कई संतों ने समय-समयपर यह बताया है कि विश्व तीसरे महायुद्ध की कगारपर खडा है । जिस प्रकार से रामायण और महाभारत काल के युद्ध स्थूल से हुए, उसी प्रकार से यह तीसरा महायुद्ध स्थूल से अधिक मात्रा में नहीं, अपितु अधिकांश रूप से सूक्ष्म से होगा । इस युद्ध में अखिल मनुष्यजाति की रक्षा हो; इसके लिए कई संत अलग-अलग पद्धति से प्रयासरत हैं । परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी को केवल तीसरे महायुद्ध से रक्षा होने हेतु ही नहीं, अपितु उसके आगे जाकर कलियुगांतर्गत ईश्वरीय राज्य की स्थापना हेतु कार्यरत हैं । इसी कारण सत्त्वगुणी ईश्वरीय राज्य का विरोध करनेवाली तमोगुणी अनिष्ट शक्तियों के साथ उनका घनघोर संघर्ष चल रहा है । इसके फलस्वरूप परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी का कक्ष युद्धभूमि बन गया है । समय-समयपर इस इष्ट-अनिष्ट के मध्य चल रहे संघर्ष के लक्षण उनका शरीर, कक्ष और परिसरपर दिखाई देते हैं । इस महायुद्ध के फलस्वरूप परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी को विगत कुछ वर्षों से निरंतर थकान प्रतीत होना, प्राणशक्ति का ३० प्रतिशत से भी अल्प हो जाना जैसे अनेक कष्ट हो रहे हैं । कई बार उनके निवासकक्ष में भी बहुत बडा दबाव बनकर उसके कारण उन्हें सांस लेने में कष्ट होना, दीवारपर खरोंचे आना, साथ ही अनिष्ट शक्तियों के मुख अंकित होना आदि पद्धति से अनिष्ट शक्तियों का प्रकटीकरण होता है । इससे इस युद्ध की तीव्रता ध्यान में आती है ।
वर्ष १९८९ से लेकर परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी के जीवन में कई बार महामृत्युयोग आए । वर्ष २००९ में आया हुआ परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी का महामृत्युयोग तो बहुत कठिन था । उसका परिणाम उनके निवास कक्ष के परिसर में स्थित वृक्षोंपर भी दिखाई दिया; परंतु परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी ने इन सभी घटनाओं की ओर शोधकार्य की दृष्टि से देखकर समय-समयपर उन्हें चिन्हित किया है और उसके कारण समाज के सामने इस तीव्र की विभिषिक तीव्रता रखना संभव हुआ है । साथ ही इसके कारण आगे की कई पीढीयों को अनिष्ट शक्तियों का आक्रमण क्या होता है, उनके पीछे क्या कारण होते हैं तथा उनका निराकरण कैसे किया जाता है, इसके अध्ययन के लिए एक नया विभाग ही खुल गया है । आज हम यहां अनिष्ट शक्तियों द्वारा परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी की वास्तु, कक्ष और परिसर में स्थित वृक्षोंपर किए गए आक्रमण के विषय में जानकारी दे रहे हैं ।
सामान्यरूप से हम यह देखते हैं कि वर्षाऋतु में सभी वृक्ष हरेभरे होते हैं; परंतु इस हरसिंगार में यह प्रक्रिया उल्टी ही दिखाई दी । महर्षिजी ने सप्तर्षि जीवनाडीपट्टिका के वाचक पू. डॉ. उलगनाथन के माध्यम से बताया कि परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजीपर आए हुए महामृत्युयोग के संकट को स्वयं झेलने से अक्टूबर २०१६ में रामनाथी आश्रम के परिसर में स्थित हरसिंगार का पेड पूर्णरूप से सूख गया । इससे इसका कारण आध्यात्मिक था, यह ध्यान में आता है ।
परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी के कक्ष में स्थित श्री व्याडेश्वर देवता की प्रतिमापर फुगन आने के पीछे अनिष्ट शक्ति का आक्रमण ही कारण है ।
परात्पर गुरु डॉक्टरजी के कक्ष में स्थित काचों में आए कष्टदायक बदलाव
विशेषज्ञ, अभ्यासी एवं वैज्ञानिक दृष्टि से शोधकार्य करनेवालों से अनुरोध !
‘संतों का कक्ष, साथ ही परिसर में आए अच्छे और कष्टदायक बदलावों के विषय में शोधकार्य कर उनका कार्यकारणभाव खोजने हेतु साधक प्रयास कर रहे हैं ।
१. परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी के कक्ष के फर्शपर अपनेआप हाथ का पंजा अंकित होने का क्या कारण है ?
२. कक्ष की दीवारपर अनिष्ट शक्तियों के मुख दिखाई देना, विशिष्ट समयपर दीवारपर फुगन आना तथा पपडियां निकल आने के क्या कारण हैं ?
३. स्थूल से बिना किसी कारण कांचपर बडी मात्रा में खरोंच आने का क्या कारण है ?
४. क्या प्लास्टिक से बने रंग में बदलाव आ सकता है ?
५. क्या छपे हुए चित्र के रंग में अपनेआप बदलाव आ सकता है ?
६. दर्पण अथवा द्वार की कांच में कालांतर से क्यों बदलाव आते हैं ?
७.सामान्यरूप में संपूर्ण वर्षतक बहरनेवाला हरसिंगार का वृक्ष ऐन वर्षाऋतु में ही क्यों सूख गया ?
इस संदर्भ में हमें विशेषज्ञ, अभ्यासी, इस विषय की शिक्षा ले रहे छात्र और वैज्ञानिक दृष्टि से शोधकार्य करनेवालों से सहायता मिली, तो हम उनके प्रति कृतज्ञ रहेंगे ।’
– व्यवस्थापक, सनातन आश्रम, रामनाथी, गोवा
संपर्क : श्री. रूपेश रेडकर
ई-मेल : [email protected]