लोकतांत्रिक व्यवस्था में संतों को किसी भी प्रकार के वैधानिक अधिकार न होना ही लोकतंत्र के अधःपात का कारण ! – चेतन राजहंस, प्रवक्ता, सनातन संस्था

खड्डा (कुशीनगर) की संतबैठक के बातचीत करते हुए (१) श्री. चेतन राजहंस

खड्डा, कुशीनगर (उत्तर प्रदेश) : प्राचीन काल में भारत में राजा को राजगुुरु तथा विद्वत्सभा के माध्यम से संतपरंपरा द्वारा सदाचार तथा नैतिकता की शिक्षा दी जाती थी । इस परंपरा को धर्मनिष्ठ विद्वत्सभा की मान्यता थी । आज के लोकतंत्र में संतों को किसी भी प्रकार के वैधानिक अधिकार नहीं है । उसके कारण धर्म की शिक्षा न होनेवाला प्रशासन का कोई सामान्य अधिकारी भी शंकराचार्यजी को हाथ लगाने का साहस दिखाना है । धर्म की शिक्षा न होनेवाले प्रशासनिक अधिकारी देश के सदाचार तथा नैतिक व्यवस्था को ध्वस्त कर रहे हैं । इसके फलस्वरूप सर्वत्र भ्रष्टचार, अनैतिकता तथा स्वार्थपरायणता बढी है । इस स्थिति में परिवर्तन लाने के लिए धर्मशास्त्र के ज्ञान से संपन्न तथा आध्यात्मिक अधिकारवालें संतों को वैधानिक मान्यता देनेवाले हिन्दू राष्ट्र की स्थापना की जानी चाहिए । धर्मग्लानि को रोकने का यही एकमात्र उपाय है । सनातन संस्था के प्रवक्ता श्री. चेतन राजहंस से यहां आयोजित संतबैठक में ऐसा प्रतिपादित किया । महंत रामनयनदासजी महाराज के नेतृत्त्व में संत-महंतों का संगठन भक्ति आंदोलन की ओर से इस बैठक का आयोजन किया गया था । इस बैठक में सभी संतों ने हिन्दू राष्ट्र की स्थापना के लिए कार्य करने का संकल्प लिया । भागवतकथा, रामायणकथा आदि कार्यक्रमों में, साथ ही उन्होंने विविध संतबैठकों में हिन्दू राष्ट्र की स्थापना के विषय में जागृति करने हेतु हम सनातन संस्था तथा हिन्दू जनजागृति समिति को आमंत्रित करने का वचन दिया ।

स्रोत : दैनिक सनातन प्रभात

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