‘एक शहर में पहले सनातन के मार्गदर्शनानुसार साधना करनेवाले; किन्तु वर्तमान में विकल्प के कारण सनातन से दूर गए कुछ लोग सनातन संस्था, सनातन की सीख तथा उत्तरदायी साधकों के संदर्भ में विकल्प फैला रहे हैं । ये लोग सनातन के साधकों की ओर जाते हैं, उनसे मिठी बातें कर सनातन की कार्यपद्धति, सनातन में बताई जानेवाली साधना, साधकों की सत्सेवा के संदर्भ में साधकों के मन में विकल्प निर्माण होगा, ऐसा वक्तव्य करते हैं । वर्तमान में विकल्प में गए लोग अन्य किसी संप्रदाय का प्रसार कर रहे हैं ।
१. सनातन के संदर्भ में विकल्प फैलानेवाले कुछ सूत्रं इस प्रकार हैं …
अ. सनातन एक नाला है, तो हमारा संप्रदाय अथांग सागर है ।
आ. यहां कोई अढावा देने की आवश्यकता नहीं है, या सारणी लिखने की आवश्यकता नहीं । केवल ५ आज्ञाओं का पालन करना हैं ।
इ. सनातन की सडक कच्ची है, तो हमारा संप्रदाय अतिशीघ्र महामार्ग है ।
ई. हमारे संप्रदाय में कुछ भी झंझट नहीं हैं । (यहां ‘राष्ट्ररक्षा एवं धर्मजागृति’ का कार्य करने को ‘झंझट’ इस शब्द का प्रयोग किया गया है ।) केवल मोक्षप्राप्ती यह ध्येय है । (इस से यह बात ध्यान में आती है कि, कालानुसार आज राष्ट्ररक्षा तथा धर्मजागृति करने की अत्यंत आवश्यकता है; अपितु वह स्वयं न करनेवाले तथा वह करनेवालों का खस्सीकरण करनेवाले किस पात्रता के हैं ! – संपादक, दैनिक सनातन प्रभात )
उ. यहां विज्ञापन इकट्ठा करने की आवश्यकता नहीं है, अर्पण मांगते हुए घूमने की आवश्यकता नहीं है, सारणी (अहवाल) पूर्ण करने की आवश्यकता नहीं है, आढावा देने की आवश्यकता नहीं है, केवल कुछ समय के लिए साधना करने की आवश्यकता है । (अध्यात्म में प्रगति करने के लिए अहं निर्मूलन होेना आवश्यक बात है । ये सेवा अर्थात् अहं निर्मूलन करने के माध्यम हैं । सनातन के टिपण्णीकार यदि यह बात ध्यान में रखकर साधना करते, तो उनकी भी शीघ्र प्रगति होती, साधना होती ! – संपादक, दैनिक सनातन प्रभात)
२. राष्ट्ररक्षा एवं धर्मजागृति हेतु दिनरात प्रयास करनेवाली
सनातन संस्था के संदर्भ में विकल्प फैलाना, यह महापाप ही है !
सनातन संस्था में गुरुकृपायोगानुसार साधना बताई जाती है । व्यष्टि तथा समष्टि साधना करने से साधकों की शीघ्र आध्यात्मिक उन्नति हो रही है । सनातन के मार्गदर्शन में साधना कर अभीतक ११२१ साधकों ने ६१ प्रतिशत तथा उससे भी अधिक आध्यात्मिक स्तर प्राप्त किया है । ७७ साधक संतपद पर विराजमान हुए हैं । सनातन द्वारा किए गए मार्गदर्शन के अनुसार साधना करने से सेकडों साधकों को अनुभूतिया आई हैं तथा उनका जीवन आनंदी हुआ है । ‘सनातन में रह कर साधना करते समय स्वयं की प्रगति क्यों नहीं हुई ?’, इसका चिंतन करने की अपेक्षा सनातन को ‘नाला’, ‘कच्ची सडक’ के समान उपमा देकर उसकी उपेक्षा करना, यह तीव्र बहिर्मुखता का लक्षण है ।
३. यदि इस प्रकार का विकल्प कोई फैला रहा है, तो त्वरित उत्तरदायी साधकों को सूचित करें !
किस व्यक्ति ने किस संप्रदाय नुसार साधना करना अथवा उस संप्रदाय का प्रसार करना, इस संदर्भ में सनातन को कुछ भी आपत्ति नहीं है; किन्तु उस संप्रदाय के सहारे राष्ट्ररक्षा एवं धर्मजागृति हेतु दिनरात प्रयास करनेवाली सनातन संस्था के प्रति विकल्प फैलाना, यह महापाप ही है । इस प्रकार का विकल्प फैलानेवाले लोगों से साधक सावध रहें । यदि यह बात ध्यान में आई कि, इस प्रकार का विकल्प कोई फैला रहा है, तो त्वरित उत्तरदायी साधकों को सूचित करें ।’