श्रद्धालुओ, स्वयं में भाववृद्धि के लिए तथा बुद्धिजीवियो, स्वयं से किए
गए धर्मद्रोह के पापक्षालन के लिए हनुमानजी द्वारा दिखाए गए शौर्य का स्मरण करें !
‘जो बुद्धिजीवी हनुमानजी को केवल एक वानर मानकर उनकी आलोचना करते हैं, वे निम्न अनुभूति पर अवश्य चिंतन करें तथा अपने मन से यह प्रश्न पूछें कि जो हनुमानजी के लिए संभव था, क्या वह पृथ्वी तल पर किसी भी मनुष्य के लिए संभव होगा ? बुद्धिजीवियो, आपके सामने केवल २ ही विकल्प हैं, एक तो आप हनुमानजी की भांति न्यूनतम एक पराक्रम करने के लिए सिद्ध हो जाएं अथवा हनुमानजी के निम्न अतुलनीय पराक्रमों को स्वीकार कर अपनी हार स्वीकार करें !
१. आकाश में उडना
जन्म के पश्चात ही उदित होते सूर्य को फल समझकर हनुमानजी आकाश में उडे थे ।
२. महिलाआें की रक्षा करना
२ अ. सुग्रीव की पत्नी रूमा की शीलरक्षा करना
राम-लक्ष्मण की सुग्रीव से भेंट कराने के लिए हनुमानजी इन दोनों को अपने कंधे पर बिठाकर पंपा सरोवर के परिसर से ऋष्यमुख पर्वत तक उडते हुए पर्वत की ओर ले गए । सुग्रीव की पत्नी रूमा जब बाली के नियंत्रण में थी, उस समय वह जब भी हनुमानजी का स्मरण करती, हनुमानजी प्रकट होकर उसकी शीलरक्षा करते थे ।
२ आ. सीता की खोज
हनुमानजी ने समुद्र को लांघकर लंका में प्रवेश किया तथा सीता को खोजकर उनतक श्रीरामजी का संदेश पहुंचाया ।
३. राम-लक्ष्मण की रक्षा करना तथा उनकी विविध प्रकार से सहायता करना
अ. इंद्रजीत ने जब राम-लक्ष्मण पर नागपाश डालकर उनको विष से मारने का प्रयास किया, तब हनुमानजी ने तत्परता से विष्णुलोक की ओर दौड लगाई और गरुड से सहायता लेकर राम-लक्ष्मण को नागपाश से छुडाया ।
आ. लक्ष्मणजी जब युद्ध में घायल हो गए थे, तब उसकी मृत्यु न हो, इसलिए हनुमानजी ने उत्तर दिशा में उडान भरकर वहां से संजीवनी वनस्पति से युक्त पूरा द्रोणागिरी पर्वत ही उठा लाए ।
इ. अहिरावण तथा महिरावण जब अपनी मायावी सिद्धियों द्वारा राम-लक्ष्मण को पाताल ले गए, तब हनुमानजी पाताल गए तथा अहिरावण तथा महिरावण से युद्ध कर, उनको नष्ट किया और राम-लक्ष्मण को सुरक्षित पृथ्वी पर ले आए ।
ई. हनुमानजी ने श्रीराम को अनेक अमूल्य सुझाव दिए जैसे विभीषण चाहे शत्रु का भाई हो, तब भी उसे मित्र के रूप में स्वीकार करें तथा सीता अग्नि से भी पवित्र है, इसलिए उन्हें ‘पत्नी के रूप में स्वीकार करें ।’
उ. श्रीरामजी के कहने पर आज्ञापालन के रूप में श्रीरामजी की अवतार-समाप्ति के पश्चात हनुमानजी ने लव-कुश को रामराज्य चलाने में सहायता की ।
४. हनुमानजी द्वारा किया गया आज्ञापालन
अ. ईश्वर की आज्ञा से हनुमानजी ने महाभारत के युद्ध के समय, अर्जुन के दैवी रथ पर आरूढ होकर धर्म की रक्षा की ।
आ. श्रीकृष्णजी की आज्ञापालन के रूप में हनुमानजी ने सेवाभाव से भीम, अर्जुन, बलराम, गरुड तथा सुदर्शनचक्र के गर्वहरण का महान कार्य किया था ।
५. नल-नील वानरों की सहायता
हनुमानजी ने सेतुनिर्माण के समय शिलाआें पर श्रीरामजी का नाम अंकित कर नल-नील की सहायता की ।
६. लंकादहन करना
हनुमानजी की पूंछ को आग लगने पर अग्नि की ज्वालाएं उनके शरीर को किसी भी प्रकार की हानि नहीं पहुंचा सकी, इसके विपरीत हनुमानजी ने लंकादहन किया ।
७. हनुमानजी के रूप
अ. सप्तचिरंजीव के रूप में हनुमानजी रक्षा तथा मार्गदर्शन का कार्य करते हैं तथा कलियुग में भी जहां-जहां श्रीराम का गुणगान गाया जाता है, वहां सूक्ष्म रूप में उपस्थित रहकर, रामभक्तों को आशीर्वाद देकर अभय प्रदान करते हैं ।
आ. हनुमानजी की श्रीरामजी के प्रति असीम दास्यभक्ति तथा शौर्य के कारण उनके दास हनुमान तथा वीर हनुमान ये २ रूप विख्यात हैं । आवश्यकता के अनुरूप हनुमानजी इन २ रूपों को धारण कर उचित कार्य करते हैं ।
इ. साधना करनेवाले किसी भी जीव को यह कभी नहीं भूलना चाहिए कि हनुमानजी के सूक्ष्म-रूप के कारण हमारे अंतःकरण में बसे अहंकाररूपी रावण की लंका का दहन करने पर हमारे हृदय में रामराज्य आरंभ होता है ।
– श्रीकृष्ण (कु. मधुरा भोसले के माध्यम से, चैत्र शुद्ध प्रतिपदा, कलियुग वर्ष ५११४ (२३.३.२०१२, रात ११.४०)