हनुमानजी का एकमुखी, पंचमुखी तथा एकादशमुखी स्वरूप विश्वविख्यात है ।
बुद्धिर्बलं यशो धैर्यं निर्भयत्वमरोगता ।
अजाड्यं वाक्पटुत्वं च हनुमत्स्मरणाद्भवेत् ॥ – पराशरसंहिता, पटल ७६, श्लोक १५
अर्थ : हनुमानजी की आराधना करने से बुद्धि, बल, धैर्य, कीर्ति, निर्भयता, स्वास्थ्य, चपलता तथा वाक्शक्ति इत्यादि गुण प्रसाद के रूप में उपासक को प्राप्त होते हैं ।
१. पंचमुखी हनुमानजी का ध्यान
पंचमुखी हनुमत्कवच स्तोत्र में हनुमानजी का ध्यान निम्न प्रकार से बताया गया है ।
अर्थ : विराट स्वरूपवाले हनुमानजी ५ मुख, १५ नेत्र और १० भुजाओं से सुशोभित हैं तथा वे सभी प्रकार की अभीष्ट सिद्धि प्रदान करनेवाले हैं ।
२. शिवजी के पंचमुख तथा शिवावतार पंचमुखी हनुमानजी
शिवजी के तत्पुरुष, सद्योजात, वामदेव, अघोर तथा ईशान इन नामों से विख्यात ५ मुख हैं । ये मुख क्रमशः पूर्व, पश्चिम, उत्तर, दक्षिण तथा ऊर्ध्व दिशाओं में स्थानापन्न हैं । पंचमुखी शिवजी के अवतार हनुमानजी भी पंचमुखी हैं ।
३. पंचमुखी हनुमान
३ अ. हनुमानजी के पंचमुख
क्रम | मुख | दिशा | विशेषता | मुख का इतिहास |
१. प्रथम | वानर | पूर्व | कोटि सूर्यों के समान तेजस्वी है । दाढ विक्राल और भौंहें ऊंची हैं । | – |
२. द्वितीय | नृसिंह | दक्षिण | महान, अद्भुत एवं अत्यंत उग्र तेज से युक्त एवं भयानक (शरणागतों के लिए भयनाशक) | भगवान नृसिंहभक्तराज प्रल्हाद की रक्षा के लिए खंभे से प्रकट हुए थे और उन्होंने हिरण्यकश्यपू का वध किया था । |
३. तृतीय | गरुड | पश्चिम | झुकी हुई तीक्ष्ण चोंच युक्त, सभी नागों को पराजित करनेवाले तथा विष एवं भूत-प्रेत का उच्चाटन करनेवाले | गरुड भगवान श्रीविष्णु का वाहन है । उसके दोनों पंख ‘बृहद’ और ‘रथन्तर’ साम के रूप में हैं । |
४. चतुर्थ | वराह | उत्तर | आकाश के समान नीला और दीप्तिमान तथा पाताल के जीव, सिंह बेताल एवं ज्वर जैसे रोगों का निवारण करनेवाले | पाताल में डूब चुकी पृथ्वी का उद्धार करने हेतु भगवान वराह प्रकट हुए थे । |
५. पंचम | हयग्रीव | ऊर्ध्व | अत्यंत भयानक एवं राक्षसों का संहार करनेवाले | ब्रह्मदेव की प्रार्थना सुनकर वेदों का उद्धार करने हेतु भगवान हयग्रीव प्रकट हुए थे । उनका मुख और गर्दन घोडे की भांति थे । उन्होंने वेदों का उद्धार किया । देवी भागवत के अनुसार हयग्रीव दैत्य ने ‘हयग्रीव रूपवाले के हाथों ही मेरी मृत्यु हो’, ऐसा वरदान प्राप्त किया था । इसलिए भगवान ने हयग्रीव रूप धारण किया । |
३ आ. १० आयुध
खड्गं त्रिशूलं खट्वाङ्गं पाशमङ्कुशपर्वतम् ।
मुष्टिं कौमोदकीं वृक्षं धारयन्तं कमण्डलुम् ॥
भिन्दिपालं ज्ञानमुद्रां दशभिर्मुनिपुङ्गवम् ।
एतान्यायुधजालानि धारयन्तं भजाम्यहम् ॥ – पंचमुखहनुमत्कवच स्तोत्र, श्लोक ९ आणि १०
अर्थ : ९ हाथों में खड्ग, त्रिशुल, खट्वांग (पलंग के पैर के आकारवाला शस्त्र), ५ अंकुश-पर्वत (ये तीनों शस्त्र एक ही हाथ में), मुष्टि (मुट्ठी के आकारवाला शस्त्र), गदा, वृक्ष, कमंडलु तथा भिंदिपाल (फेंककर मारनेयोग्य लोहे का शस्त्र) धारण करनेवाले तथा १०वें हाथ में ज्ञानमुद्रा युक्त हनुमानजी का मैं भजन करता हूं ।
श्री हनुमानजी के एक श्लोक में उन्हें वामहस्तगदायुक्तम् अर्थात अपने बाएं हाथ में सदैव गदा धारण करनेवाला कहा गया है ।
३ इ. हनुमानजी तथा गरुड में अद्भुत समानता !
जिस प्रकार से वैकुंठ में भगवान विष्णुजी की सेवा करने में गरुड व्यस्त रहता है, उसी प्रकार से हनुमानजी सदैव श्रीरामजी की सेवा में व्यस्त रहते हैं । गरुड ने अपनी माता को दासता से छुडाने के लिए, स्वर्ग से अमृत लाकर दिया था । उसी प्रकार से हनुमानजी मूर्च्छित लक्ष्मण के लिए संजीवनी वनस्पति लेकर आए । जिस प्रकार से गरुड की पीठ पर श्रीविष्णु आरूढ होते हैं, उसी प्रकार से राम-लक्ष्मण हनुमानजी के पीठ पर बैठे हुए होते हैं । अहिरावण द्वारा राम-लक्ष्मण का अपहरण होनेपर हनुमानजी उनको छुडाकर अपने कंधे पर बिठाकर लौट आए । गरुड की भांति हनुमानजी भी अमर हैं ।
३ ई. ५ अवतारों की प्रचंड शक्ति से संपन्न तथा महान कार्यसिद्धिप्रवण पंचमुखी हनुमान !
हनुमानजी भगवान शिवजी के अवतार हैं । गरुड भी अवतार हैं । वराह, नृसिंह तथा हयग्रीव भी अवतार ही हैं । इस प्रकार से पंचमुख श्री हनुमान में ५ अवतारों की शक्ति समान रूप से एकजुट हुई है । उससे प्रचंड शक्तिसंपन्न हनुमानजी किसी भी कार्य को सहजता के साथ पूरा करने में सक्षम हैं ।
३ उ. पंचमुखी हनुमानजी के जन्म का इतिहास
एक बार ५ मुखवाला एक भयानक राक्षस प्रकट हुआ । उसने कठोर तपश्चर्या कर ब्रह्माजी से यह वरदान प्राप्त किया कि, उसके जैसा रूपवाला ही उसका वध कर सकेगा । वरदान प्राप्त होते ही, वह राक्षस उन्मत्त होकर सभी को भयंकर कष्ट पहुंचाने लगा । तब सभी देवताओं ने भगवान से उसके कष्टों से छुडाने की प्रार्थना की । ईश्वर की आज्ञा के अनुरूप मंगलवार, मार्गशीर्ष कृष्ण अष्टमी को पुष्य नक्षत्र में सिंह लग्न के समय हनुमानजी ने पंचमुखी अवतार धारण किया । तब उनके वानर, नृसिंह, गरुड, अश्व तथा वराह ये ५ सुंदर रूप थे । पंचमुखी हनुमानजी उस राक्षस के पास गए और उन्होंने उसका वध किया ।
३ ऊ. हनुमानजी द्वारा पंचमुख तथा त्रिनेत्र धारण करने का आध्यात्मिक भावार्थ
हनुमानजी के पंचमुख अविद्या के ५ विकारों को पराजित करनेवाले तथा संसार की काम, क्रोध तथा लोभ इन ३ वृत्तियों से छुडानेवाले हैं । प्रत्येक मुख से जुडे ३ सुंदर नेत्र आध्यात्मिक, आधिदैविक तथा आधिभौतिक इन त्रिविध तापों से छुडानेवाला है ।
संदर्भ : मासिक कल्याण, फरवरी २००७
छत्रपति शिवाजी महाराज, संत तुकाराम तथा स्वामी
विवेकानंद के आदर्श श्रेष्ठवीर तथा स्वामी-सेवा तत्पर हनुमानजी !
१. शिवाजी महाराज के किलों और दुर्गों के महाद्वार
पर हाथ में गदा लिए खडे महाबली हनुमानजी की मूर्ति का होना
छत्रपति शिवाजी महाराज द्वारा राज्य की रक्षा के लिए निर्मित किलों तथा दुर्गों के महाद्वार के पास महाबली हनुमानजी हाथ में गदा लिए खडे दिखाई देते हैं । कर्तव्यपरायण, राजनिष्ठ, स्वामी-सेवातत्पर तथा सफल रामदूत युद्धप्रिय तथा सैनिकी आवेशवाले वीर हनुमान मराठों को वंदनीय तथा प्रिय लगते हैं ।
२. संत तुकाराम महाराज द्वारा हनुमानजी से ‘आप हमें भक्ति के मार्ग दिखाईए’, ऐसा अनुरोध किया जाना
संतश्रेष्ठ तुकाराम महाराज अपनी एक रचना में हनुमानजी से निवेदन करते हुए कहते हैं –
‘शरण शरण जी हनुमंता ।
तुज आलों रामदूता ।
काय भक्तीच्या त्या वाटा ।
मज दावाव्या सुभटा ।। (तुकाराम गाथा, अभंग ३२८३, ओवी १, २)
भावार्थ : ‘हे हनुमानजी, आप श्रीराम के सेवक हैं; इसलिए मैं आपकी शरण में आया हूं । हे श्रेष्ठवीर, आप मुझे भक्ति के मार्ग कौन से हैं, वो दिखाइए । साथ ही उन्होंने हनुमानजी का उल्लेख ‘एक अच्छे योद्धा’ के रूप में किया है ।
३. स्वामी विवेकानंद
स्वामी विवेकानंद अपने शिष्यों को हनुमानजी का जीवनचरित्र कथन कर उन्हें प्रोत्साहित करते थे ।’
– डॉ. (श्रीमती) सुमेधा प्रभाकर मराठे (मासिक ‘हितगुज, अंक ८९, मार्च २०१२)