तथा द्वारोंपर शंख,चक्र, गदा तथा पद्म की प्रतिमाएं लगाई गई थीं । आश्रम के साधक-साधिकाएं परमश्रद्धेय परात्पर गुरुमाऊली के स्मरण में मग्न थे । किसी ने रंगोली निकालकर, किसी ने फूलों की रचनाएं कर, तो किसी ने गुरुमाता को प्रिय सजकर गुुरुमाऊली के प्रति अपना भाव व्यक्त करने का प्रयास कर रहे थे ।
५ से ७ मई की अवधि में सद्गुरु (श्रीमती) अंजली गाडगीळजी द्वारा की गई विविध यात्राआें की अवधि में संग्रहित वस्तुआें की प्रदर्शनी लगाई गई थी । इसमें भारत की विविध नदियों के क्षेत्र में प्राप्त सात्त्विक आकारवाले शालीग्राम, शंखों के विविध प्रकार, विविध आकारवाले तथा मोतीवाले शिंपले रखे गए थे । ७ मइ को जन्मोत्सव के दिन श्रीविष्णुजी द्वारा धारण किए गए दशावतारों के चित्र, तीर्थस्थानों का जल आदि रखे गए थे । इसके साथ ही परात्पर गुुरु डॉ. आठवलेजी की विविध भावमुद्राआेंवाले छायाचित्र तथा परात्पर गुुरु डॉ. आठवलेजी द्वारा उनके जन्म से लेकर अभीतक उपयोग की गई विविध वस्तुआें की प्रदर्शनी भी लगाई गई थी । प्रतिदिन लगाई जानेवाली इस प्रदर्शनी को देखते समय साधक भावविभोर बन गए थे ।
परात्पर गुुरु डॉ. आठवलेजी के ७६वें जन्मोत्सव के दिन वातावरण में भी स्थिरता प्रतीत हो रही थी । स्थूलरूप से संकटकाल के चिन्हे दिखना विदेश से प्रारंभ हुआ है । जैसे संकटकाल का सामना करने के पहले श्री गुुरु साधकों को आनंद, शांति, स्थिरता तथा आध्यात्मिक बल प्रदान कर रहे हैं, ऐसा प्रतीत हो रहा था ।
आश्रम के द्वार पर लगाया गया शंख तथा कमल के चित्र और प्रार्थनाएं
उपर्युक्त छायाचित्र में निहित प्रार्थनाएं
हे परात्पर गुुरुदेवजी, आप अखिल विश्व को मोक्षतक ले जाने का विश्वास दिलानेवाले साक्षात् मोक्षगुरु हैं । हमें साधनाकी जन्मघुट्टी पिलानेवाले हे गुरुदेवजी, आपने हमारे साधनापथ को सरल बना दिया है । अब हम केवल यही याचना करते हैं कि इस पथपर चलते समय हमें आपकी कृपा का सदैव स्मरण रहे ।
आश्रम की खिडकीपर लगाई गई कमल तथा चक्र की प्रतिमाएं
वैशाख कृष्ण सप्तमी ! हिन्दू राष्ट्र के उद्गाता तथश सनातन के साधकों की गुरुमाता परात्पर गुुरु डॉ. आठवलेजी की जन्मतिथि ! पिछले वर्ष के अमृतमहोत्सव की स्मृतियों को अभी भी अपने मनपटलपर संजोनेवाले साधकों में इस वर्ष के ७६वें जन्मोत्सव के उपलक्ष्य में गुरुमाऊली के तृप्तभाव से दर्शााना करने की उत्कंठा थी । साधकों को आनंदप्राप्ति हो, इसके लिए परिश्रम करनेवाले गुरुमाता को आनंद दिलाने के लिए साधक अलग-अलग प्रकार से भावजागृति के प्रयास कर रहे थे ! आनंद सरोवर में आनंद तरंग’ की अनुभूति दिलानेवाला वह दिन कब उदित होगा’, इसकी साधक आतुरता के साथ प्रतीक्षा कर रहे थे । और वह दिन आ गया ! ७ मई २०१८ ! प्रकृतिदेवता ने भी अपने नित्य वैशाखदाह को त्यागकर आल्हाददायक वातावरण बना दिय था । न जाने क्यों ?; परंतु सुबह से ही साधकों को वैकुंठलोक का स्मरण भी हो रहा था ! किसे श्रीगुुरुदेवजी के श्रीकृष्णस्वरूप का स्मरण हो रहा था, तो किसी को श्रीरामरूप ! भूलोक का वैकुंठ सनातन का रामनाथी आश्रम उस दिन अपने अंग-प्रत्यंगोंपर अनेक आभूषण लेकर पुलकित बना था ! आश्रम में निनादनेवाले सामवेद के स्वर, साधकों की भागदौड ! संपूर्ण वातावरण ऐसा था, जैसे विष्णुलोक भूमिपर अवतरित हुआ हो !
श्रीगुुरुदेवजी का जन्मोत्सव इसी प्रकार से अत्यंत भावभक्तिमय वातावरण में संपन्न हुआ ! उसका यह छायाचित्रमय समाचार ! उस अलौकिक दर्शनसमारोह को व्यक्त करने के लिए शब्द भी अपर्याप्त हैं; परंतु हमारी अल्पबुद्धि को श्रीगुरुदेवजी की जो महिमा वर्णन करना संभव हुआ, वह यहां कृतज्ञताभाव से समर्पित कर रहे हैं !!
इस प्रकार से संपन्न हुआ जन्मोत्सव समारोह !
- महर्षियों द्वारा बताए जाने के अनुसार श्रीविष्णुजी के रूप में अवतरित परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी के आगमन में दोनों बाजू में खडे साधक अपनी नेत्रों में प्राणों को लेकर श्री गुरुदेवजी की प्रतीक्षा कर रहे थे ! पहले परात्पर गुरुदेवजी ने जिस वाहन से धर्मप्रसार हेतु भ्रमण किया, उसी पीले सुशोभित वाहन से कार्यस्थलपर उनका आगमन हुआ । साधकों के हाथ अपनेआप जुड गए ! साधकों को देखकर परात्पर गुरुदेवजी ने भी अपने हाथ जोडे ! श्रीगुरुदेवजी का मनोहारी रूप को सभी ने अपने नेत्रों में संजोया !
- मार्ग में हाथ में आरती का तबक लिए खडे सुहागनोंपर भी अपनी कृपावत्सल दृष्टि से आनंदवर्षा करते हुए श्रीगुरुदेवजी सभागार की ओर मार्गस्थ हुए !
- कार्यस्थलपर सद्गुरु (श्रीमती) अंजली गाडगीळजी हाथ में कलश लेकर, तो सद्गुरु (श्रीमती) बिंदा सिंगबाळजी आरती का तबक लेकर उनके स्वागत के लिए खडी थीं ।
६२ प्रतिशत आध्यात्मिक स्तर प्राप्त श्री. विनायक शानभाग जब महर्षि मयन द्वारा बताए गए श्रीविष्णुस्वरूप परात्पर गुरुदेवजी का महत्त्व विशद कर रहे थे, उसी समय परात्पर गुुरु डॉ. जयंत आठवलेजी का श्रीविष्णुरूप में कार्यस्थलपर आगमन हुआ ! परात्प गुरु डॉ. आठवलेजी ने साधकों को अनंतशयन श्रीविष्णुरूप में दर्शन दिया तथा सहस्रों साधकों के नेत्र शांत हो गए ! साधक जिस विष्णुतत्त्व की प्रत्यक्ष अनुभूति करते हैं, वह रूप साक्षात् सामने अवतरित होने का देखकर साधकों की भावाश्रुआें का बांध टूट गया ! - सनातन पुरोहित पाठशाला के पुरोहितों ने ‘श्रीसूक्त’ का पठन किया ।
- पुरोहितों द्वारा जब विष्णुसहस्रनाम का उच्चारण हो रहा था, तब सभी साधकों की ओर से ५ साधकों ने परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी के चरणों में शरणागत भाव से नमस्तकार किया ।
- तत्पश्चात सद्गुुरु (श्रीमती) बिंदा सिंगबाळजी तथा सद्गुरु (श्रीमती) अंजली गाडगीळजी ने अनंतशयन विष्णुस्वरूप परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी के हृदयकमलपर पुष्पार्चन किया ।
- गुरु के शेषासनपर आरूढ होने के पश्चात सद्गुुरु (श्रीमती) बिंदा सिंगबाळजी तथा सद्गुरु (श्रीमती) अंजली गाडगीळजी ने उनका औक्षण किया ।
जन्मोत्सव को प्राप्त हुआ वरुणाशिर्वाद !
७ मई को जन्मोत्सव के उपलक्ष्य में आयोजित किए गए यज्ञ तथा प्रत्यक्ष समारोह संपन्न हुआ । ‘अभीतक सनातन संस्था द्वारा महर्षियों के मार्गदर्शन में जितने भी समारोह, यज्ञ-याग किए, उस प्रत्येक बार वरुणाशिर्वाद प्राप्त होकर कार्य के ईश्वर के चरणों में पहुंचने की प्रचीती मिली है । आज अभीतक वर्षा आरंभ क्यों नहीं हुई ?’, ऐसा विचार रात में सद्गुुरु (श्रीमती) अंजली गाडगीळजी ने उनके साथ रही एक साधिका से व्यक्त किया । उसके पश्चात आधे घंटे में ही अर्थात रात के ११ बजकर ३५ मिनटपर आश्रम परिसर में वर्षा हुई तथा उससे विधि के परिपूर्ण होने की वरुणाशीर्वाद की प्रचीती हुई ! सामान्यरूप से वर्षा सर्वत्र होती है; परंतु यह आशीवार्दवाली वर्षा केवल जहां विधि संपन्न हुआ, उसी स्थानपर ही होती है, जो सामान्य वर्षा तथा वरुणाशीर्वाद में निहित भेद है ।
उपस्थित संत तथा साधक
प.पू. दास महाराज, उनकी पत्नी पू. (श्रीमती) लक्ष्मी (माई) नाईकजी, पू. पृथ्वीराज हजारेजी, पू. सदानंद (बाबा) नाईकजी, पू.(कु.) रेखा काणकोणकरजी, पू. (डॉ.) भगवंतराय मेनराय, पू. (श्रीमती) सूरजकांता मेनरायजी, पू. संदीप आळशीजी, पू. (डॉ.) मुकुल गाडगीळजी, पू. (वैद्य) विनय भावेजी, पू. (श्रीमती) शेऊबाई मारुति लोखंडेजी, पू. (श्रीमती) सुमन नाईकजी, एस्.एस्.आर्.एफ्. की संत पू. (श्रीमती) योया वालेजी, परात्पर गुुरु डॉ. आठवलेजी के ६९ प्रतिशत आध्यात्मिक स्तर प्राप्त बडे भाई तीर्थरूप श्री. अनंत आठवले तथा उनकी पत्नी श्रीमती सुनीती आठवले और साधक
जन्मोत्सव के उपलक्ष्य में श्रीविष्णुजी के
वेशभूषा के आध्यात्मिक कारण तथा कार्यकारणभाव !
सनातन संस्था की स्थापना होने के पश्चात वर्ष २०१५ तक साधकों ने समय-समयपर मेरा जन्मदिवस मनाने की इच्छा व्यक्त की थी; परंतु स्थूल से इस प्रकार के कार्यक्रम मनाने की मेरी कभी इच्छा नहीं थी । अतः साधकों की इच्छा होते हुए भी मैने कभी जन्मदिवस नहीं मनाया । ज्योतिषीय नाडीपट्टीयों में लाखों वर्ष पूर्व विविध महर्षियों द्वारा लिखे गए भविष्य के अनुसार तथा उसमें किए हुए मार्गदर्शन के अनुसार वर्ष २०१५ से मेरा विष्णुरूप में जन्मोत्सव मनाया जा रहा है । यह मेरी मूल प्रकृति के अनुरूप नहीं है । इस विषय में विचार करते समय मुझे कुछ सूत्र ध्यान में आए ।
१. अध्यात्म में संतों द्वारा बताए जाने के अनुसार कृत्य करना महत्त्वपूर्ण होता है । साथ ही अध्यात्ममें स्वेच्छा की अपेक्षा परेच्छा श्रेष्ठ होती है । अतः महर्षियों के आज्ञापालन से अध्यात्म में निहित कुछ सिखना संभव होगा, यह ध्यान में आया ।
२. आध्यात्मिक दृष्टि से उन्नतों ने देवताआें की वेशभूषा धारण करने के पश्चात उनका शरीर तथा वातावरणपर क्या परिणाम होता है, इस विषय में महर्षि अध्यात्म विश्वविद्यालय को वैज्ञानिक उपकरणों द्वारा अनुसंधान करने का एक अवसर मिला ।
३. उत्पत्ति, स्थिति तथा लय क्रमशः ब्रह्माजी, विष्णुजी तथा शिवजी का कार्य है । मेरा कार्य कलियुग में सात्त्विक स्थिति को टिकाए रखने का है, इसका अर्थ एक प्रकार से विष्णुजी के कार्य में से कुछ अंश की भांति है । अतः विष्णुजी कातत्त्व अंशरूप में वह उस कार्य के लिए प्राप्त होता है । उसके कारण महर्षि विष्णुजी का अवतार, जो कहा जाता है, वह मेरे शरीर से संबंधित नहीं, अपितु विष्णुजी के अंशात्मक कार्य से संबंधित है ।
– परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी