अनुक्रमणिका
अब तक हमने हिन्दू धर्म की श्रेष्ठता, विशेषताएं तथा हिन्दू धर्म और अन्य पंथों में भेद आदि के विषय में विविध लेखों से समझा ।
अब हम, ‘हिन्दू धर्म की रक्षा करना प्रत्येक हिन्दू का पहला कर्तव्य कैसे है’ इस विषय में तथा एक ‘हिन्दूू होने के नाते हम धर्मरक्षा के लिए क्या-क्या कर सकते हैं’, यह इस लेख से समझने का प्रयास करेंगे ।
१. धर्म रक्षा का इतिहास
१ अ. अवतार
भगवान ने प्रत्येक युग में अवतार लेकर सनातन वैदिक धर्म, अर्थात हिन्दू धर्म पर आक्रमण करनेवाले राक्षसों का संहार कर, धर्मरक्षा का आदर्श हमारे सामने रखा है । इन अवतारों में श्रीराम, श्रीकृष्ण और परशुराम विशेष प्रसिद्ध हैं ।
१ आ. धर्मसंस्थापक
ई्. पू. ५ वीं शताब्दी में बौद्धमत प्रबल हो गया । तब आदि शंकराचार्य ने शास्त्रार्थ के माध्यम से उसके विचारों का खंडन कर, हिन्दू धर्म की श्रेष्ठता पुनः स्थापित की ।
१ इ. संत-महात्मा
१. संत एकनाथ महाराज ने भागवत ग्रंथ के विविध उदाहरण देकर, समाज को अर्जुन की भांति अधर्म के विरुद्ध लडने के लिए प्रेरित किया ।
२. दया हेचि नाम । भूतांचे कारण ॥ आणिक निर्दालन । कंटकांचे ॥’, यह उपदेश संत तुकाराम ने किया ।
३. राष्ट्रगुरु समर्थ रामदासस्वामी के एक शिष्य को एक मुगल सरदार ने बंदी बना लिया था । यह पता चलते ही समर्थ उस सरदार के पास गए, उसे पीटा तथा अपने शिष्य को छुडाकर ले आए ।
४. एकबार नौका (जहाज) से यात्रा करते समय उसपर बैठे एक विदेशी यात्री ने हिन्दू धर्म के विरुद्ध बोलना आरंभ किया । तब, उस नौका से यात्रा करनेवाले स्वामी विवेकानंद तुरंत उठे और उस व्यक्ति की कलाई पकडकर गरजे, इसके आगे एक भी शब्द बोला, तो उठाकर समुद्र में फेंक दूंगा !
५. गोमंतक (गोवा) में पुर्तगालियों ने बहुत से हिन्दुओं का धर्मपरिवर्तन कराया था । उन सहस्रों (हजारों) धर्मांतरित हिन्दुओं को स्वधर्म में लाने के लिए परम पूज्य मसूरकर महाराज ने बहुत बडा शुद्धि अभियान चलाया ।
१ ई. राजा-महाराजा
राजा दाहिर (७ वीं शताब्दी), पृथ्वीराज चौहान (१२ वीं शताब्दी), सम्राट कृष्णदेवराय (१५ वीं शताब्दी), छत्रपति शिवाजी (१६ वीं शताब्दी), बाजीराव पेशवा (१८ वीं शताब्दी) आदि अनेक हिन्दू राजा-महाराजाओं ने विदेशियों के आक्रमणों से हिन्दू धर्म की रक्षा की थी ।
१. मुगलों ने असंख्य हिन्दू मंदिर तुडवाकर वहां मस्जिदें बनवाई थी । छत्रपति शिवाजी ने अनेक मस्जिदें ढहाकर वहां पुनः मंदिर बनवाए ।
२. औरंगजेब ने वाराणसी में विश्वनाथ मंदिर ढहाया । पश्चात, पुण्यश्लोक अहल्याबाई होलकर ने इंदौर से वाराणसी जाकर उस मंदिर का जीर्णोद्धार करवाया ।
२. धर्मरक्षा का महत्त्व
२ अ. आध्यात्मिक दृष्टि से
१. धर्मशास्त्र कहता है, ‘धर्म का अनादर होते देखकर भी जो चुप रहता है, वह महापापी है । परंतु, धर्म की रक्षा हेतु जो प्रयत्न करता है, वह मुक्ति का अधिकारी होता है ।’
२. जो मनुष्य धर्म की रक्षा करता है, धर्म (ईश्वर) भी उसकी रक्षा करता है ।
३. जो ईश्वर हमारे भीतर है, वही हमारे धर्मबंधुओं में है । एक ओर हम धर्माचरण और साधना कर अपने भीतर के ईश्वर को प्रसन्न करने का प्रयास करते हैं; परंतु दूसरी ओर संकट में पडे अपने धर्मबंधुओं पर आघात होते हुए भी संवेदनहीन रहते हैं, क्या इससे उनमें विद्यमान ईश्वर हम पर कभी कृपा करेंगे ?
४. कोई भी कार्य, कालानुसार करने का महत्त्व है । धर्म की रक्षा करना, वर्तमान समय में आवश्यक धर्मपालन है । गुरुतत्त्व भी हमें कालानुसार आवश्यक धर्मपालन करना सिखाता है । धर्म की रक्षा हेतु शिष्य अर्जुन ने कौरवों से युद्ध किया । इसलिए, वह गुरु श्रीकृष्ण के प्रिय थे।
तात्पर्य यह कि धर्मरक्षा करने के लिए प्रयत्न करने से ईश्वर की कृपा होती है ।
२ आ. राष्ट्रहित की दृष्टि से
सनातन धर्म हिन्दुस्थान का प्राण है । जब वह निकल जाएगा, तब हिन्दुस्थान का अंत होगा । तब आप कितनी भी राजनीति करें, समाजसुधार करें, कुबेर की संपूर्ण संपत्ति इस आर्यभूमि के प्रत्येक व्यक्ति को सौंप दें; सब व्यर्थ होगा ।’ – स्वामी विवेकानंद
३. हिन्दू धर्म की वर्तमान स्थिति
अवतारों, ऋषि-मुनियों, संतों और राजा-महाराजाओं के हाथों अनादि काल से रक्षित विश्ववंदनीय हिन्दू धर्म आज सब दिशाओं से संकटों से घिरा है । धर्मद्रोही और हिन्दूद्वेषी लोगं खुलकर हिन्दू धर्म पर प्रहार कर रहे हैं । धर्म पर आघात करनेवाले धर्मांध लोग अपने पूर्वजों की ही परंपरा चला रहे हैं । यह कम था, जो अपने को धर्मनिरपेक्षतावादी माननेवाले, आधुनिकतावादी, विज्ञानवादी और समाजसुधारक कहनेवाले कुछ हिन्दू ही, हिन्दू धर्म पर प्रहार कर रहे हैं । हमारे पूर्वजों ने जिस महान हिन्दू धर्म की रक्षा की थी, उसे बचाने के लिए प्रत्येक हिन्दू को अपने धर्म पर होनेवाले आघातों को पहचान कर, उसे रोकने का प्रयास करना चाहिए ।
४. धर्मरक्षा के लिए यह करें !
अ. चित्रों, विज्ञापनों, नाटकों, सम्मेलनों, समाचारपत्रों, उत्पादों आदि के माध्यम से होनेवाले देवताओं और राष्ट्र के महापुरुषों का अनादर रोकें ! देवता और महापुरुष के चित्रवाली वस्तुओं का उपयोग न करें !
आ. देवालयों में देवताओं की मूर्तियों की तोडफोड और चोरी न हो, इसके लिए देवस्थानों के न्यासियों (ट्रस्टियों) और ग्रामीणों का प्रबोधन करें !
इ. हिन्दुत्ववादी नेताओं और संतों की हत्या रोकने के लिए ‘स्वरक्षा प्रशिक्षण’ लेकर प्रतिकारक्षम बनें !
ई. हिन्दू संतों को अन्यायपूर्वक बंदी बनाना और कारागार में होनेवाले उनके उत्पीडन के विरुद्ध आंदोलन करें !
उ. हिन्दुओं की धार्मिक यात्राओं और देवताओं की झांकियों पर होनेवाले आक्रमणों, गोहत्या, लव जिहाद जैसी हिन्दू विरोधी गतिविधियों के विषय में हिन्दुओं का प्रबोधन करें !
ऊ. अंधश्रद्धा निर्मूलन कानून, मंदिर सरकारीकरण कानून जैसे धर्मविरोधी कानून बनानेवाली तथा मंदिरों को अवैध बताकर तोडनेवाली नीति का वैधानिक मार्ग से विरोध करें !
ए. विविध प्रकार के लालच दिखाकर अथवा बलपूर्वक होनेवाले हिन्दुओं के धर्मपरिवर्तन का विरोध करें !
ऐ. हिन्दू धर्म, देवता, धर्मग्रंथ, संत और राष्ट्र के महापुरुषों की निंदा-आलोचना करनेवालों के विरुद्ध पुलिस थाने में लिखित परिवादपत्र दें (शिकायत करें) ।
ओ. धार्मिक तथा सामाजिक उत्सवों में अनाचार (उदा. बलपूर्वक धनसंकलन, अश्लील नाच, स्त्रियों से छेडछाड, मद्यपान इत्यादि) न होने दें !
४ अ. धर्मरक्षा कार्य के चरण
१. प्रबोधन : धर्महानि करनेवाले व्यक्ति को ऐसा न करने के लिए समझाना और उसे परावृत्त करना !
२. निषेध : समझाने के बाद भी जो धर्महानि करना जारी रखता है, उसका विविध मार्गों से विरोध करें; उदा. पत्र, फैक्स अथवा ई-मेल’ भेजें; दूरभाष करें !
३. निवेदन : धर्महानि रोकने के लिए सरकार को ज्ञापन दें !
४. परिवाद लिखवाएं : धर्मभावना आहत होने पर पुलिस थाने में परिवाद लिखवाएं !
५. संयत आंदोलन : उपर्युक्त प्रयत्नों के पश्चात भी धर्महानि न रुके, तब संयत मार्ग से आंदोलन करें !
ऐसे विविध माध्यमों से कर्तव्यभाव से धर्मरक्षा करेंगे, तो आप भगवान के कृपापात्र बनेंगे ।
राष्ट्र और धर्म की रक्षा हेतु सनातन संस्था’ तथा हिन्दू जनजागृति समिति’ वैधानिक मार्ग से संघर्ष कर रही हैं । उनके इस कार्य में आप भी सम्मिलित हों !
सनातन संस्था का राष्ट्र और धर्म से संबंधित कार्य जानने के लिए यहां क्लिक’ करें !
www.sanatan.org/hindi/sanatan-activities
कार्य में सम्मिलित होने के लिए यहां क्लिक करें !
संदर्भ : सनातन-निर्मित ग्रंथ ‘धर्म’