गणेशमूर्तियों के विसर्जन से जल-प्रदूषण होता है यह कहनेवालो, नगरों के नालों से होनेवाले भीषण जलप्रदूषण का भी विचार करें !

गणेशोत्सव समीप आया है । प्रतिवर्ष की भांति इस वर्ष भी स्वयं काे पर्यावरण प्रेमी कहलवानेवाले स्वयंघोषित समाजसुधारक और उनके संगठनों के कार्यकर्ता अब सक्रिय होंगे । ‘गणेशोत्सव में गणेशमूर्तियां जल में विसर्जित करने से जल प्रदूषित होता है’ यह दुष्प्रचार कुछ लोगों ने कुछ वर्ष पहले आरंभ किया था । धर्मशिक्षा का अभाव और ढोंगी आधुनिकतावाद के कारण अनेक लोग इस दुष्प्रचार से प्रभावित होने लगे थे । परंतु, अब इन स्वयंघोषित समाजसुधारकों और समाजसेवकों की कलई खुलने लगी है । ये तथाकथित समाजसुधारक लोगों से कहते थे कि गणेश मूर्तियों के रंग से जलप्रदूषण होता है; इसलिए, ऐसी मूर्तियां जलाशयों, नदियों, खाडी और समुद्र में विसर्जित न कर, कृत्रिम जलाशयों में विसर्जित करें । यह कहकर उन्होंने मूर्तिदान की अशास्त्रीय परंपरा भी आरंभ की । परंतु, दान की हुई मूर्तियों की आगे क्या दुर्गति होती है, यह जानने का प्रयास किसी ने नहीं किया ! इससे लगता है कि हिन्दू समाज अब गणेशोत्सव को फैशन के रूप में मनाने लगा है । इसमें महत्त्वपूर्ण प्रश्‍न यह है कि क्या गणेशमूर्तियों के पानी में विसर्जन से जलप्रदूषण होता है ? इस बात की सत्यता वैधानिक और वैज्ञानिक आधार पर जांचने का कार्य कितने हिन्दुआें ने किया ? सहस्रों वर्ष से होनेवाले गणेशमूर्तियों के विसर्जन से कभी पर्यावरण की हानि नहीं हुई । परंतु, अपने उदय के पश्‍चात केवल १०० वर्ष में विज्ञान ने पर्यावरण की अपार हानि कर डाली । जलप्रदूषण न हो, इसके लिए शासन की ओर से बनाई गई व्यवस्था कागदों पर सिमटकर रह गई । इन्हें उत्तमरीति से चलाने के लिए नियुक्त शासकीय अधिकारियों को कदाचित् अपने कर्तव्य के विषय में जानकारी नहीं है । इस बात की पुष्टि निम्नांकित उदाहरणों से होती है –

 

 

१. नगरपालिकाआें और नगरपरिषदों के क्षेत्र में
उत्पन्न होनेवाला मैलापानी, उसका शुद्धीकरण और उपयोग !

महाराष्ट्र के नगरपालिका और नगरपरिषद क्षेत्रों में प्रतिदिन एकत्र होनेवाला मैलापानी, उसका शुद्धीकरण और उपयोग के विषय में एक सारणी महाराष्ट्र शासन ने फरवरी २०१४ में प्रकाशित की थी । यह देखने से समझ में आएगा कि जलप्रदूषण गणेशमूर्तियों के विसर्जन से होता है अथवा शासकीय अधिकारियों की अकर्मण्यता से (काम न करने से) ?

२. मैलेपानी से हो रही है जीवों की हानि !

सारणी में दिए सब आंकडों को जोडने से स्पष्ट दिखाई देता है कि महाराष्ट्र के नगरपरिषद, नगरपालिका और महानगरपालिका क्षेत्रों में प्रतिदिन ६ अरब २१ करोड ३ लाख लीटर मैलापानी इकट्ठा होता है । इनमें केवल ३ अरब ६३ करोड ८६ लाख लीटर पानी शुद्ध किया जाता है । अर्थात, प्रतिदिन २ अरब ५७ करोड १७ लाख लीटर मैलापानी शुद्ध किए बिना ही नदियों अथवा खाडियों में छोड दिया जाता है । ये आंकडे केवल नागरी (शहरी) क्षेत्र के हैं । ग्रामीण क्षेत्रों से छोडे जानेवाले मैले पानी का गणित लगाने के लिए शासन के पास कोई व्यवस्था ही नहीं है । इसी प्रकार, महाराष्ट्र के कारखानों से निकलनेवाला रसायनयुक्त पानी ज्यों-का-त्यों समीप की नदियों अथवा खाडियों में छोड दिया जाता है । इससे होनेवाली प्राणियों और वनस्पतियों की हानि शासन तथा स्वयंघोषित समाजसुधारकों और पर्यावरणरप्रेमियों को क्यों नहीं दिखाई देती ?

३. सूचना के अधिकार से मिली जानकारी आश्‍चर्यजनक !

स्वयंघोषित समाजसुधारक वर्ग के एक अधिवक्ता ने कहा था कि किसी की फांसी भी गुपचुप नहीं होनी चाहिए । उसे और उसके परिजनों को यह बात बतानी चाहिए, यह मानवता है । यदि ऐसा है, तब गणेशमूर्ति विसर्जन के विषय में यह नियम क्यों नहीं ? लोगों से दान में मिली मूर्तियों का आगे क्या किया जाएगा, यह बात ये स्वयंघोषित सुधारक लोग उन्हें क्यों नहीं बताते ? कुछ कार्यकर्ताआें को सूचना के अधिकार के अंतर्गत जो जानकारी मिली है, उससे अनेक चौकानेवाल तथ्य सामने आए हैं ।

अ. मुंबई महापालिका की सभा का एक पत्र हमारे हाथ लगा है । उसमें एक नगरसेवक ने प्रश्‍न किया है कि कृत्रिम कुंडों में विसर्जित गणेशमूर्तियों की मिट्टी समुद्र में ही छोडी जाती है, तो कृत्रिम कुंडों में मूर्तिविसर्जन का पाखंड क्यों ?

आ. कोल्हापुर से सूचना के अधिकार के अंतर्गत मिली जानकारी के अनुसार वहां के कृत्रिम कुंड में विसर्जित २ सहस्र ७८७ मूर्तियां निकालकर ईरानी क्रशर खान में डाल दी गईं । अर्थात, गणेशमूर्तियों का उपयोग गड्ढा भरने के लिए किया जाता !

इ. पुणे महानगरपालिका के तिलकरोड क्षेत्र से सूचना के अधिकार के अंतर्गत विचित्र बात सामने आई । पत्रोत्तर में बताया गया है कि गणेशमूर्तियां कहां विसर्जित की जानी चाहिए, इस विषय में पालिका की सभा में प्रस्ताव पारित नहीं हुआ है । इसलिए, इस विषय में कोई आदेश जारी नहीं हो सका । इसलिए, कृत्रिम कुंड में विसर्जित मूर्तियों का आगे क्या हुआ, इस प्रश्‍न का स्पष्ट उत्तर सूचना अधिकारी नहीं दे पाए । उन्होंने आगे जानकारी दी कि कुछ निजी संस्थाएं दान में मिली मूर्तियां लेकर उनका विसर्जन निजी संस्थाआें से करवाती हैं । इसी प्रकार, पुणे मनपा के कृत्रिम कुंडों में विसर्जित मूर्तियों की मिट्टी का उपयोग पालिका के विविध उद्यानों में किया जाता है ।

पालिका उद्यानों की स्थिति यह है कि वहां थूंकना, लघुशंका और शौच करना साधारण बात है । ऐसे अपवित्र स्थानों पर गणपतिमूर्तियों की मिट्टी डालकर, पालिका प्रशासन हिन्दुआें की भावनाआें से खेल रहा है !

ई. पुणे महानगरपालिका के कोंढवा वानवडी के पालिका उपायुक्त कार्यालय से सूचना के अधिकार के अंतर्गत मिली जानकारी यह है कि गणेशमूर्ति कहां विसर्जित की जाए, इस विषय में पालिकासभा में पारित प्रस्ताव की प्रति उपलब्ध नहीं है तथा पालिका आयुक्त अथवा उपायुक्त ने इस संबंध में कोई आदेश जारी नहीं किया है । कुंडों में विसर्जित मूर्तियों की मिट्टी कहां डाली गई है, इस बात की भी जानकारी हमारे पास नहीं है ।

उ. पुणे, कोल्हापुर के कृत्रिम कुंडों में विसर्जित मूर्तियों को निकाल कर, कूडे की गाडियों में भरकर खानों में अथवा अज्ञात स्थानों पर फेंक दिया गया ।

 

४. इस विषय में समाज का प्रबोधन आवश्यक !

इसका स्पष्ट अर्थ यही है कि हिन्दुआें की भावना कुचलना, इन स्वयंघोषित समाजसुधारकों का षड्यंत्र है । इसे विफल करने के लिए लोगों के सामने वास्तविकता लानी चाहिए । इसके लिए प्रत्येक हिन्दू को अपने कर्तव्य के रूप में प्रयास करने चाहिए । विविध गणेशमंडलों में जाकर, कार्यकर्ताआें और आसपास के लोगों को मूर्तिविसर्जन तथा उससे संबंधित धर्मद्रोहियों के षड्यंत्रों की जानकारी देनी चाहिए । उन्हें यह भी बताना चाहिए कि आपके मंडल की मूर्ति बडी होने से, इसका उचित ढंग से विसर्जन समुद्र में ही हो पाएगा । इससे संबंधित फलक मंदिरों में, गणेशोत्सव के मंडपों में तथा अन्य सार्वजनिक स्थानों पर लगाकर भी समाजप्रबोधन करना चाहिए और स्वयंघोषित सुधारकों ने आजतक हिन्दुआें को किस प्रकार फंसाया है, यह उन्हें बताना चाहिए । भित्तिपत्र, हस्तपत्र, वॉटस् एप, फेसबुक के माध्यम से भी जनप्रबोधन करना चाहिए ।

– अधिवक्ता वीरेंद्र इचलकरंजीकर, राष्ट्रीय अध्यक्ष, हिन्दू विधिज्ञ परिषद

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