१. लडाई जीतना असंभव है, ऐसा लगने पर मुगलों द्वारा संधि
का प्रस्ताव रखना और संधि के लिए आए सिखों को कपट से बंदी बनाना
गुरु गोविंद सिंह ने बाबा बंदा बहादुरजी को सिखों का पहला सेनापति नियुक्त किया । उन्होंने भी, अपने गुरु की आज्ञापालन करते हुए धर्म और राष्ट्र की रक्षा हेतु ७२ युद्ध किए । अंतिम युद्ध गुरदास नंगल गडी में लगभग ९ महीने तक चला । जब मुसलमानों को बाबा बंदा बहादुरजी और उनकी सेना को हराना कठिन लगने लगा, तब उन्होंने संधि का प्रस्ताव रखा । संधि की बैठक के लिए जब दुर्ग के द्वार खोले गए, तब मुसलमानों ने अपनी कपटी वृत्ति के अनुसार उनपर आक्रमण कर दिया । उस समय वहां ७४० सिख सैनिक थे, तो मुसलमानों के सैनिक ३०,००० थे । इसलिए, मुगल सैनिकों ने सहजता से सिख सैनिकों को बंदी बना लिया और क्रूरतापूर्वक उनपर शस्त्रों से आक्रमण किया । पश्चात, अत्यंत निर्दयता से उन ७४० घायल सिख सैनिकों की यात्रा दिल्ली में निकाली और वहां के रेलस्थानक के सामने उनकी हत्या कर दी । वे वीरगति को प्राप्त हुए ।
२. अनेक लालच दिखाने पर भी सिख नेता बाबा बंदा बहादुरजी का
इस्लाम धर्म न स्वीकारना और मुगलों का उनके बच्चे को मार डालने की धमकी देना
पश्चात, मुगलों ने बाबा बंदा बहादुरजी को अनेक प्रकार के प्रलोभन दिखाए, जिससे वे सिख धर्म छोडकर इस्लाम धर्म अपनाएं । परंतु, बाबा बंदा बहादुरजी अपना धर्म छोडने के लिए तैयार नहीं हुए । तब, मुगल उनपर शारीरिक अत्याचार करने लगे । फिर भी, वे इस्लाम धर्म स्वीकारने के लिए तैयार नहीं हुए । तब मुगल सैनिकों ने उनके चार वर्ष के नन्हें से बेटे बाबा अजय सिंह को उनके सामने ला खडा किया और कहा, अब इस्लाम धर्म स्वीकार कर लो, नहीं तो हम तुम्हारे बेटे को मार डालेंगे ।
३. धर्म और राष्ट्र के लिए सर्वस्व समर्पित कर चुके गुरु के
शिष्य बाबा बंदा बहादुरजी का मुगलों की धमकियों से न डरना !
बाबा बंदा बहादुरजी ने पहले अपने बेटे अजयसिंह की ओर देखा, पश्चात सदैव की भांति आंखें मूंदकर अपने गुरु गोविंद सिंह का ध्यान किया । उस समय उन्हें उस घटना का स्मरण हुआ, जिसमें गुरु गोविंद सिंह के पुत्र धर्म की रक्षा हेतु बलिदान हुए थे । पश्चात, आंखें खोलकर मुस्कराते हुए वे जल्लाद से बोले, जिन्होंने धर्म और राष्ट्र पर अपना सब-कुछ न्योछावर कर दिया है, ऐसे गुरु का मैं शिष्य हूं । मैं तुम्हारी किसी भी धमकी से डरनेवाला नहीं हूं । तुम जो करना चाहते हो, करो ।
४.हत्यारे द्वारा क्रर अत्याचार करने पर भी अपने गुरु की
इच्छा का पालन करनेवाले बेटे पर अभिमान और केवल पेट के लिए
मानवता की हत्या करनेवाले पर दया आती है, ऐसा बाबा बंदा बहादुर जी का कहना
इसके पश्चात, उस कसाई ने बाबा अजय सिंह के पैर पकडकर उसे आकाश में गोल-गोल घुमाया । उसी प्रकार, उसके शरीर में सुइयां चुभाकर तथा अत्याचार कर, उसे बहुत तडपाया और रुलाया । उस कसाई को लगा कि यह सब अत्याचार देखकर बाबा बंदा बहादुरजी स्वधर्म छोडकर इस्लाम धर्म अपना लेंगे । परंतु, बाबा बंदा यह सब शांत रहकर देख रहे थे । जब उस हत्यारे को लगा कि नन्हें बाबा अजय सिंह को कठोर यातना देने और रुलाने पर भी बाबा बंदा बहादुरजी अपने निर्णय पर अडिग हैं, तब उसने झुंझला कर बाबा बंदा बहादुरजी से कहा, अरे, तू कैसा बाप है ? किस मिट्टी का बना है ? तेरे इस नन्हें से बेटे पर इतना अत्याचार हो रहा है, फिर भी तुम इस्लाम धर्म स्वीकार करने के लिए तैयार नहीं हो रहे हो ! तब बाबा ने उलटे उससे पूछा, अरे जल्लाद तू क्या कर रहा है ? उसने कहा, मैं अपने राजा की आज्ञा का पालन कर रहा हूं । तब बाबा ने उससे कहा, पापी पेट के लिए तुम अपने राजा की आज्ञा का पालन कर रहे हो । उसके लिए तुम मानव और मानवता पर इतने अत्याचार कर रहे हो । जिसने अभी दुनिया नहीं देखी, जिसके माता-पिता की गोद में खेलने के दिन हैं, ऐसे नन्हें से बालक को शस्त्र बनाकर तुम मुझ पर आघात कर रहे हो, और इसका तुम्हें कुछ नहीं लगता । पर मैं तो दोनों लोकों के स्वामी, परम दानी १० वें पिता गुरु गोविंद सिंहजी की आज्ञा का पालन कर रहा हूं । इसलिए मुझे तुमपर दया आती है और अपने इस नन्हें से बालक का अभिमान लगता है । तो तुम अपने राजा की आज्ञा का पालन करो और मुझे अपने गुरु की इच्छा का पालन करने दो ।
५. हत्यारे का बच्चे की हत्या कर उसका मांस बाबा बंदा बहादुर जी के
मुंह में ठूंसने पर भी उनका अविचल रहना एवं अंततः स्वधर्म हेतु हुतात्मा (शहीद) होना
उस हत्यारे ने नन्हें से बच्चे को बाबा अजय सिंह को जमीन पर पटक पटक कर मार डाल । कटार से उसकी छाती छील दी । उसका कलेजा निकालकर बाबा बंदा बहादुर जी के मुंह में ठूंस दिया और उसकी आंतें निकालकर उनके गले में पहनाई । तब भी बाबा बंदा बहादुरजी अविचल रहे और बोले, वाहे गुरु, आपके आनंद में ही मेरा आनंद है । अंततः हत्यारे ने बाबा बंदा बहादुरजी को भी अत्यंत भीषण शारीरिक यातनाएं दीं और उनके शरीर के टुकडे कर उन्हें भी मार डाला । वे हुतात्मा (शहीद) हो गए । (पंजाब केसरी, ९ जून २००९ के सौजन्य से)