सारणी
१. कपडे धोने और धुले हुए वस्त्र परिधान करनेका महत्त्व
१ अ. धुले हुए कपडे सात्त्विक होनेसे उन्हें परिधान करनेपर व्यक्तिका रज-तम कम होकर सात्त्विकता बढना
१ आ. अनिष्ट शक्तियोंसे तीव्र पीडित व्यक्तियोंकी गंदे, काले और मैले कपडे पहननेमें रुचि
२. कपडे धोनेकी उचित कृति : हाथसे कपडे धोते समय झुककर धोना
३. कपडे धोनेकी अनुचित कृति : उकडूं बैठकर कपडे धोना
४. नदीके तटपर कपडे धोनेका महत्त्व
५. धुलाईयंत्रमें कपडे धोनेपर, उनके रज-तमात्मक बननेसे होनेवाले परिणाम
८. सात्त्विक वस्त्र परिधान करनेसे देहके चारों ओर सुरक्षाकवच निर्माण होना
१. कपडे धोने और धुले हुए वस्त्र परिधान करनेका महत्त्व
१ अ. धुले हुए कपडे सात्त्विक होनेसे उन्हें परिधान
करनेपर व्यक्तिका रज-तम कम होकर सात्त्विकता बढना
कपडे परिधान करनेपर उसके धागेमें व्यक्तिके देहकी रज-तम तरंगें आकृष्ट होती हैं । अस्वच्छ कपडे पहननेपर उनमें आकृष्ट रज-तम तरंगोंके कारण व्यक्तिका रज-तम बढता है । उसके आस-पासका वायुमंडल दूषित होता है तथा उसके कपडोंपर अनिष्ट शक्तियोंके आक्रमणकी आशंका अधिक होती है । कपडे धोनेसे जलके आपतत्त्वयुक्त ईश्वरीय चैतन्यके कारण कपडोंपर आध्यात्मिक उपाय होते हैं तथा उनके रज-तम कण नष्ट होकर सात्त्विकता बढती है । धुले हुए कपडे सात्त्विक होते हैं, इसलिए उन्हें परिधान करनेसे व्यक्तिमें रज-तम कम होकर उसकी सात्त्विकता बढनेमें सहायता होती है ।
१ आ. अनिष्ट शक्तियोंसे तीव्र पीडित व्यक्तियोंकी गंदे, काले और मैले कपडे पहननेमें रुचि
अनिष्ट शक्तियोंके तीव्र कष्टसे पीडित कुछ व्यक्तियोंको धुले हुए कपडे पहननेमें रुचि नहीं रहती । उन्हें गंदे और मैले कपडे पहनना अच्छा लगता है । ऐसेमें उन्हें कष्ट देनेवाले बलवान अनिष्ट शक्तियोंको अपनी काली शक्ति बढानेके लिए पोषक वातावरण मिलता है; इसलिए अनिष्ट शक्ति ही उन व्यक्तियोंके मनमें ऐसे गंदे और मैले कपडे पहननेके विचार डालते हैं ।
१ इ. कपडे धोए बिना उनपर इत्रका फुवारा मारनेपर कपडोंमें
रज-तम नष्ट न होना, जिससे अनिष्ट शक्तियोंका आक्रमण कर पाना
हिंदु धर्ममें धुले हुए वस्त्र परिधान करनेका विधान है । कुछ पंथोंमें लोग प्रतिदिन स्नान भी नहीं करते, तो कपडे धोना तो दूरकी बात है । कुछ लोग कपडे धोए बिना अनेक दिन उनका उपयोग करते हैं । कुछ लोग उनपर इत्रका फुवारा (Perfume) मारकर बार-बार पहनते हैं । फुवारा मारनेसे कपडे स्थूलरूपसे सुगंधित होनेपर भी सूक्ष्मसे उन कपडोंमें विद्यमान रज-तम नष्ट नहीं होता । इसलिए ऐसे कपडे परिधान करनेवाले व्यक्तिमें रज-तम बढता है और उसपर अनिष्ट शक्तियोंके आक्रमण भी बढते हैं ।’ – ईश्वर (कु. मधुरा भोसलेके माध्यमसे, १२.११.२००७, दोपहर १.३०)
२. कपडे धोनेकी उचित कृति : हाथसे कपडे धोते समय झुककर धोना
‘झुककर कपडे धोनेसे नाभिचक्र निरंतर जागृत स्थितिमें रहता है । वह देहकी पंचप्राणात्मक वायु-वहनको पोषित करता है । इस मुद्राके कारण तेजदायी उत्सर्जन हेतु पूरक सूर्य नाडी भी निरंतर जागृत अवस्थामें रहती है । इससे इस नाडीकी विशिष्ट कृतिमें कार्यकारी सहभागसे, कपडे धोते समय उनमें हस्तस्पर्शसे तेजदायी तरंगोंका संक्रमण होता है । यह तेजदायी तत्त्व अल्पावधिमें जलके आपतत्त्वकी सहायतासे कपडोंमें प्रवाहित होने लगता है । यह प्रक्रिया कपडोंमें सूक्ष्म-स्तरपर विद्यमान रज-तमात्मक मलिनताके उच्चाटन अथवा विघटन हेतु सहायक है तथा यथार्थ रूपसे कपडे सूक्ष्म-स्तरपर स्वच्छ, अर्थात् पवित्र होते हैं ।’ – सूक्ष्म-जगतके एक विद्वान (श्रीमती अंजली गाडगीळके माध्यमसे, २९.१०.२००७, दिन ९.४६)
३. कपडे धोनेकी अनुचित कृति : उकडूं बैठकर कपडे धोना
स्त्रियां : ‘स्त्रियां दोनों घुटने पेटसे सटाकर अर्थात् उकडूं बैठकर कभी भी कपडे न धोएं; क्योंकि इससे देहमें योनिमार्गकी रिक्तिका सीधा संबंध भूमिसे सटे रज-तमात्मक वायुमंडलसे होता है तथा पातालसे उत्सर्जित रज-तमात्मक तरंगें इस योनिमार्गकी रिक्तिसे तीव्र गतिसे देहमें संक्रमित होती हैं । इससे जीवको कष्ट हो सकता है ।
पुरुष : पुरुषोंके संदर्भमें भी इस मुद्रासे देहके अधोगामी मार्गका, भूमिके निकटके पट्टेमें घूमनेवाले कष्टदायक स्पंदनोंसे सीधा संपर्क होता है । इससे कष्टकी आशंका अधिक होती है ।
४. नदीके तटपर कपडे धोनेका महत्त्व
पूर्वकालमें नदीके तटपर नदीके प्रवाहकी सहायतासे कपडे धोए जाते थे । जलके प्रवाहात्मक शुद्ध स्पर्शसे कपडोंके रज-तमात्मक स्पंदनोंमें विद्यमान पापका भी परिमार्जन जलमें होता था । अर्थात् यह कृति कपडोंमें विद्यमान रज-तमात्मक सूक्ष्म परिणामको भी नष्ट करती थी । इसीलिए उस समय ब्रह्मकर्ममें धुले हुए वस्त्रको अत्यधिक महत्त्व दिया जाता था ।
५. धुलाईयंत्रमें कपडे धोनेपर, उनके रज-तमात्मक बननेसे होनेवाले परिणाम
आजकल समयके अभाववश तथा कपडे धोनेके कष्टसे बचनेके लिए अनेक लोग कपडे धोनेके लिए धुलाईयंत्रका उपयोग करते हैं । धुलाईयंत्रमें कपडे धोनेसे कपडोंमें निर्माण होनेवाले यांत्रिक और वेगवान रज-तमात्मक विद्युत स्पंदनोंसे कपडोंमें घनीभूत रज-तमात्मक तरंगें जागृतावस्थामें आती हैं तथा जलके स्पर्शसे आपतत्त्वात्मक तरंगोंके बलपर प्रवाहके रूपमें तीव्र गतिसे कार्य करने लगती हैं ।
परिणामस्वरूप कपडोंके कष्टदायक स्पंदन वायुमंडलमें प्रक्षेपित होने लगते हैं ।बाह्यतः यद्यपि ऐसा लगता है कि, ‘धुलाईयंत्रसे कपडे धुल गए हैं’, तथापि वे सूक्ष्म-स्तरपर रज-तमात्मक स्पंदनोंसे अधिक आवेशित हो जाते हैं । परिणामस्वरूप ऐसे रज-तमात्मक स्पंदनोंसे आवेशित कपडे पहननेसे अनिष्ट शक्तियोंद्वारा कष्ट होनेकी आशंका बढ जाती है ।
रज-तमात्मक परिणाम दूर करनेके उपाय
कपडे धोते समय धुलाईयंत्रमें उदबत्तीकी विभूति अथवा पवित्र यज्ञकी विभूति डालें और कपडोंमें विद्यमान रज-तमात्मकरूपी सूक्ष्म-मलिनता नष्ट होनेके लिए विभूतिके देवत्वसे प्रार्थना करें ।’
– सूक्ष्म-जगतके एक विद्वान (श्रीमती अंजली गाडगीळके माध्यमसे, २७.१०.२००७, रात्रि १०.२५)
(सन् २००४ में गोवाके फोंडा स्थित सनातनके आश्रममें कपडे धोनेके संदर्भमें विविध प्रयोग किए गए थे । उस समय अनुभव हुआ था कि, उपर्युक्त कृतिसे कपडे धोनेपर अधिक लाभ होता है । प्रत्येक बार ईश्वर पहले अनुभूति देते हैं और तदुपरांत ज्ञान देते हैं । इसका एक और उदाहरण है, २७.१०.२००७ को प्राप्त ज्ञान ।’ – डॉ. जयंत आठवले, संकलनकर्ता)
आधुनिकताकी ओर नहीं; वरन् विनाशकी ओर ले जानेवाला विज्ञान !
विश्वका शोध लगानेवाले ऋषि-मुनियोंकी, हाथसे कपडे धोनेकी पद्धतिको ‘जंगली(आदिम)’ कहकर तुच्छ माननेवाले और कपडे धोनेके यंत्रोंका आविष्कार कर मानवजातिको विनाशकी ओर ले जानेवाले आजकलके वैज्ञानिक आधुनिक नहीं, पिछडे हुए हैं !
‘मनुष्य अध्यात्मका जितना आधार लेगा, उतना वह सुखी रहेगा’, यह सभी ध्यान रखें ।’ – डॉ. जयंत आठवले, संकलनकर्ता (२८.१०.२००७)
६. लकडीकी काठीसे कपडे सुखाना
‘जहांतक संभव हो, स्नानघरसे नहाकर निकलते समय ही कपडे धोकर लाएं । कपडे धोनेके उपरांत उन्हें घरमें ऊंचाईपर लगाए गए (लकडीके) डंडेपर (लकडीकी) काठीसे सुखानेके लिए फैलाएं । ये डंडे स्वयंमें विद्यमान सूक्ष्म-अग्निकी सहायतासे सुखाने हेतु फैलाए गए कपडोंके चारों ओर सुरक्षाकवच निर्माण करते हैं । कपडे सुखाते समय ऊर्ध्व दिशामें लगाया गया डंडा स्वयंमेंसे वलयोंके रूपमें तेजदायी तरंगें प्रक्षेपित करता है । इस प्रकार यह गतिमान और अधिकाधिक प्रक्षेपणक्षमतायुक्त कवच ही कपडोंके लिए उपलब्ध किया जाता है; क्योंकि कपडे डंडेपर फैलाकर सुखानेके लिए डाले जाते हैं, जिसके कारण वे भी प्रक्षेपण अवस्थामें ही रहते हैं । काठीसे कपडे फैलानेसे धातुसदृश किसी भी वस्तुसे कपडोंका रज-तमात्मक संसर्ग रोका जाता है ।
७. सूखे हुए कपडे रखना
पूर्वकालमें कडक सूखे हुए कपडे सायंकालके पूर्व ही उचित पद्धतिसे समेटकर दीवारपर लगाई गई लकडीकी खूंटीपर टांग दिए जाते थे । वहां कपडोंके मध्यभागमें निर्माण हुए गोलाकारसे भूमिके समांतर लकडीकी खूंटी बाहर निकली हुई दिखाई देती थी । इस खूंटीके केंद्रबिंदुसे तेजदायी तरंगोंका तीव्र गतिसे प्रक्षेपण होता है ।
इसलिए घनीभूत अवस्थामें कपडोंके चुन्नटोंकी तरंगें प्रक्षेपण अवस्थामें आती थीं । काष्ठसे चुन्नटोंमें संक्रमित अग्निरूपी तेजतरंगें घनीभूत होकर सगुण रूप धारण कर भूमिकी दिशामें अपनी नोंकसे पातालसे प्रक्षेपित कष्टदायक स्पंदनोंसे लडती थीं ।
अर्थात् यह स्पष्ट होता है कि, वास्तुमें अन्य पूरक वस्तुओंकी रचना कृतिके अनुरूप कर उन विशिष्ट घटकोंके कार्यके लिए कवचात्मक पूरक और पोषक वातावरण निर्माण किया जाता है ।
इस पद्धतिसे निरंतर भूमिसे दूर और ऊर्ध्व वायुमंडलके संपर्कमें लकडीकी अग्निकी सहायतासे कपडे फैलानेसे वे निरंतर शुद्ध रहकर अनिष्ट शक्तियोंके कष्टसे भी मुक्त रहते थे ।’
– सूक्ष्म-जगतके एक विद्वान (श्रीमती अंजली गाडगीळके माध्यमसे, २९.१०.२००७, दिन ९.४६)
८. सात्त्विक वस्त्र परिधान करनेसे देहके चारों ओर सुरक्षाकवच निर्माण होना
‘वस्त्र परिधान करना एक सुरक्षात्मक आचार है । वस्त्रोंके सात्त्विक रंगोंके माध्यमद्वारा तथा उन्हें परिधान करनेकी आकारधारणाद्वारा वायुमंडलकी रज-तमात्मक तरंगोंके संक्रमणसे जीवकी रक्षा होती है । अतः स्नानके उपरांत देह शुद्ध होनेपर धुले हुए वस्त्र परिधान कर देहपर सुरक्षाकवच चढाया जाता है । इसीलिए सात्त्विक वस्त्रोंको अधिक महत्त्व प्रदान किया गया है ।’
– सूक्ष्म-जगतके एक विद्वान (श्रीमती अंजली गाडगीळके माध्यमसे, ११.१२.२००७ दोपहर १.४३)