अग्निहोत्र के कर्म को उपासना के रूप में
करने से उन संबंधित देवताओं के स्तरपर मिलनेवाले लाभ
अ. अग्निहोत्र करना आकाशमंडल में निहित सूक्ष्म देवताओं के तत्त्वों को जागृत कर उनकी तरंगों को भूमिमंडलपर खींच लेने का एक प्रभावशाली माध्यम है ।
आ. अग्निहोत्ररूपी कर्म में प्रजापतिरूपी उत्पत्तिशक्ति का जागृतिकरण होने से भूमिमंडल से संबंधित सात्त्विक इच्छाजन्य जननधारणाक्षम बीज उचित समय रहते प्रसवकर उनसे सत्त्वगुणात्मक घटकों की उत्पत्ति होने में सहायकारी होते हैं । इसका अर्थ इससे प्रजापति के आशीर्वादजन्य तरंगों का वायुमंडल में प्रसारण होने से उस संबंधित परिसर में प्रसवनेवाली प्रत्येक वस्तु सात्त्विक बीजधारणा से संबंधित घटको को बनाती है ।
इ. इस तेजोमंडल की सहायता से अनेक देवता भूमिमंडल से संलग्न रहकर अनेक भक्तजनों के लिए कार्य करते रहते हैं । इन देवताआें के निकट सान्निध्य से उस संबंधित भूमिमंडल के जिवों का, साथ ही अन्य प्राणिमात्रों का कल्याण होने में सहायता होती है ।
ई. अग्निहोत्र के कारण वायुमंडल में सिद्ध होनेवाले दिव्य तेजोमंडल पारदर्शी कांच के तेजोगोल की भांति होता है । परमाणुबम में बसे अत्यंत सूक्ष्म संहारक किरणों के लिए भी इस वायुमंडल को भेदना असंभव होता है । इससे संहारक घटकों से भी जीव की तथा उस संबधित वायुमंडल की रक्षा होती है ।
उ. अतः कलियुग में जब अनिष्ट शक्ति का प्रकोप बढता है, उस अवधि में आतंकी तंत्र से संपूर्ण देश को अर्थात समाज को अर्थात स्वयं को बचाना हो, तो अग्नि की सहायता से ब्रह्ममंडल की उस संबंधित देवताआें की तरंगों को भूमिमंडल की ओर आकर्षित करनेवाली अग्निहोत्र-साधना को अपनाना चाहिए ।
– सूक्ष्म जगत् के ‘एक विद्वान’ (श्रीमती अंजली गाडगीळ के माध्यम से)
अग्निहोत्र से मिलनेवाले लाभ
इस संसार में अग्निहोत्र का आचरण करनेवाले विभिन्न वंश, विभिन्न भाषाएं, विभिन्न धर्म तथा आध्यात्मिक इस प्रकार के २ समूह हैं ।
१. वातावरण शुद्धी
अग्निहोत्र से चैतन्यप्रदायी तथा औषधियुक्त वातावरण बनता है ।
२. अधिक पौष्टिक तथा स्वादिष्ट अनाज की फसल होना
अग्निहोत्र के कारण वनस्पतियों का वातावरण से पोषकद्रव्य मिलते हैं तथा उससे वे सुख का अनुभव करती हैं । कृषि तथा वनस्पति की वृद्धिपर अग्निहोत्र का भस्म भी अच्छे परिणाम दिलाता है । फलस्वरूप अधिक पौष्टिक तथा स्वादिष्ट अनाज, फल, फूल तथा सब्जियों की फसल मिलती है ।
३. प्राणिजीवन का पोषण
जिस प्रकार से अग्निहोत्र वनस्पति का पोषण करता है, उसी प्रकार से वह मनुष्य तथा समस्त प्राणिजीवन का भी पोषण करता है
४. अग्निहोत्र से बने वातावरण का बच्चों के मनपर सकारात्मक परिणाम होना
अ. अग्निहोत्र से बच्चों के मनपर अच्छा परिणाम होकर उनको अच्छे संस्कार मिलते हैं ।
आ. चिढैल और हठीले बच्चे शांत तथा समझदार बनते हैं ।
इ. बच्चों को अध्ययन में एकाग्रता होती है ।
इ. मद्धिम बच्चे उनकी की जा रही चिकित्सा का अधिक अच्छा प्रत्युत्तर करते हैं ।
५. अग्निहोत्र से दुर्दम्य इच्छाशक्ति उत्पन्न होकर मनोविकार दूर होकर मानसिक बल प्राप्त होना
नियमपूयर्वकअग्निहोत्र करनेवाले विविध स्तर की महिलाएं-पुरुष, बालक तथा वयस्कों में अधिक संतोष, जीवन के ओर सकारात्मकता के साथ देखने का दृष्टिकोण, मनशांति, आत्मविश्वास तथा अधिक कार्यप्रवणता आदि गुण विकसित होकर उनकी वृद्धि होने के अनुभव हैं । मदिरा तथा अन्य घातक मादक पदार्थों के आधीन लोग अग्निहोत्र के वातावरण में इन बुरी आदतों से मुक्त हो सकते हैं; क्योंकि उनमें दुर्दम्य इच्छाशक्ति उत्पन्न होती है, ऐसा दिखाई दिया है ।
६. मज्जासंस्थापर परिणाम
ज्वलन से निकालनेवाले धुएं का मस्तिष्क तथा मज्जासंस्थापर प्रभावशाली परिणाम होता है ।
७. रोगकारक कीटाणुओं का निरोधन
कुछ शोधकर्ताओं के यह ध्यान में आया है कि अग्निहोत्र के औषधियुक्त वातावरण के कारण रोगकारक कीटाणुआें की वृद्धि में प्रतिबंध होता है ।
८. सुरक्षाकवच बनना
अग्निहोत्र से अपने आसपास एक प्रकार का सुरक्षाकवच बनने का प्रतीत होता है ।
९. अग्निहोत्र के कारण प्राणशक्ति शुद्ध होकर उस वातावरण में रहनेवाले लोगों
के मन त्वरित प्रसन्न तथा आनंदित बनना तथा उस वातावरण में ध्यानधारणा सहजता से संभव होना
अग्निहोत्र के कारण प्राणशक्ति शुद्ध होने का सकारात्मक वातावरण में रहनेवाले व्यक्ति के मन पर तुरंत परिणाम होता है । उसका तनाव बिना किसी प्रयास के दूर होता है । उसे अपना मन प्रसन्न और आनंदित होने का अनुभव होता है । उस वातावरण में ध्यान, उपासना, मनन, चिंतन तथा अभ्यास करना सहजता से संभव होता है ।
– डॉ. श्रीकांत श्री गजानन महाराज राजीमवाले, शिवपुरी, अक्कलकोट
१. अग्निहोत्र से उत्पन्न अग्नि रज-तमों के कणों को विघटित करनेवाला तथा वायुमंडल में लंबे समयतक विचरणेवाला होने से यदि इस प्रक्रिया को निरंतर चलाया गया, उसके कारण मनुष्य के आसपास १० फीट की दूरीतक सुरक्षाकवच बनता है । यह कवच तेज से संबंधित बातों के प्रति अत्यंत संवेदनशील होता है । सूक्ष्म से यह कवच सिंदुरिया रंग का दिखता है ।
२. जिस-जिस समय अच्छी बातों से संबंधित तेज, इस कवच के संपर्क में आता है, उस समय कवच में व्याप्त सिंदुरिया रंग के तेज के कण इस तेज को स्वयं में समा लेकर अपने कवच को बल प्रदान करते हैं ।
३. रज-तमात्मक तेजकण कर्कश स्वरूप में आघात करनेवाले होने से उनके अपने निकट आने का समाचार इस कवच को पहले ही मिलता है तथा वह हमारे माध्यम से प्रतिक्षिप्त क्रिया के रूप में कई तेजतरंगों का तीव्र गति से उत्सर्जित कर उस कर्कश नाद को ही नष्ट कर देता है तथा उसमें स्थित नाद उत्पन्न करनेवाले तेजकणों को ही नष्ट कर देता है । इससे इन तेजतरंगों में व्याप्त तेज आघात करने में सामर्थ्यहीन बन जाते हैं । इसका अर्थ बम में स्थित आघातात्मक विघातक स्वरूप में उत्सर्जित हानेेवाले ऊर्जावलयों के पहले ही मारे जाने से बम किरणोत्सारी बनने की दृष्टि से निष्क्रिय बन जाता है । अतः वह यदि फेंका भी गया, तो उससे होनेवाली मनुष्यहानि कुछ मात्रा में टल जाती है । बम का विस्फोट होनेपर भी उससे तीव्र गति से फेंकी जानेवाली रज-तमजन्य तरंगें वायूमंडल में स्थित इस सूक्ष्मतररूपी अग्निकवच को धक्का मारकर उसमें ही विघटित होते हैं तथा उसका सूक्ष्म परिणाम भी वहीं नष्ट होने से वायुमंडल अगले प्रदूषण के संकट से मुक्त हो जाता है ।
– एक विद्वान (श्रीमती अंजली गाडगीळ के माध्यम से, १८.२.२००८, सायंकाल ६.५५)
संदर्भ : सनातन द्वारा प्रकाशित ग्रंथ ‘अग्निहोत्र’
वायु प्रदूषण का ठोस उपाय अग्निहोत्र !
पिछले कुछ दिनों से बढते प्रदूषण के कारण देहलीवासी अस्वस्थ बने हुए हैं । प्रदूषण के स्तर उच्चांकतक पहुंचने से वहां के स्वास्थ्यमंत्री ने सडकपर वाहने उतारने के लिए ‘सम-विषम’ की संकल्पना को पुनः लागू करने का निर्णय किया । ‘सफर इंडिया’ (सिस्टम ऑफ एयर क्वालिटी एन्ड वेदर फोरकास्टिंग रिसर्च) संस्था द्वारा दिए गए ब्यौरे के अनुसार विगत ५ वर्षों में सब से अधिक प्रदूषण इस वर्ष हुआ है । वहां के प्रदूषण ने सभी सीमाएं लांघने से विद्यालय बंद रखने पडे तथा अंतिम विकल्प के रूप में लोगों को घर से बाहर न आने का निर्देश दिया गया । प्रदूषण की समस्या इतनी गंभीर बननेतक सरकार ने समय रहते कोई समाधान-योजना क्यों नहीं निकाली, यह प्रश्न भी उतना ही गंभीर है । राजधानी देहल में जैसे प्रदूषण इतना है, उतना ही वह उत्तर भारत के अनेक स्थानोंपर है ।
इस घटना के पश्चात मुंबई तथा पुणेसहित राज्य के अन्य बडे नगरों में बढते हुए प्रदूषण की चर्चा हो रही है । ‘सफर इंडिया’ के ब्यौरे के अनुसार देहली के पीछे-पीछे अब प्रदूषित नगर के रूप में पुणे का क्रम लग गया है । मुंबई देश की आर्थिक राजधानी होते हुए भी पुणे ने प्रदूषण में मुंबई को भी पीछे छोड दिया है । वहां के विशेषज्ञों का यह मानना है कि पुणे का तापमान अल्प होने से वहां का प्रदूषण बढ गया है । हवा में बढते हुए प्रदूषकों के कारण सरदी-जुकाम, खांसी तथा सांस के अनेक विकारों से पुणेकर त्रस्त बन चुके हैं । उसमें ही पुणे में दोपहिया वाहनों की संख्या अधिक होने से प्रदूषण में और वृद्धि ही हो रही है । एक समय में शुद्ध हवा तथा पानी के लिए विख्यात पुणे का परिचय प्रदूषित नगर के रूप में होना दुर्भाग्यजनक कहना होगा ।
विद्यालयीन पाठ्यक्रम में प्रदूषण के अनेकों दुष्परिणामों का ज्ञान दिया जाता है; परंतु उसपर ठोस उपाय नहीं किए जाते । पृथ्वी का संतुलन बिगाडने में प्रदूषण एक महत्त्वपूर्ण घटक है । उसके साथ ही प्रदूषण के कारण मनुष्य का शरीर तथा मन का संतुलन बिगडता है । शारीरिक विकारों के कारण मनुष्य को निराशा आने से उसकी सकारात्मक विचारों को ग्रहण करने की क्षमता अल्प हो जाती है । इसके फलस्वरूप अयोग्य विचारों के कारण उसके द्वारा अज्ञानतावश अयोग्य कृत्य भी किए जाते हैं । वेद तथा पुराणों में मनुष्य को सदा सकारात्मक रहकर आनंदित कैसे रहना है, इसके कई रहस्य लिखे गए हैं । मनुष्य का मन सकारात्मक होने में उसके आसपास का परिसर स्वच्छ और सुंदर होना चाहिए । परिसर स्वच्छ रहने के लिए हवा स्वच्छ होनी चाहिए तथा हवा स्वच्छ होने के लिए नियमित रूप से अग्निहोत्र करना, एक उपाय है ।
अग्निहोत्र के फलस्वरूप भौतिकरूप से वायु की शुद्धता होकर उससे मनुष्य मन की भी शुद्धि होती है । मन शुद्ध होने से अपनेआप ही उसके आचार-विचार प्रभावित होकर अंतिमतः मनुष्य आनंदित होता है । अग्निहोत्र में उपयोग किए जानेवाली सामग्री के कारण हवा में व्याप्त प्रदूषित घटकों की मात्रा अल्प होती है, यह शास्त्रीयदृष्टि से सिद्ध हो चुका है । संसार के अनेक देशों मे इस विषय में अध्ययन होकर वहांपर भी प्रदूषण के उपाय के रूप में अग्निहोत्र का उपयोग किया जा रहा है । इससे वैदिक परंपरा का महत्त्व ध्यान में आता है । वायुशुद्धता के बाह्य उपायों के साथ ही साधना अर्थात धर्माचरण भी उतना ही आवश्यक हो जाता है । हिन्दू संस्कृति के महत्त्व को जान लेकर उसमें निहित कुछ धार्मिक कृत्यों को जब अपनाया जाएगा, तभी देश वास्तविक विकास की ओर अग्रसर होगा ।
कु. ऋतुजा शिंदे, पुणे
संदर्भ : दैनिक सनातन प्रभात
वेदों द्वारा मनुष्य के कल्याण के लिए प्रदान किए गए ज्ञान के द्वारा अग्निहोत्र
का आचरण कर कृषी करने से फसल अच्छी आती है । – स्वामी दयानंद शास्त्री
सभी प्रकार का प्रदूषण दूर होकर मनुष्य के कल्याण के लिए अग्निहोत्र आवश्यक !
अब हवा-पानी से लेकर विचारों के प्रदूषण ने उच्च स्तर को प्राप्त किया है । उसके कारण गिर रहा प्राकृतिक चक्र का संतुलन, तीव्र गति से बदलनेवाला मौसम, नए-नए रोग, बढता तनाव जैसी बातों से सब कुछ भयसूचक स्थितितक पहुंच गया है । सर्वत्र निढालता, उदासपन और निराशा फैली हुई प्रतीत होती है । प्रगत प्रौद्योगिकी भी इस स्थितिपर ठोस उपाय नहीं दे सकती; इसलिए अपनी जीवनशैली में परिवर्तन कर अग्निहोत्र को अपनाना महत्त्वपूर्ण बन गया है ।
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