जगद्गुरु श्री संत तुकाराम महाराज का सदेह वैकुंठगमन हुआ । उनको वैकुंठ ले जाने के लिए स्वयं भगवान ही वैकुंठ से पधारे और उन्होंने उनको सदेह वैकुंठ ले जाया । यह त्रिवार सत्य है; परंतु कुछ आधुनिकतावादी लोग, हिन्दू धर्म विध्वंसक संगठन ‘तुकाराम महाराज का सदेह वैकुंठगमन नहीं हुआ, अपितु उनकी हत्या की गई’, ऐसा दुष्प्रचार कर रहे हैं । उनका उद्देश्य ब्राह्मण और मराठा समुदायों में विद्वेष फैलाना ही है । इसलिए इस लेख में धर्मग्रंथ में निहित कुछ प्रमाण देकर किए जा रहे दुष्प्रचार की तथा झूठेपन की पोल खोलने का प्रयास किया गया है ।
१. तुकाराम महाराज का उत्पीडन करनेवाले
रामेश्वर भट बन गए तुकाराम महाराज के शिष्य !
नाब्रह्म क्षत्रमृध्नोति ना क्षत्रं ब्रह्म वर्धते ।
अर्थ : ब्राह्मतेज के बिना क्षात्रतेज बढ नहीं सकता तथा क्षात्रतेज के बिना ब्राह्मतेज बढ नहीं सकता । ब्राह्मतेज तथा क्षात्रतेज एकत्रित हो गए, तो उनका केवल इस लोक में ही नहीं, अपितु परलोक में भी उत्कर्ष होता है । उसी प्रकार से यदि ब्राह्मण और क्षत्रिय एकत्रित हुए, तो ये दोनों वनों को जलानेवाली अग्नि की भांति शत्रु को जला देंगे ।
महाभारत में बताया गया है कि,
ब्रह्म क्षत्रेण संसृष्टं क्षत्रं च ब्रह्मणा सह । उदीर्णो दहतः वनानीवाग्निमारुतौ ॥
महाभारत, पर्व ३, अध्याय २७, श्लोक १०
अर्थ : वायु और अग्नि जिस प्रकार से एकत्रित होनेपर वनों को भी नष्ट कर देते हैं, उसी प्रकार से ब्राह्मण और क्षत्रिय यदि एकत्रित हुए, तो शत्रु को नष्ट कर देंगे ।
इसी कारण हिन्दू धर्मविध्वंसक संगठन ब्राह्मणों को लक्ष्य बनाकर ‘संत तुकारा महाराज की हत्या ब्राह्मणों ने की’, ऐसा दुष्प्रचार कर रहे हैं; अर्थात ब्राम्हण एवं मराठा समुदायों में विद्वेष फैला रहे हैं । इन नास्तिकतावादी लोगों को यह भी समझ लेना चाहिए कि जिन्होंने तुकाराम महाराज का उत्पीडन किया, वही रामेश्वर भट आगे जाकर संत तुकाराम महाराज के शिष्य बन गए । वे कहते हैं कि ‘संत तुकाराम तथा ब्रह्माजी की तुलना करनेपर –
तुकितां तुलनेसी । ब्रह्म तुकासी आलें ।
म्हणोनी रामेश्वरें । चरणी मस्तक ठेविलें ॥ आरती तुकारामा ॥
इसका अर्थ रामेश्वर भट ने तुकाराम महाराज की महानता का वर्णन करते हुए लिखा, ‘तुकाराम महाराज तथा ब्रह्माजी तुलना में समान हैं’; परंतु उन्होंने तुकाराम महाराज की हत्या की, ऐसा दुष्प्रचार किया जा रहा है ।
१ अ. संत तुकाराम महाराज के कुल शिष्यों में ९ शिष्यों का ब्राह्मण होना
एक धर्मविरोधी ने ‘रामदासी ब्राह्मणों ने तुकाराम महाराज की हत्या की’, इसकी कथा बतानेवाला पुस्तक ही लिखा । वास्तव में संत तुकाराम महाराज के कुल शिष्यों में से ९ शिष्य ब्राह्मण थे ।
१. महादजीपंत देहूकर (करताल बजानेवाले)
२. गंगाराम मवाळ कडूरकर (करतालधारी)
इनका उपनाम ‘महाजन’ था; परंतु उनका स्वभाव सौम्य था; इसलिए तुकाराम महाराज ने उनका उपनाम ‘मवाळ’ (हिन्दी में सौम्य) रखा था ।
३. कोंडोपंत लोहकरे पुणेकर (करतालधारी)
यह तुकाराम महाराज के अभंगगायन के समय ध्रुपद गाने की साथ करते थे । उन्होंने जब तुकाराम महाराज से काशी जाने के लिए सहायता मांगी, तब तुकाराम महाराज ने उनकी सहायता की । उन्होंने अपने ३ अभंग (भक्तिरचनाएं) भागीरथी, विश्वेश्वर तथा विष्णुपद को समर्पित करने के लिए कहा ।
४. अंबाजीपंत लोहगावकर (करतालधारी)
यह लोहगाव के जोशी-कुलकर्णी थे । वे एक बार जब मध्यरात्रि में कीर्तन सुन रहे थे, तब उनके पुत्र की मृत्यु हुई । तब उनकी पत्नी ने अपने पुत्र का शव तुकाराम महाराज के सामने रख दिया, उस समय महाराज ने ईश्वर से प्रार्थना कर उसके पुत्र को पुनः जीवित किया ।
५. संत बहिणाबाई
इनका महत्त्व अनन्यसाधारण है । वे स्वयं ब्राह्मण थीं; परंतु उन्होंने अधर्मी ब्राह्मणों की तीव्रता से आलोचना की है । वे कहती थीं, ‘जो ब्रह्म को जानता है, वही वास्तविक ब्राह्मण है !’ उसके कारण जिसने तुकाराम महाराज को कष्ट पहुंचाया, उसी मंबाजी नामक व्यक्ति ने संत बहिणाबाई को भी कष्ट पहुंचाएं । उन्होंने उनकी गाय को भी अपने घर में बंद कर रखा था । इसका अर्थ यही है कि मंबाजी कपटी तथा वर्चस्ववादी था, जिसने तुकाराम महाराज के साथ ब्राह्मणों की भी पीडा पहुंचाई ।
६. रामेश्वर भट
मंबाजी भट के प्रभाव में आकर रामेश्वर भट तुकाराम महाराज के कट्टर शत्रु बन गए थे । इतने कट्टर कि उन्होंने तुकाराम महाराज की गाथा (भक्तिरचनाआें का ग्रंथ) को नदी में डुबो देने की आज्ञा दी थी; परंतु आगे जाकर तुकाराम महाराज की महानता ध्यान में आनेपर उन्हें अपने कृत्योंपर पछतावा हुआ । उनको यह साक्षात्कार हुआ कि संत तुकाराम तो नामदेव महाराज के अवतार हैं । अतः रामेश्वर भट आगे जाकर तुकाराम महाराज के पट्टशिष्य बन गए ।
७. कचेश्वर ब्रह्मे
८. मल्हारपंत कुलकर्णी-चिखलीकर
९. निळोबाराय पिंपळनेरकर
इन्होंने तुकाराम महाराज का स्तुतिगान करनेवाले ७३३ अभंग लिखे ।
इस प्रकार से तुकाराम महाराज के ९ शिष्य ब्राम्हण थे, तो ब्राह्मण तुकाराम महाराज की हत्या क्यों करेंगे ? इससे यह ध्यान में आता है कि मुट्ठीभर ब्राह्मणों द्वारा तुकाराम महाराज का विरोध किया गया; परंतु वही ब्राह्मण आगे जाकर उनके शिष्य बन गए । तुकाराम महाराज की हत्या नहीं, अपितु उनका सदेह वैकुंठगमन ही हुआ था ।
२. विमान द्वारा सदेह वैकुंठगमन के पौराणिक संदर्भ
कुछ नास्तिकतावादी लोग हिन्दू धर्म के सभी ग्रंथों को झूठे प्रमाणित कर अपने कुतर्क से ‘तुकाराम महाराज की हत्या की गई थी’, ऐसा बतातें घूम रहे हैं; परंतु तुकाराम महाराज की हत्या नहीं, अपितु उनका सदेह वैकुंठगमन ही हुआ था ।
२ अ. वैकुंठगमन के विषय में तात्कालीन संतों द्वारा लिखे गए अभंग
१. सकळ ही माझी बोळवण करा । परतोनि घरा जावे तुम्ही ॥ – संत तुकाराम
२. माझ्या भावे केली जोडी । नजरेसी कल्प कोडी ॥ आणियेले धाडी । आणले अवघे वैकुंठ ॥ – संत कान्होबा
३. म्हणे रामेश्वर सकळा पुसोनि । गेला तो विमानी बैसोनिया ॥ – रामेश्वर भट
४. सांगोनिया गेले वैकुंठासी लोला । धन भाग्य तुका देखियेला ॥
। प्रयाणकाळी देवे विमान पाठविले ।
। कलीच्या कालामाजी अद्भुत वर्तविले । मानव देह घेऊनी निजधामास गेले । निळा म्हणे सकळ संत तोषविले ॥ – संत निळोबा
इस प्रकार के वैकुंठगमन से संबंधित सहस्रों अभंगों के होते हुए आप उनके वैकुंठगमन को हत्या कैसे प्रमाणित करते हैं ?
२ आ. श्रीमद्भागवत में उल्लेखित वैकुंठ का वर्णन
‘संत तुकाराम महाराज का वैकुंठगमन अथवा हत्या ?’ इस पुस्तक में सुदाम सावरकर कहते हैं, ‘‘इस विश्व में कोई वैकुंठ ही नहीं है ।’’ परंतु हिन्दुआें के सभी ग्रंथों में वैकुंठ का वर्णन है । श्रीमद्भागवत के तीसरे स्कंद के १५वें अध्याय के १३ से ५०वें श्लोकों में वैकुंठ का वर्णन है । इसलिए सुदाम सावरकर का ऐसा कहना मूर्खतापूर्ण है
१. त एकदा भगवतो वैकुण्ठस्यामलात्मनः ।
अर्थ : एक बार वे (सनकादि ऋषि) भगवान श्रीविष्णुजी के पवित्र वैकुंठलोक में पहुंचे । यह वैकुंठलोक सभी के लिए वंदनीय है । कुछ नास्तिकतावादी कहते हैं कि, क्या उस समय विमान था । तो भागवत में विमान का भी निम्न प्रकार से वर्णन है,
२. वैमानिकाः सललनाश्चरितानि शश्वद् । श्रीमद्भागवत, स्कंद ३, अध्याय १५, श्लोक १७
अर्थ : श्रीविष्णुजी के वैकुंठ लोक के पार्षद अपनी स्रियोंसहित विमान से भ्रमण करते थे ।
३. तुकाराम महाराज के वैकुंठगमन के साक्षी
संत कान्होबा, रामेश्वर भट, वाघोलीकर, दासनामा शिंपी, गंगाधर मवाळ कडूसकर, संताजी जगनाडे तेली सुदुंबरे, नावजी माळी देहूकर, गवरशेठ वाणी सुंदुकारेकर, शिवाजी कासार-लोहगावकर, कोंड पाटिल-लोहगावकर, शिवाजी कासार-लोहगावकर, मालजी गाडे, येलबाडीकर, मल्हारपंत चिखलीकर, रंगनाथ स्वामी निगडीकर, महंत कचेश्वर ब्रह्मे, नारायणबुवा देहूकर, बाळाजी जगनाडे
इतने सभी लोग संत तुकाराम महाराज के सदेह वैकुंठगमन के समय के प्रत्यक्षदर्शी थे ।
– ह.भ.प. शुभम् महाराज वक्ते (ह.भ.प. वक्ते महाराज के पुत्र), पंढरपुर
स्त्रोत : दैनिक सनातन प्रभात