शीघ्र स्वास्थ्य लाभ हो; इसलिए ज्योतिषशास्त्रानुसार व्याधि से ग्रस्त व्यक्ति को धन्वंतरी देवता को प्रार्थना करके औषधि लेनी चाहिए । औषधि सेवन का आरंभ करते समय यथासंभव आवश्यक नक्षत्र, तिथि और वार का पालन करें । यदि ऐसा करना संभव न हो, तो धन्वंतरी देवता का प्रसाद समझकर औषधि ग्रहण करें । औषधि ग्रहण करते समय ईश्वर पर पूर्ण श्रद्धा होनी चाहिए । रोगी (बीमार व्यक्ति) जिसके माध्यम से उपचार करवाता है; उस व्यक्ति का, उदा. वैद्य, परिचारिका (नर्स), साथ में रहनेवाले व्यक्ति इत्यादि के ग्रह पूरक होने पर, रोगी शीघ्र ठीक हो सकता है । यदि रोगी की किसी डॉक्टर पर श्रद्धा होने पर भी अनेक बार उस व्यक्ति की बीमारी में विशेष अंतर नहीं पडता; क्योंकि उनके ग्रह आपस में मेल नहीं खाते हैं । इसके विपरीत अन्य रोगियों को तुरंत आराम मिलता है । इसलिए रोगी को औषधि का सेवन करते समय किन बातों का ध्यान रखना चाहिए और रोगी की सेवा में लगे व्यक्ति के ग्रह कैसे होने चाहिए ? इस विषय में संक्षेप में जानकारी आगे दे रहे हैं ।
१. औषधि सेवन करने का मुहूर्त
१ अ. औषधि सेवन करने के आरंभ में कौन-से नक्षत्र होने चाहिए ?
औषधि सेवन करते समय और श्री गुरु की सेवा करते समय आरंभ में अश्विनी, मृग, पुष्य, हस्त, चित्रा, अनुराधा और रेवती, ये नक्षत्र होने चाहिए । औषधि सेवन में जन्मनक्षत्र सर्वथा वर्जित करें ।
१ आ. सेवा के आरंभ में कौन-सा वार होना चाहिए ?
सेवा का आरंभ करते समय और औषधि देते समय रविवार, बुधवार, गुरूवार, शुक्रवार होना चाहिए । इनमें से रविवार बहुत ही शुभ माना जाता है, क्योंकि रवि ग्रह तेजतत्त्व का कारक है । किसी भी प्रकार की औषधि रविवार को लेना आरंभ करने पर रोग प्रतिकारक शक्ति बढती है ।
१इ. औषधि लेना आरंभ करते समय कौन-सी तिथि होनी चाहिए ?
औषधि लेते समय शुभ तिथि होनी चाहिए । क्षयतिथि, अमावस्या और पूर्णिमा, ये तिथियां नहीं होनी चाहिए ।
२. रोगी और उसकी सेवा करनेवाले की
कुंडली में क्या होना चाहिए और क्या नहीं होना चाहिए ?
२ अ. सेवक की कुंडली में अशुभ ग्रह न हों !
सेवक की कुंडली में रवि, चंद्र, बुध और गुरु, ये शुभ ग्रह होने चाहिए । सेवक की कुंडली में अशुभ ग्रह अथवा नीच राशि में होने से रोगी के कष्ट बढने की संभावना अधिक होती है अथवा रोगी को देर से आराम मिलता है; क्योंकि सेवक की कुंडली के ग्रह अशुभ होने से उसका रोगी पर विपरीत परिणाम होता पाया जाता है । (परात्पर गुरू डॉ. आठवले की सेवा में रहने वाले साधकों की कुंडलियां देखकर सेवा देने पर उनके उपचारों को अनुकूलता प्राप्त होगी ।)
२ आ. ग्रह, ग्रहों की नीच राशि और राशि का अनुक्रमांक
ग्रह | ग्रह की नीच राशि | राशि का अनुक्रमांक |
---|---|---|
१ . रवि | तुला | ७ |
२. चंद्र | वृश्चिक | ८ |
३. मंगल | कर्क | ४ |
४. बुध | मीन | १२ |
५. गुरू | मकर | १० |
६. शुक्र | कन्या | ६ |
७. शनि | मेष | १ |
८. राहु | धनु | ९ |
९. केतु | मिथुन | ३ |
२ इ. रोगी और सेवक में ग्रहमित्रता होनी चाहिए !
ग्रहमित्रता अर्थात दो व्यक्तियों की राशि के स्वामी, मित्र ग्रह होने चाहिए । उदा. रोगी की राशि मकर होने पर उसका राशि स्वामी शनि ग्रह है । शनि ग्रह के मित्र ग्रह, बुध और शुक्र हैं । इसका अर्थ मकर राशि के व्यक्ति की बुध ग्रह से संबंधित (मिथुन और कन्या) राशि और शुक्र ग्रह से संबंधित (वृषभ और तुला) राशियों के व्यक्तियों से ग्रह मित्रता है, इसलिए इस राशि के व्यक्तियों की सेवा अधिक फलदायी होती है, ऐसा अनुभव है । आगे की सारणी में ग्रह, ग्रहानुसार उनकी राशि और ग्रहानुसार ग्रह मित्र दिए हैं ।
ग्रह | ग्रहों की स्वामी राशि | मित्र ग्रह |
---|---|---|
रवि | सिंह | चंद्र, मंगल, गुरू |
चंद्र | कर्क | रवि, बुध |
मंगल | मेष और वृश्चिक | रवि, गुरू, चंद्र |
बुध | मिथुन और कन्या | रवि, शुक्र |
गुरू | धनु और मीन | रवि, चंद्र, मंगल |
शुक्र | वृषभ और तुला | बुध, शनी |
शनि | मकर और कुम्भ | बुध, शुक्र |
२ ई. रोगी के नक्षत्र से सेवक के नक्षत्र दोयम (दूसरी श्रेणी का) नहीं होने चाहिए !
जिसकी सेवा करनी है उसके नक्षत्र से, सेवा करनेवाले के नक्षत्र दोयम होने पर सेवा व्यर्थ जाती है । (परात्पर गुरू डॉक्टरजी के नक्षत्र उत्तराषाढा’ होने से उनके नक्षत्र से दूसरी श्रेणी का नक्षत्र अर्थात ‘श्रवण’ नक्षत्र होने वाले साधकों को उनकी सेवा नहीं करनी चाहिए ।
– श्रीमती प्राजक्ता जोशी (ज्योतिष फलित विशारद), महर्षि अध्यात्म विश्वविद्यालय, ज्योतिष विभाग, सनातन आश्रम, रामनाथी, गोवा.
ज्योतिषशास्त्र मेें प्रत्येक बात का कितनी गहराई तक विचार किया है, ये ध्यान में आने पर आश्चर्य होता है । ‘मैं सब जानता हूं’, ऐसा अहं रखनेवाले और कुछ सीखने की ईच्छा न रखनेवाले बुद्धिवादियों को ज्योतिषशास्त्र पाखंड लगता है !’ – (परात्पर गुरू) डॉ आठवले