भारतीय संविधान में ‘सेक्युलर’ शब्द की कोई व्याख्या नहीं है ! – चेतन राजहंस, राष्ट्रीय प्रवक्ता, सनातन संस्था

 

बाएं से हिन्दू जनजागृति समिति के श्री विश्‍वनाथ कुलकर्णी, मध्य में सेवानिवृत्त जिला न्यायाधीश डी.एन. श्रीवास्तव तथा सनातन संस्था के श्री चेतन राजहंस

कुशीनगर (उत्तरप्रदेश) : आज शासन में बैठे लोग भारतीय संविधान के ‘सेक्युलर’ शब्द का उपयोग कर, हिन्दुआें का दमन कर रहे हैं अथवा प्रसारमाध्यमों के स्वघोषित बुद्धिजीवी लोग हिन्दुआें से वैचारिक अन्याय कर रहे हैं । वस्तुतः, भारतीय संविधान में ‘सेक्युलर’ शब्द की कोई व्याख्या अथवा अर्थ नहीं बताया गया है । अतः, आजके कई लोग ‘सेक्युलर’ शब्द के ‘धर्मनिरपेक्षता’, ‘सर्वधर्मसमभाव’, ‘लौकिकवाद’ जैसे विभिन्न अर्थ निकाल लेते हैं ।

अब हिन्दुआें को मांग करनी चाहिए कि भारतीय संविधान में बाद में डाले गए अर्थहीन शब्द ‘सेक्युलर’ को हटाकर, वहां ‘सनातन धर्माधिष्ठित’ शब्द लिखा जाए । ऐसा कहा जाता है कि ‘वर्तमान केंद्र सरकार पुरुषार्थी तथा बहुमतवाली है ।’ यदि यह सत्य है, तो यह सरकार संविधान के अनुच्छेद ३६८ का उपयोग कर, भारत में हिन्दू राष्ट्र की स्थापना का संवैधानिक मार्ग प्रशस्त करे । सनातन संस्था के राष्ट्रीय प्रवक्ता श्री चेतन राजहंस ने यह विचार, कुशीनगर में, ‘सेक्युलरवाद तथा उससे हुई हानि’ विषय पर आयोजित एक कार्यक्रम में व्यक्त किया । इस कार्यक्रम की अध्यक्षता सेवानिवृत्त जिला न्यायाधीश श्री डी.एन. श्रीवास्तव ने की । कार्यक्रम का आयोजन तथा संचालन कुशीनगर के सेवानिवृत्त प्राध्यापक डॉ. रामजीलाल मिश्र ने किया । उन्होंने आगे कहा, ‘‘सेक्युलर शब्द की संकल्पना ईसाई पंथ से प्रेरित है । यूरोप के ईसाई कैथोलिक, प्रोटेस्टैण्ट, प्रिस्बेरियन, आर्थोडॉक्स आदि विविध उपपंथों में बंटे हैं । उनमें चलनेवाले धार्मिक एवं नागरी संघर्ष को समाप्त करने के लिए यूरोपीय देशों ने एक ऐसी व्यवस्था बनाई, जिसके अंतर्गत यदि लौकिक अर्थात, नागरी कानून सेक्युलर हों, तो पारलौकिक अर्थात, धार्मिक कानून उस देश के सरकारमान्य विशिष्ट उपपंथ के होेंगे । भारत में यह यूरोपीय संकल्पना अनावश्यक थी; फिर भी, घोर अहंकारी और जनविरोधी भारतीय शासकों ने वर्ष १९७६ में आपातकाल के समय विपक्षी नेताआें को कारागार में डालकर, प्रचंड/ दो तिहाई/तीन चौथाई बहुमत के बलपर, भारतीय संविधान में ४२ वां संशोधन कर, उसकी प्रस्तावना में ‘सेक्युलर’ शब्द जोड दिया । यदि ऐसा करना उचित था, तो उसी संसदीय अधिकारों का उपयोग कर, उसे हटाना भी उचित है । आज भारत के तथाकथित सेक्युलरवादियों को इस सच्चाई से अवगत कराने की आवश्यकता है ।’’

स्रोत : दैनिक सनातन प्रभात

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